‘‘अभी से चढ़ने लगा वेलेण्टाइन-डे का खुमार‘‘ पोस्ट में हमने जिक्र किया था कि अथर्ववेद में समाहित प्रेम गीत भला किसको न बांध पायेंगे। जो लोग प्रेम को पश्चिमी चश्मे से देखने का प्रयास करते हैंए वे इन प्रेम गीतों को महसूस करें और फिर सोचें कि भारतीय प्रेम और पाश्चात्य प्रेम का फर्क क्या है. इसी क्रम में अथर्ववेद में समाहित दो प्रेम गीतों का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत है-
प्रिया आ
मत दूर जा
लिपट मेरी देह से
लता लतरती ज्यों पेड़ से
मेरे तन के तने पर
तू आ टिक जा
अंक लगा मुझे
कभी न दूर जा
पंछी के पंख कतर
ज़मीं पर उतार लाते ज्यों
छेदन करता मैं तेरे दिल का
प्रिया आ, मत दूर जा।
धरती और अंबर को
सूरज ढक लेता ज्यों
तुझे अपनी बीज भूमि बना
आच्छादित कर लूंगा तुरंत
प्रिया आ, मन में छा
कभी न दूर जा
आ प्रिया!
हे अश्विन!
ज्यों घोड़ा दौड़ता आता
प्रिया-चित्त आए मेरी
ओर
ज्यों घुड़सवार कस
लगाम
रखता अश्व वश में
रहे तेरा मन
मेरे वश में
करे अनुकरण सर्वदा
मैं खींचता तेरा चित्त
ज्यों राजअश्व खींचता
घुड़सवार
अथित करूं तेरा हृदय
आंधी में भ्रमित तिनके जैसा
कोमल स्पर्श से कर
उबटन तन पर
मधुर औषधियों से
जो बना
थाम लूं मैं हाथ
भाग्य का कस के।
प्रिया आ
मत दूर जा
लिपट मेरी देह से
लता लतरती ज्यों पेड़ से
मेरे तन के तने पर
तू आ टिक जा
अंक लगा मुझे
कभी न दूर जा
पंछी के पंख कतर
ज़मीं पर उतार लाते ज्यों
छेदन करता मैं तेरे दिल का
प्रिया आ, मत दूर जा।
धरती और अंबर को
सूरज ढक लेता ज्यों
तुझे अपनी बीज भूमि बना
आच्छादित कर लूंगा तुरंत
प्रिया आ, मन में छा
कभी न दूर जा
आ प्रिया!
हे अश्विन!
ज्यों घोड़ा दौड़ता आता
प्रिया-चित्त आए मेरी
ओर
ज्यों घुड़सवार कस
लगाम
रखता अश्व वश में
रहे तेरा मन
मेरे वश में
करे अनुकरण सर्वदा
मैं खींचता तेरा चित्त
ज्यों राजअश्व खींचता
घुड़सवार
अथित करूं तेरा हृदय
आंधी में भ्रमित तिनके जैसा
कोमल स्पर्श से कर
उबटन तन पर
मधुर औषधियों से
जो बना
थाम लूं मैं हाथ
भाग्य का कस के।
32 टिप्पणियां:
अथर्ववेद में समाहित बहुत सुन्दर प्रेम-गीत आपने प्रस्तुत किये हैं..बधाई .
वाह..अनुपम..मन को खूब भाए ये गीत.
प्रेम का पाठ जग को भारत ने ही पढाया...हमारे वेद,पुराण और साहित्य में ऐसे तमाम उद्धरण मिलते हैं.वसंत में आपकी यह सुन्दर प्रस्तुति मोहक लगी.
पाश्चात्य संस्कृति के पुजारियों को इस प्रेम-गीत से सीख लेनी चाहिए कि भारतीय परिवेश में प्रेम कितनी पुरानी परम्परा रही है.इस महान परम्परा को दर्शाने के लिए आकांक्षा जी को साधुवाद !!
...तो अब भारतीय युवा वैलेंटाइन-डे पर अथर्ववेद के प्रेम गीत गायेगा ..तथास्तु !!
बहुत खूब...आपकी हर पोस्ट बहुत सारगर्भित होती है.नई जानकारियां होती हैं.
मत दूर जा
लिपट मेरी देह से
लता लतरती ज्यों पेड़ से
मेरे तन के तने पर
तू आ टिक जा
अंक लगा मुझे
कभी न दूर जा
...अति सुन्दर भावाभिव्यक्ति !! शुभकामनायें स्वीकारें !!
आकांक्षा जी ! आपका आभार कि आपने मेरी प्रतिक्रिया का इतना सुन्दर जवाब दिया.
ज्यों घुड़सवार कस
लगाम
रखता अश्व वश में
रहे तेरा मन
मेरे वश में
करे अनुकरण सर्वदा
....इनको पढ़कर किसका मान न डोल जाये. वैलेंटाइन डे के बहाने आपने खूबसूरत गीत संजोये हैं.
रश्मि जी ! फ़िलहाल इस गीत को यहाँ पोस्ट करने की संवाहक आप ही हैं.
प्रेम गीत पढवाने के लिए आपका शुक्रिया। शायद पहली बार आना हुआ है आपके ब्लोग पर, आकर अच्छा लगा।
धरती और अंबर को
सूरज ढक लेता ज्यों
तुझे अपनी बीज भूमि बना
आच्छादित कर लूंगा तुरंत
प्रिया आ, मन में छा
कभी न दूर जा
आ प्रिया!
.....Nice one.
प्रेम एक सात्विक भाव है, तामसिक नहीं। इसलिये इसका प्रकाशन् भी सात्विक तरीके से होना चाहिये, ओछापन यहाँ भी ठीक नहीं।
मीरा और राधा के देश में प्रेम को कोई पश्चमी नज़रिए से नहीं देखता / दोनों रचनाओं में कहीं यह नहीं कहा गया है वर्णित तथ्य सार्वजानिक हों, पार्क में हों ,सबकी मौजूदगी में हो .सब को दिखा दिखा कर हो ,प्रदर्शन करके हों
सुंदर और रमणीय अभिव्यक्ति .. शुभ कामनाएं
***वैलेंटाइन डे की आप सभी को बहुत-बहुत बधाइयाँ***
प्यार भरे सुन्दर दिवस ''वैलेंटाइन डे'' की शुभकामनायें !!
पतंगा बार-बार जलता है
दिये के पास जाकर
फिर भी वो जाता है
क्योंकि प्यार
मर-मिटना भी सिखाता है !
.....मदनोत्सव की इस सुखद बेला पर शुभकामनायें !!
'शब्द सृजन की ओर' पर मेरी कविता "प्रेम" पर गौर फरमाइयेगा !!
वसंत ऋतु में पधारे मदनोत्सव पर्व का स्वागत करें. ''वैलेंटाइन डे'' की सुखद शुभकामनायें !!सुखद इसलिए कि कोई 'सेना' आपके प्यार में खलल न डाल दे !!
प्यार के इस मदनोत्सव पर याद आता है हसरत मोहानी का शेर-
लिक्खा था अपने हाथों से जो तुमने एक बार।
अब तक हमारे पास है वो यादगार खत ।।
''वैलेंटाइन डे'' पर ये गीत और सार्थक हो उठे हैं..बधाई !!
वैलेंटाइन डे की आप सभी को शुभकामनायें !!
बहुत सुंदर इसको पढ़वाने का शुक्रिया
mohak rachnayen. padhane ke liye dhanyawaad.
अति सुंदर प्रेम गीत। अथर्ववेद के प्रेम गीतों का भावानुवाद कोई आप जैसा शिक्षाविद ही कर सकता है।
संस्कृत साहित्य में प्रेम की अभिव्यक्ति कोई नयी बात नहीं. लेकिन अथर्व वेद में प्रेम गीत अवश्य मेरे लिए नयी चीज है. वेद अनेक गूढ़ रहस्यों से भरे हैं. सम्भव है इन गीतों में भी प्रेम के अलावा कोई गूढार्थ हो.
मत दूर जा
लिपट मेरी देह से
लता लतरती ज्यों पेड़ से
मेरे तन के तने पर
तू आ टिक जा
अंक लगा मुझे
कभी न दूर जा
...अति सुन्दर
bahut achcha laga aap ke blog par aakar..
kavi kulwant
http://kavikulwant.blogspot.com
नमस्ते. आपकी इतनी सारी blog/post देखके मैं घबरा गया था. फ़िर मैं एक एक कर के देखने लगा. और आपको जानने लगा. एकं मानिये आपको पड़ना बहोत ही खुस्नावर था. बहोत अच्छा लगा आपके blogs पर आके.
मैं कभी कभी हिन्दी में भी लिखता हूँ. वैसे मेरी हिन्दी उतनी अच्छी नही है, लेकिन मेरा कौशिश रहता है के मैं ठीक ठाक लिखूं...
अगर आप मेरे blog पर कभी आ सके और मेरे कवितायेँ देख सके तो मुझे बहोत अच्छा लगेगा... आपकी हर टिपण्णी ध्यान से पडूंगा और कौशिश करूँगा मेरे आने वाले लेखों में इस्तेमाल करूँ...
मेरा blog का link: Thus Wrote Tan! ...
Aapke blog per aana sukhad raha....sabhi post padhi maine ...sabhi ek se badhker ek hai....badhai...
bahut sundar geet hai.aapki har post jandar hoti hai. agar waqt mile to mera blog bhi dekhen.
अनुसन्धान परक लेखन और वो भी काव्य ...कमाल की चेतना और बौद्धिकता का समन्वय,पुराणों के रहसयमयी संसार से पाश्चात्य और आधुनिक जीवन के सन्दर्भ में आपकी खोजशिलता और रचनाधर्मिता को प्रणाम
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