(नवरात्र आरंभ हो चुका है. देवी-माँ की मूर्तियाँ सजने लगी हैं. चारों तरफ भक्ति-भाव का बोलबाला है. दशहरे की उमंग अभी से दिखाई देने लगी है. इस पर क्रमश: प्रस्तुत है कृष्ण कुमार यादव जी के लेखों की सीरिज. आशा है आपको पसंद आयेगी-)
भारतीय संस्कृति में उत्सवों और त्यौहारों का आदि काल से ही महत्व रहा है। सामान्यतः त्यौहारों का सम्बन्ध किसी न किसी मिथक, धार्मिक मान्यताओं, परम्पराओं और ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ा होता है। दशहरा पर्व भारतीय संस्कृति में सबसे ज्यादा बेसब्री के साथ इंतजार किये जाने वाला त्यौहार है। दशहरा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के शब्द संयोजन 'दश' व 'हरा' से हुयी है, जिसका अर्थ भगवान राम द्वारा रावण के दस सिरों को काटने व तत्पश्चात रावण की मृत्यु रूप में राक्षस राज के आंतक की समाप्ति से है। यही कारण है कि इस दिन को विजयदशमी अर्थात अन्याय पर न्याय की विजय के रूप में भी मनाया जाता है। दशहरे की परम्परा भगवान राम द्वारा त्रेतायुग में रावण के वध से भले ही आरम्भ हुई हो, पर द्वापरयुग में महाभारत का प्रसिद्ध युद्ध भी इसी दिन आरम्भ हुआ था। पर विजयदशमी सिर्फ इस बात का प्रतीक नहीं है कि अन्याय पर न्याय अथवा बुराई पर अच्छाई की विजय हुई थी बल्कि यह बुराई में भी अच्छाई ढूँढ़ने का दिन होता है। रावण में कुछ अवगुण जरुर थे, लेकिन उसमें कई गुण भी मौजूद थे, जिन्हे कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में उतार सकता है। यदि रामायण या राम के जीवन से रावण के चरित्र को निकाल दिया जाएए तो संपूर्ण रामकथा का अर्थ ही बदल जाएगा। स्वयं राम ने रावण के बुद्धि और बल की प्रशंसा की है। रावण-वध के बाद भगवान राम ने अनुज लक्ष्मण को रावण के पास शिक्षा लेने के लिए भेजा था। पहले तो लक्ष्मण रावण के सिर के पास बैठे, पर जब रावण ने इस स्थित में उन्हें शिक्षा देने से इन्कार कर दिया, तो लक्ष्मण ने एक शिष्य की तरह रावण के चरणों के पास बैठकर शिक्षा ली।
रावण दैत्यराज सुमाली की पुत्री कैकशी एवं विद्वान ब्राहमण विश्रव का पुत्र था। दैत्यराज सुमाली अपनी बेटी कैकशी का विवाह एक ऐसे व्यक्ति से करना चाहते थे जो उन्हें एक योग्य एवं अति बलवान उत्तराधिकारी दे सके। जब दैत्यराज की इस इच्छा पर कोई भी खरा नहीं उतरा तो कैकशी ने स्वयं विद्वान ब्राहमण विश्रव का चयन किया। विवाह के वक्त ही विश्रव ने कैकशी से कहा था कि चूँकि तुमने मेरा चुनाव गलत क्षण में किया है, अतः तुम्हारा पुत्र बुराई के मार्ग पर जायेगा। रावण के जन्म के समय उसके पिता विश्रव को जब यह ज्ञात हुआ कि उनके बेटे में दस लोगों के बराबर बौद्धिक बल है, तो उन्होंने उसका नाम ‘दशानन‘ रख दिया। रावण के दशानन होने के संबंध में एक अन्य किंवदन्ती है कि उसके विद्धान-ब्राहमण पिता विश्रव ने उसे एक बेशकीमती रत्नों का हार पहनाया था, जिसकी खासियत यह थी कि उससे निकलने वाले प्रकाश से लोगों को रावण के दस सिर और बीस हाथ होने का आभास होता था। अपने माता-पिता के चलते रावण में दैत्य और ब्राहमण दोनों के गुण थे। रावण को न केवल शास्त्रों बल्कि 64 कलाओं में महारत हासिल थी। यहाँ तक कि उसे हाथी और गाय को भी प्रशिक्षित करने की कला का ज्ञान था।
यदि हम अलग.अलग स्थान पर प्रचलित राम कथाओं को जानें, तो रावण को बुरा व्यक्ति नहीं कहा जा सकता है। जैन धर्म के कुछ ग्रंथों में रावण को प्रतिनारायण' कहा गया है। रावण समाज सुधारक और प्रकांड पंडित था। तमिल रामायणकार 'कंब' ने उसे सद्चरित्र कहा है। रावण ने सीता के शरीर का स्पर्श तक नहीं कियाए बल्कि उनका अपहरण करते हुए वह उस भूखंड को ही उखाड़ लाता है, जिस पर सीता खड़ी हैं । गोस्वामी तुलसीदास ने भी कहा है कि रावण जब सीता का अपहरण करने आयाए तो वह पहले उनकी वंदना करता है। 'मन मांहि चरण बंदि सुख माना।' महर्षि याज्ञवल्क्य ने इस वंदना को विस्तारपूर्वक बताया है। 'मां' तू केवल राम की पत्नी नहींए बल्कि जगत जननी है। राम और रावण दोनों तेरी संतान के समान हैं। माता योग्य संतानों की चिंता नहीं करतीए बल्कि वह अयोग्य संतानों की चिंता करती है। राम योग्य पुरुष हैंए जबकि मैं सर्वथा अयोग्य हूंए इसलिए मेरा उद्धार करो मां। यह तभी संभव हैए जब तू मेरे साथ चलेगी और ममतामयी सीता उसके साथ चल पड़ी।
ज्योतिष और आयुर्वेद का ज्ञाता लंकापति रावण तंत्र।मंत्रए सिद्धि और दूसरी कई गूढ़ विद्याओं का भी ज्ञाता था। ज्योतिष विद्या के अलावाए उसे रसायन शास्त्र का भी ज्ञान प्राप्त था। उसे कई अचूक शक्तियां हासिल थींए जिनके बल पर उसने अनेक चमत्कारिक कार्य संपन्न किए। श्रावण संहिताश् में उसके दुर्लभ ज्ञान के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है। वह राक्षस कुल का होते हुए भी भगवान शंकर का उपासक था। उसने लंका में छह करोड़ से भी अधिक शिवलिंगों की स्थापना करवाई थी। यही नहींए रावण एक महान कवि भी था। उसने श्शिव ताण्डव स्त्रोत्मश् की। उसने इसकी स्तुति कर शिव भगवान को प्रसन्न भी किया। रावण वेदों का भी ज्ञाता था। उनकी ऋचाओं पर अनुसंधान कर विज्ञान के अनेक क्षेत्रों में उल्लेखनीय सफलता अर्जित की। वह आयुर्वेद के बारे में भी जानकारी रखता था। वह कई जड़ी.बूटियों का प्रयोग औषधि के रूप में करता था।
रावण भगवान शिव का भक्त होने के साथ-साथ महापराक्रमी भी था। इसी तथ्य के मद्देनजर आज भी कानपुर के शिवाला स्थित कैलाश मंदिर में विजयदशमी के दिन दशानन रावण की महाआरती की जाती है। सन् 1865 में श्रृंगेरी के शंकराचार्य की मौजूदगी में महाराज गुरू प्रसाद द्वारा स्थापित इस मंदिर में शिव के साथ उनके प्रमुख भक्तों की मूर्तियाँ स्थापित की गई हैं। कालांतर में सन् 1900 मंे महाराज शिवशंकर लाल ने कैलाश मंदिर परिसर में शिवभक्त रावण का मंदिर बनवाया और देवी के तेइस रूपों की मूर्ति भी स्थापित की। वस्तुतः इसके पीछे यह तर्क था कि भक्त के बगैर ईश्वर अधूरे हैं, इसीलिए भगवान शंकर के मंदिर के बाहर उनके अनन्य भक्त रावण का भी मंदिर बनाया गया। तभी से रावण की महाआरती की परम्परा यहाँ पर कायम है। कानपुर से सटे उन्नाव जिले के मौरावां कस्बे में भी राजा चन्दन लाल द्वारा सन् 1804 में स्थापित रावण की मूर्ति की पूजा की जाती है। यहाँ दशहरे के दिन रामलीला मैदान में 7-8 फुट ऊँचे सिंहासन पर बैठे रावण की विशालकाय पत्थर की मूर्ति की लोग पूजा करते हैं, जबकि एक अन्य पुतला बनाकर रावण दहन करते हैं।
मध्य प्रदेश के मंदसौर में नामदेव वैश्य समाज के लोगों के अनुसार रावण की पत्नी मंदोदरी मंदसौर की थी। अतः रावण को जमाई मानकर उसकी खतिरदारी यहाँ पर भव्य रूप में की जाती है। यहाँ पर रावण के समक्ष मनौती मानने और पूरी होने के बाद रावण की वंदना करने व भोग लगाने की परंपरा रही है। हाल ही में यहाँ रावण की पैतीस फुट उंची बैठी हुई अवस्था में कंक्रीट मूर्ति स्थापित की गई है। इसी प्रकार जोधपुर के लोगों के अनुसार रावण की पत्नी मंदोदरी यहाँ की पूर्व राजधानी मंडोर की रहने वाली थीं व रावण व मंदोदरी के विवाह स्थल पर आज भी रावण की चवरी नामक एक छतरी मौजूद है। हाल ही में अक्षय ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र ने जोधपुर के चांदपोल क्षेत्र में स्थित महादेव अमरनाथ एवं नवग्रह मंदिर परिसर में रावण का मंदिर बनाने की घोषणा की है। इसमें रावण की मूर्ति शिवलिंग पर जल चढ़ाते हुए बनायी जा रही है, जिससे रावण की शिवभक्ति प्रकट होगी और उसका सम्मानीय स्वरूप सामने आयेगा।
मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में स्थित रावणगाँव में रावण को महात्मा या बाबा के रूप में पूजा जाता है। यहाँ रावण बाबा की करीब आठ फीट लंबी पाषाण प्रतिमा लेटी हुयी मुद्रा में है और प्रति वर्ष दशहरे पर इसका विधिवत श्रृंगार करके अक्षत, रोली, हल्दी व फूलों से पूजा करने की परंपरा है। चूंकि रावण की जान उसकी नाभि में बसती थी, अतः यहाँ पर रावण की नाभि पर तेल लगाने की परंपरा है अन्यथा पूजा अधूरी मानी जाती है।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ग्रेटर नोएडा के मध्य स्थित बिसरख गाँव को रावण का पैतृक गाँव माना जाता है। बताते हैं कि रावण के पिता विश्रवामुनि इस गाँव के जंगल में शिव भक्ति करते थे एवं रावण सहित उनके तीनों बेटे यहीं पर पैदा हुए। विजय दशमी के दिन जब चारो तरफ रावण का पुतला फूका जाता है, तो बिसरख गाँव के लोग उस दिन शोक मनाते हैं। इस गाँव में दशहरा का त्यौहार नहीं मनाया जाता है। गाँववासियों को मलाल है कि रावण को पापी रूप में प्रचारित किया जाता है जबकि वह बहुत तेजस्वी, बुद्विमान, शिवभक्त, प्रकाण्ड पण्डित एवं क्षत्रिय गुणों से युक्त था। महाराष्ट्र के अमरावती और गढ़चिरौली जिले में 'कोरकू' और 'गोंड' आदिवासी रावण और उसके पुत्र मेघनाद को अपना देवता मानते हैं। अपने एक खास पर्व 'फागुन' के अवसर पर वे इसकी विशेष पूजा करते हैं।
उत्तर भारत में दशहरा का मतलब भले ही रावण दहन से अनिवार्य रूप से जुड़ा हुआ हो, पर भारत के अन्य हिस्सों में ही इसे अन्य रूप में मनाया जाता है। बंगाल में दशहरे का मतलब रावण दहन नहीं बल्कि दुर्गा पूजा होती है, जिसमें माँ दुर्गा को महिषासुर का वध करते हुए दिखाया जाता है।
भारतीय संस्कृति में उत्सवों और त्यौहारों का आदि काल से ही महत्व रहा है। सामान्यतः त्यौहारों का सम्बन्ध किसी न किसी मिथक, धार्मिक मान्यताओं, परम्पराओं और ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ा होता है। दशहरा पर्व भारतीय संस्कृति में सबसे ज्यादा बेसब्री के साथ इंतजार किये जाने वाला त्यौहार है। दशहरा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के शब्द संयोजन 'दश' व 'हरा' से हुयी है, जिसका अर्थ भगवान राम द्वारा रावण के दस सिरों को काटने व तत्पश्चात रावण की मृत्यु रूप में राक्षस राज के आंतक की समाप्ति से है। यही कारण है कि इस दिन को विजयदशमी अर्थात अन्याय पर न्याय की विजय के रूप में भी मनाया जाता है। दशहरे की परम्परा भगवान राम द्वारा त्रेतायुग में रावण के वध से भले ही आरम्भ हुई हो, पर द्वापरयुग में महाभारत का प्रसिद्ध युद्ध भी इसी दिन आरम्भ हुआ था। पर विजयदशमी सिर्फ इस बात का प्रतीक नहीं है कि अन्याय पर न्याय अथवा बुराई पर अच्छाई की विजय हुई थी बल्कि यह बुराई में भी अच्छाई ढूँढ़ने का दिन होता है। रावण में कुछ अवगुण जरुर थे, लेकिन उसमें कई गुण भी मौजूद थे, जिन्हे कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में उतार सकता है। यदि रामायण या राम के जीवन से रावण के चरित्र को निकाल दिया जाएए तो संपूर्ण रामकथा का अर्थ ही बदल जाएगा। स्वयं राम ने रावण के बुद्धि और बल की प्रशंसा की है। रावण-वध के बाद भगवान राम ने अनुज लक्ष्मण को रावण के पास शिक्षा लेने के लिए भेजा था। पहले तो लक्ष्मण रावण के सिर के पास बैठे, पर जब रावण ने इस स्थित में उन्हें शिक्षा देने से इन्कार कर दिया, तो लक्ष्मण ने एक शिष्य की तरह रावण के चरणों के पास बैठकर शिक्षा ली।
रावण दैत्यराज सुमाली की पुत्री कैकशी एवं विद्वान ब्राहमण विश्रव का पुत्र था। दैत्यराज सुमाली अपनी बेटी कैकशी का विवाह एक ऐसे व्यक्ति से करना चाहते थे जो उन्हें एक योग्य एवं अति बलवान उत्तराधिकारी दे सके। जब दैत्यराज की इस इच्छा पर कोई भी खरा नहीं उतरा तो कैकशी ने स्वयं विद्वान ब्राहमण विश्रव का चयन किया। विवाह के वक्त ही विश्रव ने कैकशी से कहा था कि चूँकि तुमने मेरा चुनाव गलत क्षण में किया है, अतः तुम्हारा पुत्र बुराई के मार्ग पर जायेगा। रावण के जन्म के समय उसके पिता विश्रव को जब यह ज्ञात हुआ कि उनके बेटे में दस लोगों के बराबर बौद्धिक बल है, तो उन्होंने उसका नाम ‘दशानन‘ रख दिया। रावण के दशानन होने के संबंध में एक अन्य किंवदन्ती है कि उसके विद्धान-ब्राहमण पिता विश्रव ने उसे एक बेशकीमती रत्नों का हार पहनाया था, जिसकी खासियत यह थी कि उससे निकलने वाले प्रकाश से लोगों को रावण के दस सिर और बीस हाथ होने का आभास होता था। अपने माता-पिता के चलते रावण में दैत्य और ब्राहमण दोनों के गुण थे। रावण को न केवल शास्त्रों बल्कि 64 कलाओं में महारत हासिल थी। यहाँ तक कि उसे हाथी और गाय को भी प्रशिक्षित करने की कला का ज्ञान था।
यदि हम अलग.अलग स्थान पर प्रचलित राम कथाओं को जानें, तो रावण को बुरा व्यक्ति नहीं कहा जा सकता है। जैन धर्म के कुछ ग्रंथों में रावण को प्रतिनारायण' कहा गया है। रावण समाज सुधारक और प्रकांड पंडित था। तमिल रामायणकार 'कंब' ने उसे सद्चरित्र कहा है। रावण ने सीता के शरीर का स्पर्श तक नहीं कियाए बल्कि उनका अपहरण करते हुए वह उस भूखंड को ही उखाड़ लाता है, जिस पर सीता खड़ी हैं । गोस्वामी तुलसीदास ने भी कहा है कि रावण जब सीता का अपहरण करने आयाए तो वह पहले उनकी वंदना करता है। 'मन मांहि चरण बंदि सुख माना।' महर्षि याज्ञवल्क्य ने इस वंदना को विस्तारपूर्वक बताया है। 'मां' तू केवल राम की पत्नी नहींए बल्कि जगत जननी है। राम और रावण दोनों तेरी संतान के समान हैं। माता योग्य संतानों की चिंता नहीं करतीए बल्कि वह अयोग्य संतानों की चिंता करती है। राम योग्य पुरुष हैंए जबकि मैं सर्वथा अयोग्य हूंए इसलिए मेरा उद्धार करो मां। यह तभी संभव हैए जब तू मेरे साथ चलेगी और ममतामयी सीता उसके साथ चल पड़ी।
ज्योतिष और आयुर्वेद का ज्ञाता लंकापति रावण तंत्र।मंत्रए सिद्धि और दूसरी कई गूढ़ विद्याओं का भी ज्ञाता था। ज्योतिष विद्या के अलावाए उसे रसायन शास्त्र का भी ज्ञान प्राप्त था। उसे कई अचूक शक्तियां हासिल थींए जिनके बल पर उसने अनेक चमत्कारिक कार्य संपन्न किए। श्रावण संहिताश् में उसके दुर्लभ ज्ञान के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है। वह राक्षस कुल का होते हुए भी भगवान शंकर का उपासक था। उसने लंका में छह करोड़ से भी अधिक शिवलिंगों की स्थापना करवाई थी। यही नहींए रावण एक महान कवि भी था। उसने श्शिव ताण्डव स्त्रोत्मश् की। उसने इसकी स्तुति कर शिव भगवान को प्रसन्न भी किया। रावण वेदों का भी ज्ञाता था। उनकी ऋचाओं पर अनुसंधान कर विज्ञान के अनेक क्षेत्रों में उल्लेखनीय सफलता अर्जित की। वह आयुर्वेद के बारे में भी जानकारी रखता था। वह कई जड़ी.बूटियों का प्रयोग औषधि के रूप में करता था।
रावण भगवान शिव का भक्त होने के साथ-साथ महापराक्रमी भी था। इसी तथ्य के मद्देनजर आज भी कानपुर के शिवाला स्थित कैलाश मंदिर में विजयदशमी के दिन दशानन रावण की महाआरती की जाती है। सन् 1865 में श्रृंगेरी के शंकराचार्य की मौजूदगी में महाराज गुरू प्रसाद द्वारा स्थापित इस मंदिर में शिव के साथ उनके प्रमुख भक्तों की मूर्तियाँ स्थापित की गई हैं। कालांतर में सन् 1900 मंे महाराज शिवशंकर लाल ने कैलाश मंदिर परिसर में शिवभक्त रावण का मंदिर बनवाया और देवी के तेइस रूपों की मूर्ति भी स्थापित की। वस्तुतः इसके पीछे यह तर्क था कि भक्त के बगैर ईश्वर अधूरे हैं, इसीलिए भगवान शंकर के मंदिर के बाहर उनके अनन्य भक्त रावण का भी मंदिर बनाया गया। तभी से रावण की महाआरती की परम्परा यहाँ पर कायम है। कानपुर से सटे उन्नाव जिले के मौरावां कस्बे में भी राजा चन्दन लाल द्वारा सन् 1804 में स्थापित रावण की मूर्ति की पूजा की जाती है। यहाँ दशहरे के दिन रामलीला मैदान में 7-8 फुट ऊँचे सिंहासन पर बैठे रावण की विशालकाय पत्थर की मूर्ति की लोग पूजा करते हैं, जबकि एक अन्य पुतला बनाकर रावण दहन करते हैं।
मध्य प्रदेश के मंदसौर में नामदेव वैश्य समाज के लोगों के अनुसार रावण की पत्नी मंदोदरी मंदसौर की थी। अतः रावण को जमाई मानकर उसकी खतिरदारी यहाँ पर भव्य रूप में की जाती है। यहाँ पर रावण के समक्ष मनौती मानने और पूरी होने के बाद रावण की वंदना करने व भोग लगाने की परंपरा रही है। हाल ही में यहाँ रावण की पैतीस फुट उंची बैठी हुई अवस्था में कंक्रीट मूर्ति स्थापित की गई है। इसी प्रकार जोधपुर के लोगों के अनुसार रावण की पत्नी मंदोदरी यहाँ की पूर्व राजधानी मंडोर की रहने वाली थीं व रावण व मंदोदरी के विवाह स्थल पर आज भी रावण की चवरी नामक एक छतरी मौजूद है। हाल ही में अक्षय ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र ने जोधपुर के चांदपोल क्षेत्र में स्थित महादेव अमरनाथ एवं नवग्रह मंदिर परिसर में रावण का मंदिर बनाने की घोषणा की है। इसमें रावण की मूर्ति शिवलिंग पर जल चढ़ाते हुए बनायी जा रही है, जिससे रावण की शिवभक्ति प्रकट होगी और उसका सम्मानीय स्वरूप सामने आयेगा।
मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में स्थित रावणगाँव में रावण को महात्मा या बाबा के रूप में पूजा जाता है। यहाँ रावण बाबा की करीब आठ फीट लंबी पाषाण प्रतिमा लेटी हुयी मुद्रा में है और प्रति वर्ष दशहरे पर इसका विधिवत श्रृंगार करके अक्षत, रोली, हल्दी व फूलों से पूजा करने की परंपरा है। चूंकि रावण की जान उसकी नाभि में बसती थी, अतः यहाँ पर रावण की नाभि पर तेल लगाने की परंपरा है अन्यथा पूजा अधूरी मानी जाती है।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ग्रेटर नोएडा के मध्य स्थित बिसरख गाँव को रावण का पैतृक गाँव माना जाता है। बताते हैं कि रावण के पिता विश्रवामुनि इस गाँव के जंगल में शिव भक्ति करते थे एवं रावण सहित उनके तीनों बेटे यहीं पर पैदा हुए। विजय दशमी के दिन जब चारो तरफ रावण का पुतला फूका जाता है, तो बिसरख गाँव के लोग उस दिन शोक मनाते हैं। इस गाँव में दशहरा का त्यौहार नहीं मनाया जाता है। गाँववासियों को मलाल है कि रावण को पापी रूप में प्रचारित किया जाता है जबकि वह बहुत तेजस्वी, बुद्विमान, शिवभक्त, प्रकाण्ड पण्डित एवं क्षत्रिय गुणों से युक्त था। महाराष्ट्र के अमरावती और गढ़चिरौली जिले में 'कोरकू' और 'गोंड' आदिवासी रावण और उसके पुत्र मेघनाद को अपना देवता मानते हैं। अपने एक खास पर्व 'फागुन' के अवसर पर वे इसकी विशेष पूजा करते हैं।
उत्तर भारत में दशहरा का मतलब भले ही रावण दहन से अनिवार्य रूप से जुड़ा हुआ हो, पर भारत के अन्य हिस्सों में ही इसे अन्य रूप में मनाया जाता है। बंगाल में दशहरे का मतलब रावण दहन नहीं बल्कि दुर्गा पूजा होती है, जिसमें माँ दुर्गा को महिषासुर का वध करते हुए दिखाया जाता है।
(क्रमश :, आगामी- तुलसीदास ने सर्वप्रथम आरंभ की रामलीला)
20 टिप्पणियां:
बहुत अच्छी जानकारी। शायद रावण आज के आदमी को देखता तो शरम से सिर झुका लेता। रावण ने एक बुराई की लेकिन वहाँ भी अपनी मर्यादा कायम रखी। आज जरूरत है मन के रावण को जलाने की। अच्छा लगा आपका आलेख। धन्यवाद।
प्रासंगिक पोस्ट...जिस देश में भ्रष्ट लोगों की पूजा होती हो, वहाँ यदि रावण की भी पूजा हो तो आश्चर्य नहीं....रोचक प्रस्तुति.
कपिला जी ने बड़ी सार्थक बात कही- आज जरूरत है मन के रावण को जलाने की।
इस लेख का विचार मेरे मन में तब आया था, जब शिवाला-कानपुर में मैंने रावण की पूजा और आरती होती देखी.
रावण जलाने के पहले परिक्रमा लगा लेते हैं।
उत्तर भारत में दशहरा का मतलब भले ही रावण दहन से अनिवार्य रूप से जुड़ा हुआ हो, पर भारत के अन्य हिस्सों में ही इसे अन्य रूप में मनाया जाता है। बंगाल में दशहरे का मतलब रावण दहन नहीं बल्कि दुर्गा पूजा होती है, जिसमें माँ दुर्गा को महिषासुर का वध करते हुए दिखाया जाता है।
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पोस्ट पढ़कर तो यही कहना पड़ेगा कि
भारत तेरे रूप अनेक!
रोचक जानकारी
हा..हा..हा...रावण की हंसी कित्ती भयानक होती है.
रावण की पूजा की जो परम्परा है वह इन्ही कारणों से है ।
रावण में दुर्गुण भी थे और सद्गुण भी, दुर्गण का नाश और सद्गुण की पूजा तो की ही जानी चाहिए। इसीलिए रावण के संदर्भ में दोनों परम्पराएं विकसित हो गईं।...तथ्यात्मक और रोचक आलेख के लिए बधाई।
रावण मे बुराई कम अच्छाईयां ज्यादा थी, ओर वेसे भी यह कथाये हम लोगो को ग्याण देने के लिये हे, इसी लिये भगवान राम ने भी पहले लक्षमण को फ़िर खुद रावण से शिक्षा लेने के लिये गये थे, वेसे आज के रावण उस से रावण से हजार गुणा गंदे,बहुत सुंदर लेख लिखा आप ने धन्यवाद
रोचक लगी यह जानकारी.
आकांक्षा जी
आपके और आदरणीय कृष्ण कुमार जी के लेख पढता रहा हूँ इनसे हमेशा जानकारी बढ़ती है आभार आप दोनों का , ये लेख बेहद रोचक है
भारत की संस्कृति सच में ब्रोड माइंडेड रही है तभी तो शत्रु के अनुभव से भी ज्ञान लिया जाता है
रावण के पास समुद्र के जल को मीठा बनाने का प्रोजेक्ट भी था जिसें संभवतया वो जरूर पूरा करता पर वो अधर्म के रास्ते पर चल पड़ा था
ये बात भी हमें शिक्षा देती है की शुभ कार्य पूर्ण करने चाहिए मन की इच्छाओं की गुलामी से बचना चाहिए
आपका आभार इस लेख के लिए
योग के संदर्भ में 'रावण' का अर्थ 'मन' ही है जो कभी एक सा नहीं रहता. इस पर विजय लक्ष्य है. कथाएँ रोचक और भयानक बनाई जाती हैं ताकि लोग खिंचें. व्यावहारिक अर्थ कहीं खो जाता है.
वसिष्ठ, विश्वामित्र, परशुराम के बाद श्रीराम का अंतिम गुरु रावण ही था जिसकी मृत्युपूर्व शिक्षा में रामराज्य का सार छिपा है।
दशहरे के अवसर पर मैं स्वयम रावण पर एक पोस्ट लिखने की सोच रहा था मगर अब सोचता हूँ कि फिर कभी।
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रावन का नाम दशनन इसलिए पड़ा क्यूंकि उसके पास दस सिरों के बराबर बुद्धि थी , जानकार अच्छा लगा । वर्ना हम यही समझते थे की दस सर होने के कारण दशानन है।
आभार।
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अच्छाई और बुराई दोनों एक सिक्के के दो पहलू हैं...अच्छी जानकारी...आभार.
विजयदशमी की शुभकामनायें.
आप सभी लोगों ने इस पोस्ट को पसंद किया...आप सभी का आभार. इसी बहाने कई नए तथ्य भी पता चले, जैसा कि गौरव ने बताया..धन्यवाद.
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