लोकसभा-विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण के प्रयास बाद क्या न्यायपालिका में भी महिलाओं के लिए आरक्षण की जरुरत है. ऐसा तब सोचने की जरुरत पड़ती है, जब 29 जजों वाले सुप्रीम कोर्ट में एक भी महिला जज नहीं दिखती है. अभी तक सुप्रीम कोर्ट में 03 ही महिला जज पहुँची हैं- फातिमा बीबी, सुजाता मनोहर और रुमा पाल. और मुख्य न्यायधीश बनने का सौभाग्य तो किसी को नहीं मिला है. क्या वाकई भारत में नारी इतनी पिछड़ी हैं. आज देश की राष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष से लेकर सबसे बड़ी प्रान्त की मुख्यमंत्री तक महिला हैं, फिर आजादी के 6 दशक बीत जाने के बाद भी कोई महिला सुप्रीम कोर्ट की मुख्य न्यायधीश पद पर क्यों नहीं पहुँची. अव्वल तो मात्र 03 महिलाएं ही यहाँ जज बनीं, यानि औसतन 20 साल में एक महिला. फिर न्यायपालिका में आरक्षण क्यों नहीं होना चाहिए?
सुनने में आ रहा है, जब पिछली बार एक महिला जज की वरिष्ठता की अनदेखी कर एक अन्य को प्रोन्नति देकर जज बनाया गया तो राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल जी ने भी यह सलाह दी थी की किसी महिला को जज क्यों नहीं बनाया जा रहा है. ऐसे में यह सवाल और भी महत्वपूर्ण हो जाता है. फ़िलहाल झारखण्ड उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायधीश ज्ञान सुधा मिश्रा जी सबसे वरिष्ठ हैं, और आशा की जानी चाहिए की शीघ्र ही उनके रूप में सुप्रीम कोर्ट को चौथी महिला जज मिलेगी. पर सवाल अभी भी वहीँ कायम है कि यह सब स्थिति देखने के बाद सुप्रीम कोर्ट में भी महिलाओं को आरक्षण क्यों न दिया जाय ??
26 टिप्पणियां:
जब लोकसभा में मिल सकता है तो न्यायपालिका में क्यों नहीं...वैसे यह सोचने वाली बात है.
सशक्त तर्कों से आपने महिला आरक्षण को जमीं दी..साधुवाद.
वाकई यह आधी आबादी के लिए दुखद ही हैं कि अब तक मात्र 3 महिला जज...खुद न्यायपालिका में महिलाओं के साथ अन्याय.
आपकी बातों से शत प्रतिशत सहमत हूँ आकांक्षा जी.
आपकी बातों से शत प्रतिशत सहमत हूँ आकांक्षा जी.
अजी अभी तो लोकसभा में ही घमासान मचा हुआ है, अब न्यायालयों में भी घमासान कराना है क्या ??
बड़ा सटीक विश्लेषण है आपका आकांक्षा जी. हर 20 साल में एक महिला जज. यह तो अन्याय ही है.
के. जी. बालाकृष्णन के लिए भी राष्ट्रपति के. आर. नारायणन को मुंह खोलना पड़ा था, तब पहली बार एक दलित यहाँ तक पहुंचा. सवर्ण पुरुषों की इस व्यवस्था में अपने लोगों को आगे लाने के लिए लोगों की वरिष्ठता तक लाँघी जाती है. फ़िलहाल देखिये पाटिल साहिबा की बात का क्या असर होता है. इन सब परिस्थितियों में तो आरक्षण लागू ही होना चाहिए अन्यथा योग्यता के गोरख धंधे में कभी दलित तो कभी महिलाएं पिसती रहेंगी.
बड़ी जटिल पहेली है ये आरक्षण..
आपकी बातों से शत प्रतिशत सहमत हूँ आकांक्षा जी.
फ़िलहाल झारखण्ड उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायधीश ज्ञान सुधा मिश्रा जी सबसे वरिष्ठ हैं, और आशा की जानी चाहिए की शीघ्र ही उनके रूप में सुप्रीम कोर्ट को चौथी महिला जज मिलेगी....आशाओं पर ही दुनिया टिकी है.
आपकी यह पोस्ट पढ़कर वाकई सोचने पर मजबूर..
इस शुभ दिन का इंतजार रहेगा.
jis din court me aisa hoga to mukadme jald nibtenge.
jis din court me aisa hoga to mukadme jald nibtenge.
jis din court me aisa hoga to mukadme jald nibtenge.
आकांक्षा जी ! बहुत ही सशक्त ,तथ्य पूर्ण और तर्कपूर्ण लेख लिखा है ! हमारी जागरूकता ही इसे आगे बढ़ाएगी ! आभार !
मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ! बिल्कुल सही फ़रमाया है आपने! उम्दा प्रस्तुती!
यदि ऐसा होगा तो भारत में नारी-सशक्तिकरण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम होगा. कम से कम तब तो भंवरी देवी जैसी बलात्कार पीड़ित को न्याय मिल सकेगा. कोई जज यह नहीं कह सकेगा कि एक सवर्ण दलित का बलात्कार नहीं कर सकता...बहुत सशक्त पोस्ट.
आपने अच्छा प्रश्न प्रस्तुत किया है.
हमे महिलाओं को समान दरजा देना चाहिये.
शुभकामनायें.
महिलाओं के लिए शुभ समाचार!
बहुत-बहुत बधाई!
Ab mahilaon ko har kheshtra mein apna parcham farane ka vaqt hai... aage aakar apne ko swayamsidha banana hoga.........
बेबाक लेखन के लिए साधुवाद
आपने अच्छा प्रश्न प्रस्तुत किया है.
हमे महिलाओं को समान दरजा देना चाहिये.
शुभकामनायें.
अले तब तो मैं भी जज बन सकूंगी...
पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ , अच्छा लगा ? पाखी belated Happy Birthday
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