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शनिवार, 20 मार्च 2010

कंक्रीटों के शहर में गौरैया (विश्व गौरैया दिवस पर)

गौरैया भला किसे नहीं भाती. कहते हैं कि लोग जहाँ भी घर बनाते हैं देर सबेर गौरैया के जोड़े वहाँ रहने पहुँच ही जाते हैं। पर यही गौरैया अब खतरे में है. पिछले कई सालों से इसके विलुप्त होने की बात कही जा रही है. कंक्रीटों के शहर में गौरैया कहाँ घर बनाये, उस पर से मोबाइल टावरों से निकले वाली तंरगों को भी गौरैयों के लिए हानिकारक माना जा रहा है। हम जिस मोबाइल पर गौरैया की चूं-चूं कलर ट्यून के रूप में सेट करते हैं, उसी मोबाइल की तंरगें इसकी दिशा खोजने वाली प्रणाली को प्रभावित कर रही है और इनके प्रजनन पर भी विपरीत असर पड़ता है. यही नहीं आज की पीढ़ी भी गौरैया को नेट पर ही खंगाल रही है. उसके पास गौरैयाके पीछे दौड़ने के लिए समय भी नहीं है, फिर गौरैया कहाँ जाये..किससे अपना दुखड़ा रोये..यदि इसे आज नहीं सोचा गया तो कल गौरैया वाकई सिर्फ गीतों-किताबों और इन्टरनेट पर ही मिलेगी. इसी चिंता के मद्देनजर इस वर्ष से दुनिया भर में प्रति वर्ष 20 मार्च को ''विश्व गौरैया दिवस'' मनाने का निर्णय लिया गया है. देर से ही सही पर इस ओर कुछ ठोस कदम उठाने की जरुरत है, तभी यह दिवस सार्थक हो सकेगा. इस अवसर पर अपने पतिदेव कृष्ण कुमार यादव जी की एक कविता उनके ब्लॉग शब्द सृजन की ओर से साभार-

चाय की चुस्कियों के बीच
सुबह का अखबार पढ़ रहा था
अचानक
नजरें ठिठक गईं
गौरैया शीघ्र ही विलुप्त पक्षियों में।

वही गौरैया,
जो हर आँगन में
घोंसला लगाया करती
जिसकी फुदक के साथ
हम बड़े हुये।

क्या हमारे बच्चे
इस प्यारी व नन्हीं-सी चिड़िया को
देखने से वंचित रह जायेंगे!
न जाने कितने ही सवाल
दिमाग में उमड़ने लगे।

बाहर देखा
कंक्रीटों का शहर नजर आया
पेड़ों का नामोनिशां तक नहीं
अब तो लोग घरों में
आँगन भी नहीं बनवाते
एक कमरे के फ्लैट में
चार प्राणी ठुंसे पड़े हैं।

बच्चे प्रकृति को
निहारना तो दूर
हर कुछ इण्टरनेट पर ही
खंगालना चाहते हैं।

आखिर
इन सबके बीच
गौरैया कहाँ से आयेगी?

20 टिप्‍पणियां:

प्रज्ञा पांडेय ने कहा…

bahut sahi likha aapne .. halog gourayya ko dhoondhate hi rah jayenge ek din ..

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

विश्व गौरैया दिवस पर इस नन्हीं चिड़िया की जान बचाने का संकल्प लें. तभी इस दिन की सार्थकता होगी. आपने बेहतरीन लिखा..बधाई.

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

विश्व गौरैया दिवस पर इस नन्हीं चिड़िया की जान बचाने का संकल्प लें. तभी इस दिन की सार्थकता होगी. आपने बेहतरीन लिखा..बधाई.

बेनामी ने कहा…

हमें तो पता ही नहीं था इस दिन के बारे में. कितनी बढ़िया बात है, बशर्ते यह लोगों की सोच बदल सके. सुन्दर कविता बहुत कुछ कह जाती है..बधाई.

Bhanwar Singh ने कहा…

गौरैया के बहाने तो आपने बचपन की याद दिला दी. आपने सही कहा कि जहाँ भी घर बनाते हैं देर सबेर गौरैया के जोड़े वहाँ रहने पहुँच ही जाते हैं। पर यही गौरैया अब खतरे में है.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

हम जिस मोबाइल पर गौरैया की चूं-चूं कलर ट्यून के रूप में सेट करते हैं, उसी मोबाइल की तंरगें इसकी दिशा खोजने वाली प्रणाली को प्रभावित कर रही है और इनके प्रजनन पर भी विपरीत असर पड़ता है.
_____________
एकदम सटीक. इस ओर सभी को सोचने की जरुरत है.

Akanksha Yadav ने कहा…

गौरैया ...इस खोते प्राणी के साथ ही बहुत कुछ विलुप्त हो जायेगा. हमारा बचपन, हमारी यादें, उसकी चहचाहट, उसके पीछे दौड़ना ...शायद एक लम्बी परंपरा भी. इस सन्दर्भ में गंभीर होकर कार्य करने की जरुरत है. आप सभी की टिप्पणियों के लिए आभारी हूँ.

राज भाटिय़ा ने कहा…

अब क्य कर कोई उपाय भी बताया होता. धन्यवाद

संजय भास्‍कर ने कहा…

विश्व गौरैया दिवस पर सुन्दर प्रस्तुति.

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

आखिर
इन सबके बीच
गौरैया कहाँ से आयेगी? ...
बहुत ही सार्थक चिंतन.

Dev ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति ....गौरया दिवस ....और रचना तो लाजवाब

मनोज कुमार ने कहा…

आप की इस प्रस्तुति में विचार, अभिव्यक्ति शैली-शिल्प और संप्रेषण के अनेक नूतन क्षितिज उद्घाटित हो रहे हैं।

Unknown ने कहा…

यदि इसे आज नहीं सोचा गया तो कल गौरैया वाकई सिर्फ गीतों-किताबों और इन्टरनेट पर ही मिलेगी. इसी चिंता के मद्देनजर इस वर्ष से दुनिया भर में प्रति वर्ष 20 मार्च को ''विश्व गौरैया दिवस'' मनाने का निर्णय लिया गया है....Behatrin jankari..sundar kavita !!

ज़मीर ने कहा…

नमस्कार,
संदेश देता यह आलेख बहुत अच्छा लगा.साथ ही आदर्णीय यादव भैया की कविता भी अच्छी लगी. यह हकीकत है आजकल गौरैया नही दिखती.

शमीम ने कहा…

आज की स्थिति का सही चित्रण. आज बडे बडे भवनों के बीच गोरैया विलुप्त सी हो गयी है.
अच्छी प्रस्तुती.

KK Yadav ने कहा…

बहुत खूब. हमारी गौरैया जी यहाँ भी.

मन-मयूर ने कहा…

इस पोस्ट से याद आया कि कायदे से गौरैया देखे भी अरसा बीत गया. पहले हमारे गाँव वाले घर के आंगन में उनका डेरा था, पर जब से गाँव वाले घर को नया रूप दिया, वे गायब ही हो गई. इस कविता में वास्तु स्थिति का सटीक विश्लेषण है.

raghav ने कहा…

सुन्दर, सार्थक भावपूर्ण रचना. बधाई.

Yatish Jain ने कहा…

मोबाइल फ़ोन के छोटी चिड़ियों के गायब होने का कारन है
http://qatraqatra.yatishjain.com

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" ने कहा…

saarthak chintan!!!!!!