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बुधवार, 8 मई 2013

हमारी बेटियाँ



हमारी बेटियाँ 
घर को सहेजती-समेटती
एक-एक चीज का हिसाब रखतीं
मम्मी की दवा तो
पापा का आफिस
भैया का स्कूल
और न जाने क्या-क्या।

इन सबके बीच तलाशती
हैं अपना भी वजूद
बिखेरती हैं अपनी खुशबू
चहरदीवारियों से पार भी
पराये घर जाकर
बना लेती हैं उसे भी अपना
बिखेरती है खुशियाँ
किलकारियों की गूंज  की ।

हमारी  बेटियाँ 
सिर्फ बेटियाँ  नहीं होतीं
वो घर की लक्ष्मी
और आँगन की तुलसी हैं
मायके में आँचल का फूल
तो ससुराल में वटवृक्ष होती हैं 
हमारी बेटियाँ  ।

5 टिप्‍पणियां:

Vaanbhatt ने कहा…

निसंदेह...

Rajendra kumar ने कहा…

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,बेटियाँ हैं तो कल है.

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

Betiyon ke bina jag suna..Pyari si kavita.

Bhanwar Singh ने कहा…

पराये घर जाकर
बना लेती हैं उसे भी अपना
बिखेरती है खुशियाँ
किलकारियों की गूंज की ।

मन को छू गई यह पोस्ट ...बधाइयाँ !

Bhanwar Singh ने कहा…

Apurva looks so cute..say my love to her.