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सोमवार, 20 जुलाई 2009

ठग्गू के लड्डू और बदनाम कुल्फी

आपने बन्टी-बबली फिल्म देखी होगी तो अभिषेक बच्चन और रानी मुखर्जी के ऊपर फिल्माया गया वह गाना भी याद होगा-‘ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको हमने ठगा नहीं।‘ यह गाना बहुत चर्चित हुआ था। आपको जानकार आश्चर्य होगा कि यह गाना दरअसल एक लड्डू के दुकान की थीम से लिया गया है। जी हां, यदि कभी आपको कानपुर से रूबरू होने का मौका मिला होगा तो आपने यहाँ के ‘ठग्गू के लड्डू‘ का नाम सुना होगा। शुद्ध खोये और रवा व काजू के स्वादिष्ट लड्डू बनाने वाली इस दुकान के साइन बोर्ड पर आपको लिखा दिखेगा-‘ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको हमने ठगा नहीं।‘ वस्तुतः बन्टी-बबली फिल्म के कुछ दृश्य कानपुर में भी फिल्माये गए थे। इस दुकान की मशहूरी का आलम यह है कि बॉलीवुड की मशहूर ठग जोड़ी बंटी और बबली भी अपनी फिल्म की शूटिंग के दौरान यहां के लड्डुओं के स्वाद चखने पहुंचे थे। वैसे ठग्गू के लड्डू के मुरीदों में बच्चन परिवार के साथ-साथ प्रेम चोपड़ा, संजय कपूर, हेमामालिनी भी शामिल हैं। बच्चन परिवार के इस रिश्ते को ठग्गू के लड्डू के मालिक अभी तक निभाते हैं। यही कारण था कि जब अभिषेक बच्चन की शादी हुई तो ठग्गू के लड्डू वहाँ भी भेजे गये। यह अलग बात है कि इन लड्डुओं को बच्चन परिवार ने अन्दर नहीं जाने दिया और ठग्गू के लड्डू के मालिक ने इन लड्डुओं को वहाँ बाहर उपस्थित राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के लोगों को खिलाकर चर्चा पायी। इस दृश्य की बाइट लगभग हर चैनल ने प्रसारित की और ठग्गू के लड्डू चर्चा के केन्द्रबिन्दु में बने रहे।

जब मेरे पति लखनऊ से स्थानान्तरित होकर कानपुर आये तो मुझे देखकर आश्चर्य हुआ कि दि मॉल पर हमारे सरकारी बंगले के ठीक बगल में ही ‘ठग्गू के लड्डू‘ की दुकान है। फिर क्या था जो भी कोई आता हम उसे ठग्गू के लड्डू अवश्य खिलाते। देखने में ये लड्डू ऐसे लगते हैं कि कई बार लोगों को भ्रम हो जाता कि ये घर पर बनाये हुए लड्डू हैं। ये ठग्गू भी बड़े अजीब हैं। इनकी ‘बदनाम कुल्फी‘ भी मशहूर है। और तो और चुनावी फिजा को भुनाने के लिए इन्होंने बकायदा ‘भाषण भोग लड्डू‘ भी लोगों को खिलाया। काजू,पिस्ते, बादाम और दूध से बनाए गए इस लड्डू के लिए बकायदा एक नारा भी बनाया गया कि अगर नेताओं को एक घंटे चुनावी भाषण देना हो तो एक लड्डू खाएँ और अगर ज्यादा देर तक भाषण देना है तो दो लड्डू खाएँ, ताकत और ऊर्जा दोनों बनी रहेगी। वस्तुतः 50 साल पहले इस दुकान की शुरुआत करने वाले राम अवतार पाण्डेय महात्मा गांधी की उस बात से बहुत प्रभावित हुए कि चीनी एक मीठा जहर है। इनकी एक वेबसाइट भी है और वहाँ पर तो कम्युनिस्ट पूड़ी और अपराधी आटा का भी जिक्र मिलता है।

फिलहाल हम तो ठग्गू के लड्डू के पड़ोसी हैं और हमारी बिटिया अक्षिता तो यहीं पर पैदा भी हुई है। वह तो बचपन से ही ठग्गू के लड्डू और बदनाम कुल्फी का आनंद लेती रही है। आप भी जब कभी कानपुर आयें तो ठग्गू के लड्डू और बदनाम कुल्फी का आनंद अवश्य लें !!

22 टिप्‍पणियां:

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

वाह आज तो आपने फ़िर से याद दिलादी है ठग्गू के लड्डुओं की..फ़ुरसतिया जी की मेहरवानी से मिल जाते हैं खाने को. आज फ़िर फ़ोन करना पडेगा उनको.:) अब बदनाम कुल्फ़ी तो यहां तक पहुंच नही पायेगी.

रामराम.

S R Bharti ने कहा…

Wah! Ham to kanpur ke hain. Aksar thaggu ke laddu khate rahte hain..maja aa gaya.

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

bahut rochak aur badhiya jaankari
waise to hamne isaki charcha suni hai..

par aapne jis andaaj me bataya..
ab to wahan ja kar khane ki besbri badh gayi..

badhiya jaankari..kabhi jana hua to nischit aajmayenge..

दिगम्बर नासवा ने कहा…

पानी आ गया इन ladduon की दास्ताँ पढ़ कर...........

समयचक्र ने कहा…

ठग्गू के लड्डुओं का स्वाद अब तो चखना पड़ेगा. पढ़कर आनंद आ गया. आभार.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

ठग्गू के लड्डुओं का तो हम भी स्वाद ले चुके हैं लेकिन बदनाम कुल्फी से बिल्कुल अपरिचित थे। अगर कभी मौका मिला तो इसका लुत्फ भी उठाया जाएगा। बढिया जानकारी........

Batangad ने कहा…

दैनिक जागरण की नौकरी करते साल भर से ज्यादा कानपुर रहा तो, मैंने भी ठग्गू के लड्डू का स्वाद लिया है। लाजवाब है। ये बदनाम कुल्फी के बारे में इस बार खोज करता हूं

hem pandey ने कहा…

बड़ी रोचक और कौतुहल पूर्ण जानकारी रही. जन्मस्थान कानपुर होने के कारण एक आत्मीयता भी महसूस की.

Urmi ने कहा…

वाह बहुत ही अच्छी जानकारी मिली आपके पोस्ट के दौरान! लड्डू तो मुझे बहुत पसंद है और देखकर तो मुँह में पानी आ गया!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

"ठग्गू के लड्डू और बदनाम कुल्फी"
की महक तो हमें भी आ रही है।
जानकारी अच्छी लगी,
मगर आप मीठा कम ही खाना।

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

अत्यंत रोचक और कौतुहल पूर्ण जानकारी देने का हार्दिक आभार.
कभी कानपुर आना हुआ तो लड्डू और कुल्फी का भी स्वाद ठग्गू के यंहा जरूर लेंगें.

Vaibhav ने कहा…

कानपुर का हूँ सो इन शब्दों से बचपन का नाता है, कई साल तक यही समझता रहा कि "ठग्गू" दूकान के हलवाई का नाम है [:)]
दूकान के सारे व्यंजन चखने के बाद मेरा मानना है कि "बदनाम कुल्फी" "ठग्गू के लड्डू" से ज्यादा स्वादिष्ट होती है| हाँ, जो कभी कभी वाले हैं वो कुछ भी खा सकते हैं, आनंद आयेगा|

Shyama ने कहा…

बड़े रोचक नाम हैं..आशा करता हूँ की खाने में भी उतने ही रुचिकर व स्वादिष्ट होंगें. बेहतरीन जानकारी के लिए धन्यवाद.

Shyama ने कहा…

बड़े रोचक नाम हैं..आशा करता हूँ की खाने में भी उतने ही रुचिकर व स्वादिष्ट होंगें. बेहतरीन जानकारी के लिए धन्यवाद.

दिव्य नर्मदा divya narmada ने कहा…

ठग्गू के लड्डू तनिक, हमको भी भिजवाएं.
कुल्फी हो बदनाम तो, चटखारे ले खाएं.
जोग छोड़ खा लीजिये, लड्डू भाषण-भोग.
कम्युनिस्ट पूडी मिले, भाग जायें सब रोग.
अपराधी आटा हुआ, खाते निरपराध.
आकांक्षा हर पूर्ण हो यही सभी की साध.
कहे अक्षिता रक्षिता रखिये जिव्हा सदैव.
जी भर खा, तज दे 'सलिल' संयम सदृश कुटैव

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

हमारी खुशामदी, यदि हमें भी खाने को मिलें.

KK Yadav ने कहा…

ठग्गू के लड्डू एवं बदनाम कुल्फी....बात ही निराली है.

बेनामी ने कहा…

आप बस लिखती हैं, कभी भुट्टे पर कभी ठग्गू के लड्डू पर...कभी भिजवाने का भी तो प्रबंध करें...हा..हा..हा..!!

Bhanwar Singh ने कहा…

हम तो कानपुर के होकर भी इतना सब कुछ नहीं जान पाए...दिलचस्प जानकारी.

www.dakbabu.blogspot.com ने कहा…

डाकिया बाबू को तो बदनाम कुल्फी व ठग्गू के लड्डू खाने को अक्सर मिलते रहते हैं...आखिर इतने शुभचिंतक जो हैं.

संजय भास्‍कर ने कहा…

वाह बहुत ही अच्छी जानकारी मिली आपके पोस्ट के दौरान! लड्डू तो मुझे बहुत पसंद है