आजकल हर दिन किसी न किसी को समर्पित हो गया है. कई लोग इसका विरोध भी करते हैं, पर इसका सकारात्मक पहलू यह है कि आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में एक पल ठहरकर हम उस भावना पर विचार करें, जिस भावना से ये दिवस आरंभ हुए हैं. ..आज अंतर्राष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस है. संयुक्त परिवार जैसे-जैसे टूटते गए, बुजुर्गों की स्थिति भी दयनीय होती गई. हम यह भूल गए कि इनके बिना हमारे जीवन का कोई आधार नहीं है. दैनिक ट्रिब्यून अख़बार में प्रकाशित शब्द गौरतलब हैं- '' वृद्धजन सम्पूर्ण समाज के लिए अतीत के प्रतीक, अनुभवों के भंडार तथा सभी की श्रद्धा के पात्र हैं। समाज में यदि उपयुक्त सम्मान मिले और उनके अनुभवों का लाभ उठाया जाए तो वे हमारी प्रगति में विशेष भागीदारी भी कर सकते हैं। इसलिए बुजुर्गों की बढ़ती संख्या हमारे लिए चिंतनीय नहीं है। चिंता केवल इस बात की होनी चाहिए कि वे स्वस्थ, सुखी और सदैव सक्रिय रहें।''
यहाँ भीष्म साहनी की कहानी 'चीफ की दावत' याद आती है, जहाँ बेटे ने अपने बास को घर बुलाने से पहले बूढी माँ को कैद ही कर दिया. पर जाते-जाते बास माँ से टकरा ही गया और वो भावनात्मक पल...! आज कहीं वृद्धाश्रम खुल रहे हैं तो कहीं घर में बुजुर्गों की जिंदगी जलालत का शिकार हो रही है. बड़े शहरों में अक्सर ऐसी घटनाएँ सुनने को मिलती हैं, जहाँ बुजुर्ग घर में अकेले रहते हैं और चोरी-हत्या इत्यादि के शिकार होते हैं. इन परिस्थितियों में बुजुर्ग अपने आपको उपेक्षित महसूस न करें, यह समाज की जवाबदारी है। भारत देश की बात करें तो हमारे यहाँ 1991 में 60 वर्ष से अधिक आयु के 5 करोड़ 60 लाख व्यक्ति थे। जो 2007 में बढ़कर 8 करोड़ 40 लाख हो गये। देश में सबसे अधिक बुजुर्ग केरल में हैं, जहाँ कुल जनसंख्या में 11 प्रतिशत बुजुर्ग हैं, जबकि सम्पूर्ण देश में यह औसत लगभग 8 प्रतिशत है।
जरुरत है कि हम अपने बड़े-बुजुर्गों के बारे में गहराई और आत्मीयता से सोचें और हमारे बुजुर्ग भी अपने को रचनात्मक कार्यों में लगायें, तभी मानवता का हित होगा.
20 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर विचार,,,केवल बुजुर्ग दिवस मानाने से बुजुर्गों की परेशानी कम नहीं हो सकती..उन्हें आज की पीढ़ी से सिर्फ प्यार के अलावा कुछ नहीं चाहिए..दुःख होता है उन बुजुर्गों को देख कर जो आर्थिक रूप से किसी पर निर्भर न होते हुए भी, जीवन के आखिरी पड़ाव में अपने बच्चों के स्नेह और प्यार के लिए तरसते हैं...आज की पीढ़ी इतनी आत्मकेंद्रित होती जा रही है की वह भूल जाते हैं की वह भी कभी इस अवस्था को पहुंचेंगे...यह सोच कर ही रूह काँप जाती है की उन बुजुर्गों का क्या होता होगा जो आर्थिक रूप से असमर्थ हैं और जिन्होंने अपना सब कुछ बच्चों को समर्थ बनाने में दाव पर लगा दिया था...आभार...
आज की पीढ़ी से सिर्फ प्यार के अलावा कुछ नहीं चाहिए..दुःख होता है उन बुजुर्गों को देख कर जो आर्थिक रूप से किसी पर निर्भर न होते हुए भी, जीवन के आखिरी पड़ाव में अपने बच्चों के स्नेह और प्यार के लिए तरसते हैं
इतने सुन्दर विचार, काश सबकी समझ इतनी परिपक्व हो।
वृद्ध आपके सम्मान व प्यार के भूखे हैं!
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इनका आदर होना ही चाहिए!
बहुत सटीक और सार्थक लेख ....हम तो अब स्वयं ही बुजुर्गों की श्रेणी में हैं :):)हम क्या सोचें ?
वृद्ध आपके सम्मान व प्यार के भूखे हैं,अगर आप इन्हे इन का हक नही दे रहे तो आप भी तेयार रहे, मत भुले इन्होने खुद तकलीफ़ सह कर हमे पाला है जेसे आज हम अपने बच्चो को पाल रहे है, जो हम कर रहे है कल बच्चे भी वेसा ही करेगे.....
आकांक्षा जी
बहुत सराहनीय लेख. आज उन्हें हमारी जरूरत है कल हमें भी जरूरत पडेगी किसी की. अगर घर में हमारे बच्चे बाबा दादी नहीं देखेगें तो वे अपने बच्चो को कैसे बतायेगे.............
बहुत ही सुन्दर विचार. आज की पीढ़ी बुजूर्गों को प्रेम, सद्भाव व सम्मान के दो पल भी दे सके तो बड़ी उपलब्धि होगी.
अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस-1 oct.2010
जीवन की संध्या बेला में -
सृजन संसार में सादर आमंत्रण-!
जरुरत है कि हम अपने बड़े-बुजुर्गों के बारे में गहराई और आत्मीयता से सोचें और हमारे बुजुर्ग भी अपने को रचनात्मक कार्यों में लगायें, तभी मानवता का हित होगा...Bahut sundar soch.
अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस पर सभी बड़े-बुजुर्गों को नमन !!
भावपूर्ण प्रस्तुति...इस दिशा में सभी को सोचने की जरुरत है.
@ Kailash ji,
आपसे सहमत हूँ. काश हर कोई ऐसा सोचता कि एक दिन उसे भी वृद्ध होना है...फिर ??
@ Sanjay Bhaskar,
@ Mayank ji,
@ Raj Bhatiya Ji,
धन्यवाद...आपसे असहमत होने का सवाल ही नहीं उठता...इसी बात पर इस पोस्ट में भी जोर दिया गया है.
@ प्रवीन पाण्डेय जी,
काश....समझ तो सबकी ही परिपक्व होती है, पर अपना-अपना देखने का नजरिया हो गया है.
@ संगीता जी,
किसने कहा कि आप बुजुर्ग हो गईं हैं, अभी तो आप....
@ Upendra,
पधारने के लिए आभार. सही कहा आपने कि आज उन्हें हमारी जरूरत है कल हमें भी जरूरत पडेगी किसी की.
@ Manoj Krumar,
@ Dr. Brajesh,
@ Shyama,
इस पोस्ट को सराहने के लिए आभार.
हम बुड्ढों के लिए भी कोई दिवस होता है, पता ही नहीं था...अच्छा लिखा आपने.
बड़े-बुजुर्गों की करें सेवा, तभी मिलेगा मेवा...अच्छी पोस्ट.
आज के दौर में काफी प्रासंगिक है यह पोस्ट ...बधाई.
धन्यवाद...आप सभी को यह पोस्ट पसंद आई. ..आभार !!
अफ़सोस है कि आपको पहले क्यों नहीं पढ़ा ...आपका धन्यवाद
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