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गुरुवार, 24 सितंबर 2015

समाज के निर्माण में भाषा और साहित्य की भूमिका


'समाज के निर्माण में भाषा और साहित्य की भूमिका' जगजाहिर है। इस विषय को लेकर तमाम पुस्तकें लिखी/सम्पादित की गई हैं। हाल ही में इस विषय पर एक पुस्तक डॉ. गीता सिंह (रीडर एवं अध्यक्ष, स्नाकोत्तर हिंदी विभाग, दयानंद स्नाकोत्तर महाविद्यालय, आज़मगढ़) के सम्पादन में युगांतर प्रकाशन, दिल्ली द्वारा प्रकाशित हुई है। साहित्य में चल रहे विमर्श, संक्रमण और सौंदर्यकामी सभी प्रक्रियाओं को समेटती यह पुस्तक हिंदी साहित्य के बहाने तमाम छुए-अनछुए पहलुओं को समेटती है। 225 पृष्ठों की इस पुस्तक में विभिन्न लेखकों के 61 लेख शामिल किये गए हैं। सौभाग्यवश, इसमें "बदलते परिवेश में बाल साहित्य" शीर्षक से कृष्ण कुमार यादव जी का  और "भूमंडलीकरण के दौर में भाषाओं पर बढ़ता ख़तरा" शीर्षक से हमारा भी लेख शामिल है। साधुवाद और हार्दिक आभार !!

पुस्तक : समाज के निर्माण में भाषा और साहित्य की भूमिका
संपादक :डॉ. गीता सिंह (रीडर एवं अध्यक्ष, स्नाकोत्तर हिंदी विभाग, दयानंद स्नाकोत्तर महाविद्यालय, आज़मगढ़) 
प्रकाशक : युगांतर प्रकाशन, दिल्ली 
पृष्ठ -225,  प्रथम संस्करण - 2015 

मंगलवार, 22 सितंबर 2015

समकालीन महिला साहित्यकार


महिलाओं की रचनाधर्मिता को लेकर आजकल तमाम पुस्तकें प्रकाशित हो रही हैं।  इन्हीं में से एक है - 'समकालीन महिला साहित्यकार'।  निरुपमा प्रकाशन, (506/13 शास्त्री नगर, मेरठ, उत्तर प्रदेश) द्वारा रश्मि अग्रवाल के संपादन में प्रकाशित इस पुस्तक (ISBN -978-93-81050-46-0) में 12 महिला साहित्यकारों की कविताओं को सपरिचय स्थान दिया गया है।  इन महिला साहित्यकारों में आकांक्षा यादव, सुशीला गोयल, रश्मि अग्रवाल, सुमन अग्रवाल, कामिनी वशिष्ठ, करुणा दिनेश, अंजू जैन प्राची, पूनम अग्रवाल, शुभम त्यागी, शुभा द्धिवेदी, गरिमा शर्मा और शिक्षा यादव के नाम शामिल हैं। मुकेश नादान  ने बड़ी ही खूबसूरती से इस 128 पृष्ठीय पुस्तक को प्रकाशित किया है।

पुस्तक : समकालीन महिला साहित्यकार (ISBN -978-93-81050-46-0)
संपादक :रश्मि अग्रवाल
प्रकाशक : निरुपमा प्रकाशन, 506/13 शास्त्री नगर, मेरठ, उत्तर प्रदेश
पृष्ठ -128   मूल्य -240 रूपये  प्रथम संस्करण - 2015


गुरुवार, 17 सितंबर 2015

आदि देव के साथ-साथ प्रथम लिपिकार भी हैं श्री गणेश



भारतीय संस्कृति में गणेश जी को आदि देव माना गया है। कोई भी धार्मिक उत्सव हो, यज्ञ, पूजन इत्यादि सत्कर्म हो या फिर विवाहोत्सव हो, निर्विध्न कार्य सम्पन्न हो इसलिए शुभ के रूप में गणेश जी  की पूजा सबसे पहले की जाती है। गणेश जी को प्रथम लिपिकार भी माना जाता है उन्होंने ही देवताओं की प्रार्थना पर वेद व्यास जी द्वारा रचित महाभारत को लिपिबद्ध किया था। गणेश की प्रतिष्ठा सम्पूर्ण भारत में समान रूप में व्याप्त है। महाराष्ट्र इसे मंगलकारी देवता के रूप में व मंगलपूर्ति के नाम से पूजता है। दक्षिण भारत में इनकी विशेष लोकप्रियता ‘कला शिरोमणि’ के रूप में है। मैसूर तथा तंजौर के मंदिरों में गणेश की नृत्य-मुद्रा में अनेक मनमोहक प्रतिमाएं हैं। अनंतकाल से अनेक नामों से गणेश दुख, भय, चिन्ता इत्यादि विघ्न के हरणकर्ता के रूप में पूजित होकर मानवों का संताप हरते रहे हैं। शास्त्रों में गणेश जी के स्वरूप का वर्णन करते हुए लिखा गया है-



वक्रतुंड महाकाय। सूर्यकोटि सम प्रभ।
निर्विघ्न कुरु मे देव। सर्व कार्येषु सर्वदा॥

अर्थात् जिनकी सूँड़ वक्र है, जिनका शरीर महाकाय है, जो करोड़ों सूर्यों के समान तेजस्वी हैं, ऐसे सब कुछ प्रदान करने में सक्षम शक्तिमान गणेश जी सदैव मेरे विघ्न हरें।

श्री गणेश चतुर्थी के पावन अवसर पर सभी को हार्दिक शुभकामनाएं !!



रविवार, 6 सितंबर 2015

पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार हिंदी में एमफिल की डिग्री

हिंदी के चाहने वाले सिर्फ भारत  ही नहीं बल्कि दुनिया भर में हैं। कभी भारत से अलग होकर पाकिस्तान बना, पर हिंदी की जड़ें वहाँ भी मौजूद हैं।   पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार एक विश्वविद्यालय ने हिंदी में एमफिल की डिग्री प्रदान की है। सेना की ओर से संचालित नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ मॉडर्न लैंग्वेजेज (एनयूएमएल) यह डिग्री प्रदान करने वाला पाकिस्तान का पहला विश्वविद्यालय बन गया है।

देश में हिदी में एमफिल की डिग्री हासिल करने वाली पहली छात्रा होने का ख़िताब एनयूएमएल की छात्रा शाहीन जफर को मिला। डॉन न्यूज की खबर के अनुसार “स्वतंत्र्योत्तर हिंदी उपन्यासों में नारी चित्रण (1947-2000)” विषयक यह शोध उन्होंने प्रोफेसर इफ्तिखार हुसैन की देखरेख में किया है।

उच्च शिक्षा आयोग ने इसे अपनी मंजूरी दी थी। विश्वविद्यालय के प्रवक्ता ने बताया कि पाकिस्तान में हिदी विशेषज्ञों की कमी होने के कारण भारत के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के दो विशेषज्ञों ने जफर के शोध का मूल्यांकन किया।

शुक्रवार, 4 सितंबर 2015

युवा लेखिका आकांक्षा यादव को 'आगमन' साहित्य सम्मान

प्रसिद्ध साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था ’आगमन’ ने युवा लेखिका, ब्लॉगर व साहित्यकार  आकांक्षा यादव को इस वर्ष के 'आगमन साहित्य सम्मान -2015'  के लिए चयनित किया है। उक्त सम्मान सुश्री यादव को दिल्ली में आयोजित आगमन वार्षिक सम्मान समारोह में प्रदान किया जायेगा। आकांक्षा यादव राजस्थान पश्चिमी क्षेत्र, जोधपुर के  निदेशक डाक सेवाएं  श्री कृष्ण कुमार यादव की पत्नी हैं, जो की स्वयं चर्चित ब्लॉगर और साहित्यकार हैं। उक्त जानकारी संस्था के संस्थापक श्री पवन जैन ने दी।

देश-विदेश की तमाम पत्र-पत्रिकाओं और इंटरनेट पर वेब पत्रिकाओं और ब्लॉग पर निरंतर प्रकाशित होने वाली आकांक्षा यादव की दो पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  नारी विमर्श, बाल विमर्श एवं सामाजिक सरोकारों सम्बन्धी विमर्श में विशेष रुचि रखने वाली आकांक्षा यादव की रचनाओं में नारी-सशक्तीकरण बखूबी झलकता है। एक रचनाधर्मी के रूप में रचनाओं को जीवंतता के साथ सामाजिक संस्कार देने का प्रयास करने वाली आकांक्षा यादव अपनी रचनाओं में बिना लाग-लपेट के सुलभ भाव-भंगिमा सहित जीवन के कठोर सत्य उकेरने के लिए जानी जाती हैं।  

गौरतलब है कि आकांक्षा यादव को राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इससे पूर्व भी  तमाम प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। इनमें साहित्य मंडल, श्रीनाथद्वारा, राजस्थान द्वारा ”हिंदी भाषा भूषण”,  विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर, बिहार द्वारा डाॅक्टरेट (विद्यावाचस्पति) की मानद उपाधि, भारतीय दलित साहित्य अकादमी, नई दिल्ली  द्वारा ‘डाॅ. अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान‘ व ‘‘वीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान‘,  “दशक के श्रेष्ठ ब्लॉगर दम्पति“ का सम्मान, “परिकल्पना  ब्लॉग विभूषण सम्मान“, परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ’भारती ज्योति’, निराला स्मृति संस्थान, रायबरेली द्वारा मनोहरादेवी स्मृति सम्मान सहित विभिन्न प्रतिष्ठित सामाजिक-साहित्यिक संस्थाओं द्वारा विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु दर्जनाधिक सम्मान और मानद उपाधियाँ प्राप्त हैं।

  साभार : दैनिक नव ज्योति, जोधपुर, राजस्थान, 4 सितम्बर, 2015 
साभार : दैनिक राज पथ, रेवाड़ी, हरियाणा , 4 सितम्बर, 2015 

बुधवार, 2 सितंबर 2015

विश्व हिंदी सम्मेलन के बहाने हिन्दी की विकास यात्रा का मूल्यांकन

विश्व हिंदी सम्मेलन की चर्चा जोरों पर है। मध्य प्रदेश की राजधानी  भोपाल में 10 से 12 सितंबर तक आयोजित होने जा रहे 10वें विश्व हिंदी सम्मेलन में भारत और 27 अन्य देशों से लगभग 2,000 प्रतिनिधियों के हिस्सा लेने की संभावना है। सम्मेलन का उद्घाटन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे, जिसका विषय ‘हिंदी जगत : विस्तार एवं संभावनाएं’ होगा। हिंदी फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन भी 12 सितंबर को सम्मेलन के समापन समारोह में हिस्सा लेंगे। समापन समारोह की अध्यक्षता केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह करेंगे। पूर्व में इस तरह के आयोजन साहित्य या हिंदी साहित्य पर केंद्रित रहे हैं, जबकि इस बार  यह हिंदी भाषा पर केंद्रित होगा।


विश्व हिन्दी सम्मेलन, हिन्दी का सबसे भव्य अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन है, जिसमें विश्व भर से हिन्दी भाषा के विद्वान, साहित्यविद्, प्रखर पत्रकार, भाषा शास्त्री, विषय विशेषज्ञ तथा हिन्दी को चाहने वाले जुटते हैं। यह सम्मेलन अब प्रत्येक चौथे वर्ष आयोजित किया जाता है। वैश्विक स्तर पर भारत की इस प्रमुख भाषा के प्रति जागरुकता पैदा करने, समय-समय पर हिन्दी की विकास यात्रा का मूल्यांकन करने, हिन्दी साहित्य के प्रति सरोकारों को मजबूत करने, लेखक-पाठक का रिश्ता प्रगाढ़ करने व जीवन के विवि‍ध क्षेत्रों में हिन्दी के प्रयोग को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से 1975 से विश्व हिन्दी सम्मेलनों की श्रृंखला आरंभ हुई।

इस सम्मेलन में  1,270 प्रतिनिधियों ने भागीदारी के लिए पंजीकरण करा लिया है। सम्मेलन भोपाल के लाल परेड मैदान में आयोजित होगा। सम्मेलन में 464 विद्यार्थी, 450 आमंत्रित अतिथि, और 250 विशेष आमंत्रित अतिथि होंगे, जिनमें सरकारी प्रतिनिधि भी शामिल होंगे।

विश्व हिंदी सम्मेलन के दौरान  भारत के 20 हिंदी विद्वानों, और दूसरे देशों के कई हिंदी विद्वानों को सम्मानित किया जाएगा। इनमें भारतीय मूल के हिंदी विद्वान भी शामिल होंगे। एक विशेष समिति ने नामों को मंजूरी दी है। गौरतलब है कि जोहांसबर्ग में हुए पिछले सम्मेलन में लगभग 500-600 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था, लेकिन इस बार 2,000 से अधिक प्रतिनिधि भाग लेंगे।


सम्मेलन के आयोजकों की मानें तो उद्घाटन और समापन समारोह में 5,000 लोगों की उपस्थिति का अनुमान है। सम्मेलन में 12 विषय, 28 सत्र होंगे। चार प्रमुख विषयों में शामिल होंगे -‘विदेश नीति में हिंदी’, जिसकी अध्यक्षता विदेश मंत्री सुषमा स्वराज करेंगी, ‘प्रशासन में हिंदी का उपयोग’ विषय की अध्यक्षता मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान करेंगे, ‘विज्ञान में हिंदी का उपयोग’ विषय की अध्यक्षता केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री हर्षवर्धन करेंगे और ‘सूचना एवं प्रौद्योगिकी में हिंदी का उपयोग’ विषय की अध्यक्षता केंद्रीय संचार व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद करेंगे। अन्य विषयों में एक गिरमिटिया पर, और दूसरा बाल साहित्य पर होगा। तीन दिवसीय इस आयोजन में मध्य प्रदेश सरकार भी भागीदार है और इस दौरान साहित्य चर्चा के अलावा सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होंगे।

ज्ञातव्य है कि पिछला विश्व हिंदी सम्मेलन सितंबर 22 से 24 सितंबर 2012 तक दक्षिण अफ्रीका के जोहांसबर्ग में हुआ था। पहला विश्व हिंदी सम्मेलन राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के सहयोग से 1975 में नागपुर में हुआ था। तब से लेकर अब तक आठ विश्व हिन्दी सम्मेलन आयोजित हो चुके हैं- मॉरीशस, नई दिल्ली, मॉरीशस, त्रिनिडाड व टोबेगो, लंदन, सूरीनाम और न्यूयार्क में। यह आयोजन दो बार पोर्ट लुईस (मॉरीशस) में, दो बार भारत में हो चुका है, जिसमें से तीसरा सम्मेलन अक्टूबर 1983 में नई दिल्ली में हुआ था। इसके अलावा पोर्ट ऑफ स्पेन (त्रिनिदाद एवं टोबैगो), लंदन (ब्रिटेन), पारामारिबो (सूरीनाम) और न्यूयार्क (अमेरिका) में विश्व हिंदी सम्मेलन आयोजित हो चुका है।



10वें विश्व हिंदी सम्मेलन में भाग लेने हेतु सभी प्रतिभागियों के लिए पंजीकरण अनिवार्य है और यह केवल ऑनलाइन प्रक्रिया के माध्यम से ही है। ऑनलाइन पंजीकरण की अंतिम तिथि शुक्रवार, 21 अगस्त, 2015 है (सामान्य प्रतिभागियों के लिए)। प्रतिभागियों को अपना ब्यौरा ऑनलाइन भरना है और www.vishwahindisammelan.gov.in पर लॉग इन करके अपने फोटोग्राफ तथा हस्ताक्षर भी अपलोड करने हैं। पंजीकरण शुल्क का भुगतान या तो ऑनलाइन एस बी आई गेटवे भुगतान सुविधा के माध्यम से क्रेडिट/डेबिट कार्ड द्वारा अथवा इंटरनेट बैंकिंग के माध्यम से किया जा सकता है। विभिन्न श्रेणियों के प्रतिभागियों के लिए पंजीकरण शुल्क निम्नानुसार है जो वापस नहीं किया जायेगा। 

क. सामान्य प्रतिभागी 

i. भारतीयों के लिए 5,000 रुपये
ii. विदेशियों के लिए 100 अमरीकी डॉलर

ख. विश्वविद्यालय के छात्र 
i. भारतीयों के लिए 1,000 रुपये
ii. विदेशियों के लिए 25 अमरीकी डॉलर

ग. आमंत्रित अतिथि/वक्ता/सरकारी प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों के लिए पंजीकरण निःशुल्क है; हालांकि आमंत्रित अतिथि/वक्ता/सरकारी प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों के लिए भी ऑनलाइन पंजीकरण कराना अनिवार्य है।


मंगलवार, 1 सितंबर 2015

ट्विटर में बढ़ेगी महिलाओं की भागीदारी


सोशल मीडिया पर महिलाओं की सक्रियता और भागीदारी किसी से छुपी नहीं है। पर अब यह भागीदारी नौकरी के स्तर पर भी दिखेगी।  माइक्रो ब्लागिंग साइट ट्विटर ने घोषणा की है कि वह लैंगिक अंतर को कम करने के लिए विभिन्न स्तरों पर अधिक महिलाओं को नौकरी देगा। एक ट्विटर ब्लॉग पर विविधता लक्ष्यों की सूची को साझा करते हुए ट्विटर नें साल 2016 में जनता के लिए अपने विविधता लक्ष्यों को तय करने के बाद यह ऐलान किया।

इस सूची के अनुसार पूरी विस्तृत श्रेणी में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को 35 प्रतिशत तक बढ़ाया जाएगा। ट्विटर के वर्तमान में विश्व स्तर पर 4,100 कर्मचारी हैं और उसकी तकनीकी नौकरियों में महिलाओं को रख कर इसे 16 प्रतिशत बढ़ाने की योजना है।

ट्विटर की विविधता और समावेश की उपाध्यक्ष जेनेट वॉन ह्युसे ने लिखा कि इस बात को परिभाषित करना जरूरी है कि इन बदलावों से अगले एक साल में क्या परिणाम आएगा। हम कंपनी के विभिन्न स्तरों पर आंतरिक विविधता लक्ष्यों की दिशा में काम कर रहे हैं और इस बात को बताते हुए मुझे खुशी हो रही है कि हम कंपनी के व्यापक विविधता लक्ष्यों को स्थापित कर रहे हैं और हम उन्हें सार्वजनिक रूप से साझा कर रहे हैं। जेनेट ने कहा कि इसीलिए यह नए लक्ष्य पूरी कंपनी में महिलाओं तथा अल्पसंख्यकों के समग्र प्रतिनिधित्व को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। 

शनिवार, 29 अगस्त 2015

रक्षाबंधन पर्व को नए परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत

रक्षाबंधन त्यौहार की परम्परा बहुत पुरानी है। भारतीय परम्परा में विश्वास का बन्धन ही मूल है और रक्षाबन्धन इसी विश्वास का बन्धन है। यह पर्व मात्र रक्षा-सूत्र के रूप में राखी बाँधकर रक्षा का वचन ही नहीं देता वरन् प्रेम, समर्पण, निष्ठा व संकल्प के जरिए हृदयों को बाँधने का भी वचन देता है। इसका आरम्भ पत्नी इन्द्राणी द्वारा पति इंद्र को रक्षा सूत्र बाँधने से हुआ। इस त्यौहार का दायरा काफी विस्तृत रहा है। आपत्ति आने पर अपनी रक्षा के लिए अथवा किसी की आयु और आरोग्य की वृद्धि के लिये किसी को भी रक्षा-सूत्र (राखी) बांधा या भेजा जाता था। कृष्ण-द्रौपदी, हुमांयू-कर्मवती या सिकंदर-पोरस की कहानी तो सभी ने सुनी होगी, पर आजादी के आन्दोलन में भी कुछ ऐसे उद्धरण आए हैं, जहाँ राखी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में जन जागरण के लिए भी इस पर्व का सहारा लिया गया। रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने बंग-भंग का विरोध करते समय रक्षाबंधन त्यौहार को बंगाल निवासियों के पारस्परिक भाईचारे तथा एकता का प्रतीक बनाकर इस त्यौहार का राजनीतिक उपयोग आरंभ किया।

राखी का सर्वप्रथम उल्लेख पुराणों में प्राप्त होता है जिसके अनुसार असुरों के हाथ देवताओं की पराजय पश्चात अपनी रक्षा के निमित्त सभी देवता इंद्र के नेतृत्व में गुरू वृहस्पति के पास पहुँचे तो इन्द्र ने दुखी होकर कहा- ‘‘अच्छा होगा कि अब मैं अपना जीवन समाप्त कर दूँ।’’ इन्द्र के इस नैराश्य भाव को सुनकर गुरू वृहस्पति के दिशा-निर्देश पर रक्षा-विधान हेतु इंद्राणी ने श्रावण पूर्णिमा के दिन इन्द्र सहित समस्त देवताओं की कलाई पर रक्षा-सूत्र बाँधा और अंतत: इंद्र ने युद्ध में विजय पाई। इस प्रकार कहा जा सकता है कि रक्षाबंधन की शुरुआत पत्नी द्वारा पति को राखी बाँधने से हुई। 

एक अन्य कथानुसार राजा बलि को दिये गये वचनानुसार भगवान विष्णु बैकुण्ठ छोड़कर बलि के राज्य की रक्षा के लिये चले गय। तब देवी लक्ष्मी ने ब्राह्मणी का रूप धर श्रावण पूर्णिमा के दिन राजा बलि की कलाई पर पवित्र धागा बाँधा और उसके लिए मंगलकामना की। इससे प्रभावित हो बलि ने देवी को अपनी बहन मानते हुए उसकी रक्षा की कसम खायी। तत्पश्चात देवी लक्ष्मी अपने असली रूप में प्रकट हो गयीं और उनके कहने से बलि ने भगवान विष्णु से बैकुण्ठ वापस लौटने की विनती की। 

त्रेता युग में रावण की बहन शूर्पणखा लक्ष्मण द्वारा नाक कटने के पश्चात रावण के पास पहुँची और रक्त से सनी साड़ी का एक छोर फाड़कर रावण की कलाई में बाँध दिया और कहा कि- ‘‘भैया! जब-जब तुम अपनी कलाई को देखोगे, तुम्हें अपनी बहन का अपमान याद आएगा और मेरी नाक काटनेवालों से तुम बदला ले सकोगे।’’ 

इसी प्रकार महाभारत काल में भगवान कृष्ण के हाथ में एक बार चोट लगने व फिर खून की धारा फूट पड़ने पर द्रौपदी ने तत्काल अपनी कंचुकी का किनारा फाड़कर भगवान कृष्ण के घाव पर बाँध दिया। कालांतर में दु:शासन द्वारा द्रौपदी-चीर-हरण के प्रयास को विफल कर उन्होंने इस रक्षा-सूत्र की लाज बचायी। द्वापर युग में ही एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा कि वह महाभारत के युद्ध में कैसे बचेंगे तो उन्होंने तपाक से जवाब दिया- ‘‘राखी का धागा ही तुम्हारी रक्षा करेगा।’’

ऐतिहासिक युग में भी सिंकदर व पोरस ने युद्ध से पूर्व रक्षा-सूत्र की अदला-बदली की थी। युद्ध के दौरान पोरस ने जब सिकंदर पर घातक प्रहार हेतु अपना हाथ उठाया तो रक्षा-सूत्र को देखकर उसके हाथ रूक गए और वह बंदी बना लिया गया। सिकंदर ने भी पोरस के रक्षा-सूत्र की लाज रखते हुए और एक योद्धा की तरह व्यवहार करते हुए उसका राज्य वापस लौटा दिया।

 मुगल काल के दौर में जब मुगल सम्राट हुमायूँ चितौड़ पर आक्रमण करने बढ़ा तो राणा सांगा की विधवा कर्मवती ने हुमायूँ को राखी भेजकर अपनी रक्षा का वचन लिया। हुमायूँ ने इसे स्वीकार करके चितौड़ पर आक्रमण का ख्याल दिल से निकाल दिया और कालांतर में राखी की लाज निभाने के लिए चितौड़ की रक्षा हेतु गुजरात के बादशाह से भी युद्ध किया। इसी प्रकार न जाने कितनी मान्यतायें रक्षा बन्धन से जुड़ी हुयी हैं।

लोक परम्परा में रक्षाबन्धन के दिन परिवार के पुरोहित द्वारा राजाओं और अपने यजमानों के घर जाकर सभी सदस्यों की कलाई पर मौली बाँधकर तिलक लगाने की परम्परा रही है। पुरोहित द्वारा दरवाजों, खिड़कियों, तथा नये बर्तनों पर भी पवित्र धागा बाँधा जाता है और तिलक लगाया जाता है। यही नहीं बहन-भानजों द्वारा एवं गुरूओं द्वारा स्त्रियों को रक्षा सूत्र बाँधने की भी परम्परा रही है। 

राखी ने स्वतंत्रता-आन्दोलन में भी प्रमुख भूमिका निभाई। कई बहनों ने अपने भाइयों की कलाई पर राखी बाँधकर देश की लाज रखने का वचन लिया। 1905 में बंग-भंग आंदोलन की शुरूआत लोगों द्वारा एक-दूसरे को रक्षा-सूत्र बाँधकर हुयी। 









आज रक्षाबंधन पर्व को नए परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है। इसे भाई-बहन के संबंधों तक सीमित करके देखना और बहन को अशक्त मानते हुए भाई द्वारा रक्षा जैसी दकियानूसी बातों से जोड़ने का कोई औचित्य नहीं रहा। जो समाज बेटियों-बहनों को माँ की कोख में ही खत्म कर देता है, क्या वाकई वहाँ बहनों की रक्षा  का कोई अर्थ है ? आज जिस तरह से समाज में छेड़खानी और महिलाओं के साथ अत्याचार की घटनाएँ बढ़ रही हैं, वह यह सोचने पर विवश करती हैं कि क्या ऐसा करने वालों की अपनी बहनें नहीं हैं। रक्षाबंधन के दिन बहन की रक्षा का संकल्प उठाना और घर से बाहर निकलते ही बेटियों-बहनों को छेड़ना और उनके साथ बद्तमीजी करना .... यह दोहरापन रुकना चाहिए। अन्यथा हर बहन अपने भाई से यही कहेगी कि- "मुझ जैसा कोई रो रहा है।  क्योंकि, तुम जैसा कोई उसको छेड़ रहा है।  भैया ! क्या तुम ऐसा कर सकते हो कि हर नारी सुरक्षित रहे।  क्या हर नारी को सम्मान दे सकते हो ताकि वो बिना भय के खुली हवा में साँस ले सके।  तभी सही अर्थों में राखी की शान बढ़ेगी।"  

(चित्र में :  बदलते दौर में राखी का त्यौहार- प्यारी बेटियाँ अक्षिता और अपूर्वा एक दूसरे को राखी बाँधकर रक्षाबंधन पर्व सेलिब्रेट करती हुई। बहनों अक्षिता (पाखी) और अपूर्वा की शानदार राखी)






शनिवार, 22 अगस्त 2015

#100महिलाएं पहल : अब सोशल मीडिया पर बताएं भारत की सबसे प्रभावशाली महिलाओं के बारे में

हमारे जीवन में ऐसी महिलाएं आती रही हैं, जिन्‍होंने कुछ अलग हटकर किया है, जिन्‍होंने हमारा जीवन बदला है, जिन्‍होंने पूरे समाज में अपनी छाप छोड़ी है और बेहतरी के लिए इसमें बदलाव किया है, उनके लिए सिर्फ धन्‍यवाद शब्‍द ही काफी नहीं हैं, अब ऐसी महिलाओं को सम्‍मानित करने की आपकी बारी है, जिन्‍होंने समाज में कुछ अलग किया है। इसी सोच को लेकर केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय ने फेसबुक के साथ '#100महिलाएं पहल' शुरू की है, जिसका उद्देश्‍य देश की उन महिलाओं को पहचान और स्‍वीकृति देना है, जिन्‍होंने समाज में अपनी अलग पहचान बनाई है। इसके लिए लोग 15 जुलाई से 30 सितंबर 2015 के बीच महिला और बाल विकास मंत्रालय के फेसबुक पन्‍ने पर जाकर अपने नामांकन दे सकते हैं और नामांकन फार्म पूरा कर सकते हैं, उन्‍हें अपनी नामित महिला की एक फोटो या वीडियो जमा कराना होगा, जिसमें वह समुदाय के लिए कार्य करती हुई दिखाई देती हो। विजेताओं की घोषणा दिसंबर 2015 में की जाएगी।

 '#100महिलाएं पहल' के अंतर्गत सोशल मीडिया के माध्‍यम से सार्वजनिक मनोनयन के जरिए 100 सफल महिलाओं का चयन करने के लिए एक प्रतियोगिता होगी। इसके लिए  महिला और बाल विकास मंत्रालय के फेसबुक पेज पर लॉग ऑन करना होगा और वीडियो शेयर करके बताना होगा कि जिस महिला को आपने चुना है, उसे भारत की 100 सबसे प्रभावशाली महिलाओं के रूप में क्‍यों सम्‍मानित किया जाना चाहिए। 15 जुलाई 2015 से 30 सितंबर 2015 तक लोग मंत्रालय के फेसबुक पृष्‍ठ http://www.facebook.com/ministryWCD पर जाकर  किसी ऐसी महिला को मनोनीत कर सकते हैं, जिसने समाज पर गहरा असर डाला हो और समाज को बेहतर बनाया हो। शीर्ष 200 प्रविष्टियों पर 7 नवंबर 2015 से वोटिंग शुरू होगी, जिस पर एक प्रतिष्ठित ज्‍यूरी निर्णय लेगी, विजेताओं को गणतंत्र दिवस के आस-पास मंत्रालय के स्‍वागत समारोह में आमंत्रित किया जाएगा।

 वाकई लोग रोजाना फेसबुक पर उन मुद्दों की चर्चा करते हैं, जो उनके लिए बेहद महत्‍व रखते हैं, ऐसे में यह एक अवसर है कि समाज में कुछ अलग करने वाली महिलाओं की प्रशंसा की जाए। इस पहल को  भारत में महिलाओं को पहचान दिलाने के अवसर रूप में भी देखा जाना चाहिए !!

शनिवार, 15 अगस्त 2015

हिंद देश का प्यारा झंडा, ऊँचा सदा रहेगा


आजादी के पर्व का जश्न आते ही यह गीत अनायास ही होठों पर आ जाता है।  स्कूली दिनों से ही यह राष्ट्र भक्ति गीत सुनते, सुनाते और गुनगुनाते आ रहे हैं। यह तो नहीं पता कि यह खूबसूरत गीत किसने लिखा, पर जिन्होंने भी लिखा लाजवाब।  आज एक बार फिर से इस गीत को आप सभी के साथ शेयर करते हुए प्रसन्नता हो रही है। इसके रचयिता का नाम पता हो तो जरूर लिखियेगा !!

हिन्द देश का प्यारा झंडा ऊँचा सदा रहेगा
तूफान और बादलों से भी नहीं झुकेगा
नहीं झुकेगा, नहीं झुकेगा, झंडा नहीं झुकेगा
हिंद देश का प्यारा झंडा, ऊँचा सदा रहेगा !!

केसरिया बल भरने वाला सदा है सच्चाई
हरा रंग है हरी हमारी धरती है अँगड़ाई
कहता है यह चक्र हमारा कदम कभी नहीं रुकेगा
हिंद देश का प्यारा झंडा, ऊँचा सदा रहेगा !!

शान नहीं ये झंडा है ये अरमान हमारा
ये बल पौरुष है सदियों का ये बलिदान हमारा
आसमान में फहराए या सागर में लहराए
जहाँ-जहाँ ये झंडा जाए यह सन्देश सुनाए
है आज़ाद हिन्द ये दुनिया को आज़ाद करेगा
हिंद देश का प्यारा झंडा, ऊँचा सदा रहेगा !!

नहीं चाहते हम दुनिया को अपना दास बनाना
नहीं चाहते हम औरों के मुँह की रोटी खा जाना
सत्य न्याय के लिए हमारा लहू सदा बहेगा
हिंद देश का प्यारा झंडा, ऊँचा सदा रहेगा !!

हम कितने सुख सपने लेकर इसको फहराते हैं
इस झंडे पर मर मिटने की कसम सभी खाते हैं
हिन्द देश का यह झंडा घर-घर में लहराएगा
हिंद देश का प्यारा झंडा, ऊँचा सदा रहेगा !!

- आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 






Sand artist Sudarsan Pattnaik creates a sand sculpture on Independence Day at Puri beach of Odisha on Thursday. (PTI Photo)

गुरुवार, 13 अगस्त 2015

नारी शक्ति ने पहुँचाया नासा के 'न्यू हॉरिजन' को प्लूटो के पास

महिलाएं समुद्र से लेकर अंतरिक्ष तक सफलता की नई इबारतें लिख रही हैं।  यह सिर्फ जुमला भर नहीं है बल्कि ठोस हकीकत है। पिछले जुलाई माह में अमेरिकी एजेंसी नासा के  न्यू हॉरिजन ने सौर मंडल के आखिरी ज्ञात बौने ग्रह के नजदीक से गुजर कर इतिहास रच दिया। यह घटना जुलाई माह में हुई लेकिन एक इतिहास जमीं पर भी रचा गया। यह पहला अंतरिक्ष मिशन था जिसमें सबसे अधिक महिलाओं की भागीदारी थी और उनकी वैज्ञानिक क्षमता से यह सफलता हाथ लगी। 

इस समय न्यू हॉरिजन की टीम में करीब 200 वैज्ञानिक काम कर रहे हैं। लेकिन विगत एक दशक में हजारों की संख्या में इंजीनियर, अंतिरिक्ष वैज्ञानिकों ने काम किया। लेकिन यान को प्लूटो के नजदीक ले जाने और ग्रह के साथ उसके पांच चंद्रमाओं को खंगालने का काम जो फ्लाईबाई टीम देख रही थी, उसकी एक चौथाई सदस्य महिलाएं थीं। एस्ट्रोफिजिस्ट किबर्ले इनिको जिन्होंने न्यू हॉरिजन मिशन के लिए कई उपकरणों को बनाया व संचालित किया कहती हैं कि लोग मानते हैं कि महिलाएं केवल सहयोगी की भूमिका में होंगी। लेकिन सच्चाई है कि कई बार नियंत्रण कक्ष में वह अकेली होती थी और मिशन से जुड़ी जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वाह करती थी।

मिशन से जुड़ी महिला वैज्ञानिकों को भरोसा है कि एक दिन वह इस तरह के मिशनों को अंजाम देने के मामले में बहुमत में होंगी। इनिको कहती है कि वह अब तक चार मिशनों का हिस्सा बन चुकी हैं। अपने अनुभव से कह सकती हैं कि महिलाओं की संख्या बढ़ रही है और इससे उनमें और आत्मविश्वास आएगा। उन्होंने कहा वह बेहतर स्थिति होगी जब पुरुषों से अधिक नहीं तो कम से कम बराबर महिलाएं नियंत्रण कक्ष में हो, क्योंकि एक या दो की संख्या में होने से वे खुद को सहज महसूस नहीं करती हैं। 

भेदभाव हकीकत 
इनिको ने स्वीकार किया है कि महिला वैज्ञानिकों को लेकर पूर्वाग्रह है। उन्होंने बताया कई बार उनसे सचिव जैसा व्यवहार करते हुए नोट तैयार करने को कहा गया। लेकिन इनिको ने पूरे आत्मविश्वास से इसका प्रतिकार करते हुए कहा कि वह अपने लिए नोट बना रही हैं ना कि उनके लिए। गौरतलब है कि वर्ष 2012 में प्रतिष्ठित येल यूनिवर्सिटी ने भी अपने शोध में पाया था कि महिला वैज्ञानिकों के साथ भेदभाव होता है और उन्हें पुरुषों के मुकाबले कम तनख्वाह दी जाती है। 

इनके हाथों में नेतृत्व 
- फ्रान बेगनल: पार्टिकल एवं प्लाजमा विज्ञान टीम की प्रमुख, वरिष्ठ अंतरिक्ष वैज्ञानिक होने के साथ यूनिवर्सिटी ऑफ कोलरेडो की सेवानिवृत्त प्रोफेसर 
- एलिस बाउमैन: मिशन संचालन प्रबंधन, न्यू हॉरिजन के सबसे जटिल समय में मिशन संचालन केंद्र की संभाली, पल-पल के आंकड़ों पर रखी नजर 
- टिफने फिनले: विज्ञान संचालन टीम की प्रबंधन, इस टीम की जिम्मेदारी यान द्वारा किए जाने वाले वैज्ञानिक शोधों की प्राथमिकता तैय करनी थी 
- यानपिंग ग्यू: मिशन डिजाइन की नेता, यान के रास्ते को तैय करना खासतौर पर बृहस्पति ग्रह के गुरुत्वाकर्षण से बचाकर यान को आगे भेजना बड़ी चुनौती 

बुधवार, 29 जुलाई 2015

जन्मदिन की ख़ुशी

 आखिर फिर से हमारा जन्मदिन आ गया.… 30 जुलाई।  साल में एक ही बार तो आता है, पर मजबूर कर जाता है एक गहन विश्लेषण के लिए कि क्या खोया-क्या पाया इस एक साल में...और फिर दुगुने उत्साह के साथ लग जाती हूँ आने वाले दिनों के लिए. न जाने कितनी जगहों पर अपना जन्मदिन सेलिब्रेट करने का सौभाग्य मिलेगा। जीवन साथी कृष्ण कुमार यादव जी, बेटियाँ अक्षिता (पाखी) और अपूर्वा मेरे हर जन्मदिन को यादगार बनाते हैं।  इनके बिना तो सब कुछ सूना है। 

गाजीपुर (उप्र) से आरम्भ हुआ यह सफर विवाह पश्चात लखनऊ, कानपुर, पोर्टब्लेयर, इलाहाबाद के बाद अब सपरिवार जोधपुर में। कभी समुद्र का किनारा, तो कभी गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती का अद्भुत संगम और अब मरू स्थली कहे जाने वाले जोधपुर में। अब लगता है कि पहाड़ों पर भी जन्मदिन मना लेना चाहिए। ख़ैर, इसी बहाने पर्यटन के साथ-साथ विभिन्न जगहों की संस्कृति, लोकाचार और वहां के लोगों से भी रूबरू होने का मौका मिलता है।  हर पल हम कुछ सीखते हैं और कहीं-न-कहीं लोगों को सीखते भी हैं। 



ब्लागिंग जगत में आप सभी के स्नेह से सदैव अभिभूत रही हूँ. जीवन के हर पड़ाव पर आप सभी की शुभकामनाओं और स्नेह की धार बनी रहेगी, इसी विश्वास के साथ.... !!

प्रेरणा पुंज बने रहेंगे डॉ. कलाम

देश के महान वैज्ञानिक एवं वास्तविक अर्थों में एक महान पुरुष व जनता के राष्ट्रपति कहे जाने वाले डॉ. कलाम के निधन से पूरा देश स्तब्ध है| डॉ. कलाम भले ही दूसरे लोक में चले गए पर उनके दिखाए रास्ते सदियों तक लोगों के लिए प्रेरणा पुंज बने रहेंगे। उनके कुछ प्रसिद्ध कथन सदैव प्रासंगिक और जीवन्त रहेंगे-

1. सपने सच हों इसके लिए सपने देखना जरूरी है.

2. छात्रों को प्रश्न जरूर पूछना चाहिए. यह छात्र का सर्वोत्तम गुण है.

3. युवाओं के लिए कलाम का विशेष संदेशः अलग ढंग से सोचने का साहस करो, आविष्कार का साहस करो, अज्ञात पथ पर चलने का साहस करो, असंभव को खोजने का साहस करो और समस्याओं को जीतो और सफल बनो. ये वो महान गुण हैं जिनकी दिशा में तुम अवश्य काम करो.

4. अगर एक देश को भ्रष्टाचार मुक्त होना है तो मैं यह महसूस करता हूं कि हमारे समाज में तीन ऐसे लोग हैं जो ऐसा कर सकते हैं. ये हैं पिता, माता और शिक्षक.

5. मनुष्य को मुश्किलों का सामना करना जरूरी है क्योंकि सफलता के लिए यह जरूरी है.

6. महान सपने देखने वालों के सपने हमेशा श्रेष्ठ होते हैं.

7. जब हम बाधाओं का सामना करते हैं तो हम पाते हैं कि हमारे भीतर साहस और लचीलापन मौजूद है जिसकी हमें स्वयं जानकारी नहीं थी. और यह तभी सामने आता है जब हम असफल होते हैं. जरूरत हैं कि हम इन्हें तलाशें और जीवन में सफल बनें.

8. भगवान उसी की मदद करता है जो कड़ी मेहनत करते हैं. यह सिद्धान्त स्पष्ट होना चाहिए.

9. हमें हार नहीं माननी चाहिए और समस्याओं को हम पर हावी नहीं होने देना चाहिए.

10. चलो हम अपना आज कुर्बान करते हैं जिससे हमारे बच्चों को बेहतर कल मिले.

शुक्रवार, 24 जुलाई 2015

ऐसे बनीं आज़मगढ़ की अंजुम आरा, देश की दूसरी मुस्लिम महिला आईपीएस

सिविल सेवाओं में महिलाएं नित्य नए मुकाम गढ़ रही हैं।  समाज के हर वर्ग की महिलाओं का प्रतिनिधित्व आईएएस, आईपीएस और अलाइड सेवाओं में बढ़ रहा है। निश्चितत: इंसान मन में कुछ करने की ठान ले तो दूसरों के लिए मिसाल कायम कर सकता है। ऐसी ही एक मिसाल हैं देश की दूसरी मुस्लिम आईपीएस महिला अंजुम आरा, जिन्होनें तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए ये मुकाम हासिल किया। इससे पहले मुंबई की गुजरात कैडर की सारा रिकावी ने पहली मुस्लिम महिला आईपीएस बनने का गौरव हासिल किया था। मुस्लिम समाज में जहां लड़कियों को बुर्के में रहने के लिए बाध्य किया जाता रहा है, वहीं पुराने रीति रिवाजों से उठकर देश की दूसरी मुस्लिम आईपीएस बनकर अंजुम आरा ने देश में एक नया मुकाम हासिल किया है। 

 उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के छोटे से गांव कम्हरिया में जन्मी अंजुम हालांकि शहर में पढ़ी नहीं लेकिन उनके पिता अयूब शेख की शिक्षा-दीक्षा इसी गांव में हुई।  पिता अयूब शेख अभियंत्रण सेवा में हैं, मां गृहिणी है। 
वर्ष 1985 में पिता अयूब को ग्रामीण अभियंत्रण सेवा में अवर अभियंता की नौकरी मिली। पहली तैनाती सहारनपुर हुई तो वह वहीं बस गए। अंजुम अपने भाइयों-बहनों में दूसरे नम्बर की है। अंजुम की प्राथमिक शिक्षा गंगोह, सहारनपुर  स्थित सरस्वती शिशु मंदिर में हुई। सहारनपुर से हाईस्कूल एचआर इंटर कॉलेज से इंटर की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इसके बाद लखनऊ के एक इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक की प्रथम श्रेणी में डिग्री हासिल करने के बाद  वह प्रशासनिक सेवा की तैयारियों में जुट गयी। कड़ी मेहनत के बाद उन्होंने आइपीएस-2011 बैच की परीक्षा उत्तीर्ण कर अपना मुकाम हासिल किया। 

यह सफर इतना आसान भी नहीं था।  अंजुम ने जब नौकरी की इच्छा अपने परिवार वालों के सामने रखी तो संगे संबंधियों रिश्तेदारों ने इस पर आपत्तियां जतानी शुरू कर दी। संबंधियों को उसका घर से निकलना तक गंवारा नहीं था। परिवार में भी बुर्का प्रथा को महत्व दिया जाता था। लहरों से डर के नौका पार नहीं होती और कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती को आत्मसात करते हुए अंजुम अपनी राह पर चलती रहीं और रिश्तेदारों के तमाम विरोधों के बीच उनके पिता ने उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। अंतत: कड़ी मेहनत और लगन से 2011 में उनका चयन आईपीएस में हुआ।  ट्रेनिंग पूरी होने के बाद उन्हें मणिपुर कैडर मिला। कुछ समय वहां नौकरी करने के बाद उनकी तैनाती हिमाचल की राजधानी शिमला में बतौर एएसपी हुई। अंजुम के पति युनूस भी आईएएस अधिकारी हैं।  यह वही आईएएस हैं जिन पर सोलन के नालागढ़ में कुछ खनन माफिया ने ट्रैक्टर चलाने की कोशिश की थी। 

 अंजुम अपनी इस कामयाबी का श्रेय अपने पिताजी  को देती हैं। अंजुम का कहना है कि पेरेंट्स को पुरानी प्रथाओं को छोड़कर लड़कियों को आगे बढ़ने की प्रेरणा देनी चाहिए। वे तमाम रूढ़ियों को पीछे छोड़ते हुए नित नए मुकाम के लिए तत्पर हैं और अब कइयों के लिए प्रेरणास्रोत भी !!