यदि आप इंटरनेट पर विभिन्न वेब-पत्रिकाओं, ई-पत्रिकाओं और ब्लॉग पर अपनी रचनाओं को प्रकाशित कर रहे हैं तो बेहद सावधान और सतर्क रहने रहने की जरुरत है. क्योंकि यहाँ से आपकी रचनाओं की चोरी करना बहुत आसान है. कुछेक पत्र-पत्रिकाएं गूगल पर सर्च करती हैं, वांछित सामग्री तलाशती हैं और फिर बड़े गर्व के साथ दूसरों की रचनाएँ और आलेख अपनों के नाम से प्रकाशित कर देती हैं. ऐसे हादसे तमाम ब्लागर्स के साथ हुए हैं और हो रहे हैं. जब उन पत्र-पत्रिकाओं के संपादकों से पूछिये तो एक ही रटा-रटाया जवाब मिलता है कि हमारे पास किसी भी रचना कि मौलिकता जाँचने का कोई माध्यम नहीं है. पर जब यही हरकत खुद किसी पत्रिका के संपादक-मंडल के लोग ही करने लगें तो फिर उन्हें कोई जवाब नहीं सूझता. पिछले दिनों मुझे भी एक ऐसे ही अजीबोगरीब वाकये से रु-ब-रु होना पड़ा.
मुंबई से एक महिला- पाठक ने 'संस्कार' (अगस्त-2012 नामक एक पत्रिका मेरे पास भेजी और बताया कि आजादी की वीरांगनाओं पर आपका आलेख इस पत्रिका में किसी अन्य ने अपने नाम से प्रकाशित कराया है, जो कि सरासर चोरी है. जब मैंने इस आलेख को पढ़ा तो मैं भी हतप्रभ रह गई. हमारे द्वारा वर्ष 2007 में सम्पादित पुस्तक 'क्रांति-यज्ञ : 1857 -1947 की गाथा" पुस्तक में प्रकाशित मेरा आलेख ''वीरांगनाओं ने भी जगाई स्वाधीनता की अलख", जो कि वेब-पत्रिका 'साहित्य शिल्पी' ( http://www.sahityashilpi.com/2009/03/blog-post_9638.html) में 7 मार्च, 2009 को ''आजादी के आन्दोलन में भी अग्रणी रही नारी [आलेख] - आकांक्षा यादव'' शीर्षक से प्रकाशित हो चुका है और मेरे व्यक्तिगत ब्लॉग 'शब्द-शिखर' पर भी उपलब्ध है, को इस पत्रिका ने किसी दूसरे व्यक्ति के नाम से शब्दों में थोडा फेर-बदल के साथ प्रकाशित किया था.
मुंबई से प्रकाशित इस 'संस्कार' नामक पत्रिका ने अपने अगस्त 2012 अंक में पृष्ठ संख्या 38 -40 पर नारी संस्कार के तहत 'ग़दर की नायिकाएं" शीर्षक से मेरा उपरोक्त आलेख कापी (चोरी) कर किसी कमलेश श्रीवास्तव के नाम से प्रकाशित किया है. जब इस पत्रिका के संपादक-मंडल को जानना चाहा तो पता चला कि ये तथाकथित लेखक ''कमलेश श्रीवास्तव'' स्वयं इसी पत्रिका के सहायक संपादक हैं. बड़ा अचरज हुआ कि पत्रिका के संपादक-मंडल का एक सदस्य खुद इंटरनेट से आलेख चोरी कर अपने नाम से प्रकाशित करवा रहा है. एक व्यावसयिक समूह ''संस्कार इन्फो टी. वी. प्रा. लि.'' द्वारा संचालित इस पत्रिका ने अपने संपादन मंडल में अच्छी खासी नामों की सूची दे रखी है. आप भी गौर कीजिये- समूह संपादक- कृष्ण कुमार पित्ती/ संपादक - सर्वेश अस्थाना/ सहायक संपादक- राजवीर रतन सिंह, कमलेश श्रीवास्तव/ परामर्शदाता-शैलेश लोढा/ अन्तराष्ट्रीय समन्वयन - डा. सुधा ओम धींगरा/ अमेरिका - डा. अनीता कपूर.
बड़े खेद के साथ लिखना पड़ रहा है कि कुछ तथाकथित लेखक जो खुद तो सृजन नहीं कर सकते, दूसरों के सृजन को कापी-पेस्ट और चोरी कर अपने नाम से प्रकाशित कर लेखन होने का दंभ पल रहे हैं. पत्रिका का नाम पढ़कर अहसास होता है कि यह 'संस्कार' को बढ़ावा देती होगी पर यह तो रचनाधर्मिता के स्तर पर चौर्य-प्रवृत्ति को बढ़ावा देकर कुसंस्कारों को बढ़ावा दे रही है. ऐसी पत्रिकाएं किसी व्यावसायिक समूह द्वारा आरंभ भले ही हो गई हैं, पर सृजन से उनका कोई सरोकार नहीं लगता. दूसरों की रचनाओं को चुराकर यदि स्वयं संपादक-मंडल के सदस्य ही अपने नाम से प्रकाशित करवाने लगें तो यह तो 'बाड़ द्वारा खेत खाने की कहावत' को चरितार्थ करता है.बड़े शर्म की बात है कि 'नारी-संस्कार' के नाम पर एक व्यक्ति एक नारी का आलेख चुराकर अपने नाम से प्रकाशित करवा रहा है. दुर्भाग्यवश हिंदी-साहित्य का नाम बदनाम करने में ऐसे लोगों की प्रखर भूमिका है. ऐसे लोगों के लिए सिर्फ यही कहा जा सकता है कि -''ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दें, कुछ लिखने का हुनर दें ताकि वे दूसरों के आलेखों को चुराकर अपने नाम से न प्रकाशित करवाएं !!'' पता नहीं कृष्ण कुमार पित्ती जी को इस बात का अहसास भी है कि नहीं की उन्होंने जिन्हें 'संस्कार' के संपादन की जिम्मेदारी दे रखी है, वे 'संस्कार' की आड़ में क्या कु-संस्कार खिला रहे हैं.
यह तो एक बानगी मात्र थी, जो मेरे संज्ञान में आई और आप सभी के साथ शेयर किया. तमाम पत्र-पत्रिकाएं ऐसे कार्यों में लिप्त होंगीं..सो सावधान रहिये, कहीं कोई आपकी रचना को अपने नाम से प्रकाशित करवाके तो रचनाकार नहीं बन बैठा है !!
अपनी जानकारी हेतु इस पत्रिका का पता भी नोट कर लीजिये, ताकि रचनाएँ भेजने में सतर्क रहें-
संपादक-संस्कार पत्रिका, पित्ती ग्रुप, वैभव चैंबर, बांद्रा-कुर्ला काम्प्लेक्स, बांद्रा (पूर्व), मुंबई-400051,
ई-मेल : editor@sanskartv@gmail.com
29 टिप्पणियां:
Akanksha ji abhi-abhi aapka naya post pada. Ye jankar bahut gussa bhi aaya aur bahut dukh bhi huaa ki kaise koi kisi aur ki rachna aise hi chura sakta hai.me to aapko ek sujhav deta hun ki aap inke khilaf "Copyright act"ke tehat kes kare.HUM AAPKE SATH HAI.
हजारों पत्र-पत्रिकाओं का धंधा ब्लॉग से ही चल रहा है। किसी की भी रचना को अपने नाम से प्रकाशित कर लेते हैं। कुछ ईमानदारी से लेखन या रचनाकार का नाम भी दे देते हैं।
ऐसी चोरी की घोर भर्तसना की जानी चाहिए। नाम तो संस्कार है पत्रिका का। लेकिन लगता है इनमें आलेख चोरी के ही संस्कार पड़े हैं।
वाकई शर्मनाक प्रकरण..'संस्कार' जैसी पत्रिकाएं जो अपना लेखक-वर्ग नहीं पैदा कर पा रही हैं, वे इंटरनेट से रचनाएँ चुराकर अपने ही संपादक-मंडल के सदस्यों के नाम से प्रकाशित कर रही हैं. ऐसी पत्रिकाओं हिंदी-साहित्य को तो अभिवृद्ध नहीं कर सकतीं, उनका नुकसान जरुर करती हैं. पत्रिका को इस चोरी के कार्य के लिए लानत है.
सबसे पहले तो आपको बधाई आकांक्षा जी..यह आपकी लेखनी का ही दम है क़ि जो आप जैसा उच्च-स्तरीय लेखन नहीं कर सकते, वह आपकी रचनाओं को चुराकर अपने नाम से छपवा रहे हैं.
क्या करें, ऐसे लोगों पर मात्र तरस ही आ सकता है. ..छि..छि..छि...कमलेश श्रीवास्तव जैसे लोगों को तो तत्काल इस पत्रिका को बाहर निकल देना चाहिए.
वाकई बेहद शर्मनाक बात है.... ऐसे लोगो के खिलाफ क़ानूनी कार्यवाही करनी चाहिए...
सही कहा आपने..बस नाम की है ये 'संस्कार' पत्रिका. काम तो पूरे घटिया वाले हैं. मुझे नहीं लगता कि ऐसी पत्रिकाएं कोई पढता भी होगा. एक तरफ लघु पत्र-पत्रिकाएं अच्छी रचनाएँ और अच्छे रचनाकारों की बदौलत साहित्य को नई ऊँचाइयाँ दे रही हैं, वहीँ धनबल के नाम पर निकले जाने वाली ऐसी पत्रिकाएं समाज में अपना पाठक और लेखक वर्ग तो तैयार नहीं कर सकते, कट-पेस्ट की संस्कृति को जरुर बढ़ावा दे सकते हैं. हाल ही में जकारिया का मामला भी चर्चा में आया था. यह मामला भी कुछ ऐसा ही है.इस पोस्ट को अन्य परिचित ब्लॉगों और वेबसाइट्स को भी भेजने की जरुरत है, ताकि ऐसी पत्रिकाओं से लोग सावधान रहें.
फेसबुक पर भी इस मुद्दे पर लोगों के विचार देखे..कुछेक यहाँ लगा रहे हैं, ताकि ऐसे मुद्दों पर ब्लागर्स में एक स्वस्थ बहस जन्म ले सके.
रजनीश के झा-
ये सच है, और इसी वृत्ति ने अनपढ़ जाहिल लेखकों की तादाद में फफूंद की तरह इजाफा कर दिया है. सिर्फ प्रचार नहीं इस तथाकथित सम्बदक का नंबर आप फेसबुक पर डालिए, श्रीमान जी को फोन कर के चोरी से लेखक बनने पर बधाई तो दिया जा सके
Prabhat Pandey said-
ऐसे सम्पादक या रचनाकार नौसिखिए नहीं हैं ..... आदत है इनकी ..... ये साहित्य के साथ-साथ अपने कर्म-क्षेत्र के लिए कलंक हैं.
Pawan Upadhyay said-
mera maanna hai yadi samaaj ke kaam aa rahaa hai hone deejiye is tarah ki chori chakaari.....saawdhan ho jaiye bas...kya fark padta hai likhega wahi jiske paas vichaar honge na.....chalne deejiye kisi ki roji roti isi se chal rahi hai to.....samaaj ka uddhar ho bas mai to yahi chahta hoon....aap sampadak ko ptra likh kar usko dhanywaad jaroor de deejiye uske is vinamr bhaaw ke liye ki aap ne hamari patni ke naam ka kaalpnik naam dekar jis tarah se unki rachna ko prachar prasar diya hai uske liye hriday se bhaar aap ka....baki sare niyam kanoon ijjatdaar logo ke liye hi bane hain
Akhilesh Yadav said-
aise sampadak ke khilaf case darja karaiye sir..
Rekha Srivastava said-
bina mehnat ke patrakar ban jane ka yahi tareeka hai.
Sanjeev Jaiswal Sanjay said-
aisee chori ka mi bhi kai bar shikar ho chuka hun. Kai choron ko to pakad liya aur jane kitne honge jinhe hum jaan nahi paye. Aise logo ka to samajik bahiskar hona chaiye.
Rajaram Rakesh Yadav said-
ab bataiye logo ki maansikta kitna kharab hai log jhuti prashidhi ke liye kya kya nahi karte hai
Vandana Awasthi Dubey said-
had hai....sampaadak ko shikaayati patr likhiye :)
Akhilesh Yadav said-
aise sampadak ke khilaf case darja karaiye..
Aflatoon Afloo said-
copy-paste पत्रकारिता.
nice presentation....
Aabhar!
Mere blog pr padhare.
संस्कार यह राक्षसी, परनारी को छीन |
अंत:पुर में कैदकर, करे जुल्म संगीन |
करे जुल्म संगीन, कहो कमलेस कहानी |
सजा स्वयं तदबीज, दर्ज कर फर्द बयानी |
करता लेख हरण, नाम अपने छपवाते |
आओ रविकर शरण, आज ही पाठ पढ़ाते ||
aakanksha ji thanks .nice presentation.aabhar जनपद न्यायाधीश शामली :कैराना उपयुक्त स्थान
Bloggers ko aur bhi organise hone ki zarurat hai taaki is prakar ki chezein hote hi koi karyawahi ki ja sake..
सम्पादक मंडल के कुछ नाम कमलेश श्रीवास्तव, शैलेश लोढा, डा. अनीता कपूर तो ब्लॉगर भी हैं शायद. क्या खूब 'संस्कार' दे रहे हैं पत्रिका को चलाने वाले.
बेहद शर्मनाक बात है
अगस्त अंक में छपे लेख पर एक कृष्ण कुमार यादव नाम के सज्जन ने मुझ पर उंगली उठाई है कि यह लेख उनकी पत्नी का है। जबकि यह लेख मेरा नहीं है और मेरे ही नामाराशि कमलेश इतिहासकार नाम के ब्लॉगर का है। उनके ब्लॉग पर उनका नाम कमलेश श्रीवास्तव लिखा है। इस लेख में न तो ऊपर और न ही नीचे यह कहीं नहीं लिखा है कि लेखक पत्रिका के सहायक सम्पादक है फिर भी मुझे बदनाम किया जा रहा है। जब मामले की पड़ताल की गई तो यह लेख 22 जनवरी 2007 में पोस्ट किया निकला जबकि आरोप लगाने वाले इस लेख के प्रकाशन की तिथि मार्च 2009 बता रहे हैं।
http://kamleshitihaaskar.wordpress.com/2007/01/22/freedom-b-indian-ladies/
kripya muhim chalane se pahle poori padtaal kar lein kyoki ab kanoon sakth hone jaa raha hain.. aapne kya 1857 ke gadar ki live covrage ki thi ki pooro gadar par apka adhikaar ho gaya.. chartrahanan band kariye..
dosto bina soche samjhe apni rai ya vichar rakhne se pahle poori padtaal kar lein.. kahin apse koi badi chook naa ho jaayein.. kyoki jin logo ne mere ooper kheechad uchala hain unke khilaaf muhim jaroor chalegi...
@ Khilone Ji,
आपकी टिपण्णी पढ़कर टिपण्णी करने पर मजबूर हूँ. बात चरित्र-हनन की नहीं है, बल्कि सच्चाई सामने लाने की है. यदि आपको लगता है कि आप सही हैं तो आपको अपना पक्ष पूरा रखने का अधिकार है. आपने लिखा है कि-
''जब मामले की पड़ताल की गई तो यह लेख 22 जनवरी 2007 में पोस्ट किया निकला जबकि आरोप लगाने वाले इस लेख के प्रकाशन की तिथि मार्च 2009 बता रहे हैं।''.......पर आप यह पढना भूल गए कि ''हमारे द्वारा वर्ष 2007 में सम्पादित पुस्तक 'क्रांति-यज्ञ : 1857 -1947 की गाथा" पुस्तक में प्रकाशित मेरा आलेख ''वीरांगनाओं ने भी जगाई स्वाधीनता की अलख", जो कि वेब-पत्रिका 'साहित्यशिल्पी' ( http://www.sahityashilpi.com/2009/03/blog-post_9638.html) में 7 मार्च, 2009 को ''आजादी के आन्दोलन में भी अग्रणी रही नारी [आलेख] - आकांक्षा यादव'' शीर्षक से प्रकाशित हो चुका है'', स्पष्टत: इंगित करता है कि आकांक्षा जी का यह आलेख वर्ष 2007 में ही पुस्तक में प्रकाशित हो चुका है.
bhai sahab aap bhool gaye ki post jaunary 2007 ki hai.. khair aap jo bhi samajhe jo mere baare me nahi jaante unhe batane ki jaroorat bhi nahi... mera isse koi lena dena nahi...
बेहद दुखद...!!
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