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मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

हिन्दू धर्म से विमुख डा0 अम्बेडकर (जयंती पर विशेष)

डा0 अम्बेडकर दूरदृष्टा और विचारों से क्रांतिकारी थे तथा सभी धर्मों के तुलनात्मक अध्ययन पश्चात वे बौद्ध धर्म की ओर उन्मुख हुए। एक ऐसा धर्म जो मानव को मानव के रूप में देखता था, किसी जाति के खाँचे में नहीं। एक ऐसा धर्म जो धम्म अर्थात नैतिक आधारों पर अवलम्बित था न कि किन्हीं पौराणिक मान्यताओं और अंधविश्वास पर। अम्बेडकर बौद्ध धर्म के ‘आत्मदीपोभव’ से काफी प्रभावित थे और दलितों व अछूतों की प्रगति के लिये इसे जरूरी समझते थे।

1935 में नासिक जिले के भेवले में आयोजित महार सम्मेलन में ही अम्बेडकर ने घोषणा कर दी थी कि- ‘‘आप लोगों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि मैं धर्म परिवर्तन करने जा रहा हूँ। मैं हिन्दू धर्म में पैदा हुआ, क्योंकि यह मेरे वश में नहीं था लेकिन मैं हिन्दू धर्म में मरना नहीं चाहता। इस धर्म से खराब दुनिया में कोई धर्म नहीं है इसलिए इसे त्याग दो। सभी धर्मों में लोग अच्छी तरह रहते हैं पर इस धर्म में अछूत समाज से बाहर हैं। स्वतंत्रता और समानता प्राप्त करने का एक रास्ता है धर्म परिवर्तन। यह सम्मेलन पूरे देश को बतायेगा कि महार जाति के लोग धर्म परिवर्तन के लिये तैयार हैं। महार को चाहिए कि हिन्दू त्यौहारों को मनाना बन्द करें, देवी देवताओं की पूजा बन्द करें, मंदिर में भी न जायें और जहाँ सम्मान न हो उस धर्म को सदा के लिए छोड़ दें।’’

अम्बेडकर की इस घोषणा पश्चात ईसाई मिशनरियों ने उन्हें अपनी ओर खींचने की भरपूर कोशिश की और इस्लाम अपनाने के लिये भी उनके पास प्रस्ताव आये। कहा जाता है कि हैदराबाद के निजाम ने तो इस्लाम धर्म अपनाने के लिये उन्हें ब्लैंक चेक तक भेजा था पर अम्बेडकर ने उसे वापस कर दिया।

वस्तुतः अम्बेडकर एक ऐसा धर्म चाहते थे, जिसकी जड़ें भारत में हों। अन्ततः 24 मई 1956 को बुद्ध की 2500 वीं जयन्ती पर अम्बेडकर ने बौद्ध धर्म में दीक्षा लेने की घोषणा कर दी और अक्टूबर 1956 में दशहरा के दिन नागपुर में हजारों शिष्यों के साथ उन्होंने बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लिया। उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाने के पीछे भगवान बुद्ध के एक उपदेश का हवाला भी दिया- ‘‘हे भिक्षुओं! आप लोग कई देशों और जातियों से आये हुए हैं। आपके देश-प्रदेश में अनेक नदियाँ बहती हैं और उनका पृथक अस्तित्व दिखाई देता है। जब ये सागर में मिलती हैं, तब अपने पृथक अस्तित्व को खो बैठती हैं और समुद्र में समा जाती हैं। बौद्ध संघ भी समुद्र की ही भांति है। इस संघ में सभी एक हैं और सभी बराबर हैं। समुद्र में गंगा या यमुना के मिल जाने पर उसके पानी को अलग पहचानना कठिन है। इसी प्रकार आप लोगों के बौद्ध संघ में आने पर सभी एक हैं, सभी समान हैं।’’

बौद्ध धर्म ग्रहण करने के कुछ ही दिनों पश्चात 6 दिसम्बर 1956 को डा0 अम्बेडकर ने नश्वर शरीर को त्याग दिया पर ‘आत्मदीपोभव’ की तर्ज पर समाज के शोषित, दलित व अछूतों के लिये विचारों की एक पुंज छोड़ गए। उनके निधन पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पं0 जवाहरलाल नेहरू ने लोकसभा में श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए कहा था कि- ‘‘डा0 अम्बेडकर हमारे संविधान निर्माताओं में से एक थे। इस बात में कोई संदेह नहीं कि संविधान को बनाने में उन्होंने जितना कष्ट उठाया और ध्यान दिया उतना किसी अन्य ने नहीं दिया। वे हिन्दू समाज के सभी दमनात्मक संकेतों के विरूद्ध विद्रोह के प्रतीक थे। बहुत मामलों में उनके जबरदस्त दबाव बनाने तथा मजबूत विरोध खड़ा करने से हम मजबूरन उन चीजों के प्रति जागरूक और सावधान हो जाते थे तथा सदियों से दमित वर्ग की उन्नति के लिये तैयार हो जाते थे।’’

(कल 14 अप्रैल को डा0 अम्बेडकर जी की जयंती है..शत-शत नमन)

21 टिप्‍पणियां:

Bhanwar Singh ने कहा…

डा0 अम्बेडकर के सारगर्भित विचारों को सहेजे सारगर्भित आलेख.

Bhanwar Singh ने कहा…

अम्बेडकर जयंती की पूर्व संध्या पर बाबा अम्बेडकर को शत-शत नमन.

S R Bharti ने कहा…

हिन्दू धर्म से अम्बेडकर का मोह होना स्वाभाविक भी था. आखिरकार इसने दलितों को जलालत के अलावा दिया क्या है...बेहतरीन पोस्ट.

Shyama ने कहा…

डा0 अम्बेडकर मात्र एक साधारण व्यक्ति नहीं थे वरन् दार्शनिक, चिंतक, विचारक, शिक्षक, सरकारी सेवक, समाज सुधारक, मानवाधिकारवादी, संविधानविद और राजनीतिज्ञ इन सभी रूपों में उन्होंने विभिन्न भूमिकाओं का निर्वाह किया। ...बाबा साहब की छवि बड़ी व्यापक है..!!

Unknown ने कहा…

अम्बेडकर जी के योगदान को कभी भी विस्मृत नहीं किया जा सकता.

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

कहा जाता है कि हैदराबाद के निजाम ने तो इस्लाम धर्म अपनाने के लिये उन्हें ब्लैंक चेक तक भेजा था पर अम्बेडकर ने उसे वापस कर दिया।
....नहीं तो इतिहास की करवट दूसरी तरह होती..उम्दा पोस्ट.

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

..पर कई लोग इसे अम्बेडकर जी की पलायनवादी प्रवृत्ति के रूप में भी देखते हैं.

KK Yadav ने कहा…

यह समाज ऐसा ही है. आज अम्बेडकर जी के नाम पर राजनीति खूब होती है, पर वास्तव में कोई भी उन्हें सच्चे रूप में नहीं जनता. अम्बेडकर ही क्यों गाँधी जी इत्यादि के बारे में भी यही कहा जा सकता है..बाबा साहब का पुनीत स्मरण व नमन !!

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

बहुत सही चर्चा की आपने कि- एक ऐसा धर्म जो मानव को मानव के रूप में देखता था, किसी जाति के खाँचे में नहीं। एक ऐसा धर्म जो धम्म अर्थात नैतिक आधारों पर अवलम्बित था न कि किन्हीं पौराणिक मान्यताओं और अंधविश्वास पर।..तभी तो बाबा साहब हिन्दू धर्म से विमुख होकर बौध धर्म की ओर गए.

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

अम्बेडकर जयंती की पूर्व संध्या पर बाबा अम्बेडकर को शत-शत नमन.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बाब साहेब अम्बेदकर जयन्ती एवं
बैशाखी की बधाई स्वीकार करें!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

डा0 अम्बेडकर जयंती पर बहुत अच्छा लेख...

kunwarji's ने कहा…

ek sam-saamaayik lekh ke liye badhaai swikaar kare...

baba sahaab ko shat-shat naman!

kunwar ji,

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

यह नई चर्चा की आपनें,धन्यवाद.

संजय भास्‍कर ने कहा…

अम्बेडकर को शत-शत नमन.

Ayaz ahmad ने कहा…

बाबा साहब देश के महान सपूत थे उन्होने देश विभाजन के कारण मुसलमानो मे आयी कमज़ोरी की वजह से इस्लाम क़ुबुल नही किया

drdhabhai ने कहा…

बाबा साहब को शत् शत् नमन्.पीङितों के लिए आपने जो किया उसकी कोई तुलना नहीं....पोस्ट का शीर्षक कुछ अटपटा है

सीमा सचदेव ने कहा…

बाबा साहेब के बारे में जानकारी पढकर अच्छा लगा

Akanksha Yadav ने कहा…

@ Rashmi Singh,

पर कई लोग इसे अम्बेडकर जी की पलायनवादी प्रवृत्ति के रूप में भी देखते हैं.

..जब व्यक्ति की अस्मिता पर चोट होती है, तो वह कुछ भी कर सकता है. इसे पलायनवादी कहने वाले ही तो बाबा साहब के पलायन के लिए जिम्मेदार हैं.

Akanksha Yadav ने कहा…

@ मिहिरभोज,

शीर्षक अटपटा जरुर है, पर इसमें सच्चाई भी तो है.

Akanksha Yadav ने कहा…

आप सभी की प्रतिक्रियाओं का आभार !!