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शनिवार, 8 फ़रवरी 2014

'वसंत' की रुमानियत के बीच 'वेलेण्टाइन'

वसंत का मौसम आ गया है। मौसम में रूमानियत छाने लगी है। हर कोई चाहता है कि अपने प्यार के इजहार के लिए उसे अगले वसंत का इंतजार न करना पड़े। सारी तैयारियां आरम्भ हो गई हैं। प्यार में खलल डालने वाले भी डंडा लेकर तैयार बैठे हैं। भारतीय संस्कृति में ऋतुराज वसंत की अपनी महिमा है। वेदों में भी प्रेम की महिमा गाई गई है। यह अलग बात है कि हम जब तक किसी चीज पर पश्चिमी सभ्यता का ओढ़ावा नहीं ओढ़ा लेते, उसे मानने को तैयार ही नहीं होते। ‘योग‘ की महिमा हमने तभी जानी जब वह ‘योगा‘ होकर आयातित हुआ। ऋतुराज वसंत और इनकी मादकता की महिमा हमने तभी जानी जब वह ‘वेलेण्टाइन‘ के पंखों पर सवार होकर अपनी खुमारी फैलाने लगे। 

प्रेम एक बेहद मासूम अभिव्यक्ति है। मशहूर दार्शनिक ख़लील जिब्रान एक जगह लिखते हैं-‘‘जब पहली बार प्रेम ने अपनी जादुई किरणों से मेरी आंखें खोली थीं और अपनी जोशीली अंगुलियों से मेरी रूह को छुआ था, तब दिन सपनों की तरह और रातें विवाह के उत्सव की तरह बीतीं।‘‘ अथर्ववेद में समाहित प्रेम गीत भला किसको न बांध पायेंगे। जो लोग प्रेम को पश्चिमी चश्मे से देखने का प्रयास करते हैं, वे इन प्रेम गीतों को महसूस करें और फिर सोचें कि भारतीय प्रेम और पाश्चात्य प्रेम का फर्क क्या है? 

फिलहाल वेलेण्टाइन-डे का खुमार युवाओं पर चढ़कर बोल रहा है। कोई इसी दिन पण्डित से कहकर अपना विवाह-मुहूर्त निकलवा रहा है तो कोई इसे अपने जीवन का यादगार लम्हा बनाने का दूसरा बहाना ढूंढ रहा है। एक तरफ नैतिकता की झंडाबरदार सेनायें वेलेण्टाइन-डे का विरोध करने और इसी बहाने चर्चा में आने का बेसब्री से इंतजार कर रही हैं-‘करोगे डेटिंग तो करायेंगे वेडिंग।‘ यही नहीं इस सेना के लोग अपने साथ पण्डितों को लेकर भी चलेंगे, जिनके पास ‘मंगलसूत्र‘ और ‘हल्दी‘ होगी। तो अब वेलेण्टाइन डे के बहाने पण्डित जी की भी बल्ले-बल्ले है। जब सबकी बल्ले-बल्ले हो तो भला बहुराष्ट्रीय कम्पनियां कैसे पीछे रह सकती हैं। आर्थिक मंदी के इस दौर में ‘प्रेम‘ रूपी बाजार को भुनाने के लिए उन्होंने ‘वेलेण्टाइन-उत्सव‘ को बकायदा हफ्ते भर  तक मनाने की घोषणा कर दी है। हर दिन को अलग-अलग नाम दिया है और उसी अनुरूप लोगों की जेब के अनुरूप गिफ्ट  भी तय कर लिये हैं। यह उत्सव 7  फरवरी को ‘रोज  डे‘ से आरम्भ होकर 14  फरवरी को ‘वैलेण्टाइन डे'  पर खत्म होगा। यह भी अजूबा ही लगता है कि शाश्वत प्रेम को हमने दिनों की चहरदीवारी में कैद कर दिया है। खैर इस वर्ष ज्वैलरी पसंद लड़कियों के लिये बुरी खबर है कि मंहगाई के इस दौर में पिछले वर्षों में शामिल रहे   ‘ज्वैलरी डे‘ और ‘लविंग हार्टस डे‘ को इस बार हटा दिया गया है। वेलेण्टाइन-डे के बहाने वसंत की मदमदाती फिजा में अभी से ‘फगुआ‘ खेलने की तैयारियां आरम्भ हो चुकी हैं।

7  फरवरी - रोज  डे
8  फरवरी - प्रपोज डे
9 फरवरी -  चॉकलेट डे
10  फरवरी - टेडी  डे
11 फरवरी - प्रामिस डे 
12 फरवरी - हग  डे
13 फरवरी - किस  डे
14 फरवरी - वैलेण्टाइन डे

प्रेम कभी दो दिलों की धड़कन सुनता था, पर बाज़ारवाद की अंधी दौड़ ने इन दिलों में अहसास की बजाय गिफ्ट, ग्रीटिंग कार्ड, चाकलेट, फूलों का गुलदस्ता भर दिया और प्यार मासूमियत की जगह हैसियत मापने वाली वस्तु हो गई। ‘प्रेम‘ रूपी बाज़ार को भुनाने के लिए वेलेण्टाइन-डे को बकायदा कई दिनों तक चलने वाले ‘वेलेण्टाइन-उत्सव’ में तब्दील कर दिया गया है और हर दिन को कार्पोरेट जगत से लेकर मॉल कल्चर और होटलों की रंगीनी से लेकर सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स और मीडिया की फ्लैश में चकाचौंध कर दिया जाता है और जब तक प्यार का ख़ुमार उतरता है, करोड़ों के वारे-न्यारे हो चुके होते हैं। टेक्नॉलाजी ने जहाँ प्यार की राहें आसान बनाई, वहीं इस प्रेम की आड़ में डेटिंग और लिव-इन-रिलेशनशिप इतने गड्डमगड्ड हो गए कि प्रेम का ’शरीर’ तो बचा पर उसका ’मन’ भटकने लगा। प्रेम के नाम पर बचा रह गया ‘देह विमर्श’ और फिर एक प्रकार का उबाउपन। काश वसंत के मौसम में प्रेम का वह अहसास लौट आता-



वसंत
वही आदर्श मौसम
और मन में कुछ टूटता सा
अनुभव से जानता हूँ
कि यह वसंत है (रघुवीर सहाय)


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