सिविल सेवाओं में महिलाएं नित्य नए मुकाम गढ़ रही हैं। समाज के हर वर्ग की महिलाओं का प्रतिनिधित्व आईएएस, आईपीएस और अलाइड सेवाओं में बढ़ रहा है। निश्चितत: इंसान मन में कुछ करने की ठान ले तो दूसरों के लिए मिसाल कायम कर सकता है। ऐसी ही एक मिसाल हैं देश की दूसरी मुस्लिम आईपीएस महिला अंजुम आरा, जिन्होनें तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए ये मुकाम हासिल किया। इससे पहले मुंबई की गुजरात कैडर की सारा रिकावी ने पहली मुस्लिम महिला आईपीएस बनने का गौरव हासिल किया था। मुस्लिम समाज में जहां लड़कियों को बुर्के में रहने के लिए बाध्य किया जाता रहा है, वहीं पुराने रीति रिवाजों से उठकर देश की दूसरी मुस्लिम आईपीएस बनकर अंजुम आरा ने देश में एक नया मुकाम हासिल किया है।
उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के छोटे से गांव कम्हरिया में जन्मी अंजुम हालांकि शहर में पढ़ी नहीं लेकिन उनके पिता अयूब शेख की शिक्षा-दीक्षा इसी गांव में हुई। पिता अयूब शेख अभियंत्रण सेवा में हैं, मां गृहिणी है।
वर्ष 1985 में पिता अयूब को ग्रामीण अभियंत्रण सेवा में अवर अभियंता की नौकरी मिली। पहली तैनाती सहारनपुर हुई तो वह वहीं बस गए। अंजुम अपने भाइयों-बहनों में दूसरे नम्बर की है। अंजुम की प्राथमिक शिक्षा गंगोह, सहारनपुर स्थित सरस्वती शिशु मंदिर में हुई। सहारनपुर से हाईस्कूल एचआर इंटर कॉलेज से इंटर की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इसके बाद लखनऊ के एक इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक की प्रथम श्रेणी में डिग्री हासिल करने के बाद वह प्रशासनिक सेवा की तैयारियों में जुट गयी। कड़ी मेहनत के बाद उन्होंने आइपीएस-2011 बैच की परीक्षा उत्तीर्ण कर अपना मुकाम हासिल किया।
यह सफर इतना आसान भी नहीं था। अंजुम ने जब नौकरी की इच्छा अपने परिवार वालों के सामने रखी तो संगे संबंधियों रिश्तेदारों ने इस पर आपत्तियां जतानी शुरू कर दी। संबंधियों को उसका घर से निकलना तक गंवारा नहीं था। परिवार में भी बुर्का प्रथा को महत्व दिया जाता था। लहरों से डर के नौका पार नहीं होती और कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती को आत्मसात करते हुए अंजुम अपनी राह पर चलती रहीं और रिश्तेदारों के तमाम विरोधों के बीच उनके पिता ने उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। अंतत: कड़ी मेहनत और लगन से 2011 में उनका चयन आईपीएस में हुआ। ट्रेनिंग पूरी होने के बाद उन्हें मणिपुर कैडर मिला। कुछ समय वहां नौकरी करने के बाद उनकी तैनाती हिमाचल की राजधानी शिमला में बतौर एएसपी हुई। अंजुम के पति युनूस भी आईएएस अधिकारी हैं। यह वही आईएएस हैं जिन पर सोलन के नालागढ़ में कुछ खनन माफिया ने ट्रैक्टर चलाने की कोशिश की थी।
अंजुम अपनी इस कामयाबी का श्रेय अपने पिताजी को देती हैं। अंजुम का कहना है कि पेरेंट्स को पुरानी प्रथाओं को छोड़कर लड़कियों को आगे बढ़ने की प्रेरणा देनी चाहिए। वे तमाम रूढ़ियों को पीछे छोड़ते हुए नित नए मुकाम के लिए तत्पर हैं और अब कइयों के लिए प्रेरणास्रोत भी !!
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