दान से पुण्य कोई कार्य नहीं होता। दान जहाँ मनुष्य की उदारता का परिचायक है, वहीं यह दूसरों की आजीविका चलाने या किसी सामूहिक कार्य में संकल्पबद्ध होकर अपना योगदान देने की मानवीय प्रवृति को दर्शाता है। राजा हरिश्चन्द्र को उनकी दानवीरता के लिए ही जाना जाता है। महर्षि दधीचि जैसे ऋषिवर ने तो अपनी अस्थियाँ ही मानव के कल्याण हेतु दान कर दीं। महर्षि दधीचि ने मानवता को जो रास्ता दिखाया आज उस पर चलकर तमाम लोग समाज एवं मानव की सेवा में जुटे हुए हैं। देहदान के पवित्र संकल्प द्वारा दूसरों को जीवन देने का जज्बा विरले लोगों में ही देखने को मिलता है। चूँकि मनुष्य के देहान्त पश्चात की परिस्थितियां मानवीय हाथ में नहीं होती, अतः विभिन्न धर्मों में इसे अलग-अलग रूप में व्याख्यायित किया गया है। धर्मों की परिभाषा से परे एक मानव धर्म भी है जो सिखाता है कि जिन्दा होकर किसी व्यक्ति के काम आये तो उत्तम है और यदि मृत्यु के बाद भी आप किसी के काम आये तो अतिउत्तम है।
हाल ही में विष्णु प्रभाकर एवं प्रतीक मिश्र जैसे वरेण्य साहित्यकारों ने जिस प्रकार मृत्यु के बाद भी देहदान द्वारा लोगों को शिक्षित एवं जागरुक किया है, वह स्तुत्य है। वस्तुतः आज सबसे ज्यादा जरूरत युवा पीढ़ी को देहदान व नेत्रदान जैसे संकल्पबद्ध अभियान से जोड़ने की है। हिन्दुस्तान में मौजूद 1 करोड 20 लाख नेत्रहीनों को नेत्र ज्योति प्रदान करने एवं अन्धता निवारण के लिए नेत्रदान करना बहुत जरूरी है। इसी परम्परा में भारतवर्ष में तमाम लोग नेत्रदान-देहदान की ओर प्रवृत्त हो रहे हैं। मरने के बाद हाथी के दाँतों से कामोत्तेजक औषधियाँ एवं खिलौने, जानवरों की खाल से चमड़ा बनता है, उसी प्रकार से इन्सान भी मृत्यु के बाद 4 नेत्रहीनों को नेत्रज्योति, 14 लोगो को अस्थियाँ व हजारों मेडिकल छात्रों को चिकित्सा शिक्षा दे सकता है। दान की हुई आँखें तीन पीढ़ी तक काम आती हैं। किसी कवि ने कहा है-
हाथी के दाँत से खिलौने बने भाँति-भाँति
बकरी की खाल भी पानी भर लाई
मगर इंसान की खाल किसी काम न आई !!
हाल ही में विष्णु प्रभाकर एवं प्रतीक मिश्र जैसे वरेण्य साहित्यकारों ने जिस प्रकार मृत्यु के बाद भी देहदान द्वारा लोगों को शिक्षित एवं जागरुक किया है, वह स्तुत्य है। वस्तुतः आज सबसे ज्यादा जरूरत युवा पीढ़ी को देहदान व नेत्रदान जैसे संकल्पबद्ध अभियान से जोड़ने की है। हिन्दुस्तान में मौजूद 1 करोड 20 लाख नेत्रहीनों को नेत्र ज्योति प्रदान करने एवं अन्धता निवारण के लिए नेत्रदान करना बहुत जरूरी है। इसी परम्परा में भारतवर्ष में तमाम लोग नेत्रदान-देहदान की ओर प्रवृत्त हो रहे हैं। मरने के बाद हाथी के दाँतों से कामोत्तेजक औषधियाँ एवं खिलौने, जानवरों की खाल से चमड़ा बनता है, उसी प्रकार से इन्सान भी मृत्यु के बाद 4 नेत्रहीनों को नेत्रज्योति, 14 लोगो को अस्थियाँ व हजारों मेडिकल छात्रों को चिकित्सा शिक्षा दे सकता है। दान की हुई आँखें तीन पीढ़ी तक काम आती हैं। किसी कवि ने कहा है-
हाथी के दाँत से खिलौने बने भाँति-भाँति
बकरी की खाल भी पानी भर लाई
मगर इंसान की खाल किसी काम न आई !!
27 टिप्पणियां:
आपसे पूरी सहमती पर शायद मृत्योपरांत कर्मकांडों और अंत्येष्टि संस्कारों में आस्था और इससे जुड़े वहम बड़ी संख्या में लोगों को इससे जोड़ने में बाधक बने है.
विचार तो अच्छे हैं...पर अभी भी तमाम मान्यताएं आड़े आती हैं.
बहुत सुंदर पोस्ट ,इससे सबक लेने की जरूरत है नहीं तो आपका कथन सच है -
बकरी की खाल भी पानी भर लाई
मगर इंसान की खाल किसी काम न आई !!
बहुत अच्छा लिखा ,
यहाँ शब्दों से काम नहीं चलेगा ,
मैं प्रकाश सिंह पुत्र अमर सिंह
निवासी -बाड़मेर (राजस्थान) यह घोषणा करता हूँ कि मेरे मरने के बाद मेरे नेत्रों का दान कर दिया जाए.
akanksha ji, netra daan ki prerna ishwar de chuka hai, hum pati patni kar chuke hain, deh daan vicharniya hai. dhanyawaad
सहमत हूं आपसे।
गागर में सागर के मुहावरे को साथॆक करती अभिव्यक्ति । बहुत कम शब्दों में आपने बडी गंभीर बात कह दी है । बधाई ।
मैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-फेल होने पर खत्म नहीं हो जाती जिंदगी-समय हो तो पढें और कमेंट भी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
आकांक्षा जी आपने यह बहुत ही उम्दा सवाल उठाया है, यदि हम मनुष्यों का शरीर मृत्यु के पश्चात् काम आए तो कितना नेक कार्य होगा...लेख प्रशंसनीय है
is blog ke jariye aise achhe mudde uthaane ke liye dhanyvaad...ek zimmedaar lekhika hai aap...mujhpe to aapki is baat ka poora asar hua hai
बहुत ही सुंदर विचार, नेत्र क्या हमे अपना शरीर भी दान मै दे देना चाहिये, अगर किसी के काम हम मर कर आ जाये तो यह कितना अच्छा होगा.
हाथी के दाँत से खिलौने बने भाँति-भाँति
बकरी की खाल भी पानी भर लाई
मगर इंसान की खाल किसी काम न आई !!...Lajvab kaha apne.
प्रगतिशील नारी के उत्तम विचार.
प्रगतिशील नारी के उत्तम विचार.
इस अभियान में मैं आपके साथ हूँ. मैं खुद भी भारत का प्रथम मुस्लिम देह्दानी हूँ और लोगों को इस ओर प्रवृत्त कर रहा हूँ.
एक डॉक्टर के रूप में आपके विचारों का समर्थन करता हूँ और आभार कि अपने इस तरफ लोगों का ध्यान आकृष्ट किया.
युवाओं को इस ओर प्रवृत्त करने की जरुरत है. ज्ञानवर्धक पोस्ट.
मरने के बाद हाथी के दाँतों से कामोत्तेजक औषधियाँ एवं खिलौने, जानवरों की खाल से चमड़ा बनता है, उसी प्रकार से इन्सान भी मृत्यु के बाद 4 नेत्रहीनों को नेत्रज्योति, 14 लोगो को अस्थियाँ व हजारों मेडिकल छात्रों को चिकित्सा शिक्षा दे सकता है। दान की हुई आँखें तीन पीढ़ी तक काम आती हैं।
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बेहद नवीन जानकारी भरी पोस्ट...साधुवाद.
नेक जानकारी.
धर्मों की परिभाषा से परे एक मानव धर्म भी है जो सिखाता है कि जिन्दा होकर किसी व्यक्ति के काम आये तो उत्तम है और यदि मृत्यु के बाद भी आप किसी के काम आये तो अतिउत्तम है।.... सुन्दर ख्यालात...मानवता की सेवा में आप तत्पर हों.
आपके उत्तम और नेक विचार समाज को नई दिशा देंगें.
I am feeling good by reading ur this post...its really nice and motivative.
आपकी पोस्ट पढ़कर डाकिया बाबू खुश हुआ....आप यूँ ही समाज को रास्ता दिखाती रहें.
Pl. visit my blog for PHILATELY.
उम्दा पोस्ट के लिए बधाई! बेहद ख़ूबसूरत लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है!
आपने बडी गंभीर बात कह दी है ।
बधाई !!!!
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