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शनिवार, 22 दिसंबर 2012

नहीं हूँ मैं माँस-मज्जा का एक पिंड

नहीं हूँ मैं माँस-मज्जा का एक पिंड
जिसे जब तुम चाहो जला दोगे
नहीं हूँ मैं एक शरीर मात्र
जिसे जब तुम चाहो भोग लोगे
नहीं हूँ मैं शादी के नाम पर अर्पित कन्या
जिसे जब तुम चाहो छोड़ दोगे
नहीं हूँ मैं कपड़ों में लिपटी एक चीज
जिसे जब तुम चाहो तमाशा बना दोगे।

मैं एक भाव हूँ, विचार हूँ
मेरा एक स्वतंत्र अस्तित्व है
ठीक वैसे ही, जैसे तुम्हारा
अगर तुम्हारे बिना दुनिया नहीं है
तो मेरे बिना भी यह दुनिया नहीं है।

फिर बताओं
तुम क्यों अबला मानते हो मुझे
क्यों पग-पग पर तिरस्कृत करते हो मुझे
क्या देह का बल ही सब कुछ है
आत्मबल कुछ नहीं
खामोश क्यों हो
जवाब क्यों नहीं देते.....?

(कृष्ण कुमार यादव जी के कविता-संग्रह 'अभिलाषा' से साभार)

10 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

कोई नही देगा जवाब

विभूति" ने कहा…

बहुत सुंदर मन के भाव ...
प्रभावित करती रचना .

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

गहरे उतरती कविता..शरीर के भीतर भी हैं हम कुछ..

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

एक व्यक्ति होने की गरिमा मिलनी चाहिये !

Unknown ने कहा…

जबाव इसका कोइ नही दे सकता ...मैँ तो इतना ही कहुँगा कि जलने की नौबत आने ना दे पहले से ही सचेत रहे और कही भी अपने हक ना छोडे क्योकि इसकी शुरुआत वही से होती हैँ ।

Shahroz ने कहा…

क्या देह का बल ही सब कुछ है
आत्मबल कुछ नहीं
खामोश क्यों हो
जवाब क्यों नहीं देते.....?

..Really Eye-opener Poetry..Congts.

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

अगर तुम्हारे बिना दुनिया नहीं है
तो मेरे बिना भी यह दुनिया नहीं है।

..kash yah jajba har tak pahunche..shandar kavita.

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

बेहतरीन कविता |

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

व्यक्ति ही तो नहीं समझा जाता नारी को ।

Shyama ने कहा…

कृष्ण जी, बेहद धारदार लेखनी है। आपने तो दुखती रग पर हाथ रख दिया