आज विश्व पृथ्वी दिवस है. वैसे आजकल हर दिन का फैशन है, पर पृथ्वी दिवस की महत्ता इसलिए बढ़ जाती है कि यह पृथ्वी और पर्यावरण के बारे में लोगों को जागरूक करता है. यदि पृथ्वी ही नहीं रहेगी तो फिर जीवन का अस्तित्व ही नहीं रहेगा. हम कितना भी विकास कर लें, पर पर्यावरण की सुरक्षा को ललकार किया गया कोई भी कार्य समूची मानवता को खतरे में डाल सकता है. सर्वप्रथम पृथ्वी दिवस का विचार अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन के द्वारा 1970 में पर्यावरण शिक्षा के अभियान रूप में की गयी, पर धीरे-धीरे यह पूरे विश्व में प्रचारित हो गया. आज हम अपने आसपास प्रकृति को न सिर्फ नुकसान पहुंचा रहे हैं, बल्कि भावी पीढ़ियों से प्रकृति को दूर भी कर रहे हैं. ऐसे परिवेश में कल वास्तविक पार्क की बजाय हमें ई-पार्क देखने को मिले, तो कोई बड़ी बात नहीं. इक निगाह कृष्ण कुमार यादव जी की इस कविता पर भी दौड़ाइए और सोचिये-
बचपन में पढ़ते थे
ई फॉर एलीफैण्ट
अभी भी ई अक्षर देख
भारी-भरकम हाथी का शरीर
सामने घूम जाता है
पर अब तो ई
हर सवाल का जवाब बन गया है
ई-मेल, ई-शॉप, ई-गवर्नेंस
हर जगह ई का कमाल
एक दिन अखबार में पढ़ा
शहर में ई-पार्क की स्थापना
यानी प्रकृति भी ई के दायरे में
पहुँच ही गया एक दिन
ई-पार्क का नजारा लेने
कम्प्यूटर-स्क्रीन पर बैठे सज्जन ने
माउस क्लिक किया और
स्क्रीन पर तरह-तरह के देशी-विदेशी
पेड़-पौधे और फूल लहराने लगे
बैकग्राउण्ड में किसी फिल्म का संगीत
बज रहा था और
नीचे एक कंपनी का विज्ञापन
लहरा रहा था
अमुक कोड नंबर के फूल की खरीद हेतु
अमुक नम्बर डायल करें
वैलेण्टाइन डे के लिए
फूलों की खरीद पर
आकर्षक गिटों का नजारा भी था
पता ही नहीं चला
कब एक घंटा गुजर गया
ई-पार्क का मजा ले
ज्यों ही चलने को हुआ
उन जनाब ने एक कम्प्यूटराइज्ड रसीद
हाथ में थमा दी
आखिर मैंने पूछ ही लिया
भाई! न तो पार्क में मैने
परिवार के सदस्यों के साथ दौड़ लगायी
न ही अपने टॉमी कुत्ते को घुमाया
और न ही मेरी पत्नी ने पूजा की खातिर
कोई फूल या पत्ती तोड़ी
फिर काहे की रसीद ?
वो हँसते हुये बोला
साहब! यही तो ई-पार्क का कमाल है
न दौड़ने का झंझट
न कुत्ता सभालने का झंझट
और न ही पार्क के चौकीदार द्वारा
फूल पत्तियाँ तोड़ते हुए पकड़े जाने पर
सफाई देने का झंझट
यहाँ तो आप अच्छे-अच्छे
मनभावन फूलों व पेड़-पौधें का नजारा लीजिये
और आँखों को ताजगी देते हुये
आराम से घर लौट जाईये !!
29 टिप्पणियां:
वाह ई अक्षर का अच्छा प्रयोग..
पृ्थ्वी दिवस की बधाई।
थोडा और आगे बढिए ,इ-फूड और इ-ड्रेस की कल्पना कीजिये
जाने कहा जा के हमें सुकून मिलेगा .........
अच्छी मानवता पे आधारित विवेचना के लिए धन्यवाद / वैकल्पिक मिडिया के रूप में ब्लॉग और ब्लोगर के बारे में आपका क्या ख्याल है ? मैं आपको अपने ब्लॉग पर संसद में दो महीने सिर्फ जनता को प्रश्न पूछने के लिए ,आरक्षित होना चाहिए ,विषय पर अपने बहुमूल्य विचार कम से कम १०० शब्दों में रखने के लिए आमंत्रित करता हूँ / उम्दा देश हित के विचारों को सम्मानित करने की भी वयवस्था है / आशा है आप अपने विचार जरूर व्यक्त करेंगें /
विश्व पृथ्वी दिवस पर सुन्दर सन्देश देती पोस्ट..हार्दिक बधाई !!
हा..हा..हा...मजेदार.
आकांक्षा जी, एक सार्थक मुद्दे की ओर ध्यान आकृष्ट कराया आपने..वाकई इस ओर सोचने की जरुरत है. कृष्ण कुमार जी की कविता बेहद प्रभावी व समसामयिक है.
आज सभी लोग संकल्प लेंगें कि कभी भी किसी पेड़-पौधे को नुकसान नहीं पहुँचायेंगे, पर्यावरण की रक्षा करेंगे, अपने चारों तरफ खूब सारे पौधे लगायेंगे और उनकी नियमित देख-रेख भी करेंगे. विश्व पृथ्वी दिवस पर शुभकामनायें.
के.के. सर की कविता तो शानदार है..बधाई.
अब तक तो बहुत सारे ई सुना था, अब ये ई-पार्क पहली बार सुन रहा हूँ. कृष्ण कुमार जी की कविता अभी भले ही काल्पनिक लगे, पर आने वाले दिनों की सच्चाई तो यही है.
व्यंग्यात्मक रूप में लिखी लाजवाब कविता. भविष्य के प्रति सचेत भी करती है.
जानकारीपूर्ण पोस्ट. साथ में बढ़िया कविता भी. युगल के. के. जी व आकांक्षा जी को साधुवाद.
सार्थक मुद्दे की ओर ध्यान आकृष्ट कराया आपने।
पुरखों सी पेड़ों की छाया,
शीतल कर दे जलती काया.
***विश्व पृथ्वी दिवस पर खूब पौधे लगायें और धरती को सुन्दर व स्वच्छ बनायें***
यही तो ई-पार्क का कमाल है
न दौड़ने का झंझट
न कुत्ता सभालने का झंझट
और न ही पार्क के चौकीदार द्वारा
फूल पत्तियाँ तोड़ते हुए पकड़े जाने पर
सफाई देने का झंझट
....खूब कही, पर इस पर हँसें कि रोयें. ईश्वर इस दिन से बचाए.
ई-पार्क तो कमाल की चीज निकली. तभी तो कहते हैं जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि. बेहद रोचक कल्पनाशीलता.
..तो हमारा 'ई-पार्क' यहाँ सैर कर रहा है. देखिये कहाँ-कहाँ घूमकर आता है.
विश्व पृथ्वी दिवस पर हार्दिक बधाई !!
वृक्ष कहीं न कटने पाएं
संकल्पों के हाथ उठाएं
ढेर सारे पौधे लगाकर
धरती से मरूभूमि भगाएं।
....विश्व पृथ्वी दिवस पर हार्दिक बधाई !!
आज विश्व पृथ्वी दिवस है ****
"समुद्रवसने देवी पर्वतस्तनमण्डले !
विष्णुपत्नी नमस्तुभ्यं पादस्पर्शम् क्षमस्व मे !!
माँ मेदनी को नमन *** !!
उत्कृष्ट पोस्ट,धन्यवाद.
पृथ्वी दिवस पर एक अहम् मुद्दे की तरफ ध्यान आकृष्ट कराती सुंदर पोस्ट के लिए आपको साधुवाद. अपनी पृथ्वी को बचाने के लिए आज हम सबको गंभीरता के साथ सोचने की जरूरत है. बेहद समसामयिक कविता के लिए कृष्ण कुमार जी को बधाई.
अमुक कोड नंबर के फूल की खरीद हेतु
अमुक नम्बर डायल करें'
-और न ही पार्क के चौकीदार द्वारा
फूल पत्तियाँ तोड़ते हुए पकड़े जाने पर
सफाई देने का झंझट
वाह! क्या बात है!
यह कल्पना भी बहुत बढ़िया लगी !
Bhai Pooja mishra ki kvita ku chori kar liye apne name se
Bhai Pooja mishra ki kvita ku chori kar liye apne name se
Ye kavita Pooja mishra ki hai chori ki gai hai unke Facebook page se krishna kumar yadav ji chori karke kavi na baniye sharm kariye apne uper.
Pooja poetry and arts 🎨✍🎭💕 se kavita churai gai hai. Pooja mishra ji ki kavita hai
Pooja poetry and arts Pooja mishra ji ka page hai waha se ye kavita chori ki gai hai. Pooja ji ki achi poem padne ke liye Pooja poetry and arts like kare aur pade
Bhai ye kavita Pooja mishra ji ki hai inhone chori ki hai
Itti badi post pe baithe log chor hai to desh ka kya hoga
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