करवा चौथ सुहागिनों का एक व्रत मात्र नहीं है, बल्कि दाम्पत्य प्रेम का उत्सव भी है। रिश्तों की डोर को मजबूत रखने का एहसास भी है। चौदहवीं का चाँद की खूबसूरती उपमा अपने यहाँ खूब दी जाती है, पर करवा चौथ के चाँद की बात ही निराली होती है। इस दिन तो उनकी बड़ी मनुहार होती है और चाँद भी खूब लुका -छिपी खेलता है। वैसे भी चाँद की शीतलता और मधुरता का स्वभाव दाम्पत्य प्रेम के लिए जरुरी है। जीवन साथी को चाँद की उपमा दी जाती है और चांदनी को प्रेम की। ऐसे में करवा चौथ के साथ चाँद का तादात्म्य और भी गहरा हो जाता है।
करवा चौथ हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है, जिसे पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में बहुत श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है। करवा चौथ के दिन श्री गणेश, मां गौरी और चंद्रमा का पूजन किया जाता है। पूजन करने के लिए बालू की वेदी बनाकर सभी देवों को स्थापित किया जाता है। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाये जाने वाले इस त्यौहार में सुहागिन स्त्रियाँ अपने पति की लंबी आयु, स्वास्थ्य व सौभाग्य की कामना करते हुए व्रत रखती हैं। इस पर्व पर महिलाएं हाथों में मेहंदी रचाकर, चूड़ी पहन व सोलह श्रृंगार कर अपने पति की पूजा कर व्रत का पारायण करती हैं। यह व्रत सुबह सूर्योदय से पहले करीब 4 बजे के बाद शुरू होकर रात में चंद्रमा दर्शन के बाद संपूर्ण होता है। इस दिन पत्नियाँ निराहार रहकर चन्द्रोदय की प्रतीक्षा करती हैं और रात में चन्द्रमा को अर्घ्य देने के उपरांत ही अपना व्रत तोड़ती हैं।
भारत देश में वैसे तो चौथ माता जी के कई मंदिर स्थित है, लेकिन सबसे प्राचीन एवं सबसे अधिक ख्याति प्राप्त मंदिर राजस्थान राज्य के सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा गाँव में स्थित है । चौथ माता के नाम पर इस गाँव का नाम बरवाड़ा से चौथ का बरवाड़ा पड़ गया । चौथ माता मंदिर की स्थापना महाराजा भीमसिंह चौहान ने की थी ।
करवा चौथ व्रत से कई कहानियां जुडी हुई हैं। इनमें से सर्वप्रमुख एक साहूकार के सात बेटों और उनकी एक बहन करवा से जुडी हुई है। इस कहानी के अनुसार सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहाँ तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी। शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा कि उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती है। चूँकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल है।
सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं गई और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चाँद उदित हो रहा हो। इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चाँद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चाँद को देखती है, उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है।
वह पहला टुकड़ा मुँह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुँह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। ऐसे में वह व्याकुल होकर तड़प उठती है। ऐसे में उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं। सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।
एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियाँ करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियाँ उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से 'यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है। इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूँकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कहकर वह चली जाती है। सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है। अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अँगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुँह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है।
करवा चौथ के व्रत का जिक्र महाभारत में भी मिलता है। कहते हैं कि जब पांडव वन-वन भटक रहे थे तो भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को इस दिव्य व्रत के बारे बताया था। इसी व्रत के प्रताप से द्रौपदी ने अपने सुहाग की लंबी उम्र का वरदान पाया था।
फिल्मों और धारावाहिकों ने करवा चौथ के व्रत को ग्लैमराइज रूप भी दिया है। कुछ ही सिमित इस त्यौहार को इनके चलते देशव्यापी पहचान मिली है। करवाचौथ को लेकर तमाम बातें भी कही जाती हैं। मसलन, मात्र पत्नी द्वारा ही व्रत क्यों रखा जाये या मात्र व्रत रखने से भला कौन सी उम्र बढ़ती है ? सवाल उठने स्वाभाविक भी हैं और इनके तार्किक जवाब देना मुश्किल भी है। अपने देश में व्रत और त्यौहारों की दीर्घ परंपरा रही है और यह भी उतना ही सच है कि अधिकतर त्यौहारों और व्रत का जिम्मा महिलाओं का ही होता है। कुछ लोग इसे पितृ-सत्तात्मक सोच से जोड़कर देखते हैं, तो कुछेक का मानना है कि पुरुषों में इतना संयम और धैर्य नहीं होता की वे इसे निभा सकें। खैर, तर्क-वितर्कों से परे तमाम परम्पराएँ आज भी समाज को जीवंत रूप देती हैं। आस्था उनका मूल तत्व है।
वस्तुत : करवा चौथ के व्रत को फायदे-नुकसान या बाध्यता की बजाय प्यार और समर्पण के नजरिये से देखने की जरूरत है। अपने रिश्तों में संजीदगी भी व्रत का जरुरी हिस्सा होता है। उम्र का बढ़ना या न बढ़ना अपने हाथ में तो नहीं है, लेकिन प्यार की उम्र जरूर बढ़ती है। सिर्फ पत्नियाँ ही नहीं बल्कि अब तो पति भी अपनी-अपनी तरह से प्यार का इज़हार करने में पीछे नहीं रहते। चाहे वो साथ में चाँद का इंतज़ार हो, छुट्टी लेकर पूरा दिन साथ में बिताना हो, उपहार देना हो या साथ में व्रत रखना हो। ऐसे में व्रत को केवल सिद्धांत रूप में देखना नाकाफ़ी होगा। यह व्रत पति-पत्नी में प्यार, सम्मान, विश्वास को मजबूत करते हुए रिश्तों को प्रगाढ़ बनाता है। करवा चौथ के व्रत और पर्व को समग्रता में देखते हुए अपने वैवाहिक जीवन को और और सुदृढ़ करने की दोतरफ़ा कोशिश जरूर होनी चाहिए।
करवा चौथ का पर्व हर साल आता है और पूरे जोशो खरोश के साथ सेलिब्रेट किया जाता है। करवा चौथ सिर्फ एक त्यौहार ही नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक सन्देश भी छिपा हुआ है। आज समाज में जब रिश्तों के मायने बदलते जा रहे हैं, भौतिकता की चकाचौंध में हमारे पर्व और त्यौहार भी उपभोक्तावादी संस्कृति तक सिमट गए हैं, ऐसे में करवा चौथ के मर्म और मूल को समझने की जरूरत है।
करवा चौथ (करक चतुर्थी) अर्थात भारतीय नारी के समर्पण, शीलता, सहजता, त्याग, महानता एवं पतिपरायणता को व्यक्त करता एक पर्व। दिन भर स्वयं भूखा प्यासा रहकर रात्रि को जब मांगने का अवसर आया तो अपने पति देव के मंगलमय, सुखमय और दीर्घायु जीवन की ही याचना करना यह नारी का त्याग और समर्पण नहीं तो और क्या है ?
करवा चौथ का वास्तविक संदेश दिन भर भूखे रहना ही नहीं अपितु यह है नारी अपने पति की प्रसन्नता के लिए, सलामती के लिए इस हद तक जा सकती है कि पूरा दिन भूखी - प्यासी भी रह सकती है। करवा चौथ नारी के लिए एक व्रत है और पुरुष के लिए एक शर्त। शर्त केवल इतनी कि जो नारी आपके लिए इतना कष्ट सहती है उसे कष्ट न दिया जाए। जो नारी आपके लिए समर्पित है उसको और संतप्त न किया जाए। जो नारी प्राणों से बढ़कर आपका सम्मान करती है जीवन भर उसके सम्मान की रक्षा का प्रण आप भी लो। उसे उपहार नहीं आपका प्यार चाहिए !!
1 टिप्पणी:
Very nice...
एक टिप्पणी भेजें