स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री मोदी जी ने लालकिले से अपने भाषण में राजनैतिक कम, सामाजिक मुद्दों को ज्यादा तरजीह दी। समाज और परिवार पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने एक अहम बात कही कि आखिर सवालों और बंदिशों के घेरे में बेटियाँ ही क्यों, बेटे क्यों नहीं रखे जाते ? बेटा-बेटी के प्रति समाज का दोहरापन ही तमाम बुराईयों की जड़ है और जिसका प्रतिबिम्ब आज नारी से दुर्व्यवहार और रेप जैसी घटनाओं में साफ दिख रहा है। आखिर बेटों से यह सवाल क्यों नहीं पूछे जाते कि उनके दोस्त कौन हैं, वे कहाँ जा रहे हैं, उनकी गतिविधियाँ क्या हैं जबकि बेटियों से ये सारे सवाल बार-बार पूछे जाते हैं। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सारे फरमान भी बेटियों पर ही बंदिश लगाते हैं। रेप जैसी घटनाओं के लिए सिर्फ बेटों ही नहीं उनके माँ-बाप भी उतने ही जिम्मेदार हैं। मोदी जी ने जोर देकर कहा कि बलात्कार की घटनाओं के बारे में सुनकर सिर शर्म से झुक जाता है। माता-पिता बेटियों पर बंधन डालते हैं, लेकिन उन्हें बेटों से भी पूछना चाहिए, वे कहां जा रहे हैं, क्या करने जा रहे हैं ? कानून के साथ समाज को भी जिम्मेदार बनना होगा।
भ्रूण हत्या पर मोदी जी ने बेहद तल्खी से कहा कि, हमने हमारा लिंगानुपात देखा है...? समाज में यह असंतुलन कौन बना रहा है...? भगवान नहीं बना रहे...! मैं डॉक्टरों से अपील करता हूं कि वे अपनी तिजोरियां भरने के लिए किसी मां की कोख में पल रही बेटी को न मारें... बेटियों को मत मारो, यह 21वीं सदी के भारत के माथे पर कलंक है।
मोदी जी ने कहा कि ऐसे परिवार देखे हैं, जहां बड़े मकानों में रहने वाले पांच-पांच बेटों के बावजूद बूढ़े मां-बाप वृद्धाश्रम में रहते हैं... और ऐसे भी परिवार हैं, जहां इकलौती बेटी ने माता-पिता की देखभाल करने के लिए शादी तक नहीं की... सो, एक बेटी पांच-पांच बेटों से भी ज़्यादा सेवा कर सकती है...
मोदी जी ने लाल किले से इस बात को उठाया है तो आवाज़ भी दूर तक जानी चाहिये।
लाल किले की प्राचीर से जब तिरंगा बुलंदी से फहरा रहा था तो इसी के साथ लोगों की आशाएं भी जगीं। आने वाले दिनों में विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के मुखिया से आधी आबादी सकारात्मक और सख्त क़दमों की आशा तो कर ही सकती है, आखिर इसके बिना तो भारत को सुदृढ़, सशक्त और विकसित नहीं बनाया जा सकता !!
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