आम का फल विश्वप्रसिद्ध स्वादिष्ट फल है। इसे फलों का राजा कहा गया हैं। वेदों में आम को विलास का प्रतीक कहा गया है। इसका रसदार फल विटामिन ए, सी तथा डी का एक समृद्ध स्रोत है। कवि कालीदास ने इसकी प्रशंसा में गीत लिखे हैं। अलेक्सेंडर ने इसका स्वाद चखा है और साथ ही चीनी धर्म यात्री व्हेनसांग ने भी। मुग़ल सम्राट अकबर ने तो दरभंगा में आम के एक लाख पौधे लगाए और उस बाग़ को आज भी लाखी बाग़ के नाम से जाना जाता है। कालांतर में तमाम कविताओं में इसका ज़िक्र हुआ और कलाकारों ने बखूबी इसे अपने कैनवास पर उतारा। अपने देश में गर्मियों के आरंभ से ही आम पकने का इंतज़ार होने लगता है।
भारतीय प्रायद्वीप में आम की कृषि हजारों वर्षों से हो रही है। यह ४-५ ईसा पूर्व पूर्वी एशिया में पहुँचा। १० वीं शताब्दी तक यह पूर्वी अफ्रीका पहुँच चुका था। उसके बाद आम ब्राजील,वेस्टइंडीज और मैक्सिको पहुँचा क्योंकि वहाँ की जलवायु में यह अच्छी तरह उग सकता था। १४वीं शताब्दी में मुस्लिम यात्री इब्नबतूता ने इसकी सोमालिया में मिलने की पुष्टि की है। तमिलनाडु के कृष्णगिरि के आम बहुत ही स्वादिष्ट होते हैं और दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं।
जब हम लखनऊ में थे तो अक्सर आम के इस शौक में मलिहाबाद जाते थे. उत्तर भारत में गौरजीत, बाम्बेग्रीन, दशहरी, लंगड़ा, चौसा एवं लखनऊ सफेदा प्रजातियाँ तो खूब उगायी जाती हैं।देखा जाय तो आम की किस्मों में दशहरी, लंगड़ा, चौसा, फज़ली, बम्बई ग्रीन, बम्बई, अलफ़ॉन्ज़ो, बैंगन पल्ली, हिम सागर, केशर, किशन भोग, मलगोवा, नीलम, सुर्वन रेखा,वनराज, जरदालू प्रसिद्द हैं। अब तो तमाम नई किस्में- मल्लिका, आम्रपाली, रत्ना, अर्का अरुण, अर्मा पुनीत, अर्का अनमोल तथा दशहरी-51 इत्यादि भी दिखने लगी हैं.
आम को तो वैज्ञानिकों ने ब्रेस्ट कैंसर से बचाव में दूसरे फलों के मुकाबले भी ज्यादा फायदेमंद माना है। वस्तुत: आम में ब्लूबेरी (नीबदरी), अंगूर, अनार जैसे दूसरे फलों से कम एंटीऑक्सिडेंट होने के कारण यह शरीर में एंटी कैंसर एक्टिविटीज को बढाता है। इसलिए कैंसर से बचने के लिए आम को रेग्यूलर डाइट में शामिल करना फायदेमंद है।पर यहाँ चर्चा अंडमान के आमों की...!!
आम खाना किसे नहीं अच्छा लगता, और वो भी मौसम से पहले. फ़िलहाल यहाँ अंडमान में तो हमारे लिए यही स्थिति है. अपने उत्तर-प्रदेश में रहते तो आम के लिए जून-जुलाई का इंतजार करते, पर यहाँ तो अभी से फलों के राजा आम की बहार है. पेड़ों पर आम सिर्फ दिखने ही नहीं लगे हैं बल्कि अब तो पककर पीले और लाल भी हो रहे हैं.
जब हम यहाँ आये थे तो आम के पेड़ों में बौर देखकर बड़ा अपनापन सा लगा था. पहले दाल में आम डालकर इसका स्वाद लिया, अब पर अब तो इन रसीले पीले-पीले आमों को खाने का मजा ही दुगुना हो गया है. वही स्वाद, वही अंदाज़..अजी क्या कहने. यहाँ के लोग बताते हैं कि अंडमान में बारहों महीने आम की फसल होती है और हर तीन माह बाद आम के फल पेड़ों पर दिखने लगते हैं. काश ऐसा ही हो और हम मस्ती से आम खाएं. फ़िलहाल अगले एक-दो सालों तक तो आम के लिए गर्मियों का इंतजार नहीं करना पड़ेगा. वक़्त से पहले आम को प्राकृतिक रूप में खाने के इस उत्साह ने बैठे-बैठे ये पोस्ट भी लिखवा दी. आप भी अंडमान आयें तो छककर आम खाएं और उसके बाद तो नारियल का पानी पियें ही... !!
भारतीय प्रायद्वीप में आम की कृषि हजारों वर्षों से हो रही है। यह ४-५ ईसा पूर्व पूर्वी एशिया में पहुँचा। १० वीं शताब्दी तक यह पूर्वी अफ्रीका पहुँच चुका था। उसके बाद आम ब्राजील,वेस्टइंडीज और मैक्सिको पहुँचा क्योंकि वहाँ की जलवायु में यह अच्छी तरह उग सकता था। १४वीं शताब्दी में मुस्लिम यात्री इब्नबतूता ने इसकी सोमालिया में मिलने की पुष्टि की है। तमिलनाडु के कृष्णगिरि के आम बहुत ही स्वादिष्ट होते हैं और दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं।
जब हम लखनऊ में थे तो अक्सर आम के इस शौक में मलिहाबाद जाते थे. उत्तर भारत में गौरजीत, बाम्बेग्रीन, दशहरी, लंगड़ा, चौसा एवं लखनऊ सफेदा प्रजातियाँ तो खूब उगायी जाती हैं।देखा जाय तो आम की किस्मों में दशहरी, लंगड़ा, चौसा, फज़ली, बम्बई ग्रीन, बम्बई, अलफ़ॉन्ज़ो, बैंगन पल्ली, हिम सागर, केशर, किशन भोग, मलगोवा, नीलम, सुर्वन रेखा,वनराज, जरदालू प्रसिद्द हैं। अब तो तमाम नई किस्में- मल्लिका, आम्रपाली, रत्ना, अर्का अरुण, अर्मा पुनीत, अर्का अनमोल तथा दशहरी-51 इत्यादि भी दिखने लगी हैं.
आम को तो वैज्ञानिकों ने ब्रेस्ट कैंसर से बचाव में दूसरे फलों के मुकाबले भी ज्यादा फायदेमंद माना है। वस्तुत: आम में ब्लूबेरी (नीबदरी), अंगूर, अनार जैसे दूसरे फलों से कम एंटीऑक्सिडेंट होने के कारण यह शरीर में एंटी कैंसर एक्टिविटीज को बढाता है। इसलिए कैंसर से बचने के लिए आम को रेग्यूलर डाइट में शामिल करना फायदेमंद है।पर यहाँ चर्चा अंडमान के आमों की...!!
आम खाना किसे नहीं अच्छा लगता, और वो भी मौसम से पहले. फ़िलहाल यहाँ अंडमान में तो हमारे लिए यही स्थिति है. अपने उत्तर-प्रदेश में रहते तो आम के लिए जून-जुलाई का इंतजार करते, पर यहाँ तो अभी से फलों के राजा आम की बहार है. पेड़ों पर आम सिर्फ दिखने ही नहीं लगे हैं बल्कि अब तो पककर पीले और लाल भी हो रहे हैं.
जब हम यहाँ आये थे तो आम के पेड़ों में बौर देखकर बड़ा अपनापन सा लगा था. पहले दाल में आम डालकर इसका स्वाद लिया, अब पर अब तो इन रसीले पीले-पीले आमों को खाने का मजा ही दुगुना हो गया है. वही स्वाद, वही अंदाज़..अजी क्या कहने. यहाँ के लोग बताते हैं कि अंडमान में बारहों महीने आम की फसल होती है और हर तीन माह बाद आम के फल पेड़ों पर दिखने लगते हैं. काश ऐसा ही हो और हम मस्ती से आम खाएं. फ़िलहाल अगले एक-दो सालों तक तो आम के लिए गर्मियों का इंतजार नहीं करना पड़ेगा. वक़्त से पहले आम को प्राकृतिक रूप में खाने के इस उत्साह ने बैठे-बैठे ये पोस्ट भी लिखवा दी. आप भी अंडमान आयें तो छककर आम खाएं और उसके बाद तो नारियल का पानी पियें ही... !!
31 टिप्पणियां:
वाह !!....आपने तो आम खाते खाते पूरा इतहास बता दिया ...बहुत बढ़िया जानकारी ......अब हम लोग तो यहाँ तरस रहे आम खाने के लिए ...हा हा हा हा
ये तो बहुत बढिया खबर है. हम यहां गर्मियों का इन्तज़ार कर रहे हैं और आप आम का आनन्द उठा रही हैं.
waah aam ki mithaas ke saath baten......mujhe bhi aam chahiye
बहुत सुन्दर...मुँह में पानी आ गया. अद्भुत जानकारी.
बहुत सुन्दर...मुँह में पानी आ गया. अद्भुत जानकारी.
वाह..बिन मौसम आम का मजा..मौजा ही मौजा.
समझ में आ रहा है, आपने हम सभी को ललचाने के लिए यह पोस्ट डाली है कि आप वहाँ मजे से आम का मजा लें और हम लोग बैठकर लार टपकायें...ये तो अन्याय हुआ न.
आपने आम के बारे में बहुत बढ़िया जानकारी दी है और कितने सारे नए नामों से भी परिचित करा दिया....और साथ में ललचा भी दिया....हमको तो मई तक इंतज़ार करना ही पड़ेगा......
ये तो लाजवाब जानकारी मिली की वहां बारहों महिने आम की फ़सल आती है. मजे हैं वहां रहने वालों के तो. बहुत बढिया जानकारी दी आपने. धन्यवाद.
रामराम.
हम यहां गर्मियों का इन्तज़ार कर रहे हैं और आप आम का आनन्द उठा रही हैं.
अभी यहाँ ठीक से आम में बौर नहीं लगा और आपने आम का लालच दे दिया...!
..रोचक जानकारी.
बहुत खुब जी,मजा आ गया कभी आये तो खुब खायेगे
इतनी जानकारी के साथ लालच आ गया आम खाने को!
..मैंने तो आम खा भी लिया. अंडमान में रहने का फायदा.
आपकी यह लाजवाब पोस्ट पढ़कर मेरा मन तो आम पर कविता लिखने को कह रहा है, पर मुझे लिखना नहीं आता. फ़िलहाल आप आम खायें व हम कल्पनाओं में डूबें कि हम भी आम खा रहे हैं.
ये तो आपने एकदम नई जानकारी दी. आम की महिमा तो हर कोई गाता है....स्वादिष्ट पोस्ट.
ये तो आपने एकदम नई जानकारी दी. आम की महिमा तो हर कोई गाता है....स्वादिष्ट पोस्ट.
पहले दाल में आम डालकर इसका स्वाद लिया, अब पर अब तो इन रसीले पीले-पीले आमों को खाने का मजा ही दुगुना हो गया है. वही स्वाद, वही अंदाज़..अजी क्या कहने.#########इसके आगे कुछ कहने को नहीं रह जाता है.
सिर्फ लिखने से काम नहीं चलेगा, कुछ आम इधर भी भेजें.
Nice Post..Interesting information.
बढ़िया लिखा आम के बारे में. इसकी चर्चा आज के अमर-उजाला अख़बार के ब्लॉग कोने में भी पढ़ी..बधाई.
बहुत खूब..एक आम-इतने दीवाने. आप सभी की टिप्पणियों के लिए आभार ..यूँ ही अपना सहयोग व स्नेह बनाये रहें !!
लाजवाब आम और लाजवाब पोस्ट..मुंह में पानी आ गया.
हम भी कतार में हैं, कुछ आम मेरे लिए भी बचाकर रखियेगा.
हमे पिछले साल बता देती तो हम भी खा लेते
वही तो थे हम. मिल भी लेते और आम के आम गुठलियो के दाम भी खडे कर लेते.
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यह अच्छी जानकारी रही.
@HARI SHARMA
हमें तो अंडमान पहुंचे अभी इक महीना भी नहीं हुआ भाई.
@ Rashmi Singh,
कुछ क्यों, ढेर सारे.आप आयें तो सही.
आम को आप ने रचनात्मक मिठास से भर दिया .शुभ कामनाएं आकांक्षा .
आम की जानकारी, तथ्य , फ़ायदे और किस्में
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