अंडमान में आजकल पानी की किल्लत जोरों पर है. चारों तरफ पानी ही पानी, पर पीने को एक बूंद नहीं, यह कहावत यहाँ भली-भांति चरितार्थ होती है. सुनामी के बाद यहाँ मौसम पहले जैसा नहीं रहा, अभी से जबरदस्त गर्मी का असर दिखने लगा है. जहाँ बारिश आम बात होती थी, वहीँ अब तक हमने यहाँ मात्र एक दिन पाँच मिनट की बारिश के दर्शन किये. हर साल मई में बारिश आरंभ हो जाती है, पर इस साल लगता है वो भी जून-जुलाई तक जाएगी. तीन दिन में एक बार पानी की आपूर्ति होती है, सो पानी की महत्ता समझ में आने लगी है. बूंद-बूंद इकटठा कर रखने लगे हैं. पानी के महत्व का अहसास प्यास लगने पर ही होता है। पानी का कोई विकल्प नहीं है। इसकी एक-एक बूंद अमृत है। ऐसी में आज 'विश्व जल दिवस'(22 मार्च) की प्रासंगिकता स्वमेव समझ में आती है. इस बार विश्व जल दिवस की विषय-वस्तु भी पेय जल की गुणवत्ता है.
गौरतलब है कि वर्ष 1992 में पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन में स्वच्छ पानी के लिए एक अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाने की बात कही गयी। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 22 मार्च 1993 को पहला जल दिवस मनाने की घोषणा की, तभी से यह हर वर्ष मनाया जाता है.
आंकड़ों पर गौर करें तो संयुक्त राष्ट्र के अनुसार हर साल हम 1500 घन किमी पानी बर्बाद कर देते है. आज भी हर दिन दुनिया भर के पानी में 20 लाख टन सीवेज, औद्योगिक और कृषि कचरा डाला जाता है. यही कारण है कि दुनिया भर में 2.5 अरब लोग पर्याप्त सफाई के बिना रह रहे हैं. अभी भी इस सभ्य-सुसंस्कृत समाज में दुनिया की आबादी का 18 फीसदी या 1.2 अरब लोगों को खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है. इन सबका बेहद बुरा असर पूरी मानव जाती पर पद रहा है. जानकर आश्चर्य होगा कि युद्ध सहित सभी तरह की हिंसाओं से मरने वाले लोगों से कहीं ज्यादा लोग हर साल असुरक्षित पानी पीने से मर जाते हैं. 70 देशों के 14 करोड़ लोग आर्सेनिक युक्त पानी पीने को विवश हैं . दुनिया में सालाना होने वाली कुल मौतों में से 3.1 फीसदी पर्याप्त जल साफ-सफाई न होने से होती हैं. असुरक्षित पानी से हर साल डायरिया के चार अरब मामलों में 22 लाख मौतें होती है। भारत में बच्चों की मौत का सबसे बड़ा कारण यह बीमारी है। हर साल करीब पांच लाख बच्चे इसका शिकार बनते हैं. जरा सोचिये पानी और साफ-सफाई के अभाव में अफ्रीका को होने वाला आर्थिक नुकसान 28.5 अरब डालर या सकल घरेलू उत्पाद का पांच फीसदी है. भूजल पर आश्रित दुनिया में 24 फीसदी स्तनधारियों और 12 फीसदी पक्षी प्रजातियों की विलुप्ति का खतरा है, जबकि एक तिहाई उभयचरों पर भी यह खतरा बरकरार है.
जल-प्रदूषण और जल कि कमी को दूर करने के लिए आज पूरी दुनिया में यत्न हो रहे है।पेय जल और इसकी साफ-सफाई पर किए जाने वाले निवेश की रिटर्न दर काफी ऊंची है। हर एक रुपये निवेश पर 3 रुपये से 34 रुपये आर्थिक विकास रिटर्न का अनुमान लगाया जाता है. इन परिस्थितियों में विश्व में पानी की गुणवत्ता बनाए रखना मानव स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अति अवश्यकहो गया है। पानी की गुणवत्ता की जिम्मेदारी सरकारों और समुदायों के साथ हमारी निजी तौर पर भी है. लोगों को जल की गुणवत्ता और सेहत के बीच रिश्ते पर जागरूक कर जल की गुणवत्ता सुधारने के लिए हम भी पहल कर सकते हैं। खेती के लिए भूमि कटाव नियंत्रण और पोषक तत्व प्रबंधन योजनाओं वाली तकनीक का प्रयोग करने के साथ-साथ विषैले रसायनों का कम से कम प्रयोग होना चाहिए. यही नहीं शहरी क्षेत्रों में ज्यादातर हिस्सों में पक्के फर्श होने से पानी जमीन के अंदर न जाकर किसी जल स्त्रोत की तरफ बह जाता है। रास्ते में यह अपने साथ हमारे द्वारा बिखेरे खतरनाक रसायनों, तेल, ग्रीस, कीटनाशकों एवं उर्वरकों जैसे कई प्रदूषक तत्वों को ले जाकर पूरे जलस्त्रोत को प्रदूषित कर देता है। इसलिए इन रसायनों से जलस्त्रोतों को बचाने के लिए पक्के फर्श के विकल्पों का चुनाव करें। संभव हो तो छिद्रित फर्श बनाए जा सकते हैं। स्थानीय पौधे भी लगाए जा सकते हैं.
वाकई जल ही जीवन है. अगर अमृत कहीं है, तो यही है। अत: पेय जल की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए हम-आप अपने स्तर पर भी पहल कर सकते हैं। इसी में हमारा-आपका और आने वाली पीढ़ियों का भविष्य सुरक्षित है. तो इस विश्व जल दिवस से ही ये शुरुआत क्यों न की जाय अन्यथा काला-पानी की कहानी फिर से चरितार्थ हो जाएगी, जहाँ सब ओर पानी तो दिखता है, पर पीने को लोग तरसते हैं !!
-आकांक्षा यादव
16 टिप्पणियां:
जागरूक केर देने वाला लेख ........बहुत बढ़िया ....इस धरती का सबसे बड़ा अमृत पानी ही है ...वरना ''बिन पानी सब सून ''
सही लिखा. अंडमान में पानी की स्थिति देखकर इसकी प्रासंगिकता स्वमेव समझ में आती है.
एक बहुत अच्छी बात कही आप ने, लेकिन मैने भारत मै देखा है कोई भी इस बात को समझना नही चाहता, हर तरफ़ नदियो मे सभी लोग गंदगी डालते है.पानी को खुब बर्वाद करते है
Pani re pani...
पानी को लेकर आपकी चिंता से सहमत हूँ और सुझावों से भी..उम्दा पोस्ट.
पानी है तो जीवन है. अंडमान की छोडिये इधर मेन-लैंड में भी स्थिति वही है. विश्व जल दिवस पर आपने सचेत कर लाजवाब कार्य किया..साधुवाद.
हम तो आज से ही पानी की बचत और शुद्धिकरण में लग जायेंगे. इससे पहले क़ी देर हो जाय, मैं तो चला.
हम तो आज से ही पानी की बचत और शुद्धिकरण में लग जायेंगे. इससे पहले क़ी देर हो जाय, मैं तो चला.
Nice Post. Really its time to do somethin. Save Water, Save life.
आकांक्षा जी, आपने तो डरा ही दिया. लगता है कुछ दिनों में राशन कार्ड पर ही पानी भी मिलेगा.
पेय जल की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए हम-आप अपने स्तर पर भी पहल कर सकते हैं। इसी में हमारा-आपका और आने वाली पीढ़ियों का भविष्य सुरक्षित है...
सही कह रही हैं,अंडमान में पेय जल का यह हाल है,पता न था.
बहुत जानकारी भरी पोस्ट,धन्यवाद.
आज 'विश्व जल दिवस'(22 मार्च] पानी के महत्व का अहसास प्यास लगने पर ही होता है। पानी का कोई विकल्प नहीं है;बहुत अच्छी प्रस्तुति।
अन्डमान के पानी को काला पानी कहा जाता है लेकिन मैने वहा से ज्यादा निर्मल पानी कही नही देखा. काला पानी एक काव्य व्यन्जना लगती है क्योकि कैदियो को दूर दूर तक काले काले से पानी के सिवा कुछ दिखता हीए नही होगा.
पानी की स्थिति से हम भी रोज दो-चार होते हैं. कभी सुखा, कभी गन्दा पानी तो कभी पानी का अभाव....शायद मानवता ही खतरे में है.
वाकई जल ही जीवन है. अगर अमृत कहीं है, तो यही है। अत: पेय जल की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए हम-आप अपने स्तर पर भी पहल कर सकते हैं।....100% Agree.
हम तो आज से ही पानी की बचत और शुद्धिकरण में लग जायेंगे. इससे पहले क़ी देर हो जाय, मैं तो चला.
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