यह तीर्थ महातीर्थों का है.
मत कहो इसे काला-पानी.
तुम सुनो, यहाँ की धरती के
कण-कण से गाथा बलिदानी (गणेश दामोदर सावरकर)
आजकल अंडमान-निकोबार दीप समूह में हूँ. वही अंडमान, जो काला पानी के लिए प्रसिद्द है. आप भी सोचते होंगे कि भला काला-पानी का क्या रहस्य है. तो आइये आज आपको उसी काला पानी की सैर कराते हैं-
भारत का सबसे बड़ा केंद्रशासित प्रदेश अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह सुंदरता का प्रतिमान है और सुंदर दृश्यावली के साथ सभी को आकर्षित करता है। बंगाल कि खाड़ी के मध्य प्रकृति के खूबसूरत आगोश में 8249 वर्ग कि0मी0 में विस्तृत 572 द्वीपों (अंडमान-550, निकोबार-22) के अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में भले ही मात्र 38 द्वीपों (अंडमान-28, निकोबार-10) पर जन-जीवन है, पर इसका यही अनछुआपन ही आज इसे 'प्रकृति के स्वर्ग' रूप में परिभाषित करता है। निकोबार द्वीप समूह के ग्रेट निकोबार द्वीप में ही भारत का सबसे दक्षिणी छोर 'इंदिरा प्वाइंट' भी अवस्थित है, जो कि इंडोनेशिया से लगभग 150 कि0मी0 दूर है। यहीं अंडमान में ही ऐतिहासिक सेलुलर जेल है. सेलुलर जेल का निर्माण कार्य 1896 में आरम्भ हुआ तथा 10 साल बाद 10 मार्च 1906 को पूरा हुआ. सेलुलर जेल के नाम से प्रसिद्ध इस कारागार में 698 बैरक (सेल) तथा 7 खण्ड थे, जो सात दिशाओं में फैल कर पंखुडीदार फूल की आकृति का एहसास कराते थे। इसके मध्य में बुर्जयुक्त मीनार थी, और हर खण्ड में तीन मंजिलें थीं।
(इस दृश्य के माध्यम से इसे समझा जा सकता है) अंडमान को काला पानी कहा जाता रहा है तो इसके पीछे बंगाल की खाड़ी और जेल की ही भूमिका है. अंग्रेजों के दमन का यह एक काला अध्याय था, जिसके बारे में सोचकर अभी भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं. कहते हैं कि अंडमान का नाम हनुमान जी के नाम पर पड़ा. पहले भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई इधर से ही करने की सोची पर बाद में यह विचार त्याग दिया. अंडमान शब्द की उत्पत्ति मलय भाषा के 'हांदुमन' शब्द से हुई है जो भगवान हनुमान शब्द का ही परिवर्तित रुप है। निकोबार शब्द भी इसी भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ होता है नग्न लोगों की भूमि।
(वीर सावरकर को इसी काल-कोठरी में बंदी रखा गया. यह काल-कोठरी सबसे किनारे और अन्य कोठरियों से ज्यादा सुरक्षित बने गई है. गौरतलब है कि सावरकर जी के एक भाई भी काला-पानी की यहाँ सजा काट रहे थे, पर तीन सालों तक उन्हें एक-दूसरे के बारे में पता तक नहीं चला. इससे समझा जा सकता है कि अंग्रेजों ने यहाँ क्रांतिकारियों को कितना एकाकी बनाकर रखा था.)
वीर सावरकर और अन्य क्रांतिकारियों को यहीं सेलुलर जेल की काल-कोठरियों में कैद रखा गया और यातनाएं दी गईं. सेलुलर जेल अपनी शताब्दी मना चुका है पर इसके प्रांगन में रोज शाम को लाइट-साउंड प्रोग्राम उन दिनों की यादों को ताजा करता है, जब हमारे वीरों ने काला पानी की सजा काटते हुए भी देश-भक्ति का जज्बा नहीं छोड़ा. गन्दगी और सीलन के बीच समुद्री हवाएं और उस पर से अंग्रेजों के दनादन बरसते कोड़े मानव-शरीर को काट डालती थीं. पर इन सबके बीच से ही हमारी आजादी का जज्बा निकला. दूर दिल्ली या मेट्रो शहरों में वातानुकूलित कमरों में बैठकर हम आजादी के नाम पर कितने भी व्याख्यान दे डालें, पर बिना इस क्रांतिकारी धरती के दर्शन और यहाँ रहकर उन क्रांतिवीरों के दर्द को महसूस किये बिना हम आजादी का अर्थ नहीं समझ सकते.
सेलुलर जेल में अंग्रेजी शासन ने देशभक्त क्रांतिकारियों को प्रताड़ित करने का कोई उपाय न छोड़ा. यातना भरा काम और पूरा न करने पर कठोर दंड दिया जाता था. पशुतुल्य भोजन व्यवस्था, जंग या काई लगे टूटे-फूटे लोहे के बर्तनों में गन्दा भोजन, जिसमें कीड़े-मकोड़े होते, पीने के लिए बस दिन भर दो डिब्बा गन्दा पानी, पेशाब-शौच तक पर बंदिशें कि एक बर्तन से ज्यादा नहीं हो सकती. ऐसे में किन परिस्थितियों में इन देश-भक्त क्रांतिकारियों ने यातनाएं सहकर आजादी की अलख जगाई, वह सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं. सेलुलर जेल में बंदियों को प्रतिदिन कोल्हू (घानी) में बैल की भाँति घूम-घूम कर 20 पौंड नारियल का तेल निकालना पड़ता था. इसके अलावा प्रतिदिन 30 पौंड नारियल की जटा कूटने का भी कार्य करना होता. काम पूरा न होने पर बेंतों की मार पड़ती और टाट का घुटन्ना और बनियान पहनने को दिए जाते, जिससे पूरा बदन रगड़ खाकर और भी चोटिल हो जाता. अंग्रेजों की जबरदस्ती नाराजगी पर नंगे बदन पर कोड़े बरसाए जाते.
जब भी किसी को फांसी दी जाती तो क्रांतिकारी बंदियों में दहशत पैदा करने के लिए तीसरी मंजिल पर बने गुम्बद से घंटा बजाया जाता, जिसकी आवाज़ 8 मील की परिधि तक सुनाई देती थी.
भय पैदा करने के लिए क्रांतिकारी बंदियों को फांसी के लिए ले जाते हुए व्यक्ति को और फांसी पर लटकते देखने के लिए विवश किया जाता था।वीर सावरकर को तो जान-बूझकर फांसी-घर के सामने वाले कमरे में ही रखा गया था.फांसी के बाद मृत शरीर को समुद्र में फेंक दिया जाता था.
अब आप समझ सकते हैं कि इस जगह को काला-पानी क्यों कहा जाता था. एक तरफ हमारे धर्म समुद्र पार यात्रा की मनाही करते थे, वहीँ यहाँ मुख्यभूमि से हजार से भी ज्यादा किलोमीटर दूर लाकर देशभक्तों को प्रताड़ित किया जाता था. आजादी का अर्थ सिर्फ अच्छा खाना, घूमना य मौज-मस्ती ही परिचायक नहीं है, बल्कि इसके लिए हमें उन मूल्यों की भी रक्षा करनी होगी जिसके लिए देशभक्तों ने अपनी कुर्बानियां दे दी !!
सेलुलर जेल की 105 वीं वर्षगाँठ पर उन सभी नाम-अनाम शहीदों और कैद में रहकर आजादी का बिगुल बजाने वालों को नमन !!
[ चित्रों में : कृष्ण कुमार, आकांक्षा एवं अक्षिता (पाखी) ]
11 टिप्पणियां:
अंग्रेजी मानसिकता का क्रूरतम अध्याय।
चित्रों के साथ सजी बढ़िया पोस्ट लगाई है आपने!
सेलुलर जेल की 105 वीं वर्षगाँठ पर उन सभी नाम-अनाम शहीदों और कैद में रहकर आजादी का बिगुल बजाने वालों को नमन !!
अद्भुत...काला पानी वाकई क्रूरतम सजा थी. इस लेख में काफी प्रेरक विचार भी निहित हैं, जिन्हें साझा करने की जरुरत है.
अग्रेंज आज भी नही बदले..
बढ़िया लगी पोस्ट..
मैं ज़रूरी काम में व्यस्त थी इसलिए पिछले कुछ महीनों से ब्लॉग पर नियमित रूप से नहीं आ सकी!
बहुत बढ़िया लगा! उम्दा पोस्ट!
कभी मौका मिला तो अंडमान में सेलुलर जेल के दर्शन अवश्य करना चाहूँगा. फ़िलहाल आपकी ही निगाह से दर्शन कर रहा हूँ.
सेलुलर जेल पर चित्रों से सुसज्जित दिलचस्प पोस्ट. आभार.
आपकी बाल कविता लैपटाप 'बाल-मंदिर' में भी पढ़ी. पाखी के नन्हें हाथों में लैपटॉप और आपकी यह कविता. मन को भा गया लैपटाप.
Have you ever asked yourself whose land is KALAPANI???Its the land of Nepal.India has encroached it and its now the international issue.
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