आधुनिक भारत के निर्माताओं में डा0 भीमराव अम्बेडकर का नाम प्रमुखता से लिया जाता है पर स्वयं डा0 अम्बेडकर को इस स्थिति तक पहुँचने के लिये तमाम सामाजिक कुरीतियों और भेदभाव का सामना करना पड़ा। डा0 अम्बेडकर मात्र एक साधारण व्यक्ति नहीं थे वरन् दार्शनिक, चिंतक, विचारक, शिक्षक, सरकारी सेवक, समाज सुधारक, मानवाधिकारवादी, संविधानविद और राजनीतिज्ञ इन सभी रूपों में उन्होंने विभिन्न भूमिकाओं का निर्वाह किया। अंबेडकर के पिता रामजी की यह बेहद दिली इच्छा थी कि उनका पुत्र संस्कृत पढ़े। इसी के मद्देनजर, जब अंबेडकर ने मुंबई के एलफिंस्टन हाई स्कूल में संस्कृत विषय का विकल्प लिया तो वह यह देखकर हैरान हो गए कि स्कूल के शिक्षकों ने उन्हें संस्कृत विषय देने से इसलिए इन्कार कर दिया कि वह एक दलित थे। उन दिनों “निचली जाति” के लोगों को संस्कृत का ज्ञान देना एक ऐसी बात थी जिससे लोग बचते थे। हाल ही में दृष्टि दोष से संघर्षरत 84 वर्षीय एक वैदिक विद्वान प्रभाकर जोशी ने जब डा॰ अंबेडकर के जीवन के विषय में पढ़ना शुरू किया तो उन्हें यह एक विडंबना लगी और इसी के बाद उन्होंने संस्कृत में डा॰ अंबेडकर की जीवनी ‘भीमायनम्’ लिखने का फैसला किया। प्रभाकर जोशी ने भारतीय संविधान के निर्माता डा॰ भीमराव अंबेडकर की जीवनी संस्कृत श्लोकों में लिखी है। डा॰ अंबेडकर की संस्कृत में लिखी संभवतः यह पहली जीवनी है। इस किताब में संस्कृत के 1577 श्लोक हैं और इन श्लोकों में डा॰ अंबेडकर के जीवन की विभिन्न घटनाओं का जिक्र किया गया है।
संस्कृत शिक्षक रहे प्रभाकर जोशी पिछड़ों के कल्याण के लिए डा॰ अंबेडकर के अभियान से बेहद प्रभावित हैं। वे उन्हें ‘महामानव’ कहते हैं। महाराष्ट्र सरकार के महाकवि कालिदास पुरस्कार से सम्मानित प्रभाकर जोशी मोतियाबिंद से पीडि़त हैं। गौरतलब है कि 2004 में शुरू हुए इस काम के दौरान प्रभाकर जोशी की नेत्र ज्योति पूरी तरह चली गई, फिर भी उन्होंने अपना प्रयास निरंतर जारी रखा। लेखन के दौरान अक्सर कम दिखाई देने की वजह से उनके अक्षर गड्डमड्ड हो जाते थे। उनकी दृष्टि तेजी से धुंधलाती जा रही थी लेकिन इसके बावजूद अपने काम को पूरा करने की उनकी अदम्य इच्छाशक्ति बढ़ती जा रही थी।’ उनके लिखने के बाद उनकी पत्नी उन पंक्तियों को पढ़ती थी और उन्हें बाद में टाइप आदि किए जाने के लिए पठनीय बनाती थीं। कई बार प्रभाकर जोशी के मन में शब्द अचानक आ जाते थे और वे रात में ही उन्हें लिख लेने के लिए उठ जाते थे हालांकि उन्हें यह मालूम ही नहीं होता था कि स्याही सूख गई है। यहाँ एक अन्य प्रसंग का जिक्र करना उचित होगा कि 2 मार्च 1930 को नासिक के कालाराम मन्दिर के प्रमुख पुरोहित की हैसियत से डा0 अम्बेडकर को दलित होने के कारण मन्दिर में प्रवेश करने से रोकने वाले रामदासबुवा पुजारी के पौत्र और विश्व हिन्दू परिषद के मार्गदर्शक मंडल के महंत सुधीरदास पुजारी ने भी अपने दादा की भूल का प्रायश्चित करने की इच्छा व्यक्त की थी। यह दर्शाता है कि डा॰ अंबेडकर के विचार व कार्य चिरंतन हैं और आज भी लोग उन्हें समझने की कोशिश कर रहे हैं। पं0 जवाहरलाल नेहरू ने उनके लिए यूं ही नहीं कहा था कि-‘‘डा0 अम्बेडकर हिन्दू समाज के सभी दमनात्मक संकेतों के विरूद्ध विद्रोह के प्रतीक थे। बहुत मामलों में उनके जबरदस्त दबाव बनाने तथा मजबूत विरोध खड़ा करने से हम मजबूरन उन चीजों के प्रति जागरूक और सावधान हो जाते थे तथा सदियों से दमित वर्ग की उन्नति के लिये तैयार हो जाते थे।’’
6 टिप्पणियां:
Baba saheb ko naman.
Dr. Ambedkar ji ko naman.
Dr. Ambedkar ka vyaktitav hi aisa nirala tha..achhi jankari. abhar.
प्रिय महोदया,
क्या इस पुस्तक का पीडीऍफ़ मिल सकता है ?
भीमायनम् का सामाजिक संदेशों का मूल्यांकन बताइए 🙏🙏
यह बुक प्रोपर संस्कृत में ही है क्या?
It Book can be available?
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