हमारी बेटियाँ
घर को सहेजती-समेटती
एक-एक चीज का हिसाब रखतीं
मम्मी की दवा तो
पापा का आफिस
भैया का स्कूल
और न जाने क्या-क्या।
इन सबके बीच तलाशती
हैं अपना भी वजूद
बिखेरती हैं अपनी खुशबू
चहरदीवारियों से पार भी
पराये घर जाकर
बना लेती हैं उसे भी अपना
बिखेरती है खुशियाँ
किलकारियों की गूंज की ।
हमारी बेटियाँ
सिर्फ बेटियाँ नहीं होतीं
वो घर की लक्ष्मी
और आँगन की तुलसी हैं
मायके में आँचल का फूल
तो ससुराल में वटवृक्ष होती हैं
हमारी बेटियाँ ।
5 टिप्पणियां:
निसंदेह...
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,बेटियाँ हैं तो कल है.
Betiyon ke bina jag suna..Pyari si kavita.
पराये घर जाकर
बना लेती हैं उसे भी अपना
बिखेरती है खुशियाँ
किलकारियों की गूंज की ।
मन को छू गई यह पोस्ट ...बधाइयाँ !
Apurva looks so cute..say my love to her.
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