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बुधवार, 1 जुलाई 2009

मेघों को मनाने का अंदाज अपना-अपना

इसे पर्यावरण-प्रदूषण का प्रकोप कहें या पारिस्थितकीय असंतुलन। इस साल गर्मी ने हर व्यक्ति को रूला कर रख दिया। बारिश तो मानो पृथ्वी से रूठी हुई है। पृथ्वी पर चारों तरफ त्राहि-त्राहि मची हुई है। शिमला जैसी जिन जगहों को अनुकूल मौसम के लिए जाना जाता है, वहाँ भी इस बार गर्मी का प्रकोप दिखाई दे रहा है। ऐसे में रूठे बादलों को मनाने के लिए लोग तमाम परंपरागत नुस्खों को अपना रहे हैं। ऐसी मान्यता है कि बरसात और देवताओं के राजा इंद्र इन तरकीबों से रीझ कर बादलों को भेज देते हैं और धरती हरियाली से लहलहा उठती है।

इनमें सबसे प्रचलित नुस्खा मेंढक-मेंढकी की शादी है। मानसून को रिझाने के लिए देश के तमाम हिस्सों में चुनरी ओढ़ाकर बाकायदा रीति-रिवाज से मेंढक-मेंढकी की शादी की जाती है। इनमें मांग भरने से लेकर तमाम रिवाज आम शादियों की तरह होते हैं। एक अन्य प्रचलित नुस्खा महिलाओं द्वारा खेत में हल खींचकर जुताई करना है। कुछ अंचलों में तो महिलाए अर्धरात्रि को अर्धनग्न होकर हल खींचकर जुताई करतीं हैं। बच्चों के लिए यह अवसर काले मेघा को रिझाने का भी होता है और शरारतें करने का भी। वे नंगे बदन जमीन पर लोटते हैं और प्रतीकात्मक रूप से उन पर पानी डालकर बादलों को बुलाया जाता है। एक अन्य मजेदार परम्परा में गधों की शादी द्वारा इन्द्र देवता को रिझाया जाता है। इस अनोखी शादी में इंद्र देव को खास तौर पर निमंत्रण भेजा जाता है। मकसद साफ है इंद्र देव आएंगे तो साथ मानसून भी ले आएंगे। गधे और गधी को नए वस्त्र पहनाए जाते हैं और शादी के लिए बाकायदा मंडप सजाया जाता है, शादी खूब धूम-धाम से होती है। बरसात के अभाव में मनुष्य असमय दम तोड़ सकता है, इस बात से इन्द्र देवता को रूबरू कराने के लिए जीवित व्यक्ति की शव-यात्रा तक निकाली जाती है। इसमें बरसात के लिए एक जिंदा व्यक्ति को आसमान की तरफ हाथ जोड़े हुए अर्थी में लिटा दिया जाता है। तमाम प्रक्रिया ‘दाह संस्कार‘ की होती है। ऐसा करके इंद्र को यह जताने का प्रयास किया जाता है कि धरती पर सूखे से यह हाल हो रहा है, अब तो कृपा करो।

इन परम्पराओं से परे कुछेक परम्पराए वैज्ञानिक मान्यताओं पर भी खरी उतरती हैं। ऐसा माना जाता है कि पेड़-पौधे बरसात लाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। इसी के तहत पेड़ों का लगन कराया जाता है। कर्नाटक के एक गाँव में इंद्र देवता को मनाने के लिए एक अनोखी परंपरा है। यहां हाल ही में नीम के पौधे को दुल्हन बनाया गया और अश्वत्था पेड़ को दूल्हा। पूरी हिंदू रीति रिवाज से शादी संपन्न हुई जिसमें गाँव के सैकड़ों लोगों ने हिस्सा लिया। नीम के पेड़ को बाकायदा मंगलसूत्र भी पहनाया गया। लोगों का मानना है कि अलग-अलग प्रजाति के पेड़ों की शादी का आयोजन करने से झमाझम पानी बरसता है।

अब इसे परम्पराओं का प्रभाव कहें या मानवीय बेबसी, पर अंततः बारिश होती है लेकिन हर साल यह मनुष्य व जीव-जन्तुओं के साथ पेड़-पौधों को भी तरसाती हैं। बेहतर होता यदि हम मात्र एक महीने सोचने की बजाय साल भर विचार करते कि किस तरह हमने प्रकृति को नुकसान पहुँचाया है, उसके आवरण को छिन्न-भिन्न कर दिया है, तो निश्चिततः बारिश समय से होती और हमें व्यर्थ में परेशान नहीं होना पड़ता। अभी भी वक्त है, यदि हम चेत सके तो मानवता को बचाया जा सकता है अन्यथा हर वर्ष हम इसी प्रलाप में जीते रहेंगे कि अब तो धरती का अंत निकट है और कभी भी प्रलय हो सकती है।

28 टिप्‍पणियां:

Vinay ने कहा…

आपने बहुत अच्छा लेख लिखा है


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विज्ञान । HASH OUT SCIENCE

बेनामी ने कहा…

बहुत सुन्दर लिखा आपने. आपकी हर पोस्ट लाजवाब होती है.

KK Yadav ने कहा…

आपने तो काले मेघा को बुलाने के तमाम परम्पराओं के साथ-साथ प्रकृति के प्रकोप को भी गंभीरता से इंगित किया है....सराहनीय प्रयास. इस बारे में सभी को सोचने की जरुरत है.

KK Yadav ने कहा…

आपने तो काले मेघा को बुलाने के तमाम परम्पराओं के साथ-साथ प्रकृति के प्रकोप को भी गंभीरता से इंगित किया है....सराहनीय प्रयास. इस बारे में सभी को सोचने की जरुरत है.

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

पहले कजरी अब इन्द्र देवता को खुश करने के नुस्खे...लगता है आप झमाझम बारिश कराकर ही रहेंगी. वैसे फुहारें तो पड़ने लगी हैं पर धरती को तृप्त करने के लिए जानदार बारिश की जरुरत है.

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत अच्छा आलेख..क्या क्या परंपरायें हैं, कभी जान ही नहीं पाते.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

विभिन्न परम्पराओ का दिग्दर्शन कराती बढ़िया पोस्ट।

Sajal Ehsaas ने कहा…

hindi blogs par bhi is garmee ka zordaar asar dikh rahaa hai...kavitaayein aur lekh khoob padhne ko mil rahe hai is mudde par

aapke lekh me bahut saari jaankaariyaan thee...

अजय कुमार झा ने कहा…

क्या आकांक्षा जी..पहले ही बताते हम ब्लोग्गेर्स मिल कर अलग अलग नुस्खे आजमाते ..कम से कम बारिश तो पहले आ जाती..मैं तो मेढकों की कोर्ट मैरेज ही करवा सकता था..चलिए ..लगता है किसी ने इन्ही नुस्खों को आजमा कर मेघों को बुला लिया..

राज भाटिय़ा ने कहा…

क्या इन परम्परा से कुछ होगा ? नही अगर होगा तो हमे हरियाली लगानी चाहिये, खूब पेड लगाने चाहिये, पानी को जमा करना चहिये, पहले बरसात नही होती जब होती है तो बाड आ जाती है, कारण हम खुद है, ओर दोष भगवान को देते है.
आप का लेख बहुत कुछ कहता है.
धन्यवाद इस सुंदर लेख के लिये

प्रकाश गोविंद ने कहा…

बादलों को लुभाने के लिए ऐसे-ऐसे जतन :

मेंढक-मेंढकी की शादी
महिलाओं द्वारा खेत में हल खींचकर जुताई
गधों की शादी द्वारा इन्द्र देवता को रिझाना
जीवित व्यक्ति की शव-यात्रा
नीम के पौधे को दुल्हन बनाना



बहुत अच्छा और दिलचस्प लेख !
रीति-रिवाजो और परम्पराओं की जानकारी प्राप्त हुयी !

आज की आवाज

www.dakbabu.blogspot.com ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
www.dakbabu.blogspot.com ने कहा…

Paramparayon ka koi tuk bhale hi na ho..par hoti majedar hain. Sundar alekh.

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

अभी भी वक्त है, यदि हम चेत सके तो मानवता को बचाया जा सकता है अन्यथा हर वर्ष हम इसी प्रलाप में जीते रहेंगे कि अब तो धरती का अंत निकट है और कभी भी प्रलय हो सकती है।
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बात भले ही कड़वी हो पर अब भी हमें सतर्क हो जाना चाहिए अन्यथा प्रकृति का प्रकोप भारी पड़ेगा.

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

जानकारी तो अच्छी है ही,,पर साथ में सचेत करता ज्ञान भी.

Arvind Mishra ने कहा…

बहुत अच्छा और संयत होकर लिखा है आपने -मेघ और मेघा शब्द से बचपन में मैं इतना कफ्यूज रहा की जब कोई कहता था या बच्चे कोरस में गाते थे की काले मेघा पानी दे तो मैं यही समझता था की कोई काले रंग का मेढक होता है जो कहने पर पानी बरसा देता है -दरअसल पूर्वांचल में मेघा ,मेढक को भी कहते हैं -बहुत संभव है इस कन्फ्यूजन ने भी मेढक मेढकी की शादी की परम्परा न शुरू की हो जबकि शादी तो सचमुच के आसमानी मेघों की जमीन पर रचाई जानी थी ! क्या अब भूल सुधार संभव है ?

Shyama ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Shyama ने कहा…

काले मेघा पानी दे.... आपकी इस पोस्ट के साथ ही बचपन आकर सामने खडा हो गया. इंतजार है झमा-झम बारिश का कि खूब भीगूँ तथा मस्ती करूँ.

Bhanwar Singh ने कहा…

आपने बहुत विस्तार से बारिश के टोटकों व बारिश न होने के कारणों पर प्रकाश डाला है. यह आपकी विलक्षण रचनाधर्मिता का परिचायक है.

बेनामी ने कहा…

लाजवाब पोस्ट. प्रकृति के साथ मजाक हमेशा भरी ही पड़ता है. टोटकों कि बजे गंभीरता से सोचने की जरुरत है. आपने इस ओर ध्यान आकर्षित किया, अच्छा लगा.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

उम्दा प्रस्तुति....इंतजार है की पानी खूब बरसे एवं हम कागज की नव बना-बनाकर पानी में तैराएँ में फिर से बच्चे बन जाएँ.

ρяєєтii ने कहा…

bahut sarthak lekh hai yeh ... aapki lekhani lajawaab hai.. badhai sweekaare...!

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

सही समय पर लिखी एक सार्थक पोस्ट. कभी-कभी परम्पराएँ भी हमें सचेत करती हैं जैसे पेड़ों की शादी. बहुत प्रभावशाली लिखती है आप..बधाई !!

Unknown ने कहा…

वाकई यह पोस्ट बड़ी रोचक लगी.

Unknown ने कहा…

वाकई यह पोस्ट बड़ी रोचक लगी.

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

Nice Article.

शरद कुमार ने कहा…

बहुत रोचक प्रस्तुति. नई-नई जानकारियां मिली.

मन-मयूर ने कहा…

INTERESTING...