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बुधवार, 24 फ़रवरी 2010

फिर से महिला-आरक्षण का झुनझुना

एक बार फिर से महिला आरक्षण विधेयक को उसके मूल स्वरूप में केंद्रीय मंत्रिमंडल को भेज दिया गया है। गाहे-बगाहे हर साल देश की आधी आबादी के साथ यह नौटंकी चलती है और नतीजा सिफ़र. इस देश में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष व मुख्यमंत्री पदों पर महिला आसीन हो चुकी हैं, पर एक अदद आरक्षण के लिए अभी भी महिलाओं के पक्ष में सकारात्मक माहौल नहीं बन पाया है.

यद्यपि राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने संसद में अपने अभिभाषण में कहा है कि सरकार महिला आरक्षण बिल को जल्दी से जल्दी संसद से पारित कराने के लिए प्रतिबद्ध है। पर दुर्भाग्यवश इस प्रतिबद्धता के पीछे कोई राजनैतिक इच्छा-शक्ति नहीं दिखती है.

महिला आरक्षण बिल वाकई एक मजाक बन चुका है, जिस पर हर साल हंगामा होता है. कोई तर्क देगा कि महिलाएं इतनी शक्तिवान हो चुकी हैं कि अब उन्हें आरक्षण की जरुरत नहीं, कोई पर- कटियों से डरता है, कोई आरक्षण में भी आरक्षण चाहता है, कोई इसे वैसाखी बताकर ख़ारिज करना चाहता है तो किसी की नज़र में यह नेताओं की घरवालियों व बहू-बेटियों को बढ़ाने की चाल है. बस इन्हीं सब के चलते राजनीतिक दलों में इस मसले पर आम राय नहीं बन पाने के कारण पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से यह बिल संसद की मंजूरी का इंतजार कर रहा है। पर कोई यह बता पाने की जुर्रत नहीं कर पाता है कि वास्तव में यह बिल मंजूर क्यों नहीं हो रहा है.

महिला-आरक्षण को एक ऐसा झुनझुना बना दिया गया है जिससे हर राजनैतिक दल व सत्ताधारी पार्टी खेलती जरुर है, पर उसे कोई सम्मानित स्थान नहीं देना चाहती. फ़िलहाल इंतजार इस बिल के पास होने का....!!!

-आकांक्षा यादव

28 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

बेहद प्रभावी और सार्थक चर्चा..साधुवाद.

Shyama ने कहा…

फिर से महिला-आरक्षण का झुनझुना..बहुत सही विश्लेषण किया आकांक्षा जी ने.

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

महिला-आरक्षण को राजनेताओं ने शायद कभी गंभीरता से लिया ही नहीं. बस अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए हर साल वे ये झुनझुना इस्तेमाल करते हैं. उम्दा पोस्ट.

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

आकांक्षा जी, 'इण्डिया टुडे' के नवीनतम 3 मार्च अंक में इण्डिया टुडे स्त्री परिशिष्ट में आपकी 03 कवितायेँ पढ़ीं, वाकई दिल को छूती हैं..बधाई.

Shahroz ने कहा…

बड़ा सार्थक मुद्दा उठाया आकांक्षा जी ने. महिला आरक्षण बिल को शीघ्र पास होना चाहिए.इसके नाम पर नौंटकी ज्यादा दिन तक नहीं चलेगी.

Bhanwar Singh ने कहा…

पर एक अदद आरक्षण के लिए अभी भी महिलाओं के पक्ष में सकारात्मक माहौल नहीं बन पाया है.
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यही तो- खाने के दांत अलग, दिखाने के अलग. यह बिल नेताओं की दोगली चाल का शिकार हो चुका है.

Unknown ने कहा…

वाजिब मुद्दा, जिस पर गंभीर बहस की जरुरत है. आपने सही रूप में इसे प्रस्तुत किया.

Unknown ने कहा…

इण्डिया टुडे में हमने भी आपकी कवितायेँ पढ़ीं..बधाई.

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

रोचक विमर्श. नेता लोग अपनी बपौती छोड़ दें, मुश्किल लगता है. एक डिम्पल यादव के हारने पर अमर सिंह जैसा दिग्गज नेता आउट हो गया. फिर कहाँ से ये नेता महिला नेताओं को पचा पायेंगें.

S R Bharti ने कहा…

लाजवाब व प्रासंगिक बात.

Dev ने कहा…

सही मुद्दा उठाया आपने .......

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

पता नहीं यह अपनें मूल स्वरुप में कब पास होगा.

राज भाटिय़ा ने कहा…

निकम्मी सरकार, निकम्मे नेता अब समय बिताने के लिये क्या करे... पब्लिक के संग इस आरक्षण का झुनझुने से ही खेले गी ना,

निर्मला कपिला ने कहा…

आकाँक्षा जी नेताओं को आधी आबादी से अधिक चिन्ता उस आबादी की है जिनके हाथ मे कोई झुनझुना पकडा कर वोटे लेते हैं इस आधी आबादी मे आधे वोटे तो उनके घर के ही निकल जाते हैं जब तक इसके खिलाफ एक जुट हो कर महिलायें नही आती तब तक कुछ होने वाला नही
। बहुत अच्छा विस्श्लेशण किया है आपने। शुभकामनायें

www.dakbabu.blogspot.com ने कहा…

आरक्षण के माध्यम से सब अपनी ही रक्षा कर रहे हैं, कोई गंभीरता नहीं दिखती.

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

महिला-आरक्षण और लोकपाल विधेयक के नाम पर भारत में जितनी राजनीति हुई है, वह दूसरे देशों में शायद ही देखने को मिले.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

राष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष, संप्रग की अध्यक्ष..सभी महिला ही हैं, पर देखिये ये इस बिल को पास करा सकती हैं य नहीं. नहीं तो यह मानना पड़ेगा कि महिला आरक्षण सिर्फ भुलावा है.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

'इण्डिया टुडे' में कवितायेँ पढ़ीं, ..बधाई.

मन-मयूर ने कहा…

आकांक्षा जी, आपकी यह पोस्ट नारी ब्लॉग पर भी पढ़ रहा था. वहाँ से कुछ रोचक कमेन्ट उठा कर यहाँ पेस्ट कर रहा हूँ, ताकि परिचर्चा को आगे बढाया जा सके-

रेखा श्रीवास्तव said...
ये महिला आरक्षण बिल से आप क्या उम्मीद कर रही हैं की रातों रात महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन आ जायेगा. कुछ राजनैतिक मुद्दे ऐसे हैं जो सिर्फ और सिर्फ मुद्दे बने रहने के लिए ही है. जहाँ जरूरत नहीं है वहा आरक्षण बराबर बढ़ता जा रहा है और अब हर क्षेत्र में आरक्षण के सिवा बचा क्या है? सिर्फ वोट बैंक के लिए ये इस्तेमाल किये जाते हैं. अगर इनको खत्म कर दिया जाएय्गा तो अगले चुनाव में जनता को लुभाने के लिए बचेगा क्या?
इस लिए इससे कुछ भी उम्मीद मत करिए. महिलायों को उनके हाल पर छोड़ दीजिये, वे अपनी रास्ता खुद ही बना लेंगी. फिर नेतृत्व क्षमता सभी में तो नहीं होती, वही होगा की प्रधान पत्नी बनेगी और राज पतिदेव करेंगे.

मन-मयूर ने कहा…

Rashmi Singh said...

@रेखा श्रीवास्तव
वही होगा की प्रधान पत्नी बनेगी और राज पतिदेव करेंगे.
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एक-दो उदाराहनों से पूरी महिला-शक्ति को तो नहीं तौला जा सकता...क्या हर प्रधान पत्नी अक्षम ही होती है. महिलाएं ही जब महिला की टांग खिंचेंगीं तो फिर पुरुषों से क्या आशा ???

मन-मयूर ने कहा…

रेखा श्रीवास्तव said...

रश्मिजी ,

ये मैं महिला के कमजोर या अक्षम होने की बात नहीं कर रही हूँ. सक्षम पुरुष स्त्री को वह स्थान देने के लिए कब तैयार है? मेरा मतलब उस बात से नहीं है. आप क्या समझती हैं? ये आरक्षण किस तरह से लागू होगा. रातों रात महिला नेत्रियाँ तैयार नहीं हो जायेंगी. तब ये तथाकथित नेता अपने परिवार की महिलाओं को उस आरक्षण के नाम पर सामने ले आयेंगे और फिर राज कौन करेगा? ये महिलायें जो कभी राजनीति की परिभाषा से परिचित नहीं हैं. इस नेताओं को कथ्पुलियाँ चाहिए होंगी. जो आरक्षण के नाम पर उनके लिए सीट हासिल कर काम कर सकें. क्या राबड़ी देवी ने बिहार पर राज किया तो वह इस राजनीति से वाकिफ थीं. फिर राज कैसे चला? यह तो सर्वविदित है.
--

मन-मयूर ने कहा…

डॉ महेश सिन्हा said...

क्या होगा एक और आरक्षण से अभी क्या कम राक्षस है .जब तक राजनीति एक नयी दिशा नहीं लेती महिलाएँ इस दलदल से दूर ही रहें तो अच्छा है

रचना said...

महिलाएँ इस दलदल से दूर ही रहें तो अच्छा है
saari duniya mae agar daldal haen to mahila kehaa kehaa sae dur rahey yae koi upyaay nahin haen.

मन-मयूर ने कहा…

डॉ महेश सिन्हा said...

@ रचना जी

उपाय है अगर महिलाएँ एकजुट खड़ी हो जायें तो बिना किसी आरक्षण के दिशा बदल सकती हैं . एक तरफ इतना जुड़ाव किसी भी व्यवस्था या राजनीति को हिला सकता है .
आरक्षण एक भीख है अधिकार नहीं
रेखा जी ने सही कहा है :
" ये महिला आरक्षण बिल से आप क्या उम्मीद कर रही हैं की रातों रात महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन आ जायेगा."
दलदल अभी भी सीमित है इसीलिये ये दुनिया जीवित है.

मन-मयूर ने कहा…

mukti said...
महिला आरक्षण का मुद्दा औरतों को बहलाने वाला झुनझुना ही है. ये लोग ऐसे ही तमाशा करते रहेंगे, पर आरक्षण देंगे नहीं.

मन-मयूर ने कहा…

Manav Vikash Vigyan aur Adytam said...

aaranchhan ke bharose mat rahiye apane paron pe khade hoyeeye

मन-मयूर ने कहा…

यहाँ तो महिला आरक्षण को लेकर संसद का नजारा है. हर कोई अपनी बात कहता है, पर यह नहीं बताता कि महिला-आरक्षण के पारित होने से नुकसान क्या है..आकांक्षा जी ने सही ही लिखा है कि इसे लोगों ने बस झुनझुना बना दिया है.

Akanksha Yadav ने कहा…

ersymops जी,
अपने तो परिचर्चा हेतु पूरा मैटेरियल ही जुटा दिया. मैंने इस पोस्ट की चर्चा 'शब्द-शिखर' व 'नारी' पर इसीलिए की थी कि लोगों के विचार से रु-ब-रु हुआ जा सके. अभी भी देखा जा सकता है कि इसके पक्ष-विपक्ष में भिन्न-भिन्न मत हैं, ठीक वैसे ही जैसे राजनैतिक दलों में. योग्यता की बात अपनी जगह सही है, पर आरक्षण समाज के उपेक्षित पक्ष को अतिरिक्त अवसर देकर लोगों के समान लाने की बात करता है. आज भी भारतीय महिला का चेहरा देखना हो तो ग्रामीण क्षेत्रों में चले जाइये, असलियत अपने आप दिखने लगेगी.....जहाँ तक पत्नी के नाम पर पतियों के राज करने की बात है, हो सकता है कुछ समय तक यह स्थिति रहे, पर जैसे-जैसे महिलाएं अपनी शक्ति व अधिकार समझेंगीं, वैसे-वैसे ये रोग भी दूर हो जायेगा. तैरना सीखने के लिए पानी में तो उतरना ही पड़ेगा, भयभीत होकर तट पर खड़े होकर तैरना नहीं सीखा जा सकता.

...आप सभी की टिप्पणियों के लिए आभार !!

Akanksha Yadav ने कहा…

आप सभी की टिप्पणियों के लिए आभार. अभी चर्चा ख़त्म नहीं हुई है, आपके मत-विमत का इंतजार रहेगा.