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शुक्रवार, 18 जून 2010

खूब लड़ी मरदानी, अरे झांसी वारी रानी (पुण्यतिथि 18 जून पर विशेष)

स्वतंत्रता और स्वाधीनता प्राणिमात्र का जन्मसिद्ध अधिकार है। इसी से आत्मसम्मान और आत्मउत्कर्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। भारतीय राष्ट्रीयता को दीर्घावधि विदेशी शासन और सत्ता की कुटिल-उपनिवेशवादी नीतियों के चलते परतंत्रता का दंश झेलने को मजबूर होना पड़ा था और जब इस क्रूरतम कृत्यों से भरी अपमानजनक स्थिति की चरम सीमा हो गई तब जनमानस उद्वेलित हो उठा था। अपनी राजनैतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक-आर्थिक पराधीनता से मुक्ति के लिए क्रान्ति यज्ञ की बलिवेदी पर अनेक राष्ट्रभक्तों ने तन-मन जीवन अर्पित कर दिया था।

क्रान्ति की ज्वाला सिर्फ पुरुषों को ही नहीं आकृष्ट करती बल्कि वीरांगनाओं को भी उसी आवेग से आकृष्ट करती है। भारत में सदैव से नारी को श्रद्धा की देवी माना गया है, पर यही नारी जरूरत पड़ने पर चंडी बनने से परहेज नहीं करती। ‘स्त्रियों की दुनिया घर के भीतर है, शासन-सूत्र का सहज स्वामी तो पुरूष ही है‘ अथवा ‘शासन व समर से स्त्रियों का सरोकार नहीं‘ जैसी तमाम पुरूषवादी स्थापनाओं को ध्वस्त करती इन वीरांगनाओं के बिना स्वाधीनता की दास्तान अधूरी है, जिन्होंने अंग्रेजों को लोहे के चने चबवा दिया। 1857 की क्रान्ति में जहाँ रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल, बेगम जीनत महल, रानी अवन्तीबाई, रानी राजेश्वरी देवी, झलकारी बाई, ऊदा देवी, अजीजनबाई जैसी वीरांगनाओं ने अंग्रेजों को लोहे के चने चबवा दिये, वहीं 1857 के बाद अनवरत चले स्वाधीनता आन्दोलन में भी नारियों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। इन वीरांगनाओं में से अधिकतर की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे किसी रजवाड़े में पैदा नहीं हुईं बल्कि अपनी योग्यता की बदौलत उच्चतर मुकाम तक पहुँचीं।

1857 की क्रान्ति की अनुगूँज में जिस वीरांगना का नाम प्रमुखता से लिया जाता है, वह झांसी में क्रान्ति का नेतृत्व करने वाली रानी लक्ष्मीबाई हैं। 19 नवम्बर 1835 को बनारस में मोरोपंत तांबे व भगीरथी बाई की पुत्री रूप मे लक्ष्मीबाई का जन्म हुआ। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था, पर प्यार से लोग उन्हंे मनु कहकर पुकारते थें। काशी में रानी लक्ष्मीबाई के जन्म पर प्रथम वीरांगना रानी चेनम्मा को याद करना लाजिमी है। 1824 में कित्तूर (कर्नाटक) की रानी चेनम्मा ने अंगेजों को मार भगाने के लिए ’फिरंगियों भारत छोड़ो’ की ध्वनि गुंजित की थी और रणचण्डी का रूप धर कर अपने अदम्य साहस व फौलादी संकल्प की बदौलत अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये थे। कहते हैं कि मृत्यु से पूर्व रानी चेनम्मा काशीवास करना चाहती थीं पर उनकी यह चाह पूरी न हो सकी थी। यह संयोग ही था कि रानी चेनम्मा की मौत के 6 साल बाद काशी में ही लक्ष्मीबाई का जन्म हुआ।

बचपन में ही लक्ष्मीबाई अपने पिता के साथ बिठूर आ गईं। वस्तुतः 1818 में तृतीय मराठा युद्ध में अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय की पराजय पश्चात उनको 8 लाख रूपये की वार्षिक पंेशन मुकर्रर कर बिठूर भेज दिया गया। पेशवा बाजीराव द्वितीय के साथ उनके सरदार मोरोपंत तांबे भी अपनी पुत्री लक्ष्मीबाई के साथ बिठूर आ गये। लक्ष्मीबाई का बचपन नाना साहब के साथ कानपुर के बिठूर में ही बीता। लक्ष्मीबाई की शादी झांसी के राजा गंगाधर राव से हुई। 1853 में अपने पति राजा गंगाधर राव की मौत पश्चात् रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी का शासन सँभाला पर अंग्रेजों ने उन्हें और उनके दत्तक पुत्र को शासक मानने से इन्कार कर दिया। अंग्रेजी सरकार ने रानी लक्ष्मीबाई को पांच हजार रूपये मासिक पेंशन लेने को कहा पर महारानी ने इसे लेने से मना कर दिया। पर बाद में उन्होंने इसे लेना स्वीकार किया तो अंग्रेजी हुकूमत ने यह शर्त जोड़ दी कि उन्हें अपने स्वर्गीय पति के कर्ज को भी इसी पेंशन से अदा करना पड़ेगा, अन्यथा यह पेंशन नहीं मिलेगी। इतना सुनते ही महारानी का स्वाभिमान ललकार उठा और अंग्रेजी हुकूमत को उन्होंने संदेश भिजवाया कि जब मेरे पति का उत्तराधिकारी न मुझे माना गया और न ही मेरे पुत्र को, तो फिर इस कर्ज के उत्तराधिकारी हम कैसे हो सकते हैं। उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत को स्पष्टतया बता दिया कि कर्ज अदा करने की बारी अब अंग्रेजों की है न कि भारतीयों की। इसके बाद घुड़सवारी व हथियार चलाने में माहिर रानी लक्ष्मीबाई ने ब्रिटिश सेना को कड़ी टक्कर देने की तैयारी आरंभ कर दी और उद्घोषणा की कि-‘‘मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी।”

रानी लक्ष्मीबाई द्वारा गठित सैनिक दल में तमाम महिलायें शामिल थीं। उन्होंने महिलाओं की एक अलग ही टुकड़ी ‘दुर्गा दल’ नाम से बनायी थी। इसका नेतृत्व कुश्ती, घुड़सवारी और धनुर्विद्या में माहिर झलकारीबाई के हाथों में था। झलकारीबाई ने कसम उठायी थी कि जब तक झांसी स्वतंत्र नहीं होगी, न ही मैं श्रृंगार करूंगी और न ही सिन्दूर लगाऊँगी। अंग्रेजों ने जब झांसी का किला घेरा तो झलकारीबाई जोशो-खरोश के साथ लड़ी। चूँकि उसका चेहरा और कद-काठी रानी लक्ष्मीबाई से काफी मिलता-जुलता था, सो जब उसने रानी लक्ष्मीबाई को घिरते देखा तो उन्हें महल से बाहर निकल जाने को कहा और स्वयं घायल सिहंनी की तरह अंग्रेजों पर टूट पड़ी और शहीद हो गई। रानी लक्ष्मीबाई अपने बेटे को कमर में बाॅंध घोडे़ पर सवार किले से बाहर निकल गई और कालपी पहॅंुची, जहाॅं तात्या टोपे के साथ मिलकर ग्वालियर के किले पर कब्जा कर लिया।....अन्ततः 18 जून 1858 को भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की इस अद्भुत वीरांगना ने अन्तिम सांस ली पर अंग्रेजों को अपने पराक्रम का लोहा मनवा दिया। तभी तो उनकी मौत पर जनरल ह्यूगरोज ने कहा- ‘‘यहाँ वह औरत सोयी हुयी है, जो व्रिदोहियों में एकमात्र मर्द थी।”

इतिहास अपनी गाथा खुद कहता है। सिर्फ पन्नों पर ही नहीं बल्कि लोकमानस के कंठ में, गीतों और किवदंतियों इत्यादि के माध्यम से यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रवाहित होता रहता है। वैसे भी इतिहास की वही लिपिबद्धता सार्थक और शाश्वत होती है जो बीते हुये कल को उपलब्ध साक्ष्यों और प्रमाणों के आधार पर यथावत प्रस्तुत करती है। बुंदेलखण्ड की वादियों में आज भी दूर-दूर तक लोक लय सुनाई देती है- ''खूब लड़ी मरदानी, अरे झाँसी वारी रानी/पुरजन पुरजन तोपें लगा दई, गोला चलाए असमानी/ अरे झाँसी वारी रानी, खूब लड़ी मरदानी/सबरे सिपाइन को पैरा जलेबी, अपन चलाई गुरधानी/......छोड़ मोरचा जसकर कों दौरी, ढूढ़ेहूँ मिले नहीं पानी/अरे झाँसी वारी रानी, खूब लड़ी मरदानी।'' माना जाता है कि इसी से प्रेरित होकर ‘झाँसी की रानी’ नामक अपनी कविता में सुभद्राकुमारी चैहान ने 1857 की उनकी वीरता का बखान किया हैं- ''चमक उठी सन् सत्तावन में/वह तलवार पुरानी थी/बुन्देले हरबोलों के मुँह/हमने सुनी कहानी थी/खूब लड़ी मर्दानी वह तो/झाँसी वाली रानी थी।''

(चित्र में : झाँसी के किले में कड़क बिजली तोप पर सवार पुत्री अक्षिता 'पाखी')

37 टिप्‍पणियां:

श्यामल सुमन ने कहा…

एक समसामयिक और सुन्दर आलेख आकांक्षा जी। कई वीरांगनाओं के बारे में जाना।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

जगदीश्‍वर चतुर्वेदी ने कहा…

सुंदर लिखा है।

M VERMA ने कहा…

सुन्दर आलेख. लक्ष्मी बाई के साथ साथ कई वीरांगनाओ के बारे में जानकर अच्छा लगा.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

बहुत अच्छी और जानकारी पूर्ण आलेख.....

cartoonist ABHISHEK ने कहा…

''चमक उठी सन् सत्तावन मे
वह तलवार पुरानी थी
बुन्देले हरबोलों के मुँह
हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
झाँसी वाली रानी थी।''

Gyan Darpan ने कहा…

पुण्यतिथि पर इस महान वीरांगना को श्रद्धांजली

निर्मला कपिला ने कहा…

मुझे तो ये पाखी भी लक्षमी बाई ही लग रही हैं सुन्दर समसामयिक आलेख के लिये धन्यवाद्

संजय पाराशर ने कहा…

बहुत ही अच्छी जानकारी..आलेख .. बचपन में हिंदी की पुस्तक में यह गीत था...
विचारणीय विषय है की सैकड़ो वर्षो पूर्व जब महिलाओ पर काफी प्रतिबन्ध थे उस समय अनेक महिलाओं
ने देश हित में अनेक क्रन्तिकारी कार्य किए किन्तु आज के दौर में देश हित में इंदिरा गाँधी को छोड़ अनेक राजनितिक
महिलाए सुषुप्त हैं !

Udan Tashtari ने कहा…

बेहतरीन आलेख...और हमारी तोपची प्यारी लग रही है. :)

फ़िरदौस ख़ान ने कहा…

बेहतरीन आलेख...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सी जानकारी देता हुआ अच्छा आलेख....

KK Yadav ने कहा…

रानी लक्ष्मीबाई पर सुन्दर आलेख..पुण्य तिथि पर पुनीत नमन.

बेनामी ने कहा…

mera naman is virangna ko

माधव( Madhav) ने कहा…

बढियां जानकारी

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

रानी लक्ष्मीबाई अमर रहे

Smart Indian ने कहा…

खूब लड़ी मरदानी, अरे झाँसी वारी रानी
पुरजन पुरजन तोपें लगा दई, गोला चल असमानी
अरे झाँसी वारी रानी, खूब लड़ी मरदानी
सबरे सिपाइन को पैरा जलेबी, अपन चलाई गुरधानी
छोड़ मोरचा जसकर कों दौरी, ढूढ़ेहूँ मिले नहीं पानी
अरे झाँसी वारी रानी, खूब लड़ी मरदानी।


सुन्दर आलेख! रानी लक्ष्मीबाई अमर रहे!

मनोज कुमार ने कहा…

बेहतरीन आलेख!

Naveen Tyagi ने कहा…

jhansi ki rani ka blidaan divas 17 june thaa. mera unko shat-shat naman.

Naveen Tyagi ने कहा…

navambar ki 18 dinank ko unki janmtithi hai. krapya sudhar kar le.

बेनामी ने कहा…

यहाँ वह औरत सोयी हुयी है, जो व्रिदोहियों में एकमात्र मर्द थी।”
काश की कोई और मर्द पैदा हो इस देश कि दशा सुधारने के लिए

आशुतोष पार्थेश्वर ने कहा…

वीरांगना को नमन । कीचड़ उछालू समय में जब बेहद घिनौने तरीके से लक्ष्मी बाई और सुभद्राजी को लांछित किया जा रहा है,यह एक संतोष और सुकून देने वाला लेख है,
आपको बधाई और आभार भी।

आशुतोष पार्थेश्वर ने कहा…

वीरांगना को नमन । कीचड़ उछालू समय में जब बेहद घिनौने तरीके से लक्ष्मी बाई और सुभद्राजी को लांछित किया जा रहा है,यह एक संतोष और सुकून देने वाला लेख है,
आपको बधाई और आभार भी।

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

बहुत महत्त्वपूर्ण आलेख!
--
रानी लक्ष्मीबाई को सादर नमन!

अजय मोहन ने कहा…

‘‘मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी।”
किसी को भी इस बात में जरा भी स्वार्थ नहीं दिखता?क्या किसी को नहीं पता है ये ऐतिहासिक तथ्य कि जब अंग्रेजों के खिलाफ़ विद्रोही रानी झांसी से मिलने गये तो उन्होंने कोई तवज्जो न दी थी और विद्रोहियों को मात्र उपहार आदि दे कर दिल्ली का रास्ता दिखा दिया था लेकिन जब खुद पर पड़ी तो अपने राज्य के लिये लड़ाई करी इसमें क्या बड़प्पन है अपनी संपत्ति के लिये तो तमाम औरतें आज भी लड़ती हैं बस स्वरूप अलग हो जाता है,राष्ट्रवाद से शून्य निहित स्वार्थी लोगों को जबरन महानता का पेंट लगा दिया गया है।
ये बात कड़वी लग सकती हैं लेकिन ये मेरी मनगढंत बकवाद नहीं बल्कि इतिहासकार एल.पी.शर्मा की पुस्तक आधुनिक भारत से ली गयी है(ये बात अलग है कि बंदा भी शर्मा है और मैं भी लेकिन बात को बिना हिचकिचाए शर्माए रखने का साहस कर रहा हूं जबकि जानता हूं कि लोग नाराज हो जाएंगे)

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

Very nice post.thanks

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत सी जानकारी देता हुआ अच्छा आलेख..

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

सारगर्भित आलेख...रानी लक्ष्मीबाई को नमन.

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

बहुत खूब आकांक्षा जी, रानी साहिबा का पूरा जीवन ही आँखों के सामने घूम गया..साधुवाद इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए.

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

आपके ब्लॉग की नई डिजाईन तो काफी मनभावन लगी..बधाई.

Akanksha Yadav ने कहा…

आप सभी को यह लेख पसंद आया..मेरा सौभाग्य. अपना स्नेह यूँ ही बनाये रहें.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

प्रेरणादायी आलेख...रानी लक्ष्मीबाई को शत-शत नमन.

editor : guftgu ने कहा…

रानी लक्ष्मीबाई जी की वीरता पर जितना भी लिखा जाय कम ही होगा...पुनीत स्मरण.

Unknown ने कहा…

रानी लक्ष्मीबाई की कीर्तिगाथा को गढ़ता सुन्दर आलेख..हार्दिक शुभकामनायें.

बेनामी ने कहा…

आपका यह लेख लीक से हटकर लगा..उस वीरांगना को शत-शत नमन.

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

अले वाह, तोप पर बैठी मेरी फोटो कित्ती शानदार लग रही है..है ना.

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

निर्मला आंटी ने तो लिख भी दिया कि मुझे तो ये पाखी भी रानी लक्ष्मीबाई ही लग रही हैं ...

sanjeev kuralia ने कहा…

आपका यह लेख लीक से हटकर लगा..उस वीरांगना को शत-शत नमन. पुण्यतिथि पर इस महान वीरांगना को श्रद्धांजली !