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शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009
अभी से चढ़ने लगा वेलेण्टाइन-डे का खुमार
वसंत का मौसम आ गया है। मौसम में रूमानियत छाने लगी है। हर कोई चाहता है कि अपने प्यार के इजहार के लिए उसे अगले वसंत का इंतजार न करना पड़े। सारी तैयारियां आरम्भ हो गई हैं। प्यार में खलल डालने वाले भी डंडा लेकर तैयार बैठे हैं। भारतीय संस्कृति में ऋतुराज वसंत की अपनी महिमा है। वेदों में भी प्रेम की महिमा गाई गई है। यह अलग बात है कि हम जब तक किसी चीज पर पश्चिमी सभ्यता का ओढ़ावा नहीं ओढ़ा लेते, उसे मानने को तैयार ही नहीं होते। ‘योग‘ की महिमा हमने तभी जानी जब वह ‘योगा‘ होकर आयातित हुआ। ऋतुराज वसंत और इनकी मादकता की महिमा हमने तभी जानी जब वह ‘वेलेण्टाइन‘ के पंखों पर सवार होकर अपनी खुमारी फैलाने लगे।
प्रेम एक बेहद मासूम अभिव्यक्ति है। मशहूर दार्शनिक ख़लील जिब्रान एक जगह लिखते हैं-‘‘जब पहली बार प्रेम ने अपनी जादुई किरणों से मेरी आंखें खोली थीं और अपनी जोशीली अंगुलियों से मेरी रूह को छुआ था, तब दिन सपनों की तरह और रातें विवाह के उत्सव की तरह बीतीं।‘‘ अथर्ववेद में समाहित प्रेम गीत भला किसको न बांध पायेंगे। जो लोग प्रेम को पश्चिमी चश्मे से देखने का प्रयास करते हैं, वे इन प्रेम गीतों को महसूस करें और फिर सोचें कि भारतीय प्रेम और पाश्चात्य प्रेम का फर्क क्या है?
फिलहाल वेलेण्टाइन-डे का खुमार युवाओं पर चढ़कर बोल रहा है। कोई इसी दिन पण्डित से कहकर अपना विवाह-मुहूर्त निकलवा रहा है तो कोई इसे अपने जीवन का यादगार लम्हा बनाने का दूसरा बहाना ढूंढ रहा है। एक तरफ नैतिकता की झंडाबरदार सेनायें वेलेण्टाइन-डे का विरोध करने और इसी बहाने चर्चा में आने का बेसब्री से इंतजार कर रही हैं-‘करोगे डेटिंग तो करायेंगे वेडिंग।‘ यही नहीं इस सेना के लोग अपने साथ पण्डितों को लेकर भी चलेंगे, जिनके पास ‘मंगलसूत्र‘ और ‘हल्दी‘ होगी। तो अब वेलेण्टाइन डे के बहाने पण्डित जी की भी बल्ले-बल्ले है। जब सबकी बल्ले-बल्ले हो तो भला बहुराष्ट्रीय कम्पनियां कैसे पीछे रह सकती हैं। आर्थिक मंदी के इस दौर में ‘प्रेम‘ रूपी बाजार को भुनाने के लिए उन्होंने ‘वेलेण्टाइन-उत्सव‘ को बकायदा 11 दिन तक मनाने की घोषणा कर दी है। हर दिन को अलग-अलग नाम दिया है और उसी अनुरूप लोगों की जेब के अनुरूप गिट भी तय कर लिये हैं। यह उत्सव 5 फरवरी को ‘फ्रैगरेंस डे‘ से आरम्भ होगा तो 15 फरवरी को ‘फारगिव थैंक्स फारेवर योर्स डे‘ के रूप में खत्म होगा। यह भी अजूबा ही लगता है कि शाश्वत प्रेम को हमने दिनों की चहरदीवारी में कैद कर दिया है। खैर इस वर्ष ज्वैलरी पसंद लड़कियों के लिये बुरी खबर है कि मंहगाई के इस दौर में पिछले वर्ष का 12 फरवरी का ‘ज्वैलरी डे‘ और 13 फरवरी का ‘लविंग हार्टस डे‘ इस बार हटा दिया गया है। वेलेण्टाइन-डे के बहाने वसंत की मदमदाती फिजा में अभी से ‘फगुआ‘ खेलने की तैयारियां आरम्भ हो चुकी हैं।
5 फरवरी - फ्रैगरेंस डे
6 फरवरी - टैडीबियर डे
7 फरवरी - प्रपोज एण्ड स्माइल डे
8 फरवरी - रोज स्माइल प्रपोज डे
9 फरवरी - वेदर चॉकलेट डे
10 फरवरी - चॉकलेट मेक ए फ्रेंड टैडी डे
11 फरवरी - स्लैप कार्ड प्रामिस डे
12 फरवरी - हग चॉकलेट किस डे
13 फरवरी - किस स्वीट हर्ट हग डे
14 फरवरी - वैलेण्टाइन डे
15 फरवरी - फारगिव थैंक्स फारेवर योर्स डे
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36 टिप्पणियां:
बसंती हवा का असर है और पश्चिम का रंग ..अभी तो यह खुमार शुरू हुआ है ..हर जगह इसका असर दिखायी दे रहा है ..अच्छा लिखा आपने
basanti hawa ka asar aap ke upar v hai. chaliye achchha hai. maja aaya.
बहुत बारीकी से जाकर आपने प्रेम और वैलेंटाइन पर लिखा है....बधाई !!
प्रेम एक बेहद मासूम अभिव्यक्ति है। मशहूर दार्शनिक ख़लील जिब्रान एक जगह लिखते हैं-‘‘जब पहली बार प्रेम ने अपनी जादुई किरणों से मेरी आंखें खोली थीं और अपनी जोशीली अंगुलियों से मेरी रूह को छुआ था, तब दिन सपनों की तरह और रातें विवाह के उत्सव की तरह बीतीं।‘‘.....वैलेंटाइन के बहाने एक सारगर्भित अनुपम प्रस्तुति. आकांक्षा जी को इसके लिए साधुवाद.
हम जब तक किसी चीज पर पश्चिमी सभ्यता का ओढ़ावा नहीं ओढ़ा लेते, उसे मानने को तैयार ही नहीं होते। ‘योग‘ की महिमा हमने तभी जानी जब वह ‘योगा‘ होकर आयातित हुआ। ऋतुराज वसंत और इनकी मादकता की महिमा हमने तभी जानी जब वह ‘वेलेण्टाइन‘ के पंखों पर सवार होकर अपनी खुमारी फैलाने लगे....बहुत सही लिखा. काश कि हमारी युवा पीढी इस विभेद को समझ पाती.
हर कोई प्यार के इस खुमार को भुनाना चाह रहा है, archies कंपनी ने बकायदा इसके लिए वैलेंटाइन-वीक आरंभ किया था, अब आपने बताया कि यह वीक ११ दिनों का हो गया है....अगले साल महीने भर चलेगा. यह सब बहुराष्ट्रीय कंपनियों का मायावी-खेल है. वैलेंटाइन के नाम पर क्या होता है, किसी से छुपा नहीं है. आपसे सहमत हूँ कि जो लोग प्रेम को पश्चिमी चश्मे से देखने का प्रयास करते हैं, वे महसूस करें और फिर सोचें कि भारतीय प्रेम और पाश्चात्य प्रेम का फर्क क्या है?
यदि अथर्ववेद में समाहित प्रेम गीतों को भी आप स्थान दे पातीं तो और बेहतर होता.
प्रेम अजर है, प्रेम अमर है,
कुण्ठा बैलेन्टाइन है।
उर-मन्दिर में प्रेम बसा लो-
हर दिन वैलेन्टाइन है।
एक तरफ नैतिकता की झंडाबरदार सेनायें वेलेण्टाइन-डे का विरोध करने और इसी बहाने चर्चा में आने का बेसब्री से इंतजार कर रही हैं-‘करोगे डेटिंग तो करायेंगे वेडिंग।‘ यही नहीं इस सेना के लोग अपने साथ पण्डितों को लेकर भी चलेंगे, जिनके पास ‘मंगलसूत्र‘ और ‘हल्दी‘ होगी। तो अब वेलेण्टाइन डे के बहाने पण्डित जी की भी बल्ले-बल्ले है।....Apne to sabki pol hi kholkar rakh di.
खैर इस वर्ष ज्वैलरी पसंद लड़कियों के लिये बुरी खबर है कि मंहगाई के इस दौर में पिछले वर्ष का 12 फरवरी का ‘ज्वैलरी डे‘ इस बार हटा दिया गया है..... लगता है भगवान ने लड़कियों की सुन ली. खैर मेरी तो कोई गर्ल-फ्रेंड भी नहीं है, फिर काहे की चिंता..?? यदि इस बार बन जाये तो देखी जायेगी.
@ Dr. Mayank
प्रेम अजर है, प्रेम अमर है,
कुण्ठा बैलेन्टाइन है।
उर-मन्दिर में प्रेम बसा लो-
हर दिन वैलेन्टाइन है।
.......क्या करें यह जमाना बड़ा जालिम है !!
डॉक्टर साहेब ज़माने को क्यों कोस रहे हैं. दिल है तो दिलदार लोग हैं. दिल है तो दिल की दुकान है. दिल है तो दिल का डॉक्टर है.
वैलेंटाइन का खुमार तो चढेगा ही, पर कहीं राम सेना, शिव सेना, बजरंग सेना वाले इसे वक़्त से पहले ही उतर ना दें. पता नहीं लोगों को प्यार करने वालों से इतनी जलन क्यों होती है.
वेलेण्टाइन-डे के बहाने वसंत की मदमदाती फिजा में अभी से ‘फगुआ‘ खेलने की तैयारियां आरम्भ हो चुकी हैं।....बड़ी सुन्दर लगीं ये पंक्तियाँ. पूर्वांचल और अवध की यादें ताज़ा हो गयीं. आपकी प्रस्तुति लाजवाब है.
वैलेंटाइन-डे के सरोकारों को समेटती एक मासूम पर चंचल प्रस्तुति.
जहाँ नौजवानी है, वहां जज्बा है-प्यार है. बस एक बहाना चाहिए..फिर चाहे वह वसंत की फिजा दे या वैलेंटाइन डे. वैलेंटाइन डे का विरोध करने वाले मात्र सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने के लिए ऐसे हथकंडे अपनाते हैं.
वसंत का मौसम आ गया है। मौसम में रूमानियत छाने लगी है। हर कोई चाहता है कि अपने प्यार के इजहार के लिए उसे अगले वसंत का इंतजार न करना पड़े। सारी तैयारियां आरम्भ हो गई हैं...Khubsurat agaz hai valentine-Day aur Vasant ka.
Kubsurat andaaz mai likha hai apne...
vasant sabhi ko bha rha hai aur valentine ke virodh ke swar ubharne lage hain. har baar ki tarah is baar bhi lal gulab aur premiyon ke beech dande honge. acha likha aapne badhai...
हे हे हे हे, इस खुमार, बुखार, भूत आदि को उतारने के लिये झाड़ू लिये कई "ओझा" अभी से मैदान में कूद पड़े हैं… बुखार के मरीज और उतारने वाले दोनों की बल्ले-बल्ले होगी 14 तारीख को… और संयोग से ठीक "नौ महीने" बाद 14 नवम्बर को "बाल-दिवस" पड़ता है…
वेदों से लेकर साहित्य तक सभी जगह पर प्रेम की रुँत को बसंत से जोड़ कर बताया है... वैसे तो प्यार का कोई मौसम और दिन नही होता लेकिन जैसे हर खास अवसर के लिए दिन तय होता है वैसे ही प्यार के नाम को इस दिन से जोड़ा है...
aapki yah post bahut achchi lagi
चारों तरफ बेरोज़गारी का आलम है...ऐसे में अगर पण्डित जन कुछ अतिरिक्त कमा-धमा लें तो किसी को ऐतराज़ नहीं होना चाहिए।
ha..ha..ha..ha...velentine day agar jo naa hota to goya kisi ko pyaar hi naa hua hota....jo baat jis samaaj kee hoti hai....vahin par shobha bhi deti hai.....kahin aur to vah chipkaayi hui hi dikhti hai....paiband kee tarah....ab agarche hamaari aukaat paibandon kee hi hai...to ye alag baat hai....!!
तगड़ा मामला है। वेलेंटाइन डे सभी को मुबारक हो...कभी हमारे ब्लॉग बोलहल्ला और जिंदगी और मेरे अनुभव पर भी पधारें।
http://bolhalla.blogspot.com
http://ashishmaharishi.blogspot.com
आशीष महर्षि
भई बहुत प्यार का दिन आने वाला है उसपर ऐसा लेख, उम्दा!
काश के ऐसा होता की दुनिया में हर दिन वेलेनटाइन होता और हर इंसान एक दुसरे से प्यार करता...
आपने बहुत अच्छा लिखा है...
बहुत अच्छा है आपका ब्लॉग...
मीत
अरे वाह, फरवरी में इतने सारे डे।
जानकारी के लिए आभार।
मेरे विचार से तो प्रेम एक सनातन सत्य है जिसे दिनो मे बांधना गलत है । इसे तो अनवरत बहना ही चाहिये ।
प्रेम से कैसी शब्दबाजी मैडम। यह तो बस हो जाता है। इसका ना पैमाना होता है, ना सीमाएं। न बंधन, न बाधाएं। होनी भी नहीं चाहिएं। ना ही किसी वैलेंटाइन डे विशेष का इंतजार होना चाहिए और ना ही किसी से इसकी तुलना। एक ख्वाब की तहर है। हां, प्रेम को जीना जरूर चाहिए। उसे अपनी सांस में, खुशबू की तरह महसूस करना चाहिए। ...और ऐसा जैसे उस पल कुछ ना सूझे। बिना खलल। प्रेम गहराईयां सिर्फ महसूस की जा सकती हैं।
‘‘जब पहली बार प्रेम ने अपनी जादुई किरणों से मेरी आंखें खोली थीं और अपनी जोशीली अंगुलियों से मेरी रूह को छुआ था, तब दिन सपनों की तरह और रातें विवाह के उत्सव की तरह बीतीं।‘‘
उम्दा पोस्ट..
भारतीय परिवेश में पश्च्यात त्यौहार की धूम चारो ओर है क्या कहेगे आज कल बच्चे हमसे ज्यादा जानते है , कल एक १० वीं कक्षा के बच्चे ने पुछा भइया "इस बार आप क्या कर रहे हो १४ को". मैंने कहा "कुछ नही, जैसा हर साल होता है ऑफिस में काम और क्या ". वो बोला मेरे पास तो टाइम ही नही १४ को " तीन-चार से बात हो गई है आप अपनी बाइक दे देते तो घूमने में अच्छा होता".
मैंने कहा "एक नही दो नही तीन चार क्या बात है " . वो बोला भइया "ऐसा है तीन -चार से बोला है तो एक तो कम से कम आ ही जायेगी और यहाँ उस दिन हर जगह भीड़ रहेगी कोई जानने वाला भी मील सकता है तो यहाँ से १०-१२ किलो मीटर दूर एक जगह है वहाँ जायेगे ". मैंने कहा "जब हम तुम्हारी उमर के थे तो हमें एक ही १४ पता था बाल दिवस".
धन्यवाद आप ने तो पुरे १० दिनों तक चलने वाले त्यौहार के नाम बताये .
आकांक्षाजी
यह बडा संवेदनशील मुद्दा है इसलिए इस विषय पर कोई विचार नहीं रखेंगें केवल टिप्पणी दे रहें हैं:-
रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी देने के लिए आपको पुन: धन्यवाद।
Shabd shikar ke shikar par pahuchane ke liye aapko badhi..
जहाँ नौजवानी है, वहां जज्बा है-प्यार है. बस एक बहाना चाहिए..फिर चाहे वह वसंत की फिजा दे या वैलेंटाइन डे. वैलेंटाइन डे का विरोध करने वाले मात्र सस्ती लोकप्रियता प्राप्त करने के लिए ऐसे हथकंडे अपनाते हैं.
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