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मंगलवार, 3 फ़रवरी 2009

भारत में भी फैल रहा है ''वेडिंग-रिंग्स डे''



संसार में कई चीजें ऐसी होती हैं, जो हमें यूँ ही भाने लगती हैं। भारतीय संस्कृति में अधिकतर चीजें हमारे रीति-रिवाजों एवं संस्कारों से उद्गारित हैं तो पाश्चात्य संस्कृति में बाजार के प्रादुर्भाव से। ऋतुराज वसंत के आगमन के साथ ही चारो तरफ प्यार का खुमार चढ़ने लगता है। देवी सरस्वती की आराधना से लेकर होली की तैयारियों का इंतजाम देखते ही बनता है। पाश्चात्य संस्कृति का वैलेन्टाइन डे भी बहुत कुछ ऋतुराज वसंत से प्रभावित लगता है। फर्क मात्र इतना है कि भारतीय संस्कृति में जो चीजें संस्कारों के तहत होती हैं, पाश्चात्य संस्कृति में वही खुल्लम-खुल्ला होती हैं।

पाश्चात्य संस्कृति की ही देन है- सगाई की अंगूठी या इंगेजमेंट रिंग। किसी भी जोड़े के लिए इस रिंग का विशेष महत्व होता है। ईसाई धर्म में इस रिंग की खास पहचान होती है। वहाँ इसे मैरिज रिंग के तौर पर जाना जाता है और यह इस बात का परिचायक होता है कि विवाह हो चुका है। हिन्दू धर्म में रिंग पहनाना धार्मिक रिवाज तो नहीं है, पर रीति अवश्व बन चुकी है। ऐसी मान्यता है कि अनामिका उंगली में इंगेजमेंट/वेडिंग रिंग पहनने की शुरूआत मिस्र और रोम से हुई। मिस्र की सभ्यता में इसका चलन 4800 साल पहले से माना जाता है। तब अनामिका में पहनी जानी वाली इस रिंग को धार्मिक नजरिये से देखा जाता था। अनामिका के बारे में कहा जाता है कि यह दिल से जुड़ी होती है। यही वजह है कि दुनिया के कई देशों में अनामिका में इंगेजमेंट/वेडिंग रिंग पहनने का चलन है। कालान्तर में यह रिवाज भारत में आ गया। हिंदुओं में इंगेजमेंट के समय रिंग पहनाने का चलन है। शादी की अंगूठी अनामिका में ही पहने जाने के पीछे दिलचस्प मान्यता है कि अंगूठा माता-पिता, तर्जनी भाई-बहन, मध्यमा खुद का एवं अनामिका उंगली जीवनसाथी का प्रतिनिधित्व करती है। वैदिक धर्म में अनामिका सूर्य की उंगली मानी जाती है। इसमें सूर्य की रेखा होती है। अगर किसी की कुंडली में सूर्य कमजोर हो तो उसे इसमें सोने की अंगूठी पहनना चाहिए। सूर्य का रंग पीला होता है, इसलिए सोने से फायदा होता है। एक्यूप्रेशर विधि को अपनाने वालों के अनुसार वैवाहिक जीवन में मानसिक तनाव के दौरान भी यह रिंग फायदा देती है। इस उंगली में प्रेशर-प्वाइंट होता है, जिससे रिंग पहनने से आत्मविश्वास में बढ़ोत्तरी होती है।

फिलहाल देश और धर्म की बात छोड़ दे तो इंगेजमेंट/वेडिंग रिंग लोगों की भावनाओं और प्यार से जुड़ी होती है। यह प्यारा अहसास विवाहित लोगों की जिंदगी में ताउम्र बरकरार रहता है। इस रोचक अहसास को महसूस करने हेतु ही 3 फरवरी को प्रतिवर्ष ‘वेडिंग रिंग्स डे‘ मनाने का प्रचलन पाश्चात्य संस्कृति में रहा है, जो अब इण्टरनेट, टी0वी0 चैनलों एवं प्रिन्ट मीडिया के माध्यम से भारत में भी पाँव पसार रहा है। इस दिन एक-दूजे को फिर से रिंग पहनाकर उस अहसास को जीवंत रखने का पल होता है।

29 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

नई जानकारी के लिए आभार. वैसे भी अब धीरे-धीरे संस्कृतियों का भेद गौड़ होता जा रहा है.

www.dakbabu.blogspot.com ने कहा…

फर्क मात्र इतना है कि भारतीय संस्कृति में जो चीजें संस्कारों के तहत होती हैं, पाश्चात्य संस्कृति में वही खुल्लम-खुल्ला होती हैं।....Bahut sundar vishleshan !!

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

शादी की अंगूठी अनामिका में ही पहने जाने के पीछे दिलचस्प मान्यता है कि अंगूठा माता-पिता, तर्जनी भाई-बहन, मध्यमा खुद का एवं अनामिका उंगली जीवनसाथी का प्रतिनिधित्व करती है....चलिए इसी बहाने इसका राज तो खुला.नहीं तो हम भी क्या-क्या सोचते थे.

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

शादी की अंगूठी अनामिका में ही पहने जाने के पीछे दिलचस्प मान्यता है कि अंगूठा माता-पिता, तर्जनी भाई-बहन, मध्यमा खुद का एवं अनामिका उंगली जीवनसाथी का प्रतिनिधित्व करती है....चलिए इसी बहाने इसका राज तो खुला.नहीं तो हम भी क्या-क्या सोचते थे.

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

इंगेजमेंट/वेडिंग रिंग पहनने का वैज्ञानिक कारण रखते हुए एक सुन्दर प्रस्तुति....पर यह भी सोचनीय है कि पाश्चात्य संस्कृति का अन्धानुकरण कहाँ तक उचित है???

Bhanwar Singh ने कहा…

‘वेडिंग रिंग्स डे‘ मनाने का प्रचलन पाश्चात्य संस्कृति में रहा है, जो अब इण्टरनेट, टी0वी0 चैनलों एवं प्रिन्ट मीडिया के माध्यम से भारत में भी पाँव पसार रहा है।
___________________________________
मीडिया भी अंतत: बाजारोन्मुखी है. विज्ञापनों की चकाचौंध में वह भी संस्कृति को धकिया रहता है.

Vinashaay sharma ने कहा…

maine ek blog is tarh ka banya tha www.pashchyatvad.blogspot.com,jiska heading tha pashchytvad main hoti vileen hindi sanskriti baad main apney sab blog ko samet ke http://vinay-mereblog.blogspot.com/
main rakh diya hai,ismey yeh post hai.

बेनामी ने कहा…

So many Congts. for Such informative & interesting article.

बेनामी ने कहा…

अब चाहे पश्चिम से आए या पूरब से पर है ये बड़ी रोमांटिक चीज. जिनकी सगाई हो जाती है वो तो रिंग को इतना इतराकर प्रदर्शित करते हैं, मानो बहुत बड़ी जंग हासिल कर आए हों.

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

आकांक्षा जी ! उत्तर प्रदेश के सूचना विभाग द्वारा प्रकाशित पत्रिका "उत्तर प्रदेश" में साहित्य नोबेल विजेता क्लेजियो पर आपका बेहद सुन्दर आलेख को मैंने दिल्ली के एक बुक-स्टाल पर पढ़ा. शायद जनवरी का अंक है.....आपकी लेखनी यूँ ही चलती रहे.

Udan Tashtari ने कहा…

आज वेडिंग रिंग डे है, यह भी एक नई जानकारी हाथ लगी. अच्छा है, बीबी ने नहीं पढ़ा वरना हर ३ फरवरी को एक अंगूठी की डिमांड खड़ी हो जाती. आप तो हमारा खर्चा कराने में कोई कसर ही नहीं बाकी रख रहीं थीं वो तो हम ही बचा ले गये. फिर भी आभार, :)

राजीव तनेजा ने कहा…

जानकारी से भरपूर इस पोस्ट के लिए आपको धन्यवाद कहूँ या फिर कोसूँ?...दुविधा के कारण अभी तय नहीं कर पा रहा हूँ क्योंकि अगर इतनी बढिया जानकारी अपनी श्रीमति जी के साथ शेयर करता हूँ तो मेरी जेब के कटने की नौबत आती है और अगर इसे चुपचाप बिना कोई शोर-शराबा कि हज़म कर जाता हूँ तो भी ठीक नहीं रहेगा क्योंकि बड़े-बुज़ुर्ग कह गए हैँ कि ज्ञान बाँटने से उसमें कमी नहीं बल्कि वृद्धि होती है।

अविनाश वाचस्पति ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
अविनाश वाचस्पति ने कहा…

3 फरवरी को वेडिंग रिंग
इसे तो 29 फरवरी को
चाहिए था होना
बनता है सोना
लगता है सलोना।

वेडिंग वैसे भी रिंग ही है
एक दूसरे के साथ या
आगे पीछे रिंग के माफिक
घूमने के
या इसे 2 फरवरी को
होना था
क्‍योंकि 2 ही तो होते हैं
जो आगे पीछे या साथ
साथ घूमते हैं
जीवन की परेशानियों और
सुखों को एकसाथ चूमते हैं।

वैसे अलग अलग महसूसने
वाले भी हैं अनेक या कहें
एकड़ों, मतलब कई एकड़
जगह में फैले हुए, कई
हजार हो जायेंगे, सैकड़ों
कहता तो सिर्फ हजार में
ही सिमट जाते और
हो जाते बेजार।

अंगूठी चाहे न पहनायें
पर प्‍यार से पेश आयें
सभी जन
प्रसन्‍न हो जाए मन
वरना देखने वाले भी
सन्‍न, रहे हो न सुन।

सभी साहिबा और
साहिबान सुन
प्‍यार की मीठी धुन
स्‍वेटर की तरह बुन
पर उसे न उधेड़
स्‍वेटर की तरह
उसमें बस जा
क्‍वार्टर की

श्रद्धा जैन ने कहा…

achha ji hume nahi pata tha
nayi jaankari dene ke liye dhanyvaad

अभिन्न ने कहा…

बहुत ही रोचक ब्लॉग,नवीनतम जानकारी,वेद्डिंग रिंग्स डे पर जो भी लिखा है वह बहुत रोचक और ज्ञानवर्धक लगा,
शुभकामनाये स्वीकार हो

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत ही नई और रोचक जानकारी से भरा आलेख...;

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

वेडीँग रीँग यहाँ पस्चिम मेँ विवाहीत लोग बडे गर्व से पहनते हैँ ..अब भारत मेँ भी ये प्रचलन मेँ है ..और अनामिका ऊँगली वाकई ह्र्दय से जुडी हुई है और प्राण शक्ति से भी ....ये भी सत्य है .... और बाजार लोगोँ को खरीदारी के लिये उकसाता हे रहता है ये भी सही ..आलेख अच्छा लगा
- लावण्या

KK Yadav ने कहा…

बहुत ही नवीन एवं सुन्दर जानकारी..बस जेब पर बोझ न पड़े तो बेहतर है.

KK Yadav ने कहा…

अंगूठी चाहे न पहनायें
पर प्‍यार से पेश आयें
सभी जन
प्रसन्‍न हो जाए मन
वरना देखने वाले भी
सन्‍न, रहे हो न सुन।
.....अविनाश जी आजकल आपने भावों को कविता में पिरो कर रखते हैं....बड़ा सुन्दर आगाज़ है..बधाई !!

Akanksha Yadav ने कहा…

आप सभी की टिप्पणियों के लिए आभार !!

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

आकांक्षा जी ! आप ब्लॉग पर कभी-कभी आती हैं, पर बेहद रोचक रचनाधर्मिता एवं नवीन जानकारियों के साथ.....!!

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

वेडिंग रिंग्स पर अद्भुत प्रस्तुति.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

पाश्चात्य एवं भारतीय परिप्रेक्ष्य में वेडिंग रिंग की दास्ताँ के बहाने एक सम्यक विश्लेषण.बहुत ही दिलचस्प रूप में प्रस्तुति है. आकांक्षा जी को बधाई

सीमा सचदेव ने कहा…

आकांक्षा जी वेडिंग रिंग पर जानकारी
देने के लिए धन्यवाद | सोचा जाए तो yah videshi nahi balki bhaarteey sanskriti ki hi den hai jise videshiyon ne apnayaa us par
apni sabhayata ka mullama chadhaayaa aur us badale hue savroop ko ham pashchimi sabhyata samajh kar apna rahe hai . 500 varsh pahle tulsidas ji ne is RING (aangoothi ) ka jikr kiya tha jab seta vivaah mandap me shree raam ko dekhana chaahti hai lekin sankoch vash nahi dekh paati aur unki parchaaii ko apni angoothi me lage nag me dekhati hai :-
RAM KO ROOP NIHAARATI JAANAKI
KANKAN KE NAG KI PARCHAAII
bas usi ka badla hua roop hai wedding ring .
VAISE AAPKI JAANKAARI ABHOOTPOORAV HAI ,LEKIN MAINE YAH BLOG AAJ HI DEKHA ,KAL DEKH LIYA HOTA TO SHAAYAD KUCH BAAT BAN JAATI :) ,MUJHE NAH PATA THA IS DIN KE BAARE ME

saraswatlok ने कहा…

अनामिका उंगली में इंगेजमेंट/वेडिंग रिंग पहनने की शुरूआत मिस्र और रोम से हुई। मिस्र की सभ्यता में इसका चलन 4800 साल पहले से माना जाता है.....इंगेजमेंट/वेडिंग रिंग पहनने का चलन है। कालान्तर में यह रिवाज भारत में आ गया। हिंदुओं में इंगेजमेंट के समय रिंग पहनाने का चलन है। शादी की अंगूठी अनामिका में ही पहने जाने के पीछे दिलचस्प मान्यता है कि अंगूठा माता-पिता, तर्जनी भाई-बहन, मध्यमा खुद का एवं अनामिका उंगली जीवनसाथी का प्रतिनिधित्व करती है।
नई जानकारी के लिए आभार

वेद प्रकाश सिंह ने कहा…

namaste mam, aapne mera blog visit kiya iske liye shukriya...maine bhi aapka blog padha,aapki lekhan shaili to umda hai..kya mai aapka e-mail jaan sakta hoon?

वेद प्रकाश सिंह ने कहा…

my email id is vedprakashsingh40@yahoo.com

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही रोचक ब्लॉग,नवीनतम जानकारी