कहते हैं दुनिया में दो तरह के लोग हैं। एक, वो जो फेसबुक पर हैं और दूसरे, वो जो फेसबुक पर नहीं हैं। यह अतिरंजना हो सकती है, पर दुनिया भर में फेसबुक ने जितनी तेजी से लोगों को अपना दीवाना और स्टेटस सिम्बल का प्रतीक बनाया है, वह एक शोध का विषय हो सकता है। आखिर यूँ ही इसने अपने मुकाम के दशक वर्ष में प्रवेश नहीं कर लिया है।
जब से सोशल मीडिया का आरंभ हुआ है, तब से फेसबुक ही दुनिया भर में छाया हुआ है। संदेशों के लेन-देन के और भी विकल्प मौजूद हैं, पर फेसबुक सबका अगुआ बन चुका है। लोगों को एक-दूसरे से जोड़ने के अलावा, बिछड़े हुए को मिलाने और त्वरित संदेश भेजने के अलावा अपने संदेशों के आदान-प्रदान के लिए इसे सबसे सही और जबरदस्त माध्यम माना जाता है। किसी समालोचक ने ठीक ही लिखा कि फेसबुक हमारे लिए अपनों से जुड़ने, उनसे संवाद करने का एक जरिया है। इस प्रक्रिया में एक मानसिक संतोष है कि जो हमसे दूर हैं, वे बहुत दूर भी नहीं हैं। फेसबुक का न होना इस संतोष से वंचित होना है।
बकौल हरजिंदर, सीनियर एसोशिएट एडिटर, हिन्दुस्तान फेसबुक पर सक्रिय किसी उत्साही शख्स के दोस्तों की सूची खंगालिए। इसमें उसके परिवार के सदस्य, रिश्तेदार, दफ्तर या कामकाज के सहयोगी और कुछ अड़ोसी-पड़ोसी तो होंगे ही, साथ ही वे लोग भी होंगे, जिनके साथ उसने स्कूल में पढ़ाई की थी, जिनके साथ वह कॉलेज गया था, जिनके साथ गली-मुहल्ले में तरह-तरह के खेल खेले थे, गप्पें लड़ाई थीं, या आवारागर्दी की थी, जिनके साथ वह कई मसलों पर इत्तेफाक रखता है और वे लोग भी, जिनके साथ आगे चलकर कार्य-व्यापार वगैरह में कुछ संभावनाएं बनती हों। एक बार इस सूची को फिर से देखें। इसमें दुनिया भर में रह रहे वे लोग हैं, जो दरअसल उसका अतीत हैं। वे लोग हैं, जो उसके वर्तमान से जुड़े हैं। और वे भी लोग हैं, जिनसे वह भविष्य की कोई उम्मीद बांधता है। यही फेसबुक की ताकत है कि उसमें आप अपने अतीत से लेकर भविष्य तक के तमाम लम्हों को एक साथ जी सकते हैं। बिल्कुल अभी, किसी भी क्षण। पर जो भी हो फेसबुक यह असल जिंदगी के सोशल नेटवर्क का विकल्प नहीं है, उस सोशल नेटवर्क का, जिसमें पड़ोसी, दोस्त, रिश्तेदार जरूरत पड़ने पर एक-दूसरे के काम आते थे।
4 फरवरी 2004 को अमेरिका में मार्क जकरबर्ग द्वारा स्थापित किए गए इस ऑनलाइन संदेशवाहक से आज करोड़ों लोग जुड़े हुए हैं और लगभग हर दिन मीडिया में इससे संबंधित सुर्खियां जरूर रहती हैं। यहां तक कि कई मीडिया संस्थान भी खबरों के प्रचार-प्रसार के लिए इसका उपयोग कर रहे हैं। दुनियाभर में फैले अपने 1 . 2 अरब चाहने वालों के बीच सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक अपना दसवां जन्मदिन मना रहा है. यह अलग बात है कि दस साल के फेसबुक को इस समय अपने युवा इस्तेमालकर्ताओं को अपने साथ जोड़े रखने के लिए विभिन्न प्रकार के नए प्रयोग करने जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
मार्क जुकरबर्ग ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से चार फरवरी 2004 को फेसबुक की शुरुआत की थी. इस साइट का प्रारुप इस प्रकार डिजाइन किया गया था कि यह छात्रों को एक दूसरे से जोड़े और उन्हें आनलाइन अपनी एक पहचान कायम करने में मदद करे. फेसबुक का प्रभाव ऐसा था जिसने दोस्त की नई परिभाषा गढ़ी, यानी फेसबुक पर किसी व्यक्ति का मित्र। इसके जरिए कोई भी व्यक्ति किसी को भी फॉलो कर उसका मित्र बन सकता है। साल 2013 में फेसबुक ने 7.87 अरब डॉलर की कमाई थी, जिसमें 1.5 अरब डॉलर शुद्ध मुनाफा शामिल था।
मई में 30 साल के होने जा रहे जुकरबर्ग ने पिछले सप्ताह सिलिकान वैली में एक औद्योगिक सम्मेलन में कंपनी के दस साल पूरे होने पर विशेष भाषण दिया था. जुकरबर्ग ने कहा था कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि फेसबुक उन्हें दुनिया के सबसे धनी लोगों की पंक्ति में लाकर खड़ा कर देगी. फेसबुक को अब कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. सोशल नेटवर्किंग साइट पिनट्रेस्ट, ट्विटर और स्नैप चैट जैसी साइटों ने फेसबुक के लिए मुकाबला कड़ा कर दिया है और उसे अपने मूल युवा इस्तेमालकर्ताओं को बनाए रखने के लिए नए नए उपाय सोचने पड़ रहे हैं. आईस्ट्रेटेजीलैब्स की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक जनवरी 2011 से जनवरी 2014 के बीच 13 से 17 साल की उम्र के 30 लाख से अधिक उपयोगकर्ता ने अपना अकांउट बंद कर दिया है। यही हाल 18 से 24 साल के बीच के युवाओं का भी रहा है।
फेसबुक की इंडिया चीफ 42 वर्षीया कृतिगा रेड्डी का कहना है कि वर्ष 2014 एफबी इंडिया के लिए अहम होगा. रेड्डी चाहती हैं कि भारतीय कंपनियां फेसबुक को सोशल मीडिया नहीं, बल्कि मास मीडिया प्लैटफॉर्म के रूप में देखें. गौरतलब है कि भारत में एफबी के करीब 9 करोड़ 30 लाख यूजर्स हैं. दिसंबर 2013 तक के आंकड़ों के अनुसार, इनमें से 7 करोड़ 50 लाख यूजर्स मोबाइल के जरिए एफबी पर थे. अमेरिका के बाद भारत इसका दूसरा सबसे बड़ा यूजर बेस है. मोबाइल प्लैटफॉर्म को ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करने की एफबी की योजना को देखते हुए लग रहा है कि भारत में इसे सही मंच मिल गया है. चार साल पहले जब रेड्डी ने कंपनी का ज्वॉडन किया था उस समय भारत में इसके यूजर 80 लाख थे. भारत में हर महीने एफबी से करीब 20 लाख लोग जुड़ रहे हैं. यह 9 भाषाओं में अपनी सेवा दे रही है. रेड्डी के सामने अगला लक्ष्य इसके यूजर बेस को 10 करोड़ तक पहुंचाना है. रेड्डी ने कहा कि मुझे पता है कि अब से 18 महीने बाद मीडिया लैंडस्केप अलग होगा और इस बदलाव को रफ्तार देने में फेसबुक की अहम भूमिका होगी. उन्होंने कहा कि तमाम कंपनियां और ब्रैंड्स इस प्लैटफॉर्म को अपनाएंगे.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें