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शनिवार, 26 जून 2010

स्वास्थ्य के बारे में सोचें, नशे को न कहें

मादक पदार्थों व नशीली वस्तुओं के निवारण हेतु संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 7 दिसंबर, 1987 को प्रस्ताव संख्या 42/112 पारित कर हर वर्ष 26 जून को अंतर्राष्ट्रीय नशा व मादक पदार्थ निषेध दिवस मानाने का निर्णय लिया. यह एक तरफ लोगों में चेतना फैलाता है, वहीँ नशे के लती लोगों के उपचार की दिशा में भी सोचता है.इस वर्ष का विषय है- ''स्वास्थ्य के बारे में सोचें, नशे को न कहें." आजकी पोस्ट इसी विषय पर-
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मादक पदार्थों के नशे की लत आज के युवाओं में तेजी से फ़ैल रही है. कई बार फैशन की खातिर दोस्तों के उकसावे पर लिए गए ये मादक पदार्थ अक्सर जानलेवा होते हैं. कुछ बच्चे तो फेविकोल, तरल इरेज़र, पेट्रोल कि गंध और स्वाद से आकर्षित होते हैं और कई बार कम उम्र के बच्चे आयोडेक्स, वोलिनी जैसी दवाओं को सूंघकर इसका आनंद उठाते हैं. कुछ मामलों में इन्हें ब्रेड पर लगाकर खाने के भी उदहारण देखे गए हैं. मजाक-मजाक और जिज्ञासावश किये गए ये प्रयोग कब कोरेक्स, कोदेन, ऐल्प्राजोलम, अल्प्राक्स, कैनेबिस जैसे दवाओं को भी घेरे में ले लेते हैं, पता ही नहीं चलता. फिर स्कूल-कालेजों य पास पड़ोस में गलत संगति के दोस्तों के साथ ही गुटखा, सिगरेट, शराब, गांजा, भांग, अफीम और धूम्रपान सहित चरस, स्मैक, कोकिन, ब्राउन शुगर जैसे घातक मादक दवाओं के सेवन की ओर अपने आप कदम बढ़ जाते हैं. पहले उन्हें मादक पदार्थ फ्री में उपलब्ध कराकर इसका लती बनाया जाता है और फिर लती बनने पर वे इसके लिए चोरी से लेकर अपराध तक करने को तैयार हो जाते हैं.नशे के लिए उपयोग में लाई जानी वाली सुइयाँ HIV का कारण भी बनती हैं, जो अंतत: एड्स का रूप धारण कर लेती हैं. कई बार तो बच्चे घर के ही सदस्यों से नशे की आदत सीखते हैं. उन्हें लगता है कि जो बड़े कर रहे हैं, वह ठीक है और फिर वे भी घर में ही चोरी आरंभ कर देते हैं. चिकित्सकीय आधार पर देखें तो अफीम, हेरोइन, चरस, कोकीन, तथा स्मैक जैसे मादक पदार्थों से व्यक्ति वास्तव में अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है एवं पागल तथा सुप्तावस्था में हो जाता है। ये ऐसे उत्तेजना लाने वाले पदार्थ है जिनकी लत के प्रभाव में व्यक्ति अपराध तक कर बैठता है। मामला सिर्फ स्वास्थ्य से नहीं अपितु अपराध से भी जुड़ा हुआ है. कहा भी गया है कि जीवन अनमोल है। नशे के सेवन से यह अनमोल जीवन समय से पहले ही मौत का शिकार हो जाता है।

संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण एशिया में भारत हेरोइन का सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है और ऐसा लगता है कि वह खुद भी अफीम पोस्त का उत्पादन करता है. गौरतलब है कि अफीम से ही हेरोइन बनती है. अपने देश के कुछ भागों में धड़ल्ले से अफीम की खेती की जाती है और पारंपरिक तौर पर इसके बीज 'पोस्तो' से सब्जी भी बने जाती है. पर जैसे-जैसे इसका उपयोग एक मादक पदार्थ के रूप में आरंभ हुआ, यह खतरनाक रूप अख्तियार करता गया. वर्ष 2001 के एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण में भारतीय पुरुषों में अफीम सेवन की उच्च दर 12 से 60 साल की उम्र तक के लोगों में 0.7 प्रतिशत प्रति माह देखी गई. इसी प्रकार 2001 के राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार ही 12 से 60 वर्ष की पुरुष आबादी में भांग का सेवन करने वालों की दर महीने के हिसाब से तीन प्रतिशत मादक पदार्थ और अपराध मामलों से संबंधित संयुक्त राष्ट्र कार्यालय [यूएनओडीसी] की रिपोर्ट के ही अनुसार भारत में जिस अफीम को हेरोइन में तब्दील नहीं किया जाता उसका दो तिहाई हिस्सा पांच देशों में इस्तेमाल होता है। ईरान 42 प्रतिशत, अफगानिस्तान सात प्रतिशत, पाकिस्तान सात प्रतिशत, भारत छह प्रतिशत और रूस में इसका पांच प्रतिशत इस्तेमाल होता है। रिपोर्ट के अनुसार भारत ने 2008 में 17 मीट्रिक टन हेरोइन की खपत की और वर्तमान में उसकी अफीम की खपत अनुमानत: 65 से 70 मीट्रिक टन प्रति वर्ष है। कुल वैश्विक उपभोग का छह प्रतिशत भारत में होने का मतलब कि भारत में 1500 से 2000 हेक्टेयर में अफीम की अवैध खेती होती है, जो वाकई चिंताजनक है.

नशे से मुक्ति के लिए समय-समय पर सरकार और स्वयं सेवी संस्थाएं पहल करती रहती हैं. पर इसके लिए स्वयं व्यक्ति और परिवार जनों की भूमिका ज्यादा महत्वपूर्ण है. अभिभावकों को अक्सर सुझाव दिया जाता है कि वे अपने बच्चों पर नजर रखें और उनके नए मित्र दिखाई देने, क्षणिक उत्तेजना या चिडचिडापन होने, जेब खर्च बढने, देर रात्रि घर लौटने, थकावट, बेचैनी, अर्द्धनिद्राग्रस्त रहने, बोझिल पलकें, आँखों में चमक व चेहरे पर भावशून्यता, आँखों की लाली छिपाने के लिए बराबर धूप के चश्मे का प्रयोग करते रहने, उल्टियाँ होने, निरोधक शक्ति कम हो जाने के कारण अक्सर बीमार रहने, परिवार के सदस्यों से दूर-दूर रहने, भूख न लगने व वजन के निरंतर गिरने, नींद न आने, खांसी के दौरे पड़ने, अल्पकालीन स्मृति में ह्रास, त्वचा पर चकते पड़ जाने, उंगलियों के पोरों पर जले का निशान होने, बाँहों पर सुई के निशान दिखाई देने, ड्रग न मिलने पर आंखों-नाक से पानी बहने-शरीर में दर्द-खांसी-उल्टी व बेचैनी होने, व्यक्तिगत सफाई पर ध्यान न देने, बाल-कपड़े अस्त व्यस्त रहने, नाखून बढे रहने, शौचालय में देर तक रहने, घरेलू सामानों के एक-एक कर गायब होते जाने आदत के तौर पर झूठ बोलने, तर्क-वितर्क करने, रात में उठकर सिगरेट पीने, मिठाईयों के प्रति आकर्षण बढ जाने, शैक्षिक उपलब्धियों में लगातार गिरावट आते जाने, स्कूल कालेज में उपस्थिति कम होते जाने, प्रायः जल्दबाजी में घर से बाहर चले जाने एवं कपडों पर सिगरेट के जले छिद्र दिखाई देने जैसे लक्षणों के दिखने पर सतर्क हो जाएँ. यह बच्चों के मादक-पदार्थों का व्यसनी होने की निशानी है. यही नहीं यदि उनके व्यक्तिगत सामान में अचानक माचिस,मोमबत्ती,सिगरेट का तम्बाकू, 3 इंच लम्बी शीशे की ट्यूब,एल्मूनियम फॉयल, सिरिंज, हल्का भूरा सफेद पाउडर मिलता है तो निश्चित जान लें कि वह ड्रग्स का शिकार है और तत्काल इस सम्बन्ध में कदम उठाने की जरुरत है.

मादक पदार्थों और नशा के सम्बन्ध में जागरूकता के लिए तमाम दिवस, मसलन- 31 मई को अंतर्राष्ट्रीय धूम्रपान निषेध दिवस, 26 जून को अंतर्राष्ट्रीय नशा व मादक पदार्थ निषेध दिवस, गाँधी जयंती पर 2 से 8 अक्टूबर मद्यनिषेध सप्ताह और 18दिसम्बर को मद्य निषेध दिवस के रूप में हर साल मनाया जाता है. मादक पदार्थों का नशा सिर्फ स्वास्थ्य को ही नुकसान नहीं पहुँचाता बल्कि सामाजिक-आर्थिक-पारिवारिक- मनोवैज्ञानिक स्तर पर भी इसका प्रभाव परिलक्षित होता है. जरुरत इससे भागने की नहीं इसे समझने व इसके निवारण की है. मात्र दिवसों पर ही नहीं हर दिन इसके बारे में सोचने की जरुरत है अन्यथा देश की युवा पीढ़ी को यह दीमक की तरह खोखला कर देगा.

22 टिप्‍पणियां:

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

अंतर्राष्ट्रीय नशा व मादक पदार्थ निषेध दिवस के बारे में सारगर्भित जानकारी..आकांक्षा जी को साधुवाद !!

Unknown ने कहा…

नशे से मुक्ति के लिए समय-समय पर सरकार और स्वयं सेवी संस्थाएं पहल करती रहती हैं. पर इसके लिए स्वयं व्यक्ति और परिवार जनों की भूमिका ज्यादा महत्वपूर्ण है....एकदम सही फ़रमाया आपने. आज के दिन इस गंभीर प्रस्तुति के लिए शुभकामनायें.

Shyama ने कहा…

आकांक्षा जी, वाकई कई नई जानकारियां मिलीं इस लेख से..चेतना का अच्छा प्रसार करता है आपका यह लेख..बधाई.

मन-मयूर ने कहा…

सुन्दर लेख..सार्थक सन्देश....''स्वास्थ्य के बारे में सोचें, नशे को न कहें.''

KK Yadav ने कहा…

मादक पदार्थों के फैलते व्यसन पर प्रशंसनीय लेख.

राज भाटिय़ा ने कहा…

आप का धन्यवाद इस सुंदर लेख को साव धानियो के बारे मै बतलाने का, मेरे भी दो लडके है जो अभी इसी कच्ची उम्र मै है, ओर आप के बताये सभी उपाय हम भी चुप चाप करते है, ओर बच्चो को एहसास भी नही होता, भगवान की दया से आज तक सब ठीक ठाक है

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

अतिसुन्दर...अंतर्राष्ट्रीय नशा व मादक पदार्थ निषेध दिवस पर लाजवाब पोस्ट.

शरद कुमार ने कहा…

आपकी पूर्व की रचनाओं की भांति ही ज्ञानवर्धक व प्रेरक.

बेनामी ने कहा…

हमें तो पता ही नहीं था इस दिवस के बारे में. अब पता चल गया..आभार.

बेनामी ने कहा…

आजकल तो युवाओं में यह रोग तेजी से फ़ैल रहा है. आपने इसकी पहचान के लिए जो उपाय दिए हैं, लाभकारी हैं.

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

अंतर्राष्ट्रीय नशा व मादक पदार्थ निषेध दिवस के बारे में सारगर्भित जानकारी.

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया आलेख एवं उम्दा विश्लेषण!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत अच्छी जानकारी...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

नशा करके ब्यक्ति शैतान बन जाता है!

माधव( Madhav) ने कहा…

सुन्दर लेख, सार्थक सन्देश,बहुत अच्छी जानकारी

Unknown ने कहा…

सही समय पर महत्वपूर्ण पोस्ट,,,अच्छी अभिव्यक्ति और बेहद ज़रुरी लेखन ..

विकास पाण्डेय
www.viahrokadarpan.blogspot.com

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

एक ज्ञानवर्धक व सामयिक पोस्ट ।

Akanksha Yadav ने कहा…

@ राज भाटिया जी,

आपने अपने व्यक्तिगत अनुभव शेयर कर इसे और भी जीवंत बना दिया..आभार !!

Akanksha Yadav ने कहा…

@ मनोज कुमार जी,

चर्चा मंच पर इस पोस्ट की चर्चा के लिए आभार !!

Akanksha Yadav ने कहा…

यह पोस्ट आप सभी को पसंद आई..अच्छा लगा... अपना स्नेह यूँ ही बनाये रखें.

शरद कुमार ने कहा…

मात्र दिवसों पर ही नहीं हर दिन इसके बारे में सोचने की जरुरत है अन्यथा देश की युवा पीढ़ी को यह दीमक की तरह खोखला कर देगा....बहुत सही कहा आपने.

raghav ने कहा…

अच्छा चेताया आपने...आपकी हर पोस्ट प्रेरक होती है.