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बुधवार, 30 जून 2010

विलुप्त होने के कगार पर एक तिहाई वनस्पति-जीव

जैव विविधता पृथ्वी की सबसे बड़ी पूंजी है. पर जैसे-जैसे हम विकास और प्रगति की ओर अग्रसर हो रहे हैं, इस पर विपरीत असर पड़ रहा है. पर्यावरण का निरंतर क्षरण रोज की बात है पर अब तो दुनिया भर में पाए जाने वाले पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं की करीब एक तिहाई प्रजातियां भी विलुप्त होने के कगार पर हैं । एक तरफ मानवीय जनसँख्या दिनों-ब-दिन बढती जा रही है, वहीँ मानव अन्य जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों को नष्ट कर उनकी जगह भी पसरता जा रहा है. यदि जनसँख्या इसी तरह बढती रही तो 2050 तक विश्व जनसख्या नौ अरब के आंकड़े को पार कर जाएगी और फिर हमें रहने के लिए कम से कम पाँच ग्रहों को जरूरत पड़ेगी। वाकई यह एक विभीषिका ही साबित होगी. भारत, पाकिस्तान और दक्षिण पूर्व एशिया सहित तमाम देशों में में जीवों के प्राकृतिक ठिकानों को कृषि योग्य भूमि में तब्दील किया जा रहा है। बढ़ती जनसंख्या के साथ-साथ नित फैलता प्रदूषण और पाश्चात्य संस्कृति की ओर अग्रसर विकासशील देशों की वजह से भी वनस्पति और जीवों की सख्या घट रही है। विकास की ओर अग्रसर देशों की खाद्यान्न और माँस की बढ़ती जरूरतों की वजह से पारिस्थितिकी तंत्र दिनों-ब-दिन गड़बडा रहा है।

संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जारी ग्लोबल बायोडाइवर्सिटी आउटलुक के तीसरे संस्करण की रिपोर्ट पर गौर करें तो दुनिया में 21 प्रतिशत स्तनपायी जीव, 30 प्रतिशत उभयचर जीव; जैसे मेंढक और 35 प्रतिशत अकशेरूकी जीव ;बिना रीढ़ के हड्डी वाले जीव विलुप्त होने के कगार पर हैं। इनमें मछलियां भी शामिल है। दक्षिण एशियाई नदियों में डाॅल्फिन की संख्या तो बहुत तेजी से घट रही है।इसमें दुनिया के 120 देशों के आँकड़े शामिल किए गए हैं। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत, चीन और ब्राजील जैसे देशों की तेजी से बढ़ती आथिक विकास दर से विश्व की जैव विविधता को खतरा है। यही नहीं रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि पश्चिम देशों को विलुप्तप्राय जातियों के बारे में अधिक सोचने की जरूरत है।

वाकई, यदि हम इस ओर अभी से सचेत नहीं हुए तो पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं के बाद मानव के अस्तित्व पर ही पहला खतरा पैदा होगा. प्रकृति में संतुलन बेहद जरुरी है, ऐसे में अन्य की कीमत पर मानवीय इच्छाओं का विस्तार सभ्यता को असमय काल-कवलित कर सकता है !!

21 टिप्‍पणियां:

आचार्य उदय ने कहा…

सुन्दर लेखन।

सुज्ञ ने कहा…

प्रकृति में संतुलन पर आपका यह लेख चेतना बन सकता है,स्तुत्य!!

Udan Tashtari ने कहा…

उम्दा आलेख...सचेत होने की जरुरत है त्वरित!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपका आकलन सही है!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

विचारणीय....उम्दा लेख

माधव( Madhav) ने कहा…

the flora & fauna of Mainland has almost destroyed.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

चिन्तनीय

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

..फिर तो हमारी पीढ़ी के लिए यह सब देखना भी मुश्किल हो जायेगा.

मन-मयूर ने कहा…

अन्य की कीमत पर मानवीय इच्छाओं का विस्तार सभ्यता को असमय काल-कवलित कर सकता है..Bahut sahi likha apne.

KK Yadav ने कहा…

ऐसे ही सब कुछ लुप्त होता रहा तो पृथ्वी ज्यादा दिन नहीं टिकने वाली...अब भी लोग चेत जाएँ तो बेहतर.

राज भाटिय़ा ने कहा…

एक दिन हमीं बचेगे बाकी सब को चट करने के बाद, बहुत सुंदर लेख धन्यवद

P.N. Subramanian ने कहा…

भाटिया जी से असहमत. हम भी नहीं बचेंगे. सुन्दर आलेख. आभार.

मनोज कुमार ने कहा…

लोगों को जागरूक करती रचना।

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

नि:संदेह चिंतनीय.

शरद कुमार ने कहा…

बढ़ती जनसंख्या के साथ-साथ नित फैलता प्रदूषण और पाश्चात्य संस्कृति की ओर अग्रसर विकासशील देशों की वजह से भी वनस्पति और जीवों की सख्या घट रही है....Gambhir Vishay.

शरद कुमार ने कहा…

आपके लेख हमेशा कुछ नयी बात ले कर आते हैं..जागरूकता प्रदान करते हैं...शुभकामनायें

editor : guftgu ने कहा…

कुदरत की भी अजीब नियामत है. इसी धरा पर न जाने कितनी विविधता है, पर हम उसे सहेज भी नहीं पा रहे......उम्दा पोस्ट.

raghav ने कहा…

...फिर क्या होगा. सोचकर ही सिहर उठते हैं.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

अभी देखते जाइये. क्या-क्या होता है...

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

इनके बिना तो सब कुछ सूना है. चिंतनीय विषय.

संजय भास्‍कर ने कहा…

लोगों को जागरूक करती रचना।