अंतत: 1 जनवरी से 'लोकपाल' कानून बन गया। जो कभी लोकपाल से डरते थे या विरोध करते थे, वे भी इसके पक्ष में हो गए। पर क्या यही फार्मूला विधायिका में महिला आरक्षण विधेयक पर नहीं लागू हो सकता। क्या महिलाओं से लोग इतने डरते हैं कि 'लोकपाल' ला सकते हैं, पर संसद और विधानसभाओं में 'महिलाओं' को नहीं ? क्या महिलाओं से लोगों को ज्यादा खतरा महसूस होता है कि कहीं वे संसद में कानून बनाने बैठ गईं तो पुरुषों की सत्ता का क्या होगा ? 'आम आदमी पार्टी' ने भी एक ही महिला को मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व दिया, आखिर केजरीवाल जी ने भी पहले 'आदमी' की ही सोची, 'औरत' की नहीं। लगता है इस देश को अब एक 'आम औरत पार्टी' की भी जरुरत है, तभी महिला आरक्षण विधेयक पर गम्भीरता से विचार होगा। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस भी करीब है, देखते हैं इस बार इस मुद्दे को लेकर क्या जुमला उछाला जाता है …!!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें