मैं मांस, मज्जा का पिंड नहीं, दुर्गा, लक्ष्मी और भवानी हूँ , भावों से पुंज से रची, नित्य रचती सृजन कहानी हूँ । ये लाइनें आकांक्षा यादव की इच्छा, हौसला और महिलाओं के लिए कुछ कर गुजरने की उनकी तमन्ना को बयां करने के लिए काफी हैं। गाजीपुर की मिडिल क्लास फैमिली से बिलांग करने वाली आकांक्षा की बचपन से ही महिलाओं की जिंदगी में बड़ा परिवर्तन कराने की प्रबल इच्छा रही है। गाजीपुर में फैमिली के साथ रहते हुए किसी लड़की के लिए यह संभव नहीं था, लेकिन 2004 में डाइरेक्टर पोस्टल सर्विसेज के के यादव से शादी के बाद उनकी यह दबी हुई इच्छा जाग्रत हो गई।
लोक सेवा आयोग के थ्रू होने वाली लेक्चरर भर्ती में सेलेक्ट होकर वह जीजीआइसी में लेक्चरर बनीं लेकिन जब पाया कि इस नौकरी के चलते वह अपने मकसद से भटक जाएंगी तो उन्होने जॉब से रिजाइन कर दिया। नारी विमर्श पर उनके मन में चल रहे द्वंद को उन्होंने अपने शब्दों के जरिए लोगों को जगाने का काम किया। महिलाओं से रिेलेटेड उनके आर्टिकल देश भर की मैगजीन में पब्लिश्ड हो चुके हैं। दो बुक भी लिख चुकी हैं। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि आनलाइन दुनिया में भी अपने ब्लॉग में उन्होने महिलाओं की हालिया स्थिति में परिवर्तन की डिमांड को जोर-शोर से उठाया। उनकी ब्लागिंग की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्हें दशक के श्रेष्ठ ब्लागर दंपति का अवार्ड मिला ।
आकांक्षा कहती हैं कि वह महिलाओं में बदलाव लाना चाहती हैं। फिलहाल वह अपनी लेखनी से महिलाओं को जगाने का काम कर रही हैं। अगर जरूरत पड़ी तो वह बाहर आकर भी इसके लिए लड़ाई लड़ेंगी।
(आई नेक्स्ट (इलाहाबाद संस्करण) 28 मई 2013 में प्रकाशित )
10 टिप्पणियां:
उम्दा लेखन ..खूबसूरत फोटोग्राफ ...लाजवाब ..मुबारक हो आकांक्षा जी ।
ये जज्बा बना रहे सदैव आकांक्षा जी
आपकी यह रचना कल बुधवार (29 -05-2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
Congts a lot Muma.
Proud of u.
bahut khub ,badhai akaksha ji aapne apne lekhan ke dwara apni dabi bhavnaon ko ujagar kiya aur istri uthan ka beeda uthaya
वाह ... बेहतरीन
Hamne bhi Padha..wakai ap behatrin karya kar rahi hain..badhai.
आप दोनों खूब लिख-छप रहे हैं। विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में निरंतर पढने को मिलते हैं। बधाई स्वीकारें।
आपके ब्लॉग पर आना हुआ आपको सपरिवार पढ़ कर, जान कर हर्ष हुआ ..बहुत शुभकामनाए।
आकांक्षा जी नारी को दुर्गा, भवानी या सरस्वती भी एक चालाकी के कारण बनाया गया है, जिससे उसकी अवहेलना या पिटाई करने के बाद भी वह चुप या खुश रहे।
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