कनाडा से प्रकाशित हिंदी-चेतना के जनवरी-मार्च , 2011 अंक में मेरी कविता 'शब्दों की गति' प्रकाशित हुई. इस कविता को साभार 'वेब दुनिया हिंदी' ने भी प्रकाशित किया है. आप भी पढ़ें-
कागज पर लिखे शब्द
कितने स्थिर से दिखते हैं
आड़ी-तिरछी लाइनों के बीच
सकुचाए-शर्माए से बैठे।
पर शब्द की नियति
स्थिरता में नहीं है
उसकी गति में है
और जीवंतता में है।
जीवंत होते शब्द
रचते हैं इक इतिहास
उनका भी और हमारा भी
आज का भी और कल का भी।
सभ्यता व संस्कृति की परछाइयों को
अपने में समेटते शब्द
सहते हैं क्रूर नियति को भी
खाक कर दिया जाता है उन्हें
यही प्रकृति की नियति।
कभी खत्म नहीं होते शब्द
खत्म होते हैं दस्तावेज
और उनकी सूखती स्याहियाँ
पर शब्द अभी-भी जीवंत खड़े हैं।
12 टिप्पणियां:
शब्दों की बेहतरीन रंगोली, शब्दों की ताकत को सीधे शब्दों में समझती आपकी पंक्तियाँ बधाई
शब्दों की जीवन असीमित है बहुत सुंदर अच्छी लगी रचना , बधाई
सच मे बहुत सुन्दर रचना है।
सुन्दर रचना, बहुत बधाई हो।
सुन्दर अभिव्यक्ति ...शब्द जीवंत ही रहते हैं ..
yahi shabd hamari kalpnaon ko sakar roop de jate hain .... kavita ke roop me
ममा की प्यारी सी कविता..यहाँ भी पढ़ी..मेरी प्यारी ममा को ढेर सारा प्यार और बधाई.
कभी खत्म नहीं होते शब्द
खत्म होते हैं दस्तावेज
और उनकी सूखती स्याहियाँ
पर शब्द अभी-भी जीवंत खड़े हैं।
...उम्दा भावों से सजी सार्थक कविता..बधाई.
कभी खत्म नहीं होते शब्द
खत्म होते हैं दस्तावेज
और उनकी सूखती स्याहियाँ
पर शब्द अभी-भी जीवंत खड़े हैं।
...उम्दा भावों से सजी सार्थक कविता..बधाई.
शब्द की नियति
स्थिरता में नहीं है
उसकी गति में है
और जीवंतता में है।
...वाकई सोचने वाली बात है..बेहतरीन कविता..सुन्दर भाव..बधाई.
आज के दौर में बड़ी सटीक कविता लिखी आकांक्षा जी ने..बधाई.
यदि संभव हो सके तो हिंदी चेतना पत्रिका का लिंक भी उपलब्ध कराएँ.
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