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मंगलवार, 8 मार्च 2011

महिला होने पर गर्व (महिला दिवस पर विशेष)

महिला-दिवस सुनकर बड़ा अजीब लगता है. क्या हर दिन सिर्फ पुरुषों का है, महिलाओं का नहीं ? पर हर दिन कुछ कहता है, सो इस महिला दिवस के मनाने की भी अपनी कहानी है. कभी महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई से आरंभ हुआ यह दिवस बहुत दूर तक चला आया है, पर इक सवाल सदैव उठता है कि क्या महिलाएं आज हर क्षेत्र में बखूबी निर्णय ले रही हैं. मात्र कुर्सियों पर नारी को बिठाने से काम नहीं चलने वाला, उन्हें शक्ति व अधिकार चाहिए ताकि वे स्व-विवेक से निर्णय ले सकें. आज नारी राजनीति, प्रशासन, समाज, संगीत, खेल-कूद, फिल्म, साहित्य, शिक्षा, विज्ञान, अन्तरिक्ष सभी क्षेत्रों में श्रेष्ठ प्रदर्शन कर रही है, यहाँ तक कि आज महिला आर्मी, एयर फोर्स, पुलिस, आईटी, इंजीनियरिंग, चिकित्सा जैसे क्षेत्र में नित नई नजीर स्थापित कर रही हैं। यही नहीं शमशान में जाकर आग देने से लेकर पुरोहिती जैसे क्षेत्रों में भी महिलाएं आगे आ रही हैं. रुढियों को धता बताकर महिलाएं हर क्षेत्र में परचम फैलाना चाहती हैं।
वर्तमान दौर में नारी का चेहरा बदला है। नारी पूज्या नहीं समानता के स्तर पर व्यवहार चाहती है। सदियों से समाज ने नारी को पूज्या बनाकर उसकी देह को आभूषणों से लाद कर एवं आदर्शों की परंपरागत घुट्टी पिलाकर उसके दिमाग को कुंद करने का कार्य किया, पर नारी आज कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स, पी0टी0 उषा, किरण बेदी, कंचन चैधरी भट्टाचार्य, इंदिरा नूई, शिखा शर्मा, किरण मजूमदार शाॅ, वंदना शिवा, चंदा कोचर, ऐश्वर्या राय, सुष्मिता सेन, फ्लाइंग आॅफिसर सुषमा मुखोपाध्याय, कैप्टन दुर्गा बैनर्जी, ले0 जनरल पुनीता अरोड़ा, सायना नेहवाल, संतोष यादव, निरुपमा राव, कृष्णा पूनिया, कुंजारानी देवी, इरोम शर्मिला, मेघा पाटेकर, अरुणा राय, जैसी शक्ति बनकर समाज को नई राह दिखा रही है और वैश्विक स्तर पर नाम रोशन कर रही हैं। नारी की शिक्षा-दीक्षा और व्यक्तित्व विकास के क्षितिज दिनों-ब-दिन खुलते जा रहे हैं, जिससे तमाम नए-नए क्षेत्रों का विस्तार हो रहा हैं। कभी अरस्तू ने कहा कि -“स्त्रियाँ कुछ निश्चित गुणों के अभाव के कारण स्त्रियाँ हैं” तो संत थाॅमस ने स्त्रियों को “अपूर्ण पुरूष” की संज्ञा दी थी, पर वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ऐसे तमाम सतही सिद्वान्तों का कोई अर्थ नहीं रह गया एवं नारी अपनी जीवटता के दम पर स्वयं को विशुद्ध चित्त (Being-for- itself : स्वयं में सत् ) के रूप में देख रही है। आज यदि नारी आगे बढ़ना चाहती है तो उसके स्वाभाविक अधिकारों का दमन क्यों ?

पर इन सबके बावजूद आज भी समाज में बेटी के पैदा होने पर नाक-भौंह सिकोड़ी जाती है, कुछ ही माता-पिता अब बेटे-बेटियों में कोई फर्क नहीं समझते हैं...आखिर क्यों ? क्या सिर्फ उसे यह अहसास करने के लिए कि वह नारी है. वही नारी जिसे अबला से लेकर ताड़ना का अधिकारी तक बताया गया है. सीता के सतीत्व को चुनौती दी गई, द्रौपदी की इज्जत को सरेआम तार-तार किया गया तो आधुनिक समाज में ऐसी घटनाएँ रोज घटित होती हैं. तो क्या बेटी के रूप में जन्म लेना ही अपराध है. मुझे लगता है कि जब तक समाज इस दोहरे चरित्र से ऊपर नहीं उठेगा, तब तक नारी की स्वतंत्रता अधूरी है. सही मायने में महिला दिवस की सार्थकता तभी पूरी होगी जब महिलाओं को शारीरिक, मानसिक, वैचारिक रूप से संपूर्ण आज़ादी मिलेगी, जहाँ उन्हें कोई प्रताड़ित नहीं करेगा, जहाँ कन्या भ्रूण हत्या नहीं की जाएगी, जहाँ बलात्कार नहीं किया जाएगा, जहाँ दहेज के लोभ में नारी को सरेआम जिन्दा नहीं जलाया जाएगा, जहाँ उसे बेचा नहीं जाएगा। समाज के हर महत्वपूर्ण फैसलों में उनके नज़रिए को समझा जाएगा और क्रियान्वित भी किया जायेगा. जरुरत समाज में वह जज्बा पैदा करने का है जहाँ सिर उठा कर हर महिला अपने महिला होने पर गर्व करे, न कि पश्चाताप कि काश मैं लड़का के रूप में पैदा होती !!

18 टिप्‍पणियां:

Atul Shrivastava ने कहा…

अच्‍छी पोस्‍ट।
सच में नारी आज समानता का अधिकार चाहती है।
नारी पूजनीय होती है, कहकर ही हम उसे नजरअंदाज कर देते हैं लेकिन अब वक्‍त बदल गया है।
बधाई हो आपको।
महिला दिवस की शुभकामनाएं।
इसे भी पढें और अपने विचारों से अवगत कराएं,
http://atulshrivastavaa.blogspot.com/2011/03/blog-post.html

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

आज मंगलवार 8 मार्च 2011 के
महत्वपूर्ण दिन "अन्त रार्ष्ट्रीय महिला दिवस" के मोके पर देश व दुनिया की समस्त महिला ब्लोगर्स को "सुगना फाऊंडेशन जोधपुर "और "आज का आगरा" की ओर हार्दिक शुभकामनाएँ.. आपका आपना

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सशक्त पोस्ट पेश की है आपने!
महिला दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
--
केशर-क्यारी को सदा, स्नेह सुधा से सींच।
पुरुष न होता उच्च है, नारि न होती नीच।।
नारि न होती नीच, पुरुष की खान यही है।
है विडम्बना फिर भी इसका मान नहीं है।।
कह ‘मयंक’ असहाय, नारि अबला-दुखियारी।
बिना स्नेह के सूख रही यह केशर-क्यारी।।

vandana gupta ने कहा…

बहुत सुन्दर संदेश देती पोस्ट्।
महिला दिवस की हार्दिक बधाई

Shyama ने कहा…

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आप सभी को बधाई और शुभकामनायें.

Shyama ने कहा…

जरुरत समाज में वह जज्बा पैदा करने का है जहाँ सिर उठा कर हर महिला अपने महिला होने पर गर्व करे, न कि पश्चाताप कि काश मैं लड़का के रूप में पैदा होती !! ...वाकई आप सशक्त और बेजोड़ लिखती हैं. महिला दिवस पर सशक्त पोस्ट...बधाई.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

महिला दिवस पर नारी की आवाज़ को उठाती लाजवाब पोस्ट. साधुवाद स्वीकारें इसके लिए.

Sunil Kumar ने कहा…

सशक्त पोस्ट , महिला दिवस की शुभकामनाएं।

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

अच्‍छी पोस्‍ट,बधाई,महिला दिवस पर भी हार्दिक बधाई.

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

सर्व-प्रथम आपको महिला दिवस की शुभकामनाएं .
आपने एक सही विश्लेषण दिया है.जिन महान महिलाओं का आपने उल्लेख किया है उन सभी ने अपने हक़ हासिल किये हैं. मांगे नहीं हैं.
वस्तुतः हमारी अर्वाचीन संस्कृति मेंमहिलाओं का महत्त्व पुरुषों से अधिक था.परन्तु ११०० वर्षों के लगभग गुलामी में महिलाओं को कुचल दिया गया है और आज भी गुलाम मानसिकता के लोग उसी धारणा पर चल रहे हैं.गुलाम प्रवृति को छोड़ना आझ की परम आवश्यकता है.

Unknown ने कहा…

सुन्दर सन्देश, आपकी कलम और निःशब्द करदे विशेष लम्हों में ऐसी ही शुभकामनाये, आपको पसंद नहीं तो बधाई नहीं दूंगा महिला दिवस की , ताकतवर बात, गहन विचारों से युक्त लेखनी को जरूर दूंगा बधाई

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!!

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

महिला दिवस पर सार्थक प्रस्तुति...विचारोत्तेजक पोस्ट.

Unknown ने कहा…

महिला दिवस पर सहज और सार्थक पोस्ट..शुभकामनायें.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत बहुत शुभकामनायें।

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

नारी दिवस की बधाई .......

Bhanwar Singh ने कहा…

विचारोत्तेजक लेख..बधाई.

Bhanwar Singh ने कहा…

आकांक्षा मैडम जी आप खूब लिखती हैं. आज ही आपका लेख जनसत्ता में पढ़ा..अच्छा लगा. मेरी तरफ से प्रणाम.