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सोमवार, 11 जुलाई 2011

विश्व जनसंख्या दिवस : बेटियों की टूटती 'आस्था'


आज विश्व जनसंख्या दिवस है. संयोगवश इस समय भारत में जनसंख्या का काम भी जोरों से चल रहा है. जनसंख्या के अंतरिम आंकडे आ चुके हैं, पर वास्तविक आंकड़े आने अभी भी शेष हैं. जनसंख्या सिर्फ कागजी न हो, बल्कि इससे लोगों के जीवन स्टार में भी सुधर आए, ऐसे में इसे इसे व्यापक और लोकप्रिय बनाने एवं लोगों से जोड़ने हेतु तमाम उपायों का सहारा लिया जाता है। माना जा रहा है कि वर्ष 2011 की जनगणना पर जितनी राशि और मानवीय संसाधन झोंके गए हैं, वैसा पहले कभी नहीं हुआ। यह जनगणना सिर्फ मानव जाति की गणना नहीं करती बल्कि मानव के समृद्ध होते परिवेश एवं भौतिक संसाधनों को भी कवर करती है। भारत दुनिया के उन देशों में से है, जहाँ सर्वाधिक तीव्र गति से जनसंख्या बढ़ रही है। फिलहाल चीन के बाद हम दुनिया में दूसरी सर्वाधिक जनसंख्या वाले राष्ट्र हैं। यह जनसंख्या ही भारत को दुनिया के सबसे बड़े बाजार के रूप में भी प्रतिष्ठित करती है। यही कारण है कि इससे जुड़े मुद्दे भी खूब ध्यान आकर्षित करते हैं।

वर्ष 2011 की जनसंख्या के प्रारम्भिक आंकड़े बता रहे हैं की भारत में लड़कियों का लिंगानुपात घटा है. हर किसी को बस बेटा चाहिए, बेटियां भले ही एवरेस्ट की चोटी को दस दिन में दो बार नाप दें, पर समाज की मानसिकता में घुसा हुआ है कि सृष्टि को चलाने के लिए बेटा ही जरूरी है. याद कीजिए भारत में एक अरबवें मानवीय जन्म को। राजधानी दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में 11 मई 2000 की सुबह 5 बजकर 5 मिनट पर आस्था नामक बच्ची के जन्म से उत्साहित देश के नीति-नियंताओं ने वायदों और घोषणाओं की झड़ी लगा दी थी। इनमें देश की तत्कालीन स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्री श्रीमती सुमित्रा महाजन, दिल्ली के सांसद व पूर्व मुख्यमंत्री श्री साहिब सिंह वर्मा के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के वरिष्ठ अधिकारीगण तक शामिल थे। इनमें बच्ची की मुफ्त शिक्षा, मुफ्त रेल यात्रा, मुफ्त मेडिकल सेवा से लेकर बच्ची के पिता को सरकारी नौकरी तक के वायदे शामिल थे। पर वक्त के साथ ही जैसे खिलौने टूट जाते है, इस एक अरबवें शिशु के प्रति किए गए सभी वायदे टूट गए। माता-पिता ने समझा था कि बिटिया अपने साथ सौभाग्य लेकर आई है, तभी तो इतने लोग उसे देखने व उसके लिए कुछ करने को लालायित हैं। शायद इसीलिए उसका नाम भी आस्था रखा। पर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की इस एक अरबवीं बच्ची आस्था की किलकारियों को न जाने किसकी नजर गई कि आज 11 साल की हो जाने के बावजूद उसे कुछ नहीं मिला, सिवाय संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष द्वारा वायदानुसार दी गई दो लाख रूपये की रकम।

वाकई यह देश का दुर्भाग्य ही है कि हमारे नीति-नियंता बड़े-बड़े वायदे और घोषणाएं तो करते हैं, पर उन पर कभी अमल नहीं करते। 'आस्था' तो एक उदाहरण मात्र है जो आज दिल्ली के नजफगढ़ के हीरा पार्क स्थित अपने पैतृक आवास में माता-पिता और बड़े भाई के साथ रहती है। दुर्भाग्यवश इस गली में पानी व सीवर लाइन सहित तमाम सुविधाओं का अभाव है। इन सबके बीच माता-पिता इस गरीबी में कुछ पैसे जुटाकर खरीदी गई सेकण्ड हैण्ड साईकिल ही आस्था की खुशियों का संबल है। उसके माता-पिता भी उस दिन को एक दु:स्वप्न मानकर भूल जाना चाहते हैं, जब इस एक अरबवीं बच्ची के जन्म के साथ ही नेताओं-अधिकारियों-मीडिया की चकाचैंध के बीच दुनिया ने आस्था को सर आखों पर बिठा लिया था। 11 मई 2011 को आस्था पूरे 11 साल की हो गई, पर उसकी सुध लेने की शायद ही किसी को फुर्सत हो !!

आज विश्व जनसंख्या दिवस है. हमारे कर्णधार इस बात का रोना रो रहे हैं कि देश में बच्चियों का घटता अनुपात भविष्य के लिए संकट पैदा कर सकता है, पर क्या वाकई इस ओर वे गंभीरता से सोचते हैं. 'आस्था' का मसला तो सिर्फ एक उदाहरण मात्र है. ऐसी न जाने कितने आस्थाएं इस देश में रोज टूटती हैं और फिर बिखर जाती हैं !!

25 टिप्‍पणियां:

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

आकांक्षा जी, आप इसे स्‍वीकार नहीं करेंगी, पर आस्‍था को यहां तक पहुंचाने के पीछे हमारी आस्‍था ही है। ------
TOP HINDI BLOGS !

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

जागरूक करती अच्छी पोस्ट ... आस्था के विषय को ले कर जो आपने मुद्दा उठाया है विचारणीय है ... सच ही न जाने कितनो की आस्था ऐसे ही टूट रही है ..

नश्तरे एहसास ......... ने कहा…

kayi baar jab aastha tooti bikharti hai to uske tootne ki wajah bhi aastha hi hoti hai.....
"very nice post to be read on vishwa jansankhya diwas"

Rakesh Kumar ने कहा…

हमारी आस्था दिखावटी हो चुकी है ,इसीलिए 'आस्था'
की कोई सुध नहीं ली.
आकांक्षा है तो बस उपरी दिखवाट की,अपना नाम पाने की
तो 'भारत महान' बंनाने की आकांक्षा कैसे
पूरी हो,आकांक्षा जी.

सुन्दर,सार्थक व विचारणीय प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.

मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.

अशोक सलूजा ने कहा…

मिडिया के आगे शक्ले बनाना ,टी.वी पर मुस्काना
गरीबों से हमदर्दी जताना ,और फिर सब कुछ भूल जाना,यादाश्त का खो जाना|
आदत सी हो गई ...ये सब सुनना -सुनाना !

सच्चाई से रूबरू कराती पोस्ट !
शुभकामनायें !

Nidhi ने कहा…

बेटियों को कभी भी समाज ने खुशी से नहीं स्वीकार है...बेटा हो तो कोई नहीं कहता कि चलो कोई नहीं बेटा बेटी एक समान ...बेटी हो तो माँ बाप ही कहते मिल जायेंगे कि बेटी और बेटा एक सामान...
चलिए आपने बहुत अच्छा प्रश्न उठाया...सामयिक रचना...बधाई

Rajesh Kumari ने कहा…

Aakanksha bahut achchi jagruk karti post.sahi likha hai aapne betiyon ki tootti aastha.jhoote vayde karna,jhoot bolna hi to humare desh ke mantriyon ki pahchaan hai.apni pehchaan kaise kho sakte hain.

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

हम बेटियों के बिना तो दुनिया ही सूनी है.

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

हम बेटियों के बिना तो दुनिया ही सूनी है.

(कुंदन) ने कहा…

आपने एक सटीक मुद्दे को उठाया है

मेरी एक बेटी है और मैंने कभी ये तो नहीं कहा की बेटा बेटी एक समान होते हैं पर ये जरूर कहता हूँ की जब मै मेरे माता पिता के लिए कुछ नहीं कर पा रहा हूँ तो बेटे के लिए क्यों सोचूँ.....


और आपने जो बात कही है वो तो सच है ही

कुछ महीनो पहले मेरे एक कजिन के यहाँ जच्चगी हुई मैंने कहा की मै आता हूँ तो माँ बोली तू मत आना यहाँ बेटी हुई है और सब के मुह लटके हुए हैं तू आएगा तो मिठाई ले कर आएगा और यहाँ सब लोग समझेंगे की उनका मजाक बंनाने के लिए मिठाई ले कर आया है.

मै तीन दिन तक रोता रहा ये सोच कर की क्या बेटी का होना इतना बड़ा दुख का विषय है

उसके बाद ये शब्द निकल कर आये अगर आप को वक्त मिले तो पढियेगा

http://issdilse.blogspot.com/2011/05/blog-post_16.html

vandana gupta ने कहा…

ये ही दुखद पहलू है हम बस उसी वक्त शोर मचाते है उसके बाद सब भूल जाते हैं…………एक विचारणीय और गंभीर चिन्तन मांगता आलेख्।

संजय भास्‍कर ने कहा…

जागरूक करती अच्छी रचना

संजय भास्‍कर ने कहा…

अस्वस्थता के कारण करीब 20 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

अच्छी पोस्ट, एक उम्मीद है कि भविष्य में सुधार अवश्य होगा.

Unknown ने कहा…

Bahut sundar chittha ban pada hai , sab katibaddh ho tab na .aabhar na .aabhar

Suman ने कहा…

sarthak post bahut badhiya .......

मनोज कुमार ने कहा…

समसामयिक विचारोत्तेजक आलेख।

मन-मयूर ने कहा…

एक ऐसा मुद्दा जिस पर सभी को गंभीर रूप से सोचने की जरुरत है..आभार.

मन-मयूर ने कहा…

आकांक्षा जी, आपके ब्लॉग की यही सोच इसे हिट बनाती है. सार्थक ब्लागिंग के लिए बधाई.

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

गहन चिन्तनयुक्त प्रासंगिक लेख....

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

बहुत ही सार्थक और सराहनीय पोस्ट बधाई और शुभकामनायें |

Vivek Jain ने कहा…

जागरूक करती पोस्ट, सुन्दर,सार्थक व विचारणीय प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.

विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हर क्षेत्र में संतुलन सर्वोपरि है।

Unknown ने कहा…

सटीक और सार्थक पोस्ट. ऑंखें खोल दीं.

raghav ने कहा…

Nice Post.