आज फादर्स डे है. माँ और पिता ये दोनों ही रिश्ते समाज में सर्वोपरि हैं. इन रिश्तों का कोई मोल नहीं है. पिता द्वारा अपने बच्चों के प्रति प्रेम का इज़हार कई तरीकों से किया जाता है, पर बेटों-बेटियों द्वारा पिता के प्रति इज़हार का यह दिवस अनूठा है. भारतीय परिप्रेक्ष्य में कहा जा सकता है कि स्त्री-शक्ति का एहसास करने हेतु तमाम त्यौहार और दिन आरंभ हुए पर पित्र-सत्तात्मक समाज में फादर्स डे की कल्पना अजीब जरुर लगती है.पाश्चात्य देशों में जहाँ माता-पिता को ओल्ड एज हाउस में शिफ्ट कर देने की परंपरा है, वहाँ पर फादर्स-डे का औचित्य समझ में आता है. पर भारत में कही इसकी आड़ में लोग अपने दायित्वों से छुटकारा तो नहीं चाहते हैं. इस पर भी विचार करने की जरुरत है. जरुरत फादर्स-डे की अच्छी बातों को अपनाने की है, न कि पाश्चात्य परिप्रेक्ष्य में उसे अपनाने की जरुरत है.
माना जाता है कि फादर्स डे सर्वप्रथम 19 जून 1910 को वाशिंगटन में मनाया गया। इसके पीछे भी एक रोचक कहानी है- सोनेरा डोड की। सोनेरा डोड जब नन्हीं सी थी, तभी उनकी माँ का देहांत हो गया। पिता विलियम स्मार्ट ने सोनेरो के जीवन में माँ की कमी नहीं महसूस होने दी और उसे माँ का भी प्यार दिया। एक दिन यूँ ही सोनेरा के दिल में ख्याल आया कि आखिर एक दिन पिता के नाम क्यों नहीं हो सकता? ....इस तरह 19 जून 1910 को पहली बार फादर्स डे मनाया गया। 1924 में अमेरिकी राष्ट्रपति कैल्विन कोली ने फादर्स डे पर अपनी सहमति दी। फिर 1966 में राष्ट्रपति लिंडन जानसन ने जून के तीसरे रविवार को फादर्स डे मनाने की आधिकारिक घोषणा की।1972 में अमेरिका में फादर्स डे पर स्थायी अवकाश घोषित हुआ। फ़िलहाल पूरे विश्व में जून के तीसरे रविवार को फादर्स डे मनाया जाता है.भारत में भी धीरे-धीरे इसका प्रचार-प्रसार बढ़ता जा रहा है.इसे बहुराष्ट्रीय कंपनियों की बढती भूमंडलीकरण की अवधारणा के परिप्रेक्ष्य में भी देखा जा सकता है और पिता के प्रति प्रेम के इज़हार के परिप्रेक्ष्य में भी.
15 टिप्पणियां:
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में रिश्तों के अवमुल्यन के बहाने फादर्स-डे पर सुन्दर प्रस्तुति.
आन्कान्क्षा जी..किसी दिवस को किसी ख़ास दिवस के रूप में मनाने की (विशेषकर,माता,पिता,,बहन,,भाई.प्रेमी-प्रेमिका आदि ) प्रवृत्ति पिछले एक दशक से ही ज्यादा बड़ी है..और पिछले एक दशक से ही ..देश के सांस्कृतिक माहौल में भी गजब का परिवर्तन आया..मगर संतोषजनक बात ये है की अभी भी ये भारत जैसी जनसंख्या वाले देश में ..व्यापक नहीं है और बहुत ही कम है......
आज भी महानगरों से बाहर ही इन विशेष दिवसों की अवधारणा दम तोड़ती दिखती है...और अब तो वो पहले वाली कार्ड-गिफ्ट खरीदने वाली बात भी नहीं रही....इस दिवस पर एक अलग दृष्टिकोण से लिखने के लिए धन्यवाद. मगर यदि कोई इसी बहाने पिता-माता या किसी को याद करता है तो ..अच्छी बात है...पश्चिम का अन्धानुकरण देखिये अभी क्या क्या dikhaataa है...?
विश्व भर में देश और भाषा भले ही अलग हों लेकिन पिता का ओहदा सब जगह ऊंचा है। विश्व में 130 भाषाओं में पिता के लिए अलग-अलग शब्द प्रयोग होते हैं। कुछ प्रमुख भाषाओं में पिता के लिए इस्तेमाल होने वाले शब्द इस प्रकार हैं:
हिंदी : पिता जी
संस्कृत : जनक
अफ्रीकन : वदर
अरब : अब्बी
बांग्लादेश : अब्बा
ब्राजील : पाई
डच : पापा, पानी
इंग्लिश : फादर, डैड, डैडी, पॉप
फ्रेंच : पापा
जर्मन : पपी
हंगेरियन : अपा
इंडोनेशिया : बापा, पैब
इटली : बब्बो
जापान : ओटोसान
लैटिन : पटर, अटटा
केन्या : बाबा
नेपाल : बुवा
पर्सियन : बाबा, पितर
पुर्तगाल : पाई
रशियन : पापा
स्पेनिश : टाटा
स्वीडिश : पप्पा
तुर्किश : बाबा
फादर्स-डे के बारे में सुन्दर जानकारी...आभार !!
फादर्स-डे की बधाई ! वाकई माँ अगर संस्कारों की गुरू है तो पिता दुनियादारी के सबक की किताब से कम नहीं हैं।
पिता के बारे में परंपरागत धारणा को तोड़ना होगा. मेट्रो संस्कृति में जिस तरह से संयुक्त परिवार समाप्त हो रहे हैं वहां एकल परिवारों में पिता कई सारी भूमिकाएं अदा कर रहे हैं। यहाँ तक कि माँ की भी. एक समय सख्तमिजाजी के लिए मशहूर पिता अब बच्चों को गोद में लेना, उनका होमवर्क कराना या फिर उनके साथ खेलना जैसी तमाम जिम्मेदारियों से रूबरू हो रहे है. फादर्स-डे पर पिता जी लोगों को हम भरपूर प्यार दें, ... सिर्फ एक दिन ही क्यों रोज उन्हें भरपूर प्यार दें, इज्ज़त दें, तभी फादर्स-डे की सार्थकता है.
भारतीय परिप्रेक्ष्य में फादर्स-डे पर सारगर्भित पोस्ट. ओल्ड एज होम भले ही भारत में दिखने लगे हों पर यह भी एक सच है कि संयुक्त परिवार के खत्म होने ने पिता की भूमिका को विस्तार प्रदान किया है। तो आइये आज के दिन पिता जी को नमन करें.
Post ke madhyam se di gayi jankari achchhi lagi.Dhanyawad
Happy Fathers day.
फादर डे
मदर डे
रोज डे
वेलेंटाइन डे
म्यूजिक डे
फ्रैंडशिप डे
वूमेंस डे
टीचर्स डे
ये सब है क्या ?
क्या मतलब है इनका ?
क्या अपनी भावनाओं को एक ख़ास दिन के
इर्द-गिर्द ही रखना चाहिए ?
हर दिन फादर डे है ... हर दिन मदर डे है !
ये सब आयातित चीजें मेरी नजर में उचित
नहीं हैं !
साल में एक दिन फादर को ग्रीटिंग और फूल पकडा दिया और बाकी दिन ??????
आज की आवाज
एक अलग दृष्टिकोण से लिखने के लिए धन्यवाद!!!!
'पित्री' नहीं होता है, 'पितृ' होता है। कृपया सुधार लें। आदत से मज़बूर हूँ। वर्तनी अशुद्धि देखते ही मन हाहाकार करने लगता है।
mujhe to kuch bhi galat nahi lagta fathers day me...ek achhi hi soch hai ye,aur sirf ek videshi soch kehke ise nakaara nahi jaana chahiye....karva chauth jaise vrat kyon manaaye jaate hai,kya patniyaan aisa karke apne rozmarra ki zimmedari se bhaag rahee hai??...agar nahi to fathers day me galat kya hai??
nice one.
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