23 जुलाई को जब आप अपनी गाड़ी या घर में रेडियो सुनेंगे तो शायद आपको कुछ खास ना लगे पर ये दिन सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है। 23 जुलाई को ही भारत में मुंबई से रेडियो प्रसारण की पहली स्वर लहरी गूंजी थी। 23 जुलाई को भारत में संगठित प्रसारण के 90 साल पूरे हो रहे हैं। प्रसारण की एक मोहक और ऐतिहासिक यात्रा में रेडियो ने सफलता के कई आयाम तय किए हैं। आज रेडियो भारतीय जनमानस के जीवन का एक अभिन्न अंग है। भारत में रेडियो से जुड़ी दो अनूठी बातें हैं, पहली तो यह कि यहां के रेडियो प्रसारण का नाम विश्व भर में विशिष्ट है ‘आकाशवाणी’ और उतनी ही अनूठी है इस ‘आकाशवाणी’ की ‘परिचय धुन’, जिसके साथ कुछ आकाशवाणी केंद्रों पर सभा सभा का आरंभ होता है हालांकि आकाशवाणी के बहुत सारे केंद्र अब अपना प्रसारण 24 घंटे करते हैं इसलिए वहां आकाशवाणी की संकेत ध्वनि सुनने नहीं मिल पाती है। ‘विविध भारती’ का प्रसारण 24 घंटे है तो वहां आकाशवाणी की संकेत धुन अब नहीं बज पाती।
यहां यह जानकारी देना जरूरी है कि इस नायाब धुन को सन 1936 में ‘इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी’ के संगीत विभाग के अधिकारी वॉल्टर कॉफमैन ने कंपोज़ किया था। ‘आकाशवाणी’ के इस अनूठे नाम की भी बड़ी दिलचस्प कहानी है। वैसे अपने देश में सन 1924 के आसपास कुछ रेडियो क्लबों ने प्रसारण आरंभ किया था लेकिन आर्थिक कठिनाइयों के चलते यह क्लब नहीं चल सके। आगे चलकर 23 जुलाई सन 1927 को मुंबई में ‘इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी’ ने अपनी रेडियो प्रसारण सेवा शुरू की। 26 अगस्त 1927 को कोलकाता में नियमित प्रसारण शुरू हो गया। रेडियो प्रसारण का उद्घाटन करते हुए तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने कहा था भारत वासियों के लिए प्रसारण का एक वरदान हो जायेगा। मनोरंजन और शिक्षा की दृष्टि से भारत में विद्यमान संभावना का हमें स्वागत करना होगा लेकिन 1930 तक आते-आते इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी दिवालिया हो गई और 1 अप्रैल 1930 को ब्रिटिश सरकार ने ‘इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस’ का गठन किया। मजे की बात यह है कि तब रेडियो श्रम मंत्रालय के अंतर्गत रखा गया। बात चल रही थी ‘आकाशवाणी’ के नामकरण की, तो बता दिया जाए कि दरअसल उन दिनों कई रियासतों में रेडियो स्टेशन खोले गए थे जिनमें मैसूर रियासत के 30 वॉट के ट्रांसमीटर से डॉक्टर एम वी गोपालस्वामी ने रेडियो प्रसारण शुरू किया और उसे नाम दिया ‘आकाशवाणी’। आगे चलकर सन 1936 से भारत के तमाम सरकारी रेडियो प्रसारण को ‘आकाशवाणी’ के नाम से जाना गया।
शुरू से ही रेडियो के तीन महान लक्ष्य थे- सूचना, शिक्षा और मनोरंजन। सामने थी भारत की भौगोलिक विभिन्नताओं और कठिनाइयों की चुनौती। लोगों को यह जानकर अचरज होगा कि सन 1930 से 1936 के बीच मुंबई और कोलकाता जैसे केंद्रों से हर रोज दो समाचार बुलेटिन प्रसारित किए जाते थे। एक अंग्रेजी में और दूसरा बुलेटिन हिंदुस्तानी में। 1 जनवरी 1936 को आकाशवाणी के दिल्ली केंद्र के उद्घाटन के साथ ही वहां से भी समाचार बुलेटिन प्रसारित होने लगे। सबसे खास बात यह है कि उन दिनों चूंकि समाचार बुलेटिन शुरू ही हुए थे इसलिए खबरें किसी एजेंसी से खरीदी नहीं जाती थी बल्कि समाचार वाचक उस दिन के समाचार पत्र लेकर मुख्य समाचार पढ़ दिया करते थे। लेकिन सन 1935 में सेंट्रल न्यूज़ आर्गेनाईजेशन यानी केंद्रीय समाचार संगठन की स्थापना के बाद समाचार बुलेटिनों का सुनियोजित ढंग से विकास हुआ। स्वतंत्रता के समय आकाशवाणी के कुल 18 ट्रांसमीटर थे। आकाशवाणी के नेटवर्क में कुल 6 रेडियो स्टेशन और पांच देसी रियासतों के रेडियो स्टेशन थे।
सन 1951 में रेडियो के विकास को पंचवर्षीय योजना में शामिल कर लिया गया उसके बाद से आकाशवाणी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। आकाशवाणी ने समाज के हर तबके को अपने परिवार में शामिल किया है, चाहे ग्रामीण श्रोता हो, चाहे श्रमिक, कामकाजी महिलाएं हों या बुजुर्ग और बच्चे या युवा। सबके लिए आकाशवाणी के रोचक कार्यक्रम प्रसारित होते हैं। आज देश की लगभग 98 प्रतिशत आबादी की पहुंच में है रेडियो।
21वीं सदी के इस तकनीकी युग में आकाशवाणी ने अपनी शक्ल बदली है। अब लोकल फ्रीक्वेंसी मॉड्यूलेशन यानी एफ एम केंद्रों का विस्तार हुआ है। और कार्यक्रमों की तकनीकी गुणवत्ता भी बढ़ी है। रेडियो आपके हाथ में है, आपके मोबाइल में है, इंटरनेट के जरिए पूरी दुनिया में इसकी पहुंच है। शुरुआती दौर से ही आकाशवाणी रचनात्मक पहल करती आ रही है। महत्वपूर्ण घटनाओं, समारोहों या खेलों की रेडियो कमेंट्री हो, रेडियो नाटक, रेडियो फीचर, फोन इन कार्यक्रम जैसी रचनात्मक विधाएं या फिर त्वरित प्रतिक्रिया वाले कार्यक्रम। sms का फरमाइशी कार्यक्रम हो या फिर शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम, साहित्यिक कृतियों के रेडियो रूपांतरण, गीतों भरी कहानियां, वार्ता, बाजार भाव, मौसम का हाल सब आकाशवाणी का हिस्सा हैं।
बदलते वक्त के साथ रेडियो ने अपनी नई विधाएं गढ़ी हैं। और इन्हें जनता के संस्कारों का हिस्सा बनाया है। 23 जुलाई 1969 को मनुष्य ने चंद्रमा पर कदम रखा और उसी दिन आकाशवाणी दिल्ली से आरंभ हुआ ‘युववाणी’ कार्यक्रम। उद्देश्य था छात्र वर्ग और युवा पीढ़ी को प्रसारण का भागीदार बनाना। आगे चलकर इस युववाणी ने रंगमंच, अभिनय, संगीत और मीडिया के अनेक क्षेत्रों की बहुत प्रतिभाओं को निखारा। आकाशवाणी के अत्यंत महत्वपूर्ण योगदानों में शास्त्रीय संगीत और लोक संगीत की अनमोल विरासत को सँजोना और लोकप्रिय करनास भी शामिल है। गुजरे जमाने के अनेक महत्वपूर्ण संगीतकार, शास्त्रीय संगीत के अनेक विद्वान, साहित्यकार और पत्रकार आकाशवाणी से जुड़े रहे हैं। आज भी आकाशवाणी के संग्रहालय में इनकी अनमोल रिकॉर्डिंग मौजूद है। महादेवी वर्मा जयशंकर प्रसाद, ‘निराला’, बच्चन जी, पं. रमानाथ अवस्थी वगैरह की अनमोल रचनाएं आकाशवाणी की लाइब्रेरी में मौजूद है। और अब तो प्रसार भारती ने सीडीज़ की शक्ल में इन्हें आपके लिए उपलब्ध भी करवा दिया है। इसे प्रसार भारती आर्काइव की वेबसाइट से खरीदा जा सकता है। इसमें वो रामचरित मानस गान भी शामिल है जो आपकी सुबहों का हिस्सा होती थी।
भारत में आकाशवाणी के लोकप्रियता का एक नया इतिहास तब रचा गया जब 3 अक्टूबर 1957 को ‘विविध भारती सेवा’ आरंभ हुई। ‘विविध भारती’ के फरमाइशी फिल्मी गीतों के कार्यक्रम घर घर में गूंजने लगे। फिल्मी कलाकारों से मुलाकात, फौजी भाइयों के लिए ‘जयमाला’, ‘हवा महल’ के नाटक और अन्य अनेक कार्यक्रम जन-जीवन का हिस्सा बन गए। सन 1967 में विविध भारती से प्रायोजित कार्यक्रमों की शुरुआत हुई। फिर तो रेडियो की लोकप्रियता शिखर पर पहुंच गई। अमीन सायानी की बिनाका गीतमाला आज भी हमारी यादों का हिस्सा है।
आकाशवाणी की ‘ध्वनि तरंगें’ सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी गूंजा करती है। वैसे अक्टूबर 1939 में पश्तो भाषा विदेश प्रसारण की शुरुआत हुई थी। विदेश प्रसारण सेवा आज 25 से भी अधिक भाषाओं में कार्यक्रम करती है। इसके अलावा आकाशवाणी की वेबसाइट पर लाइव स्ट्रीमिंग और मोबाइल एपलीकेशन के ज़रिए विविध भारती, एफ एम गोल्ड, रेनबो, समाचार सेवा, शास्त्रीय संगीत के चौबीस घंटे चलने वाले रेडियो चैनल ‘रागम’ और अलग अलग क्षेत्रीय भाषाओं के मनोरंजक कार्यक्रम सारी दुनिया में सुने जा सकते हैं।
जिन दिनों में छोटा पर्दा नहीं था तब रेडियो कमेंट्री विभिन्न घटनाओं को शब्दचित्र अपने श्रोताओं के लिए खींच देती थी चाहे आजादी की पूर्व संध्या पर पंडित नेहरू ने अपना प्रसिद्ध भाषण ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ (नियति से साक्षात्कार) संसद में दिया था। आकाशवाणी के माध्यम से इसे पूरे राष्ट्र में सुना था। आज भी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी रेडियो के ज़रिये अपनी ‘मन की बात’ लोगों तक पहुंचाते हैं। आज भारत में अनेक प्राइवेट एफ एम चैनल श्रोताओं का मनोरंजन करते हुए रेडियो की परंपरा को समृद्ध कर रहे हैं।
आज आकाशवाणी प्रसारण के तीनों रुपों यानी शॉर्टवेव, मीडियम वेव और FM के जरिए देश-विदेश में उपलब्ध है। 90 साल पहले ध्वनि तरंगों ने भारत में एक नन्हा कदम रखा था और आज भारतीय प्रसारण ने एक परिपक्व उम्र को छुआ है। इस उम्र में भी सपनों के अंकुर हरे हैं। स्मृतियों के एल्बम भरे हैं। और तय करने को है एक लंबा सफर। प्रसारण के 90 बरस प्रसारकों और श्रोताओं के लिए उत्सव के क्षण हैं।
✍🏻 *ममता सिंह*
उदघोषिका विविध भारती, मुंबई
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