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सोमवार, 26 जनवरी 2009

लोक चेतना में स्वाधीनता की लय

स्वतंत्रता व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है। आजादी का अर्थ सिर्फ राजनैतिक आजादी नहीं अपितु यह एक विस्तृत अवधारणा है, जिसमें व्यक्ति से लेकर राष्ट्र का हित व उसकी परम्परायें छुपी हुई हैं। कभी सोने की चिड़िया कहे जाने वाले भारत राष्ट्र को भी पराधीनता के दौर से गुजरना पड़ा। पर पराधीनता का यह जाल लम्बे समय तक हमें बाँध नहीं पाया और राष्ट्रभक्तों की बदौलत हम पुनः स्वतंत्र हो गये। स्वतंत्रता रूपी यह क्रान्ति करवटें लेती हुयी लोकचेतना की उत्ताल तरंगों से आप्लावित है। यह आजादी हमें यूँ ही नहीं प्राप्त हुई वरन् इसके पीछे शहादत का इतिहास है। लाल-बाल-पाल ने इस संग्राम को एक पहचान दी तो महात्मा गाँधी ने इसे अपूर्व विस्तार दिया। एक तरफ सत्याग्रह की लाठी और दूसरी तरफ भगतसिंह व आजाद जैसे क्रान्तिकारियों द्वारा पराधीनता के खिलाफ दिया गया इन्कलाब का अमोघ अस्त्र अंग्रेजों की हिंसा पर भारी पड़ी और अन्ततः 15 अगस्त 1947 के सूर्योदय ने अपनी कोमल रश्मियों से एक नये स्वाधीन भारत का स्वागत किया और 26 जनवरी 1950 को भारत एक गणतंत्र राष्ट्र के रूप में अवतरित हुआ।

इतिहास अपनी गाथा खुद कहता है। सिर्फ पन्नों पर ही नहीं बल्कि लोकमानस के कंठ में, गीतों और किवदंतियों इत्यादि के माध्यम से यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रवाहित होता रहता है। लोकलय की आत्मा में मस्ती और उत्साह की सुगन्ध है तो पीड़ा का स्वाभाविक शब्द स्वर भी। कहा जाता है कि पूरे देश में एक ही दिन 31 मई 1857 को क्रान्ति आरम्भ करने का निश्चय किया गया था, पर 29 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी के सिपाही मंगल पाण्डे की शहादत से उठी ज्वाला वक्त का इन्तजार नहीं कर सकी और प्रथम स्वाधीनता संग्राम का आगाज हो गया। मंगल पाण्डे के बलिदान की दास्तां को लोक चेतना में यूँ व्यक्त किया गया है- जब सत्तावनि के रारि भइलि/ बीरन के बीर पुकार भइल/बलिया का मंगल पाण्डे के/ बलिवेदी से ललकार भइल/मंगल मस्ती में चूर चलल/ पहिला बागी मसहूर चलल/गोरनि का पलटनि का आगे/ बलिया के बाँका सूर चलल।

1857 की क्रान्ति में जिस मनोयोग से पुरुष नायकों ने भाग लिया, महिलायें भी उनसे पीछे न रहीं। लखनऊ में बेगम हजरत महल तो झाँसी में रानी लक्ष्मीबाई ने इस क्रान्ति की अगुवाई की। बेगम हजरत महल ने लखनऊ की हार के बाद अवध के ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर क्रान्ति की चिन्गारी फैलाने का कार्य किया- मजा हजरत ने नहीं पाई/ केसर बाग लगाई/कलकत्ते से चला फिरंगी/ तंबू कनात लगाई/पार उतरि लखनऊ का/ आयो डेरा दिहिस लगाई/आसपास लखनऊ का घेरा/सड़कन तोप धराई। रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी वीरता से अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिये। झाँसी की रानी’ नामक अपनी कविता में सुभद्राकुमारी चैहान उनकी वीरता का बखान करती हैं, पर उनसे पहले ही बुंदेलखण्ड की वादियों में दूर-दूर तक लोक लय सुनाई देती है- खूब लड़ी मरदानी, अरे झाँसी वारी रानी/पुरजन पुरजन तोपें लगा दई, गोला चलाए असमानी/ अरे झाँसी वारी रानी, खूब लड़ी मरदानी/सबरे सिपाइन को पैरा जलेबी, अपन चलाई गुरधानी/......छोड़ मोरचा जसकर कों दौरी, ढूढ़ेहूँ मिले नहीं पानी/अरे झाँसी वारी रानी, खूब लड़ी मरदानी।

बंगाल विभाजन के दौरान 1905 में स्वदेशी-बहिष्कार-प्रतिरोध का नारा खूब चला। अंग्रेजी कपड़ों की होली जलाना और उनका बहिष्कार करना देश भक्ति का शगल बन गया था, फिर चाहे अंग्रेजी कपड़ों में ब्याह रचाने आये बाराती ही हों- फिर जाहु-फिरि जाहु घर का समधिया हो/मोर धिया रहिहैं कुंआरि/ बसन उतारि सब फेंकहु विदेशिया हो/ मोर पूत रहिहैं उघार/ बसन सुदेसिया मंगाई पहिरबा हो/तब होइहै धिया के बियाह। जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड अंग्रेजी हुकूमत की बर्बरता व नृशंसता का नमूना था। इस हत्याकाण्ड ने भारतीयों विशेषकर नौजवानों की आत्मा को हिलाकर रख दिया। गुलामी का इससे वीभत्स रूप हो भी नहीं सकता। सुभद्राकुमारी चैहान ने ‘जलियावाले बाग में वसंत’ नामक कविता के माध्यम से श्रद्धांजलि अर्पित की है-कोमल बालक मरे यहाँ गोली खा-खाकर/कलियाँ उनके लिए गिराना थोड़ी लाकर/आशाओं से भरे हृदय भी छिन्न हुए हैं/अपने प्रिय-परिवार देश से भिन्न हुए हैं/कुछ कलियाँ अधखिली यहाँ इसलिए चढ़ाना/करके उनकी याद अश्रु की ओस बहाना/तड़प-तड़पकर वृद्ध मरे हैं गोली खाकर/शुष्क पुष्प कुछ वहाँ गिरा देना तुम जाकर/यह सब करना, किन्तु बहुत धीरे-से आना/यह है शोक-स्थान, यहाँ मत शोर मचाना।

कोई भी क्रान्ति बिना खून के पूरी नहीं होती, चाहे कितने ही बड़े दावे किये जायें। भारतीय स्वाधीनता संग्राम में एक ऐसा भी दौर आया जब कुछ नौजवानों ने अंग्रेजी हुकूमत की चूल हिला दी, नतीजन अंग्रेजी सरकार उन्हें जेल में डालने के लिये तड़प उठी। उस समय अंग्रेजी सैनिकों की पदचाप सुनते ही बहनें चैकन्नी हो जाती थीं। तभी तो सुभद्राकुमारी चैहान ने ‘बिदा’ में लिखा कि- गिरफ्तार होने वाले हैं/आता है वारंट अभी/धक्-सा हुआ हृदय, मैं सहमी/हुए विकल आशंक सभी/मैं पुलकित हो उठी! यहाँ भी/आज गिरतारी होगी/फिर जी धड़का, क्या भैया की /सचमुच तैयारी होगी। आजादी के दीवाने सभी थे। हर पत्नी की दिली तमन्ना होती थी कि उसका भी पति इस दीवानगी में शामिल हो। तभी तो पत्नी पति के लिए गाती है- जागा बलम् गाँधी टोपी वाले आई गइलैं..../ राजगुरू सुखदेव भगत सिंह हो/तहरे जगावे बदे फाँसी पर चढ़ाय गइलै।

सरदार भगत सिंह क्रान्तिकारी आन्दोलन के अगुवा थे, जिन्होंने हँसते-हँसते फासी के फन्दों को चूम लिया था। एक लोकगायक भगत सिंह के इस तरह जाने को बर्दाश्त नहीं कर पाता और गाता है- एक-एक क्षण बिलम्ब का मुझे यातना दे रहा है/तुम्हारा फंदा मेरे गरदन में छोटा क्यों पड़ रहा है/मैं एक नायक की तरह सीधा स्वर्ग में जाऊँगा/अपनी-अपनी फरियाद धर्मराज को सुनाऊँगा/मैं उनसे अपना वीर भगत सिंह मांँग लाऊँगा। इसी प्रकार चन्द्रशेखर आजाद की शहादत पर उन्हें याद करते हुए एक अंगिका लोकगीत में कहा गया- हौ आजाद त्वौं अपनौ प्राणे कऽ /आहुति दै के मातृभूमि कै आजाद करैलहों/तोरो कुर्बानी हम्मै जिनगी भर नैऽ भुलैबे/देश तोरो रिनी रहेते। सुभाष चन्द्र बोस ने नारा दिया कि- ‘‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा, फिर क्या था पुरूषों के साथ-साथ महिलाएं भी उनकी फौज में शामिल होने के लिए बेकरार हो उठे - हरे रामा सुभाष चन्द्र ने फौज सजायी रे हारी/कड़ा-छड़ा पैंजनिया छोड़बै, छोड़बै हाथ कंगनवा रामा/ हरे रामा, हाथ में झण्डा लै के जुलूस निकलबैं रे हारी।

महात्मा गाँधी आजादी के दौर के सबसे बड़े नेता थे। चरखा कातने द्वारा उन्होंने स्वावलम्बन और स्वदेशी का रूझान जगाया। नौजवान अपनी-अपनी धुन में गाँधी जी को प्रेरणास्त्रोत मानते और एक स्वर में गाते- अपने हाथे चरखा चलउबै/हमार कोऊ का करिहैं/गाँधी बाबा से लगन लगउबै/हमार कोई का करिहैं। 1942 में जब गाँधी जी ने ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का आह्वान किया तो ऐसा लगा कि 1857 की क्रान्ति फिर से जिन्दा हो गयी हो। क्या बूढ़े, क्या नवयुवक, क्या पुरुष, क्या महिला, क्या किसान, क्या जवान...... सभी एक स्वर में गाँधी जी के पीछे हो लिये। ऐसा लगा कि अब तो अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाना ही होगा। गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही’ ने इस ज्वार को महसूस किया और इस जन क्रान्ति को शब्दों से यूँ सँवारा- बीसवीं सदी के आते ही, फिर उमड़ा जोश जवानों में/हड़कम्प मच गया नए सिरे से, फिर शोषक शैतानों में/सौ बरस भी नहीं बीते थे सन् बयालीस पावन आया/लोगों ने समझा नया जन्म लेकर सन् सत्तावन आया/आजादी की मच गई धूम फिर शोर हुआ आजादी का/फिर जाग उठा यह सुप्त देश चालीस कोटि आबादी का।

भारत माता की गुलामी की बेड़ियाँ काटने में असंख्य लोग शहीद हो गये, बस इस आस के साथ कि आने वाली पीढ़ियाँ स्वाधीनता की बेला में साँस ले सकें। इन शहीदों की तो अब बस यादें बची हैं और इनके चलते पीढ़ियाँ मुक्त जीवन के सपने देख रही हैं। कविवर जगदम्बा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’ इन कुर्बानियों को व्यर्थ नहीं जाने देते- शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले/वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशाँ होगा/कभी वह दिन भी आएगा जब अपना राज देखेंगे/जब अपनी ही जमीं होगी और अपना आसमाँ होगा।

देश आजाद हुआ। 15 अगस्त 1947 के सूर्योदय की बेला में विजय का आभास हो रहा था। फिर कवि लोकमन को कैसे समझाता। आखिर उसके मन की तरंगें भी तो लोक से ही संचालित होती हैं। कवि सुमित्रानन्दन पंत इस सुखद अनुभूति को यूँ सँजोते हैं-चिर प्रणम्य यह पुण्य अहन्, जय गाओ सुरगण/आज अवतरित हुई चेतना भू पर नूतन/नव भारत, फिर चीर युगों का तमस आवरण/ तरुण-अरुण-सा उदित हुआ परिदीप्त कर भुवन/सभ्य हुआ अब विश्व, सभ्य धरणी का जीवन/ आज खुले भारत के संग भू के जड़ बंधन/शांत हुआ अब युग-युग का भौतिक संघर्षण/मुक्त चेतना भारत की यह करती घोषण! देश आजाद हो गया, पर अंग्रेज इस देश की सामाजिक-सांस्कृतिक- आर्थिक व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर गये। एक तरफ आजादी की उमंग, दूसरी तरफ गुलामी की छायाओं का डर......गिरिजाकुमार माथुर ‘पन्द्रह अगस्त’ की बेला पर उल्लास भी व्यक्त करते हैं और सचेत भी करते हैं-आज जीत की रात, पहरुए, सावधान रहना/खुले देश के द्वार, अचल दीपक समान रहना/ऊँची हुई मशाल हमारी, आगे कठिन डगर है/शत्रु हट गया, लेकिन उसकी छायाओं का डर है/शोषण से मृत है समाज, कमजोर हमारा घर है/किन्तु आ रही नई जिंदगी, यह विश्वास अमर है। उल्लास और सचेतता के बीच अन्ततः 26 जनवरी 1950 को भारत एक गणतंत्र राष्ट्र के रूप में अवतरित हुआ।

स्वतंत्रता की कहानी सिर्फ एक गाथा भर नहीं है बल्कि एक दास्तान है कि क्यों हम बेड़ियों में जकड़े, किस प्रकार की यातनायें हमने सहीं और शहीदों की किन कुर्बानियों के साथ हम आजाद हुये। यह ऐतिहासिक घटनाक्रम की मात्र एक शोभा यात्रा नहीं अपितु भारतीय स्वाभिमान का संघर्ष, राजनैतिक दमन व आर्थिक शोषण के विरूद्ध लोक चेतना का प्रबुद्ध अभियान एवं सांस्कृतिक नवोन्मेष की दास्तान है। जरूरत है हम अपनी कमजोरियों का विश्लेषण करें, तद्नुसार उनसे लड़ने की चुनौतियाँ स्वीकारें और नए परिवेश में नए जोश के साथ आजादी के नये अर्थों के साथ एक सुखी व समृद्ध भारत का निर्माण करें।

61 टिप्‍पणियां:

प्रताप नारायण सिंह (Pratap Narayan Singh) ने कहा…

स्वतंत्रता की कहानी सिर्फ एक गाथा भर नहीं है बल्कि एक दास्तान है कि क्यों हम बेड़ियों में जकड़े, किस प्रकार की यातनायें हमने सहीं और शहीदों की किन कुर्बानियों के साथ हम आजाद हुये। यह ऐतिहासिक घटनाक्रम की मात्र एक शोभा यात्रा नहीं अपितु भारतीय स्वाभिमान का संघर्ष, राजनैतिक दमन व आर्थिक शोषण के विरूद्ध लोक चेतना का प्रबुद्ध अभियान एवं सांस्कृतिक नवोन्मेष की दास्तान है। जरूरत है हम अपनी कमजोरियों का विश्लेषण करें, तद्नुसार उनसे लड़ने की चुनौतियाँ स्वीकारें और नए परिवेश में नए जोश के साथ आजादी के नये अर्थों के साथ एक सुखी व समृद्ध भारत का निर्माण करें।.............
शायद कुछ कहने को शेष नही है इन शब्दों के बाद...
अत्यन्त सुंदर लेख.

अविनाश ने कहा…

अच्छा लिखा है आपने. देश प्रेम और गहरा हुआ पढ़ के. मेरे ब्लॉग पे आने और टिप्पणी करने का धन्यवाद. मेरे दूसरे ब्लॉग पर भी कभी आए,(http://avinash-theparaiah.blogspot.com/)
आशा है आपके कविता पसंद आएँगे
धन्यवाद

Akhilesh Shukla ने कहा…

आकांक्षा जी शब्द शिखर पर आपका आलेख पढ़ा। आपने बहुत ही विश्लेष्ज्ञणात्मक तरीके से गणतंत्र के महत्व को प्रतिपादित किया है। आपको मैंने प्रगतिशील आकल्प में पढ़ा जब मेरी कहानी गोमती बुआ उसमें प्रकाशित हुई थ्ीा। आपसे एक निवेदन कथा यक्र स्तरीय त्रैमासिक पत्रिका के लिए भी कुछ भेंजे आपकों प्रकाशित कर प्रसन्नता होगी। मैंने इस पत्रिका को एक अभियान के रूप में लिया है। जो अब देश भर में अपना स्थान बना चुका है।
आपका आलेख वर्तमान से लेकर अतीत तक के सफर का शब्दनाम है। मैं तो नेट से अभी ही जुड़ा हूं यह जानकार प्रसन्नता होती हैं कि इंटरनेट पर भी इतना अच्छा लिखा जा रहरा है।
अलिखेश शुक्ल
संपादक कथा चक्र
visit us at
http://katha-chakra.blogspot.com

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

बेहतरीन, सटीक एवं सामयिक आलेख के लिये आकांक्षा जी आप को बधाई........

मोहन वशिष्‍ठ ने कहा…

अरे वाह बीच में जो भोजपुरी लिखी है मजा आ गइलवा

भोजपुरी ही हे ना या मैं गलत हूं
बताना

गणतंत्र दिवस की आप सभी को ढेर सारी शुभकामनाएं

http://mohanbaghola.blogspot.com/2009/01/blog-post.html

इस लिंक पर पढें गणतंत्र दिवस पर विशेष मेरे मन की बात नामक पोस्‍ट और मेरा उत्‍साहवर्धन करें

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

किसी भी देश के साहित्यकारों ने अपनी ओजस्वी रचनाओं से अपने देश में अनेक क्रांतियों का सूत्रपात किया है.....और भारत भी इससे अछूता नहीं.....इसकी बानगी आपने अपनी रचना में इस प्रकार की रचनाओं का जिक्र और उनकी पंक्तियों को यहाँ देकर कर भी दिया है..........हर देश को हर काल में इस प्रकार के जज्बे भरी चीज़ों की आवस्यकता होती है........इस प्रकार की चीज़ें बार-बार-बार-बार चाहिए..........हर मंच पर......हर मुख से......देश को आगे बढ़ने के लिए.........आपका स्वागत है........!!

इस्लामिक वेबदुनिया ने कहा…

बहन आकांशा
आपके बारे में जाना
आपका लेखन प्रभावी लगा

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत सामयीक और सटिक आलेख. बल्कि कहूंगा बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति. बहुत शुभकामनाएं.

रामराम.

Prakash Badal ने कहा…

बढ़िया लेख। आपका स्वागत है।

अनिल कान्त ने कहा…

आपकी लेखन कला तो बहुत अच्छी है ....जितनी भी तारीफ करून कम है .....मुझे आपके लेख बहुत पसंद आये

Anil Pusadkar ने कहा…

बहुत बढिया,सटिक और सामयिक। आपको गणतंत्र दिवस की बधाई।

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत ही सामयिक और सुंदर आलेख है..............गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।

Udan Tashtari ने कहा…

इतिहास अपनी गाथा खुद कहता है..सच है और आपने जिस विशिष्ट शैली में पूरी गाथा कही-वह सच भी आनन्ददायी है. नियमित लिखते रहें, शुभकामनाऐं.

गणतंत्र दिवस की आपको ढेर सारी शुभकामनाएं.

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

सुंदर शब्दों से आपने अपने चिंतन को प्रस्तुत किया आपका यथार्थ परक चिंतन प्रणम्य है
गणतंत्र दिवस पर आपको शुभकामनाएं .. इस देश का लोकतंत्र लोभ्तंत्र से उबार कर वास्तविक लोकतंत्र हो जाएऐसी प्रभु से कामना है

Tarun ने कहा…

बहुत अच्छा लेख है और आपने काफी विस्तार से लिखा भी है, वाकई में ये सिर्फ गाथा भर नही है।

Unknown ने कहा…

सुंदर अभिव्यक्ति! बेहरीन प्रस्तुति!!

Krishna Patel ने कहा…

"happy republic day"
apne bahut achchha likha.

ilesh ने कहा…

आज जीत की रात, पहरुए, सावधान रहना/खुले देश के द्वार, अचल दीपक समान रहना/ऊँची हुई मशाल हमारी, आगे कठिन डगर है/शत्रु हट गया, लेकिन उसकी छायाओं का डर है/शोषण से मृत है समाज, कमजोर हमारा घर है/किन्तु आ रही नई जिंदगी, यह विश्वास अमर है।

Informative article n superb write...bahut hi achha likha he aapne..tah-e-dil se shukriya....badhai...Happy republic day..warm regards

Ashutosh ने कहा…

अच्छा लिखा है आपने. देश प्रेम और गहरा हुआ पढ़ के.आपका लेखन प्रभावी लगा

बेनामी ने कहा…

गंभीर भाषा में लिखा गया आपका लेख देशभक्ति से ओतप्रोत है। बधाई।

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

....बहुत खूब आकांक्षा जी, आपने तो गागर में सागर भर दिया.गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें.

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

गणतंत्र दिवस पर सुबह से वही रटी-रटाई चीजें देखते-पढ़ते हुए बोर हो गया था, पर आपकी यह रचना पढ़कर बड़ी राहत महसूस हुई. यदि कहूं की बड़ी ही खूबसूरती से इसे आपने संजोया है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी.

www.dakbabu.blogspot.com ने कहा…

लोक चेतना के बहाने स्वाधीनता का आपने अच्छा प्रवाह किया. लाजवाब प्रस्तुति के लिए बधाई.

Unknown ने कहा…

आकांक्षा जी ! आपका यह आलेख इतिहास के बिखरे पन्नों के बहाने आज के समाज को जीवंत करता है.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

इस तरह के रचनात्मक आलेख कम ही पढने को मिलते हैं, बहुत सारगर्भित लिखा है आपने आकांक्षा जी. ६० वें गणतंत्र दिवस की ढेरों शुभकामनायें !!

sandhyagupta ने कहा…

Aapne apne sargarvit lekh me motiyon ki tarah git-kavitaon ko jis prakar sajaya hai wah sarahniya hai.Is lekh me aap gagar me sagar bhar layi hain.Badhai.

बेनामी ने कहा…

एक लम्बे समय बाद ही आप आपने ब्लॉग पर अवतरित हुयीं, पर पूरे जोशो-खरोश के साथ. देश भक्ति का ऐसा बिगुल बजाया कि रोएँ खड़े हो गए. गौर करें जरा-
एक-एक क्षण बिलम्ब का मुझे यातना दे रहा है/तुम्हारा फंदा मेरे गरदन में छोटा क्यों पड़ रहा है/मैं एक नायक की तरह सीधा स्वर्ग में जाऊँगा/अपनी-अपनी फरियाद धर्मराज को सुनाऊँगा/मैं उनसे अपना वीर भगत सिंह मांग लाऊँगा।

Bhanwar Singh ने कहा…

किन शब्दों में इस बेहतरीन आलेख के लिए दो शब्द कहूं.....!!!

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

खड़ी बोली के साथ-साथ भोजपुरी और अंगिका में प्रस्तुत गीत इस लेख को विशिष्ट बनाते है.60 वें गणतंत्र दिवस की ढेरों शुभकामनायें !!

KK Yadav ने कहा…

एक तरफ सत्याग्रह की लाठी और दूसरी तरफ भगतसिंह व आजाद जैसे क्रान्तिकारियों द्वारा पराधीनता के खिलाफ दिया गया इन्कलाब का अमोघ अस्त्र अंग्रेजों की हिंसा पर भारी पड़ी और अन्ततः 15 अगस्त 1947 के सूर्योदय ने अपनी कोमल रश्मियों से एक नये स्वाधीन भारत का स्वागत किया और 26 जनवरी 1950 को भारत एक गणतंत्र राष्ट्र के रूप में अवतरित हुआ। स्वतंत्रता रूपी यह क्रान्ति करवटें लेती हुयी लोकचेतना की उत्ताल तरंगों से आप्लावित है।....देश के विभिन्न अंचलों की बोलियों-भाषाओँ के गीतों को सहेजे यह लेख एक सुन्दर भविष्य की तरफ भी संकेत करता है !!

www.dakbabu.blogspot.com ने कहा…

60 वें गणतंत्र दिवस की ढेरों शुभकामनायें !!

Vivek Ranjan Shrivastava ने कहा…

गण तंत्र सबको साथ लेकर चलने की , सबसे नीतिपूर्ण शासन विधा है , ...
अमर रहे गणतंत्र हमारा ! सार्थक लेखन हेतु बढ़ाई स्वीकारें .

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

स्वतंत्रता की कहानी सिर्फ एक गाथा भर नहीं है बल्कि एक दास्तान है कि क्यों हम बेड़ियों में जकड़े, किस प्रकार की यातनायें हमने सहीं और शहीदों की किन कुर्बानियों के साथ हम आजाद हुये। यह ऐतिहासिक घटनाक्रम की मात्र एक शोभा यात्रा नहीं अपितु भारतीय स्वाभिमान का संघर्ष, राजनैतिक दमन व आर्थिक शोषण के विरूद्ध लोक चेतना का प्रबुद्ध अभियान एवं सांस्कृतिक नवोन्मेष की दास्तान है। जरूरत है हम अपनी कमजोरियों का विश्लेषण करें, तद्नुसार उनसे लड़ने की चुनौतियाँ स्वीकारें और नए परिवेश में नए जोश के साथ आजादी के नये अर्थों के साथ एक सुखी व समृद्ध भारत का निर्माण करें....अच्छा लिखा है आपने....!

Atul Sharma ने कहा…

आपका लेख पढकर इतिहास जीवंत हो उठा। ऐसे बलिदानियों को शत शत नमन। आपको तथा आपके परिवार को गणतंत्र दिवस की ढेरों शुभकामनाएं।

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ ने कहा…

दुर्लभ, शोधपरक और सामयिक सामग्री जुटाने के लिए

और उसे बहुत सलीके से प्रस्तुत करने के लिए आभार
.







www.dwijendradwij.blogspot.com

Vivek Gupta ने कहा…

अत्यन्त सुंदर लेख | आपको गणतंत्र दिवस की बधाई।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

लोकलय की आत्मा में मस्ती और उत्साह की सुगन्ध है तो पीड़ा का स्वाभाविक शब्द स्वर भी।
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गणतँत्र दिवस की शुभेच्छाएँ और देश भक्ति से ओत प्रोत कई देशज तथा अन्य कालजयी कवियोँ
की उक्तियाँ
अपने सटीक आलेख मेँ
मोती की लडी मेँ सुवर्ण सद्रश्य पिरोये हुए
बहुत अच्छा लगा ..
आप युवा पीढी का प्रतिनिध्त्व करते हुए
लिखती रहेँ ..
बहुत शुभकामनाओँ सहित
स स्नेह,
- लावण्या

कडुवासच ने कहा…

... प्रभावशाली व प्रसंशनीय अभिव्यक्ति।

प्रेम सागर सिंह [Prem Sagar Singh] ने कहा…

आकांक्षा जी शब्द शिखर पर आपका आलेख पढ़ा।
आप को बधाई.

निर्मला कपिला ने कहा…

aapka alekh padh kar aapko naman karti hoonis pavan sngharsh ka aaj ke dinyaad karna is se badi shardhanjali aur kya ho sakti hai is samayik aur utkrisht lekh ke liye aap bdhai ki patar haim jay hind

Kaushal Kishore , Kharbhaia , Patna : कौशल किशोर ; खरभैया , तोप , पटना ने कहा…

आकांक्षा जी
सर्वप्रथम मेरी कृतज्ञता स्वीकार करें . मेरे ब्लॉग पर टिपण्णी कर आपने जो हौसला -अफजाई की उसके लिए शुक्रिया .
गणतंत्र दिवस की बधाई .
स्वत्रन्त्रता संग्राम की चेतना भारत के जन सामान्य तक मूलतः लोक गीतों के माध्यम से पहुँची.
आपने उन गीतों को अपने लेख में बहुत सुन्दरता से गुंथा है.पुरा लेख संगीतमय हो गया है और यह महज पढ़ने की चीज न रहकर गाने लायक हो गयी है.
लेकिन दुखद सन्दर्भ यह है की राष्ट्रीय आन्दोलन के वो उद्दात मूल्य जो भारतीय समाज को लोकतांत्रिकरण की और ले जातें हैं वो चौतरफा हमलों का शिकार हो रहा है.मंगलोर की घटना नवीनतम रूप है.गणतंत्र के मूल्य और उनकी रक्षा लगातार चौकसी और बलिदान की मांग करता है.
क्या आपने " आंखों देखा ग़दर "- ( माझा प्रवास - विष्णु भट्ट गोडसे वर्सैकर ) अमृतलाल नागर द्वारा हिन्दी में अनुदित , राजपाल प्रकाशन , पुस्तक पढीं हैं ?
इस किताब में १८५७ के संघर्ष का एक मात्र आंखों देखा विबरण और रानी लक्ष्मी बाई का वास्तविक चित्रण है.
सादर

गोविन्द K. प्रजापत "काका" बानसी ने कहा…

जानकारी से भरा लेख, बहुत ही उम्दा प्रस्तुति।
आपकी गद्य लेखन कला का जवाव नहीं!

आभार।

रवीन्द्र प्रभात ने कहा…

अच्छा लिखा है,आपका लेखन प्रभावी लगा,अत्यन्त सुंदर,धन्यवाद.

mala ने कहा…

आज आपका ब्लॉग देखा.... बहुत अच्छा लगा.

Jayshree varma ने कहा…

आपका आलेख पढा....... टिप्पणी के देरी के लिए क्षमा चाहूंगी...... आजादी पानेवाला आम आदमी क्या सही मायने में आजाद है..... इस आजादी की लडाई अभी अधूरी है..... आम आदमी से आजादी का संबंध पिछले ६० वर्षों में कैसा रहा है? इसके लिए बहुत कुछ करना बाकी है बहना। आगे के लिए शुभकामनाएं सदैव आपके साथ.... जय हिंद

http://thegreatindianpoliticalcircus.blogspot.com/

RADHIKA ने कहा…

वाह!आकांशा जी आपने तो बहुत ही सुंदर आलेख प्रस्तुत किया हैं ,बहुत ही बढ़िया ,-चिर प्रणम्य यह पुण्य अहन्, जय गाओ सुरगण/आज अवतरित हुई चेतना भू पर नूतन/नव भारत, फिर चीर युगों का तमस आवरण/ तरुण-अरुण-सा उदित हुआ परिदीप्त कर भुवन/सभ्य हुआ अब विश्व, सभ्य धरणी का जीवन/ आज खुले भारत के संग भू के जड़ बंधन/शांत हुआ अब युग-युग का भौतिक संघर्षण/मुक्त चेतना भारत की यह करती घोषण! यह पंक्तिया तो बहुत ही सुंदर हैं ,क्या इस कविता को आप पुरा दे सकती हैं ,और कवि का नाम भी ?vakai मैं इसे swarbaddh करना chahungi .

विधुल्लता ने कहा…

कोई भी क्रान्ति बिना खून के पूरी नहीं होती, चाहे कितने ही बड़े दावे किये जायें। भारतीय स्वाधीनता संग्राम में एक ऐसा भी दौर आया जब कुछ नौजवानों ने अंग्रेजी हुकूमत की चूल हिला दी, नतीजन अंग्रेजी सरकार उन्हें जेल में डालने के लिये तड़प उठी। उस समय अंग्रेजी सैनिकों की पदचाप सुनते ही बहनें चैकन्नी हो जाती थीं। ojse bhare aalekh ke liye badhai

बेनामी ने कहा…

बहुत सटीक अभिव्यक्ति,
गिरिजा प्रसाद माथुर जी ने बहुत खूब कहा हैं...
आज जीत की रात, पहरुए, सावधान रहना;
खुले देश के द्वार, अचल दीपक समान रहना;
ऊँची हुई मशाल हमारी, आगे कठिन डगर है;
शत्रु हट गया, लेकिन उसकी छायाओं का डर है;
शोषण से मृत है समाज, कमजोर हमारा घर है;
किन्तु आ रही नई जिंदगी, यह विश्वास अमर है।

विश्वास ही सब कुछ हैं, आशा हैं हमारे राजनेता एक बार आपके इस ब्लॉग को पढ़े, कसम से,राजनीती की सारी बीमारियाँ दूर हो जायेगी !
बहुत बहुत धन्यवाद !
सस्नेह !
दिलीप गौड़
गांधीधाम

KK Yadav ने कहा…

गाँधी जी की पुण्य-तिथि पर मेरी कविता "हे राम" का "शब्द सृजन की ओर" पर अवलोकन करें !आपके दो शब्द मुझे शक्ति देंगे !!!

Amit Kumar Yadav ने कहा…

पुण्यतिथि पर गाँधी जी को श्रद्धांजलि. सारा राष्ट्र आपके दिखाए आदर्शों का कायल है.

Bahadur Patel ने कहा…

bahut sundar likha hai aapane .

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

भाव और विचार के श्रेष्ठ समन्वय से अभिव्यक्ति प्रखर हो गई है । विषय का विवेचन अच्छा किया है । भाषिक पक्ष भी बेहतर है । बहुत अच्छा लिखा है आपने ।

मैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-आत्मविश्वास के सहारे जीतें जिंदगी की जंग-समय हो तो पढें और कमेंट भी दें-

http://www.ashokvichar.blogspot.com

vijay kumar sappatti ने कहा…

aakansha ji

aapne ye lekh likh kar bada hi anmol uphaar diya hai , maine ise save kar liya hai .. mere baccho ke liye..

aapke is saarthak lekhan par badhai..

meri nai post dekhiyenga
vijay

rajiv ने कहा…

आज की बात करें तो भी जज्बा वही है अंदाज बदल गया है. तभी तो इंडियन रिपब्लिक खड़ा है और आगे बढ़ रहा है. रिपब्लिक डे मनाते-मनाते साठ साल होने को हैं. यंग जेनरेशन पिछली पीढ़ी से किसी मायने में कम पेट्रियाटिक नहीं है. हां, एक्सपे्रशन का अंदाज थोड़ा बदल गया है. पहले रिपब्लिक डे पर सरफरोशी की तमन्ना वाले गाने ...ऐ मेरे वतन के लोगों तुमखूब लगा लो नारा...कर चले हम फिदा जान ओ तन साथियों... जरूर सुनाई पड़ता था. कहा जाता है कि लता मंगेशकर का यह गाना सुन का नेहरू जी की आं ाों में आं ाों में आंसू आ गए थे. स्कूल में फिल्म हकीकत दे ाी थी. उसमें ाी यह गाना था और मेरी भी आखों में ाी आंसू आए थे. आज भी रिपब्लिक डे पर यह गाना सुनाई पड़ता है लेकिन हकीकत कुछ और है.यंगसटर्स इससेकहीं ज्यादा पसंद करते हैं ...सुनो गौर से दुनिया वालों बुरी नजर न हमपे डालो, चाहे जितना जोर लगा लो सबसे आगे होंगे हिन्दुस्तानी ... जब चलते हैं हम ऐसे तो दिल दुश्मन के हिलते हैं... हो सकता है ढेर सारे यंगस्टर्स को याद ना हो कि इंडिया किस सन में रिपब्लिक बना था लेकिन उन्हें हर पल इंडियन होने का एहसास है. उन्हें इंडियन कांस्टीट्यूशन की प्रीएम्बल भले ही ना याद हो लेकिन यह जरूर पता है कि जब देश पर किसी तरह का संकट हो और पैनिक बटन दबा हो तो एकजुट होकर ही देश की यूनिटी और इंटिग्रिटी को इंटैक्ट रखा जा सकता है. उनके एटीट्यूड में एग्रेशन है लेकिन यह अपने वजूद को बचाने के लिए है किसी को मिटाने के लिए नहीं और यही है आज के यंगस्टर्स के एग्रेशन की पॉजिटिवटी.

rajiv ने कहा…

आज की बात करें तो भी जज्बा वही है अंदाज बदल गया है. तभी तो इंडियन रिपब्लिक खड़ा है और आगे बढ़ रहा है. रिपब्लिक डे मनाते-मनाते साठ साल होने को हैं. यंग जेनरेशन पिछली पीढ़ी से किसी मायने में कम पेट्रियाटिक नहीं है. हां, एक्सपे्रशन का अंदाज थोड़ा बदल गया है. पहले रिपब्लिक डे पर सरफरोशी की तमन्ना वाले गाने ...ऐ मेरे वतन के लोगों तुमखूब लगा लो नारा...कर चले हम फिदा जान ओ तन साथियों... जरूर सुनाई पड़ता था. कहा जाता है कि लता मंगेशकर का यह गाना सुन का नेहरू जी की आंखों में आंखों में आंसू आ गए थे. स्कूल में फिल्म हकीकत देखी थी. उसमें भी यह गाना था और मेरी भी आखों में भी आंसू आए थे. आज भी रिपब्लिक डे पर यह गाना सुनाई पड़ता है लेकिन हकीकत कुछ और है.यंगसटर्स इससेकहीं ज्यादा पसंद करते हैं ...सुनो गौर से दुनिया वालों बुरी नजर न हमपे डालो, चाहे जितना जोर लगा लो सबसे आगे होंगे हिन्दुस्तानी ... जब चलते हैं हम ऐसे तो दिल दुश्मन के हिलते हैं... हो सकता है ढेर सारे यंगस्टर्स को याद ना हो कि इंडिया किस सन में रिपब्लिक बना था लेकिन उन्हें हर पल इंडियन होने का एहसास है. उन्हें इंडियन कांस्टीट्यूशन की प्रीएम्बल भले ही ना याद हो लेकिन यह जरूर पता है कि जब देश पर किसी तरह का संकट हो और पैनिक बटन दबा हो तो एकजुट होकर ही देश की यूनिटी और इंटिग्रिटी को इंटैक्ट रखा जा सकता है. उनके एटीट्यूड में एग्रेशन है लेकिन यह अपने वजूद को बचाने के लिए है किसी को मिटाने के लिए नहीं और यही है आज के यंगस्टर्स के एग्रेशन की पॉजिटिवटी.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति है आपकी.
युवा शक्ति को समर्पित हमारे ब्लॉग पर भी आयें और देखें कि BHU में गुरुओं के चरण छूने पर क्यों प्रतिबन्ध लगा दिया गया है...आपकी इस बारे में क्या राय है ??

बेनामी ने कहा…

apki kuchh nai rachnaon ka intjar....!!!

अभिन्न ने कहा…

देश प्रेम की अभिव्यक्ति सिर्फ़ गुणगान करने में नही होती बल्कि सच्चाइयों को जानने और बाटने में भी होती है आपका लेखन प्रभावी,ज्ञानवर्धक और प्रेरणादायी है,एक बात तो यह भी सत्य है की जो आज़ादी के हीरो बनकर इतिहास की किताबों में छप गए है उनकी चकाचौंध के आगे आम आदमी और लोक जन की सहादत और कर्मठता कही दबकर रह गई है ,अनेकों अनाम और गुमनाम शहीदों को भुलाया गया है उनको स्मरण किए बिना
स्वाधीनता और स्वतंत्रता का मनन
करना अर्थहीन होगा ,सुंदर लेखन के लिए बधाई ,
जय भारत

कौशलेंद्र मिश्र ने कहा…

आपका लेख पढा.न जाने क्यों १८५७ के बाद नवजागरण कालीन उन गुमनाम साहित्यकारों व पत्रकारों को भूलती हुई प्रतीत हुई जिन्होंने अपना सबकुछ देश के लिए कुर्बान कर दिया. खास कर गणेश शंकर विद्यार्थी को जो उत्तर प्रदेश में ही शहीद हुए. प्रस्तुती के लिए साधुवाद.

Dr. Virendra Singh Yadav ने कहा…

aakanksha ji isi tarah apni lekhani ki rafatar ko banaye rakhkhe apke is mission me ham sab-sath hai ,tatha blog ki is mayaroopi jadoogary nagari me apka swagat hai.

बेनामी ने कहा…

रसात्मक और सुंदर अभिव्यक्ति