पिछले दिनों मुस्लिमों द्वारा वन्देमातरम् न गाने के दारूउलम के फतवे पर निगाह गई तो उसी के साथ ऐसे लोगों पर भी समाज में निगाह गई जो इस वन्देमातरम् को धर्म से परे देखते और सोचते हैं। मशहूर शायर मुनव्वर राना ने तो ऐसे फतवों की प्रासंगिकता पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए यहाँ तक कह दिया कि वन्देमातरम् गीत गाने से अगर इस्लाम खतरे में पड़ सकता है तो इसका मतलब हुआ कि इस्लाम बहुत कमजोर मजहब है। प्रसिद्ध शायर अंसार कंबरी तो अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं-मस्जिद में पुजारी हो और मंदिर में नमाजी/हो किस तरह यह फेरबदल, सोच रहा हूँ। ए.आर. रहमान तक ने वन्देमातरम् गीत गाकर देश की शान में इजाफा किया है। ऐसे में स्वयं मुस्लिम बुद्धिजीवी ही ऐसे फतवे की व्यवहारिकता पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता ए.जेड. कलीम जायसी कहते है कि इस्लाम में सिर्फ अल्लाह की इबादत का हुक्म है, मगर यह भी कहा गया है कि माँ के पैरों के नीचे जन्नत होती है। चूंकि कुरान में मातृभूमि को माँ के तुल्य कहा गया है, इसलिये हम उसकी महानता को नकार नहीं सकते और न ही उसके प्रति मोहब्बत में कमी कर सकते हैं। भारत हमारा मादरेवतन है, इसलिये हर मुसलमान को इसका पूरा सम्मान करना चाहिये।
वन्देमातरम् से एक संदर्भ याद आया। हाल ही में मेरे पति एवं युवा प्रशासक-साहित्यकार श्री कृष्ण कुमार यादव के जीवन पर जारी पुस्तक ‘‘बढ़ते चरण शिखर की ओर‘‘ के पद्मश्री गिरिराज किशोर द्वारा लोकार्पण अवसर पर छः सगी मुस्लिम बहनों ने वंदेमातरम्, सरफरोशी की तमन्ना जैसे राष्ट्रभक्ति गीतों का शमां बाँध दिया। कानपुर की इन छः सगी मुस्लिम बहनों ने वन्देमातरम् एवं तमाम राष्ट्रभक्ति गीतों द्वारा क्रान्ति की इस ज्वाला को सदैव प्रज्जवलित किये रहने की कसम उठाई है। राष्ट्रीय एकता, अखण्डता, बन्धुत्व एवं सामाजिक-साम्प्रदायिक सद्भाव से ओत-प्रोत ये लड़कियाँ तमाम कार्यक्रमों में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराती हैं। वह 1857 की 150वीं वर्षगांठ पर नानाराव पार्क में शहीदों की याद में दीप प्रज्जवलित कर वंदेमातरम् का उद्घोष हो, गणेश शंकर विद्यार्थी व अब्दुल हमीद खांन की जयंती हो, वीरांगना लक्ष्मीबाई का बलिदान दिवस हो, माधवराव सिन्धिया मेमोरियल अवार्ड समारोह हो या राष्ट्रीय एकता से जुड़ा अन्य कोई अनुष्ठान हो। इनके नाम नाज मदनी, मुमताज अनवरी, फिरोज अनवरी, अफरोज अनवरी, मैहरोज अनवरी व शैहरोज अनवरी हैं। इनमें से तीन बहनें- नाज मदनी, मुमताज अनवरी व फिरोज अनवरी वकालत पेशे से जुड़ी हैं। एडवोकेट पिता गजनफरी अली सैफी की ये बेटियाँ अपने इस कार्य को खुदा की इबादत के रूप में ही देखती हैं। 17 सितम्बर 2006 को कानपुर बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित हिन्दी सप्ताह समारोह में प्रथम बार वंदेमातरम का उद्घोष करने वाली इन बहनों ने 24 दिसम्बर 2006 को मानस संगम के समारोह में पं0 बद्री नारायण तिवारी की प्रेरणा से पहली बार भव्य रूप में वंदेमातरम गायन प्रस्तुत कर लोगों का ध्यान आकर्षित किया। मानस संगम के कार्यक्रम में जहाँ तमाम राजनेता, अधिकारीगण, न्यायाधीश, साहित्यकार, कलाकार उपस्थित होते हैं, वहीं तमाम विदेशी विद्वान भी इस गरिमामयी कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं।
तिरंगे कपड़ों में लिपटी ये बहनें जब ओज के साथ एक स्वर में राष्ट्रभक्ति गीतों की स्वर लहरियाँ बिखेरती हैं, तो लोग सम्मान में स्वतः अपनी जगह पर खड़े हो जाते हैं। श्रीप्रकाश जायसवाल, डा0 गिरिजा व्यास, रेणुका चैधरी, राजबब्बर जैसे नेताओं के अलावा इन बहनों ने राहुल गाँधी के समक्ष भी वंदेमातरम् गायन कर प्रशंसा बटोरी। 13 जनवरी 2007 को जब एक कार्यक्रम में इन बहनों ने राष्ट्रभक्ति गीतों की फिजा बिखेरी तो राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्षा डाॅ0 गिरिजा व्यास ने भारत की इन बेटियों को गले लगा लिया। 25 नवम्बर 2007 को कानुपर में आयोजित राष्ट्रीय एकता सम्मेलन में इन्हें ‘‘संस्कृति गौरव‘‘ सम्मान से विभूषित किया गया। 19 अक्टूबर 2008 को ‘‘सामाजिक समरसता महासंगमन‘‘ में कांग्रेस के महासचिव एवं यूथ आईकान राहुल गाँधी के समक्ष जब इन बहनों ने अपनी अनुपम प्रस्तुति दी तो वे भी इनकी प्रशंसा करने से अपने को रोक न सके। वन्देमातरम् जैसे गीत का उद्घोष कुछ लोग भले ही इस्लाम धर्म के सिद्वान्तों के विपरीत बतायें पर इन बहनों का कहना है कि हमारा उद्देश्य भारत की एकता, अखण्डता एवं सामाजिक सद्भाव की परम्परा को कायम रखने का संदेश देना है। वे बेबाकी के साथ कहती हैं कि देश को आजादी दिलाने के लिए हिन्दू-मुस्लिम क्रान्तिकारियों ने एक स्वर में वंदेमातरम् का उद्घोष कर अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया तो हम भला इन गीतों द्वारा उस सूत्र को जोड़ने का प्रयास क्यों नहीं कर सकते हैं। राष्ट्रीय एकता एवं समरसता की भावना से परिपूर्ण ये बहनें वंदेमातरम् एवं अन्य राष्ट्रभक्ति गीतों द्वारा लोगों को एक सूत्र में जोड़ने की जो कोशिश कर रही हैं, वह प्रशंसनीय व अतुलनीय है। क्या ऐसे मुद्दों को फतवों से जोड़ना उचित है, आप भी सोचें-विचारें !!
(चित्र में- लोकार्पण अवसर पर श्री कृष्ण कुमार यादव जी के साथ अनवरी बहनें, वन्देमातरम का गान करती अनवरी बहनें)
-आकांक्षा यादव
22 टिप्पणियां:
बेहद प्रेरणादायक…। "राष्ट्र" सबसे पहले आता है, फ़िर भगवान या अल्लाह, यह बात समझ में आ जाये तो बात ही क्या है…
log kyu nahi samjhate hai ki hum Hindustaani hai.....
हम सब हिन्दुस्तानी पहले है और वन्देमातरम् से किसी को परहेज नही होनी चाहिए..
वन्देमातरम् धर्म से परे हैं। ..
Ati sundar.
{ Treasurer-S, T }
वाकई ! जबरदस्त मिसाल दी है |
इससे ज्यादा प्रेरणादायक कुछ हो नही सकता. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
bahut hi sahi hai ki rastra dharm majahab se koso door hai ......ise jodkar nahi dekhana chahiye .......najariye ko pariskrit karati rachana..........bahut hi sundar rachana
मेरी निगाह में लीक तोड़ कर आगे आने वाली इन लड़कियों की प्रशंसा करनी चाहिए. स्त्रियाँ फतवों के बंधन को मानने की बजाय तोड़ रही हैं, इसे स्त्री-मुक्ति के रूप में देखा जाना चाहिए.
हिन्दू-मुस्लिम के पलडे पर तौलने की बजाय फतवों की भीड़ में ऐसे कार्यों की सराहना की जानी चाहिए. इन युवा महिलाओं के जज्बे को सलाम !!
अभी-अभी आकांक्षा जी का इसी विषय पर "इंडिया-न्यूज" में प्रस्तुत लेख पढ़कर ब्लॉग खोला तो यहाँ भी आकांक्षा जी की लेखनी का कमाल दिखा. नारी तथा बच्चों से जुड़े मामलों पर देश की पत्र-पत्रिकाओं के साथ-साथ अंतर्जाल पर आप जिस तरह रचनात्मक रूप से सक्रिय हैं, वह बेहद प्रेरणास्पद है.
यह पोस्ट वाकई उन लोगों के मुंह पर तमाचा है, जो हर चीज को फतवों की निगाह से देखते है. पोंगापंथी से लेकर कठमुल्लों तक ने प्रगतिशील दृष्टिकोण के विपरीत पिछड़ी मानसिकता को बढ़ावा देने का कार्य किया है. आप एक मुस्लिम के बारे में लिखिए तो हिन्दू तलवार लेकर खड़े हो जायेंगे आखिर हिन्दू क्यों नहीं, हिन्दू के बारे में लिखिए तो मुस्लमान तलवार लेकर खड़े हो जायेंगे आखिर मुस्लमान क्यों नहीं. जरुरत इस दकियानूसी सोच को बदलने की है. भारत हमारा है, हम भारत के हैं. जो भी चीज भारत के हित में होगी, उसकी पूजा भी होगी, इबादत भी होगी.
प्रेरणादायक आलेख. आभार.
ईश्वर हमें सद्बुधि दे, क़ुरआन के अनुसार माँ के पेर के नीचे जन्नत तो बाप जन्नत का दरवाजा होता हे, कितनी तरह की माएँ बनाओगे, कभी जानवर को कहते हो माँ कहो जबकि उसके नर को बाप नहीं कहते, चलो धरती के इस छोटे होते जा रहे टुकड़े को माँ कहेगे बाप किसे कहलवओगे?
अत्यन्त सुंदर लेख लिखा है आपने! सभी भारतियों को अपने देश पर गर्व होना चाहिए! इस बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई!
बहुत ही प्रेरणाप्रद है सब को ये समझ लेना चाहिये कि अगर रष्ट्र है तो हम हैं्राष्ट्र् धर्म सब धर्मों से ऊँचा है धन्यवाद और जय हिन्द
प्रेरणादायक,
अत्यन्त सुंदर।
बधाई!
बड़ी बेहतरीन पोस्ट लगाई आकांक्षा जी. आप समाज की प्रतिनिधि ऐसी बातों को चुनती हैं जो इस भीड़-भाड़ वाली दुनिया में अलग रूप में दिखती है...बधाई !!
महिलाएं नित नए कदम उठा रही हैं, चाहे वह हिन्दू हों या मुस्लमान. चोखेरबाली के माध्यम से महिलाओं के ऐसे क़दमों की सराहना हो रही है, यह अच्छी बात है. धर्म के बंधनों के विपरीत वंदेमातरम गायन कर जिस तरह इन ६ सगी मुस्लिम बहनों ने राष्ट्र भक्ति का परिचय दिया है, वह काबिले-तारीफ है. आकांक्षा यादव को इस प्रस्तुति के लिए साधुवाद.
Behad preranaspad post.
Logon ko ye acchi taran se samajh na chahiye ki vande maa taram ka saaf matlab hai ki hey maa hum tere bande hain..jabki Muslim religion mein Insaan Allah ke siwaye kisi ka banda nahin hai..to issliye its totally haram to sing such bakwaaas,hindustan ke liye muslims ne humesha qurbani di hain aur history mein hindustan ko duniya ki special place banane wale bhi muslims hi hain. sirf ek chota sa vande maa taram na kehne se unnki desh bhakti par sawal nahin uthaya ja sakta hai...thanks...
प्रेरणादायक आलेख. आभार.
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