बेटियाँ भले ही समाज में अपनी प्रतिभा से रोशनी फैला रही हों, पर उनकी उपलब्धियों को सामाजिक मान्यता मिलने में अभी भी देरी है। बेटियाँ लाख सफलता के नए मुकाम रचें, पर समाज की मानसिकता अभी भी उन्हें परिवार में दोयम स्थान ही देती है। ऐसी स्थिति में, जिस घरमें पहले से दो बेटियां हों वहां तीसरे गर्भ का मतलब एक बेटा ही होता है। अगर यही गर्भ बेटी बनकर सामने आए तो उसे बदकिस्मत कहते हैं। पर इस बदकिस्मती को किस्मत में बदलने का कार्य करती हैं संदीप कौर।
संयोगवश, अगमजोत भी ऐसे ही परिवार की तीसरी बेटी बनने जा रही थी, जहां उसे दुनिया में न आने देने के रास्ते खोजे जा रहे थे। लेकिन जैसे ही संदीप कौर को पता चला, वो परिवार से मिलीं और गर्भ में बेटी को खत्म न करने को कहा। बोलीं- उसे इस दुनिया में आने दो, मैं बनूंगी उसकी मां, मैं पालूंगी उसे। अगमजोत आज पौने दो साल की है। हरदीप कौर, सिमरदीप कौर की कहानियां भी ऐसी ही हैं, जिन्हें संदीप ने गोद लेकर उन अजन्मी बेटियों को दुनिया में आने की राह खोल दी, जो कोख में ही मार दी जाती हैं। संदीप कौर ऐसी 80 बेटियों को गोद ले चुकी हैं। भ्रूण हत्या के खिलाफ इस अनोखी पहल की शुरूआत करते हुए संदीप 260 बेटियां अपना चुकी हैं। इनमें बेसहारा और अनाथ बच्चियां भी शामिल हैं।
बेटियों के प्रति इतनी सुंदर मानवीय भावना रखने वाली संदीप कौर के बारे में यह सुनना अजीब सा लगता है कि आतंकवाद के दौर में वे खालिस्तान लहर का हिस्सा रहीं। उनके पति धर्म सिंह काश्तीवाल बब्बर खालसा के सक्रिय सदस्य थे, जो पुलिस एनकाउंटर में मारे गए। संदीप कौर को हथियार सप्लाई करने के आरोप में टाडा के तहत जेल जाना पड़ा था। 1996 में जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने सेवा का रास्ता चुना और ट्रस्ट की स्थापना की।
गुरुसाहिब के सिद्धांत ‘सो क्यों मंदा आखिए, जित जम्मे राजान’ को लेकर चलने वाली संदीप कौर अमृतसर के सुल्तानविंड गांव में ‘भाई धर्म सिंह खालसा ट्रस्ट’ चला रही हैं। वे कहती हैं कि मुझे जहां भी ऐसा सुनाई पड़ता है कि अबॉर्शन होने वाला है, मैं तुरंत वहां पहुंच जाती हूं। संदीप कौर कन्याभ्रूण हत्या के खिलाफ कई परिवारों से मिलीं अौर उन्हें समझाया और उनका यह अभियान निरंतर जारी है। उनके समझाने का आलम यह हुआ क़ि कई बार तो बेटी पैदा होने के बाद ज्यादातर परिवारों के मन में मोह जाग जाता है और वह उसे अपना लेते हैं। कुछेक परिवार ऐसे होते हैं जो बच्ची के ट्रस्ट में जाने के बाद वापस ले जाते हैं। फ़िलहाल, ट्रस्ट में पली-बढ़ी बच्चियां आज हॉस्टल में पढ़ाई कर ही हैं। इनमें कई लड़कियां बेसहारा हैं तो कई के मां-बाप मर चुके हैं। पर संदीप कौर के अंदर का मातृत्व अभी भी जिन्दा है और उनके इस हौसले पर ही टिकी है तमाम उन बेटियों की आँखों का सपना, जिसे उनके माँ-पिता गर्भ में ही ख़त्म कर देना चाहते थे !!
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