ब्लागिंग आज के दौर की विधा है. पत्र-पत्रिकाओं से परे ब्लॉग-जगत का अपना भरा-पूरा संसार है, रचनाधर्मिता है, पाठक-वर्ग है. कई बार बहुत कुछ ऐसा होता है, जो हम चाहकर भी पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से नहीं कह पाते, ब्लागिंग उन्हें स्पेस देता है. कहते हैं ब्लागिंग एक निजी डायरी की भांति है, एक ऐसी डायरी जहाँ आप अपनी भावनाएं सबके समक्ष रखते हैं, उस पर तत्काल प्रतिक्रियाएँ प्राप्त करते हैं और फिर संवाद का दायरा बढ़ता जाता है. संवाद से साहित्य और सरोकारों में वृद्धि होती है. जरूरी नहीं कि हम जो कहें, वही सच हो पर कहना भी तो जरूरी है. यही तो लोकतंत्रीकरण की प्रक्रिया है. ब्लागिंग भी उस लोकतंत्र की दिशा में एक कदम है, जहाँ हम अपने भाव बिना किसी सेंसर के, बिना किसी एडिटिंग के, बिना किसी भय के व्यक्त कर सकते हैं...पर साथ ही साथ यह भी जरूरी है कि इसका सकारात्मक इस्तेमाल हो. हर तकनीक के दो पहलू होते हैं- अच्छा और बुरा. जरुरत अच्छाई की हैं, अन्यथा अच्छी से अच्छी तकनीक भी गलत हाथों में पड़कर विध्वंसात्मक रूप धारण कर लेती है.
इसी क्रम में मैं आज ब्लागिंग में कदम रख रही हूँ. मेरी कोशिश होगी कि एक रचनाधर्मी के रूप में रचनाओं को जीवंतता के साथ सामाजिक संस्कार देने का प्रयास करूँ. यहाँ बिना लाग-लपेट के सुलभ भाव-भंगिमा सहित जीवन के कठोर सत्य उभरें, यही मेरी लेखनी और ब्लॉगधर्मिता की शक्ति होगी.
मैंने अपने ब्लॉग का नाम 'शब्द-शिखर' रखा है, क्योंकि शब्दों में बड़ी ताकत है. ये शब्द ही हमें शिखर पर भी ले जाते हैं. शब्दों का सुन्दर चयन और उनका सुन्दर प्रयोग ही किसी रचना को महान बनता है. मेर इस ब्लॉग पर होंगीं साहित्यिक रचनाएँ, मेरे दिल की बात-जज्बात, सरोकार, वे रचनाएँ भी मैं यहाँ साभार प्रकाशित करना चाहूँगीं, जो मुझे अच्छी लगती हैं.
मेरी एक कविता 'एस.एम्.एस.' प्रतिष्ठित हिंदी पत्र 'दैनिक जागरण' के साहित्य-पृष्ठ 'पुनर्नवा' में 29 सितम्बर, 2006 को प्रकाशित है. इस पर 'प्रभात प्रकाशन' द्वारा 1000 /- का पुरस्कार भी प्रोत्साहनस्वरूप प्राप्त हुआ. अपने ब्लॉग पर प्रथम पोस्ट के रूप में इसे ही प्रस्तुत कर रही हूँ. आशा है आप सभी का प्रोत्साहन, मार्गदर्शन, सहयोग और स्नेह मुझे मिलता रहेगा !
**********************************************************************************
अब नहीं लिखते वो ख़त
करने लगे हैं एस. एम. एस.
तोड़-मरोड़ कर लिखे शब्दों के साथ
करते हैं खुशी का इजहार.
मिटा देता है हर नया एस. एम. एस.
पिछले एस. एम. एस. का वजूद
एस. एम. एस. के साथ ही
शब्द छोटे होते गए
भावनाएं सिमटती गई
खो गई सहेज कर रखने की परम्परा
लघु होता गया सब कुछ
रिश्तों की क़द्र का अहसास भी।
19 टिप्पणियां:
खतों की बात ही कुछ और है...मेल और समस सूचना दे सकते हैं, संवेदना और भाव नहीं.
SMS कविता अज के समाज का चेहरा दिखाती है. यह सही है की SMS के साथ ही भावनाएं भी सिमटती गयीं और रिश्ते भी..पर इलेक्ट्रॉनिक दौर में भावनाओं का कितना मोल बचा है, यह भी एक बहस का विषय है?
मानवीय भावनाओं को छूती अति-सुन्दर छोटी सी, पर प्यारी कविता.
Nice Poem.
मिटा देता है हर नया एस. एम. एस.
पिछले एस. एम. एस. का वजूद
एस. एम. एस. के साथ ही
शब्द छोटे होते गए
भावनाएं सिमटती गई
खो गई सहेज कर रखने की परम्परा.......Behad sanjidgi se likhi kavita hai..Badhai !!
ap logon ki pratikriyaon ke liye abhar.
लघु होता गया सब कुछ
रिश्तों की क़द्र का अहसास भी।
bahut khuub likha hai!
sundar rachna.
अतिसुन्दर और मोहक कविता.
Gehri baat.
क्या खूब लिखा आपने.
कुछ ऐसी ही कवितायेँ हमारे ब्लॉग के लिए भी आमंत्रित हैं.
भावनाएं सिमटती गई
खो गई सहेज कर रखने की परम्परा
लघु होता गया सब कुछ
रिश्तों की क़द्र का अहसास भी
आपके विचार बहुत सटीक हैं.
इस कथा कथित प्रगतिशील समाज का एक कटुसत्य यह भी है जहाँ पर ब्यस्तता ही ब्यस्तता है
एस. एम. एस. के साथ ही
शब्द छोटे होते गए
भावनाएं सिमटती गई
खो गई सहेज कर रखने की परम्परा.......
प्यारी और मोहक कविता.
लघु होता गया सब कुछ
रिश्तों की क़द्र का अहसास भी।
Bilkul sach, Akanksha!
Pehle hum khato ke liye dino din intezaar karte. milte hi jawaab diya karte the. Ab to kitne hi sms aa jaate hain aur chale bhi jaate hain, pataa bhi nahi chalta. *sigh*
बहुत ही सुंदर और वर्तमान स्थिति को उपयुक्त तरीके से बताती हुई कविता |
- शुभकामनाएं
मिटा देता है हर नया एस. एम. एस.
पिछले एस. एम. एस. का वजूद
सही कहा आपने ...अच्छा लगा पढ़कर
अतिसुन्दर और मोहक कविता.
कल 07/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत सुंदर मनभावन रचनाये
एक टिप्पणी भेजें