महिला-दिवस सुनकर बड़ा अजीब लगता है. क्या हर दिन सिर्फ पुरुषों का है, महिलाओं का नहीं ? पर हर दिन कुछ कहता है, सो इस महिला दिवस के मानाने की भी अपनी कहानी है. कभी महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई से आरंभ हुआ यह दिवस बहुत दूर तक चला आया है, पर इक सवाल सदैव उठता है कि क्या महिलाएं आज हर क्षेत्र में बखूबी निर्णय ले रही हैं.
मात्र कुर्सियों पर नारी को बिठाने से काम नहीं चलने वाला, उन्हें शक्ति व अधिकार चाहिए ताकि वे स्व-विवेक से निर्णय ले सकें. आज नारी राजनीति, प्रशासन, समाज, संगीत, खेल-कूद, फिल्म, साहित्य, शिक्षा, विज्ञान, अन्तरिक्ष सभी क्षेत्रों में श्रेष्ठ प्रदर्शन कर रही है, यहाँ तक कि आज महिला आर्मी, एयर फोर्स, पुलिस, आईटी, इंजीनियरिंग, चिकित्सा जैसे क्षेत्र में नित नई नजीर स्थापित कर रही हैं। यही नहीं शमशान में जाकर आग देने से लेकर पुरोहिती जैसे क्षेत्रों में भी महिलाएं आगे आ रही हैं. रुढियों को धता बताकर महिलाएं हर क्षेत्र में परचम फैलाना चाहती हैं.
पर इन सबके बावजूद आज भी समाज में बेटी के पैदा होने पर नाक-भौंह सिकोड़ी जाती है, कुछ ही माता-पिता अब बेटे-बेटियों में कोई फर्क नहीं समझते हैं...आखिर क्यों ? क्या सिर्फ उसे यह अहसास करने के लिए कि वह नारी है. वही नारी जिसे अबला से लेकर ताड़ना का अधिकारी तक बताया गया है. सीता के सतीत्व को चुनौती दी गई, द्रौपदी की इज्जत को सरेआम तार-तार किया गया तो आधुनिक समाज में ऐसी घटनाएँ रोज घटित होती हैं. तो क्या बेटी के रूप में जन्म लेना ही अपराध है. मुझे लगता है कि जब तक समाज इस दोगले चरित्र से ऊपर नहीं उठेगा, तब तक नारी की स्वतंत्रता अधूरी है.
सही मायने में महिला दिवस की सार्थकता तभी पूरी होगी जब महिलाओं को शारीरिक, मानसिक, वैचारिक रूप से संपूर्ण आज़ादी मिलेगी, जहाँ उन्हें कोई प्रताड़ित नहीं करेगा, जहाँ कन्या भ्रूण हत्या नहीं की जाएगी, जहाँ बलात्कार नहीं किया जाएगा, जहाँ दहेज के लोभ में नारी को सरेआम जिन्दा नहीं जलाया जाएगा, जहाँ उसे बेचा नहीं जाएगा। समाज के हर महत्वपूर्ण फैसलों में उनके नज़रिए को समझा जाएगा और क्रियान्वित भी किया जायेगा. समय गवाह है कि एक महिला के लोकसभा स्पीकर बनाने पर ही लोकसभा भवन में महिलाओं के लिए पृथक प्रसाधन कक्ष बन पाया. इससे बड़ा उदारहण क्या हो सकता है. जरुरत समाज में वह जज्बा पैदा करने का है जहाँ सिर उठा कर हर महिला अपने महिला होने पर गर्व करे, न कि पश्चाताप कि काश मैं लड़का के रूप में पैदा होती !!
!!! अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस के 100 वर्ष पूरे होने पर शुभकामनायें !!!
-आकांक्षा यादव
17 टिप्पणियां:
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्व संध्या पर शानदार वैचारिक पोस्ट. आपसे शत-प्रतिशत सहमत हूँ.
" जरुरत समाज में वह जज्बा पैदा करने का है जहाँ सिर उठा कर हर महिला अपने महिला होने पर गर्व करे, न कि पश्चाताप कि काश मैं लड़का के रूप में पैदा होती !!
बस यही मुझे भी कहना है ।
समय गवाह है कि एक महिला के लोकसभा स्पीकर बनाने पर ही लोकसभा भवन में महिलाओं के लिए पृथक प्रसाधन कक्ष बन पाया.....सही उदारहण से कड़ी बात. अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनायें.
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर प्रेरक पोस्ट..साधुवाद.
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर प्रेरक पोस्ट..साधुवाद.
बहुत सुंदर लेख, वेसे आज कल टी वी पर राहूल के स्यांवर मै हम देख रहे है आज की आधुनिक नारियो को......
उम्दा विचार..सार्थक बात...शुभकामनायें.
आकांक्षा जी, आपने बहुत सही लिखा कि मात्र कुर्सियों पर नारी को बिठाने से काम नहीं चलने वाला, उन्हें शक्ति व अधिकार चाहिए ताकि वे स्व-विवेक से निर्णय ले सकें...प्रेरणास्पद पोस्ट..बधाई.
बिलकुल सही.
समाज बदल रहा है,लेकिन दुःख इस बात का है की गति बहुत ही धीमे है.अच्छा लेख.
विकास पाण्डेय
www.विचारो का दर्पण.blogspot.com
मैं भी इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि नारी को अपने जीवन के निर्णय खुद लेने का अधिकार मिलना चाहिये.
अंतरराष्ट्रीय नारी दिवस पर सुन्दर पोस्ट. इसे मैंने अपने ब्लॉग पर भी साभार लगाया है..शुभकामनायें.
नारी-दिवस के बहाने नारी की भूमिका पर सटीक पोस्ट...वाकई आज नारी को हर निर्णय में भागीदार बनाने की जरुरत है अन्यथा मात्र कुर्सी की सत्ता ही रह जाएगी.
नारी सशक्तिकरण के लिए यह जरुरी है. सहमत हूँ.
अच्छा लिखा है आपनें,बधाई.
मीरा कुमार का लाजवाब उद्धरण. यह भारत में नारी की स्थिति को बखूबी दर्शाता है..उम्दा पोस्ट.
वाजिब बात. बिना इसके नारी का उद्धार संभव भी नहीं.
सीता के सतीत्व को चुनौती दी गई, द्रौपदी की इज्जत को सरेआम तार-तार किया गया तो आधुनिक समाज में ऐसी घटनाएँ रोज घटित होती हैं. तो क्या बेटी के रूप में जन्म लेना ही अपराध है. मुझे लगता है कि जब तक समाज इस दोगले चरित्र से ऊपर नहीं उठेगा, तब तक नारी की स्वतंत्रता अधूरी है.
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बेबाक पर सही ख्यालात..बेहतरीन पोस्ट.
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