क्या वाकई श्रमिक दिवस को ये महिलाएँ सेलिब्रेट करती होंगी। सिर्फ महिलाएँ ही क्यों हमारे आस-पास काम करते बाल श्रमिक से लेकर पुरुष श्रमिक तक क्या इस खास दिवस का कोई लुत्फ़ उठा पाते होंगे।
क्या जितनी कवायद इस दिन अख़बारों के पन्ने भरने से लेकर इलेक्ट्रानिक मीडिया या सोशल मीडिया तक पर होती है, उसका एक भी अंश इन मजदूरों/ श्रमिकों के पास पहुँचता होगा।
....... किसी कवि की पंक्तियाँ याद आ रही हैं-
मजदूर दिवस की छुट्टी मुबारक,
आप घर पर हैं और मजदूर काम पर.
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