साहित्य के क्षेत्र में दिया जाने वाला देश का सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार वर्ष 2017 के लिए हिंदी की शीर्षस्थ कथाकार कृष्णा सोबती को प्रदान किया जाएगा. यह पुरस्कार साहित्य के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए प्रदान किया जाएगा. पुरस्कार स्वरूप कृष्णा सोबती को 11 लाख रुपये, प्रशस्ति पत्र और वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा प्रदान की जाएगी.ज्ञानपीठ के निदेशक लीलाधर मंडलोई ने बताया कि प्रो. नामवर सिंह की अध्यक्षता में हुई प्रवर परिषद की बैठक में वर्ष 2017 का 53वां ज्ञानपीठ पुरस्कार हिंदी साहित्य की सशक्त हस्ताक्षर कृष्णा सोबती को देने का निर्णय किया गया.
18 फरवरी 1924 को गुजरात (वर्तमान पाकिस्तान) में जन्मी सोबती साहसपूर्ण रचनात्मक अभिव्यक्ति के लिए जानी जाती है. उनके रचनाकर्म में निर्भिकता, खुलापन और भाषागत प्रयोगशीलता स्पष्ट परिलक्षित होती है. 1950 में कहानी लामा से साहित्यिक सफर शुरू करने वाली सोबती स्त्री की आजादी और न्याय की पक्षधर हैं. उन्होंने समय और समाज को केंद्र में रखकर अपनी रचनाओं में एक युग को जिया है.
कृष्णा सोबती के कालजयी उपन्यासों सूरजमुखी अंधेरे के, दिलोदानिश, ज़िंदगीनामा, ऐ लड़की, समय सरगम, मित्रो मरजानी, जैनी मेहरबान सिंह, हम हशमत, बादलों के घेरे ने कथा साहित्य को अप्रतिम ताजगी और स्फूर्ति प्रदान की है. हाल में प्रकाशित ‘बुद्ध का कमंडल लद्दाख’ और ‘गुजरात पाकिस्तान से गुजरात हिंदुस्तान’ भी उनके लेखन के उत्कृष्ट उदाहरण हैं. उनकी सबसे चर्चित रचनाओं में शुमार है 'मित्रो मरजानी'. इस उपन्यास में उन्होंने एक शादीशुदा महिला की कामुकता को दर्शाया है. इस उपन्यास का कथाशिल्प इस तरह का है कि लोगों को आकर्षित करता है. इससे पहले मित्रो जैसा किरदार साहित्य में नजर नहीं आया था. कृष्णा सोबती को हिंदी साहित्य में ‘फिक्शन’ राइटिंग के लिए जाना जाता है.
कृष्णा सोबती को उनके उपन्यास जिंदगीनामा के लिए वर्ष 1980 का साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था."जिंदगीनामा” उनका एक महाकाव्यात्मक उपन्यास माना जाता है. इसी उपन्यास की बदौलत सोबती हिंदी में साहित्य अकादमी पाने वाली पहली महिला लेखिका बनीं. इस उपन्यास से जुड़ा ऐतिहासिक कॉपीराइट विवाद, उस दौर की नामचीन और वरिष्ठ लेखिका अमृता प्रीतम के खिलाफ अदालत तक खिंच गया था. कृष्णा सोबती को 1996 में अकादमी के उच्चतम सम्मान साहित्य अकादमी फेलोशिप से नवाजा गया था. इसके अलावा कृष्णा सोबती को पद्मभूषण, व्यास सम्मान, शलाका सम्मान से भी नवाजा जा चुका है.
गौरतलब है कि पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार 1965 में मलयालम के लेखक जी शंकर कुरूप को प्रदान किया गया था. सुमित्रानंदन पंत ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित होने वाले हिंदी के पहले रचनाकार थे. कृष्णा सोबती ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित होने वाली हिंदी की 11वीं साहित्यकार हैं. इससे पहले हिंदी के 10 लेखकों को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिल चुका है. इनमें सुमित्रानंदन पंत, रामधारी सिंह दिनकर, सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय, महादेवी वर्मा, कुंवर नारायण आदि शामिल हैं.
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