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सोमवार, 27 सितंबर 2010

पर्यटन की विविधता...

भारत विविधताओं का देश है. हर प्रान्त की अपनी लोक-संस्कृति है, विरासत है, धरोहरे हैं और तमाम महत्वपूर्ण पर्यटन-स्थल हैं. आज भी अपने देश के अलावा तमाम विदेशी सैलानी भारत पर्यटन के लिए आते हैं- किसी को ताजमहल भाता है तो किसी को लालकिला. कोई गाँधी के देश को देखना चाहता है तो कोई अध्यात्मवादी भारत को. कुछ को पहाड़ों से लगाव है तो कोई समुद्र से अठखेलियाँ करना चाहता है तो किसी को गंगा-तट पर घूमना अच्छा लगता है. मंदिर-मस्जिद-गुरूद्वारे-चर्च से लेकर रोज खुलते आश्रमों और फिर ध्वस्त होते या होटलों में तब्दील होते राजमहल/ किलों को देखना भला किसे नहीं भाता है. कोई आई. टी. सिटी बंगलूर को देखकर अचंभित होता है तो किसी को आज भी जयपुर का हवामहल आकर्षित करता है. किसी पर्यटक को ट्रेकिंग पसंद है तो कुछ को जंगलों में बीच जाकर विलुप्त होते जानवरों को देखने का शगल है. जितने प्रदेश, उतने भेष....जहाँ भी जाइये, कुछ अलग ही मिलेगा. आखिरकार यूँ ही नहीं है कि तमाम विदेशी, पर्यटक के रूप में भारत आये, और फिर यहीं के होकर रह गए. आज कोई समाज-सेवा में लगा है तो कोई झुग्गी-झोपड़ियों में शिक्षा का उजियारा फैला रहा है. राहुल संकृत्यायन ने अपने इसी घुम्मकड़ी/ पर्यटक स्वभाव के चलते विदेशों से बौद्ध साहित्य खच्चरों पर लादकर लाने का साहस दिखाया.

ऐसा नहीं है कि सब कुछ अच्छा ही है. पर्यटन के नाम पर लूट-खसोट भी है तो पर्यटकों से दुर्व्यवहार भी शामिल है. बेरोजगारी के इस दौर में हर कोई पैसे बनाना चाहता है और उसे नजर आते हैं ये विदेशी पर्यटक. कभी गंगा जल तो कभी मिट्टी की मूर्तियों को प्राचीन बताकर बेचना....हर कहीं व्यवसाय हावी है. कोई ज्यादा किराया माँग रहा है तो कोई उन्हें नशे की लत दे रहा है. आजकल चैनल्स पर एक विज्ञापन भी आता है, जिसमें आमिर खान इन सबके विरुद्ध एक स्वस्थ माहौल बनाने में लगे हैं. दुर्भाग्यवश, ध्वस्त होते ऐतिहासिक भवनों और उनकी आड में पनपती बुराइयाँ, वहाँ लिखे अश्लील शब्द कई बार असहजता की स्थिति में ला देते हैं. जरुरत है की हम स्वयं अपनी जिम्मेदारियों को पहचानें और भारत में पर्यटन के लिए एक स्वस्थ माहौल बनायें. इससे न सिर्फ राजस्व प्राप्त होता है, बल्कि अपने देश की छवि भी निखरती है.

...यह सब चर्चा इसलिए भी कि आज विश्व पर्यटन दिवस है. संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 1980 के बाद से लगातार प्रति वर्ष विश्व पर्यटन संगठन के माध्यम से 27 सितंबर को विश्व पर्यटन दिवस मनाया जाता है. यह तारीख वास्तव में 1970 में इस प्रयोजन हेतु चुनी गई थी. इस दिन का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय समुदाय के भीतर पर्यटन की भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ाना और सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करना है. इस वर्ष इस दिवस का विषय 'पर्यटन तथा जैव-विविधता' रखा गया है !!

31 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

पर्यटन दिवस पर बढ़िया विचारणीय पोस्ट.बधाई......आभार.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

विश्व पर्यटन दिवस पर आपने बहुत ही सुन्दर आलेख लिखा है!

राज भाटिय़ा ने कहा…

भई हम कोई दिवस तो नही मनाते , लेकिन आप की इस सुंदर पोस्ट को पढ कर टिपण्णी देने से अपने को नही रोक सके, पर्यटन के नाम पर लूट-खसोट भी है तो पर्यटकों से दुर्व्यवहार भी शामिल है.यह सिर्फ़ भारत मै नही अन्य देशो मै भी होता है, युरोप ओर अन्य देशो मै भी, हम सिर्फ़ बदनाम है इस लिये हमारे देश की बातो को ज्यादा उछाला जाता है,

माधव( Madhav) ने कहा…

सुन्दर आलेख

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

जरुरत है की हम स्वयं अपनी जिम्मेदारियों को पहचानें और भारत में पर्यटन के लिए एक स्वस्थ माहौल बनायें. इससे न सिर्फ राजस्व प्राप्त होता है, बल्कि अपने देश की छवि भी निखरती है....बेहतरीन पोस्ट...शुभकामनायें.

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

विश्व पर्यटन दिवस पर सभी को बधाइयाँ.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना। वहाँ बैठकर पर्यटन पर लिखने का माहौल बनता होगा।

JAGDISH BALI ने कहा…

एक सन्तुलित लेख ! आप्के ब्लोग पर आ कर अच्छा लगा !

Akanksha Yadav ने कहा…

@ Sanjay Bhaskar,
@ Mayank Ji,
@ Madhav,

धन्यवाद...आपको यह लेख पसंद आया.

Akanksha Yadav ने कहा…

@ भाटिया जी,


काफी हद तक आपसे सहमत. क्या करेंगें, हर जगत एक ही मानव बैठा है, बस नाम और देश बदल गए हैं.

Akanksha Yadav ने कहा…

@ Bali,

धन्यवाद, आप यहाँ पधारे, हमें भी अच्छा लगा.

Urmi ने कहा…

बहुत बढ़िया और विचारणीय लेख प्रस्तुत किया है आपने! पर्यटन दिवस पर हार्दिक बधाइयाँ!

khushi ने कहा…

वाह जी!!! सोचने को मजबूर करता है आप का ब्लॉग!!!
कभी "खुशी " भी पधारें,

SATYA ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति

यहाँ भी पधारें:-
ईदगाह कहानी समीक्षा

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

सही है आकांक्षा जी. मैं खजुराहो नृत्योत्सव को कवर करने मैं हर सल एक हफ़्ते के लिये खजुराहो जाती थी, ये समय खजुराहो का सबसे अच्छा समय माना जाता है, क्योंकि डांस फ़ेस्टिवल के समय ही सबसे अधिक पर्यटक यहां आते हैं, लेकिन उस वक्त स्थानीय लोगों द्वारा उनके साथ की जाने वाली बेईमानी और लूट को देख कर मन खराब हो जाता है.
अच्छी पोस्ट.

शरद कोकास ने कहा…

यह एक अच्छा चिंतन भी है ।

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) ने कहा…

आपके ब्लॉग पर आने का न्योता देने के लिए शुक्रिया. वाकई आप बहुत अच्छा लिखती हैं :-) शुभकामनायें!

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

बहुत ही सुन्दर विषय आपने इस पोस्ट के जरिये उठाया है.....

(सृजन_शिखर on www.srijanshikhar.blogspot.com )

Manoj Kumar ने कहा…

२७ सितम्बर को आपने ब्लॉग में पर्यटन दिवस को याद किया. बहुत बड़ी बात है. अन्यथा ऐसे दिवस कब आते है कब जाते है, आमजन को मालुम नहीं चलता.
आपका ब्लॉग काफी सुन्दर, रोचक और समृद्ध है. यहाँ आकर बहुत ही अच्छा लगा. धन्यवाद.

Akanksha Yadav ने कहा…

@ Babli,
@ Khushi,
@ SP Pandey,
@ Sharad Kokas,
@ Upendra,

धन्यवाद...आपको यह पोस्ट और निहित विचार पसंद आए. आपकी हौसला आफजाई ही विचारों को जन्म देती है.

Akanksha Yadav ने कहा…

@ Vandna ji,

...यही तो दुर्भाग्य है. जब तक इन चीजों पर रोक नहीं लगेगी, अपने देश की इज्जत पर बट्टा ही लगेगा. पधारने के लिए आभार.

Akanksha Yadav ने कहा…

@ Anjana,
@ Manoj kumar,

धन्यवाद, , आपके पधारने के लिए आभार.

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

बहुत सुन्दर..............

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा पोस्ट दिवस विशेष की....

Akanksha Yadav ने कहा…

@ Suman Mit,
@ Samir Lal,

सुप्रभातम! विचारों को सराहने के लिए आपका आभार.

KK Yadav ने कहा…

भारत की विविधता ही यहाँ की पूंजी है, दुर्भाग्यवश हम उसे ही खोने पर लगे हुए हैं..शानदार पोस्ट.

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

जरुरत है की हम स्वयं अपनी जिम्मेदारियों को पहचानें और भारत में पर्यटन के लिए एक स्वस्थ माहौल बनायें. इससे न सिर्फ राजस्व प्राप्त होता है, बल्कि अपने देश की छवि भी निखरती है.

...Sahi kaha ji.

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

जरुरत है की हम स्वयं अपनी जिम्मेदारियों को पहचानें और भारत में पर्यटन के लिए एक स्वस्थ माहौल बनायें. इससे न सिर्फ राजस्व प्राप्त होता है, बल्कि अपने देश की छवि भी निखरती है.

...Sahi kaha ji.

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

विश्व पर्यटन दिवस की बधाइयाँ !!

Shyama ने कहा…

राहुल संकृत्यायन ने अपने इसी घुम्मकड़ी/ पर्यटक स्वभाव के चलते विदेशों से बौद्ध साहित्य खच्चरों पर लादकर लाने का साहस दिखाया....ऐतिहासिक सन्दर्भ देने से पोस्ट और भी महत्वपूर्ण हो गई है...बधाई.

Akanksha Yadav ने कहा…

धन्यवाद...आप सभी को यह पोस्ट पसंद आई. ..आभार !!