हमने-आपने कई तरह के पार्क देखे-सुने होंगे. पर शहीदों की यादों को सहेजता भारत का पहला पार्क कानपुर में है, जिसका नाम शहीद-उपवन है. क्रान्तिकारी परम्परा को सहेजने एवं सांस्कृतिक व ऐतिहासिक चेतना को जागृत करने के उद्देश्य से कानपुर की प्रसिद्ध संस्था ‘‘मानस संगम‘‘ के तत्वाधान में 18 अक्टूबर 1992 को नानाराव पार्क में ’शहीद उपवन‘ की स्थापना क्रान्तिकारी शिव वर्मा की अध्यक्षता में देश के 22 क्रान्तिकारियों के सान्निध्य में हुई थी। गौरतलब है कि नाना साहब, तात्या टोपे व अजीमुल्ला खां ने यहीं से सारे देश में क्रान्ति की अलख जगाई तो कालान्तर में भगत सिंह व ‘आजाद‘ जैसे तमाम क्रान्तिकारियों हेतु यह धरती प्रेरणा-बिन्दु बनी। इस उपवन में 51 शहीदों व क्रान्तिकारियों की मूर्तियों एवं शिलालेखों पर 50 युगान्तरकारी श्रेष्ठ गीतों, प्रतीकों तथा क्रान्तिकारी नारों को सविवरण स्थापित कर स्वाधीनता के इतिहास को अक्षुण्ण रखने का संकल्प लिया गया था, जिनमंे से 9 मूर्तियाँ और 30 शिलालेख वर्तमान में स्थापित किये जा चुके हैं। स्थापित मूर्तियों में तात्या टोपे, मंगल पाण्डेय, झलकारी बाई, अजीजन बाई, मैनावती, शालिगराम शुक्ल, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक व मणीन्द्र नाथ बनर्जी हैं।
शहीद उपवन इस बात को भी दर्शाता है कि स्वाधीनता आन्दोलन की लड़ाई सिर्फ तोप-बन्दूक की ही लड़ाई नहीं थी बल्कि कलम की शक्ति ने भी इस लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अंग्रेज साहित्य व पत्रकारिता से इतने भयभीत थे कि उन्होंने इन पर तमाम प्रतिबन्ध लगाये। वैसे भी ‘पिस्तौल और बम इन्कलाब नहीं लाते बल्कि इन्कलाब की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है‘ (भगत सिंह)। यहाँ पर उन क्रान्ति गीतों को उकेरा गया है, जिनसे जनमानस में स्वाधीनता की भावना प्रबल हुयी। अजीमुल्लाह खान द्वारा रचित 1857 की क्रान्ति का महाप्रयाण गीत- हम हैं इसके मालिक, हिन्दुस्तान हमारा/यह है आजादी का झण्डा, इसे सलाम हमारा, यहाँ क्रान्तिकारी परम्परा को आगे बढ़ा रहा है तो इकबाल का मशहूर तराना-ए-हिंदी, जो कि ‘हमारा देश’ नाम से कानपुर से मुंशी दया नारायण निगम द्वारा प्रकाशित उर्दू अखबार ‘जमाना’ अखबार में 1904 में प्रकाशित हुआ- सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा, भी इसी परम्परा को सहेजे हुए है। पं0 रामप्रसाद बिस्मिल का गीत- सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है/देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है, इस उपवन की गरिमा में चार चाँद लगाता है तो क्रान्तिकारियों द्वारा बारंबार गाया गया क्रान्ति गीत- जेल में चक्की घसीटूँ, भूख से हूँ मर रहा/उस समय भी कह रहा बेजार, वंदे मातरम्/मौत के मुँह पर खड़ा हूँ, कह रहा जल्लाद से/पिन्हा दे फांसी का ये गलहार, वंदे मातरम्, अभी भी भुजाओं को फड़काता है और क्रान्ति की ज्वाला जगाता है। अंग्रेजो के विरूद्ध कविता लिखने के कारण तीन वर्ष का करावास पाने वाले प्रथम कवि छैल बिहारी दीक्षित ‘कंटक‘ की उक्त कविता भी यहाँ अंकित है- माँ कर विदा आज जाने दे/रण चढ़ लौह चबाने दे/तेरा रूधिर गर्व से पीते/गोरों को भी वर्षों बीते/नाहक हमें रहे जो जीते/होने दे हुंकार हमारी/दुश्मन को दहलाने दे माँ। श्याम लाल गुप्त ‘पार्षद’ द्वारा लिखित झण्डा गीत अभी भी देशभक्ति की भावना लहराता है।
इसके अलावा यहाँ कई अन्य सुप्रसिद्ध साहित्यकारों- माखनलाल चतुर्वेदी, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, सुब्रह्मण्यम भारती, कुमार आशान, सुभद्रा कुमार चैहान की उन राष्ट्रभक्ति रचनाओं को स्थान दिया गया है, जो स्वाधीनता आन्दोलन और उसके बाद भी लोगों की जुबां पर गूँजते रहे। नाना साहब के विरूद्ध अंगेजो द्वारा जारी इश्तिहार, जिसमें उनके सर पर एक लाख रूपये का इनाम रखा गया था और कमल-चपाती जैसे प्रतीकों का अंकन शहीद उपवन की अनुपम छटा में चार चाँद लगाते हैं।
वस्तुतः शहीद उपवन का उद्देश्य राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन का दीर्घकालिक जीवंत इतिहास ही नहीं बल्कि उसके प्रेरक सामाजिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक तत्वों को भी आत्मसात् कर एक ऐसा अद्भुत संग्रहालय बनाना है जिससे आगामी पीढ़ियाँ राष्ट्रीय एकता एवं देशप्रेम की अनुभूतियों के मध्य इतिहास की गरिमा को सहेज सकें और उसे अपने दिलों में स्थान दे सकें। शहीद उपवन स्वाधीनता आन्दोलन की लोक स्मृति और प्रेरणादायी विरासत को जीवंत रखने का प्रयास है।
21 टिप्पणियां:
achchi jaankaari...kabhi desh ki revolutionary capital hua karta tha kanpur...
इस तरह की विरासत सहेजने से हमारे स्मृतियों में क्रांतिकारियों की क्षवि कायम रहती है
सुन्दर आलेख्
bahut sundar jaankaari
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
बहुत नौलेजैबल पोस्ट.... इंटेलीजेंटली रिटन....
जरूरत ऐसे ही चीजों की है न की कोरे भाषणों की
बहुत अच्छी जानकारी......
bahut baDiyaa jaanakaaree hai dhanyavaad
historic place, very nice
nice
चर्चा मंच के जरिए आपकी इस अति आबस्यक जानकारी तक पहूंचा।
हमारे लिए अपनी कुर्वानी देने वाले क्रांतिकोरियों की समृति हमें करवाने कलिए धन्याबाद।
आओ मिलकर उन क्रांतिकारियों के मार्ग पर चलकर देश को पाकसमर्थक,चीनसमर्थक व धर्मांतरण समर्थक आतंवादियों से मुक्त करवाने के प्रति प्रयत्नशील हों।
शहीद उपवन का उद्देश्य राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन का दीर्घकालिक जीवंत इतिहास ही नहीं बल्कि उसके प्रेरक सामाजिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक तत्वों को भी आत्मसात् कर एक ऐसा अद्भुत संग्रहालय बनाना है जिससे आगामी पीढ़ियाँ राष्ट्रीय एकता एवं देशप्रेम की अनुभूतियों के मध्य इतिहास की गरिमा को सहेज सकें और उसे अपने दिलों में स्थान दे सकें। ....ऐसे सद्प्रयास को नमन.
कभी कानपुर जाना हुआ तो शहीद उपवन के दर्शन जरुर करूँगा.
यह तो वाकई बहुत महत्वपूर्ण बात बताई आपने ...साधुवाद.
वैसे हम तो खुद कानपुर के हैं, पर पहली बार शहीद उपवन के बारे में इतने विस्तार से जानकारी मिली..आभार.
प्रासंगिक पोस्ट...इसे अन्यत्र भी प्रकाशानार्थ भेजें.
...तब तो इस उपवन के दर्शन जरुर करने चाहिए. उम्दा जानकारी दी आपने आकांक्षा जी.
मैं तो यहाँ घूम चुकी हूँ...
देशभक्ती से लबरेज़ lekhan !! पं0 रामप्रसाद बिस्मिल का गीत- सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है/देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है...क्षमा कीजिएगा.इसे लिखा था पटना के शायर बिस्मिल अजीमाबादी ने.हाँ बिस्मिल के नाम से इसलिए नत्थी हो गया कि उन्हें यह बहुत पसंद था.इस विषय पर मेरे रचना-संसार वाले ब्लॉग पर जानकारी ढूढ़ सकती हैं.
अंग्रेजों से प्राप्त मुक्ति-पर्व ..मुबारक हो!
समय हो तो एक नज़र यहाँ भी:
आज शहीदों ने तुमको अहले वतन ललकारा : अज़ीमउल्लाह ख़ान जिन्होंने पहला झंडा गीत लिखा http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_14.html
मानस संगम संस्था द्वारा शहीद उपवन की स्थापना करना स्तुतीय और ग्राह्य कार्य हैं , इस सुन्दर जानकारी को अपनी लेखनी द्वारा प्रचारित करने वाले विद्वान लेखक का हार्दिक आभार ।
मानस संगम संस्था द्वारा शहीद उपवन की स्थापना करना स्तुतीय और ग्राह्य कार्य हैं , इस सुन्दर जानकारी को अपनी लेखनी द्वारा प्रचारित करने वाले विद्वान लेखक का हार्दिक आभार ।
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