सेलुलर जेल में अंग्रेजी शासन ने देशभक्त क्रांतिकारियों को प्रताड़ित करने का कोई उपाय न छोड़ा. यातना भरा काम और पूरा न करने पर कठोर दंड दिया जाता था. पशुतुल्य भोजन व्यवस्था, जंग या काई लगे टूटे-फूटे लोहे के बर्तनों में गन्दा भोजन, जिसमें कीड़े-मकोड़े होते, पीने के लिए बस दिन भर दो डिब्बा गन्दा पानी, पेशाब-शौच तक पर बंदिशें कि एक बर्तन से ज्यादा नहीं हो सकती. ऐसे में किन परिस्थितियों में इन देश-भक्त क्रांतिकारियों ने यातनाएं सहकर आजादी की अलख जगाई, वह सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं.
कोल्हू (घानी) जिससे सेलुलर जेल में बंदियों को प्रतिदिन बैल की भाँति घूम-घूम कर 20 पौंड नारियल का तेल निकलना पड़ता था.
इसके अलावा प्रतिदिन 30 पौंड नारियल की जटा कूटने का भी कार्य करना होता.
काम पूरा न होने पर बेंतों की मार पड़ती और टाट का घुटन्ना और बनियान पहनने को दिए जाते, जिससे पूरा बदन रगड़ खाकर और भी चोटिल हो जाता.
काम पूरा न होने पर या अंग्रेजों की जबरदस्ती नाराजगी पर नंगे बदन पर कोड़े बरसाए जाते.
मूल स्थान जहाँ पर नंगे बदन पर कोड़े बरसाए जाते.
फांसी से पहले अंतिम धार्मिक क्रिया का स्थान.
फांसी-घर का दृश्य. जब भी किसी को फांसी दी जाती तो क्रांतिकारी बंदियों में दहशत पैदा करने के लिए तीसरी मंजिल पर बने गुम्बद से घंटा बजाया जाता, जिसकी आवाज़ 8 मील की परिधि तक सुनाई देती थी. भय पैदा करने के लिए क्रांतिकारी बंदियों को फांसी के लिए ले जाते हुए व्यक्ति को और फांसी पर लटकते देखने के लिए विवश किया जाता था. वीर सावरकर को तो जान-बूझकर फांसी-घर के सामने वाले कमरे में ही रखा गया था.फांसी के बाद मृत शरीर को समुद्र में फेंक दिया जाता था.
किंवदन्ती है कि आज भी बलिदानियों की आत्माएं सेलुलर जेल में स्थित पीपल के पेड़ पर निवास करती हैं. पीपल के पेड़ के ठीक सामने ही यह लौ उनकी चिर स्मृति में प्रज्वलित है.
18 टिप्पणियां:
शब्द-शिखर पर "काला-पानी" के दृश्य...अद्भुत दृश्य. अपने इतने क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत किया मानो चलचित्र चल रहा हो...धन्यवाद.
अंडमान से आप जिस तरह काला-पानी से बड़ी नजदीकी से रु-ब-रु करा रही हैं, वह दिलचस्प है. कई नई चीजों की जानकारी मिली.
अंडमान से आप जिस तरह काला-पानी से बड़ी नजदीकी से रु-ब-रु करा रही हैं, वह दिलचस्प है. कई नई चीजों की जानकारी मिली.
लाजवाब चित्रों द्वारा महत्वपूर्ण प्रस्तुति...आभार.
रोंगटे खड़े करने वाले दृश्य. आजादी की हमने बड़ी भारी कीमत चुकाई है...अमर शहीदों को श्रद्धांजलि.
किन परिस्थितियों में इन देश-भक्त क्रांतिकारियों ने यातनाएं सहकर आजादी की अलख जगाई, वह सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं....In Drishyon ko share karne ke liye Thanks Madam. Ap yun hi hamen Andman se parichit karate rahen.
किंवदन्ती है कि आज भी बलिदानियों की आत्माएं सेलुलर जेल में स्थित पीपल के पेड़ पर निवास करती हैं. पीपल के पेड़ के ठीक सामने ही यह लौ उनकी चिर स्मृति में प्रज्वलित है.----Sundar Vishleshan !!
इसी लिये मै इन गोरो से नफ़रत करता हुं, अग्रेजो से
dil..................
Kala-Pani ke sach ko apne badi khubsurati se Blog par rakha hai...Dhanyvad.
...फिर तो अंग्रेज सभ्य नहीं बल्कि बर्बर जाति हुये. सत्ता के लिए उन्होंने मानवता का गला घोंट दिया. लानत है ऐसे अंग्रेजों पर.
बेहद प्रभावी व अर्थपूर्ण पोस्ट...हर भारतीय को इससे सबक लेना चाहिए, ताकि हम फिर किसी के गुलाम ना हो सकें.
हमने भी आपके साथ सेलुलर जेल की यात्रा की, पर आपने इससे लोगों को रु-ब-रु कराकर बाजी मार ली.
महत्वपूर्ण चित्रमय जानकारी. युवा पीढ़ी को इससे परिचित करने की जरुरत है, ताकि वे आज़ादी का मर्म समझ सकें.
आपकी यह पोस्ट देखकर क्रांतिकारियों के उस दर्द को समझा जा सकता है, जो उन्होंने भारत माता को आजाद करने के लिए सहीं...बेहद द्रवित करने वाली पोस्ट.
@ KK Yadava
बढ़िया ही है न.
आप सभी को सेलुलर जेल की यात्रा पसंद आई, देखकर अच्छा लगा. आपकी टिप्पणियाँ इसकी गवाह हैं. अंडमान-निकोबार से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं से भी परिचित करने का प्रयास करूँगीं. अपना सहयोग व स्नेह बनाये रखें !!
Aapki seluler jail yatra prasang se bahut rochak tatha gyanvardhak jankari mili. Kotishah Dhanyawaad.
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