आज डाटर्स डे है, यानि बेटियों का दिन. यह सितंबर माह के चौथे रविवार को मनाया जाता है अर्थात इस साल यह 26 सितम्बर को मनाया जा रहा है. गौरतलब है कि चाईल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) और यूनिसेफ ने वर्ष 2007 के सितंबर माह के चौथे रविवार यानी 23 सितंबर, 2007 को प्रथम बार 'डाटर्स-डे' मनाया था, तभी से इसे हर वर्ष मनाया जा रहा है. इस पर एक व्यापक बहस हो सकती है कि भारतीय परिप्रेक्ष्य में इस दिन का महत्त्व क्या है, पर जिस तरह से अपने देश में लिंगानुपात कम है या भ्रूण हत्या जैसी बातें अभी भी सुनकर मन सिहर जाता है, उस परिप्रेक्ष्य में जरुर इस दिन का प्रतीकात्मक महत्त्व हो सकता है. दुर्भाग्यवश हर ऐसे दिन को हम ग्रीटिंग्स-कार्ड, गिफ्ट और पार्टियों से जोड़कर देखते हैं. कार्पोरेट कंपनियों ने ऐसे दिनों का व्यवसायीकरण कर दिया है. बच्चे उनके माया-जाल में उलझते जा रहे हैं. डाटर्स डे की महत्ता तभी होगी, जब हम यह सुनिश्चित कर सकें कि-
१- बेटियों को इस धरा पर आने से पूर्व ही गर्भ में नहीं मारा जाना चाहिए।
१- बेटियों को इस धरा पर आने से पूर्व ही गर्भ में नहीं मारा जाना चाहिए।
२- बेटियों के जन्म पर भी उतनी ही खुशियाँ होंनी चाहिए, जितनी बेटों के जन्म पर।
३- बेटियों को घर में समान परिवेश, शिक्षा व व्यव्हार मिलना चाहिए. (ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी दोयम व्यवहार होता है)।
४- यह कहना कि बेटियां पराया धन होती हैं, उचित नहीं प्रतीत होता. आज के दौर में तो बेटे भी भी शादियों के बाद अपना अलग घर बसा लेते हैं।
५- बेटियों को दहेज़ के लिए प्रताड़ित करने या जिन्दा जलाने जैसी रोगी मानसिकता से समाज बाहर निकले।
६- बेटियां नुमाइश की चीज नहीं बल्कि घर-परिवार और जीवन के साथ-साथ राष्ट्र को संवारने वाली व्यक्तित्व हैं।
७-पिता की मृत्यु के बात पुत्र को ही अग्नि देने का अधिकार है, जैसी मान्यताएं बदलनी चाहियें. इधर कई लड़कियों ने आगे बढ़कर इस मान्यता के विपरीत शमशान तक जाकर सारे कार्य बखूबी किये हैं।
८-वंश पुत्रों से ही चलता है. ऐसी मान्यताओं का अब कोई आधार नहीं. लड़कियां अब माता-पिता की सम्पति में हक़दार हो चुकी हैं, फिर माता-पिता का उन पर हक़ क्यों नहीं. आखिरकार बेटियां भी तो आगे बढ़कर माता-पिता का नाम रोशन कर रही हैं.
....यह एक लम्बी सूची हो सकती है, जरुरत है इस विषय पर हम गंभीरता से सोचें की क्या बेटियों के बिना परिवार-समाज-देश का भविष्य है. बेटियों को मात्र बातों में दुर्गा-लक्ष्मी नहीं बनायें, बल्कि वास्तविकता के धरातल पर खड़े होकर उन्हें भी एक स्वतंत्र व्यक्तित्व का दर्ज़ा दें. बात-बात पर बेटियों की अस्मिता से खिलवाड़ समाज और राष्ट्र दोनों के लिए घातक है. बेटियों को स्पेस दें, नहीं तो ये बेटियां अपना हक़ लेना भी जानती हैं. आज जीवन के हर क्षेत्र में बेटियों ने सफलता के परचम फैलाये हैं, पर देश के अधिकतर भागों में अभी भी उनके प्रति व्यवहार समान नहीं है. समाज में वो माहौल बनाना चाहिए जहाँ हर कोई नि: संकोच कह सके- अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजौ !!
46 टिप्पणियां:
डाटर्स डे पर उम्दा एवं सार्थका आलेख.
दिवस विशेष की बहुत बधाई.
भाई हम तो कोई दिन विन तो मानते नहीं बस मन में हर पल बसाकर रखते हैं बेटी को। विश्वास ना आ रहा हो तो हमारी पोस्ट पढ़ ले।
सार्थक चिन्तन। आवश्यक है।
डाटर्स डे दिवस की बहुत बधाई....
डाटर्स डे पर बढ़िया विचारणीय पोस्ट.बधाई...आभार.
मेरी बेटियाँ तो मेरी प्रेरणा हैं।डाटर्स डे पर सार्थक आलेख।
आजकल तो बेटियां ही मां-बाप का ज्यादा खयाल रखती हैं। सामयिक और वैचारिक आलेख के लिए बधाई।
डाटर्स डे पर सभी को खूब सारी बधाई और प्यार ! अब कोई एक दिन नहीं बल्कि सारा वक्त ही बेटियों का है...हम बेटियां होती ही इतनी प्यारी हैं.
डाटर्स डे पर ममा को पाखी की तरफ से ढेर सारा प्यार...आप सबसे अच्छी मम्मा और मैं सबसे अच्छी बेटी...हुर्रे.
@ Samir Ji,
@ Pravin Ji,
@ Mahendra Ji,
@ Sanjay Ji,
आपको हमारा यह प्रयास पसंद आया...आभार.
@ Ajit Gupta ji,
@ Nirmla ji,
आपके विचारों की तारीफ करती हूँ.
@ Mahendra Verma ji,
बहुत सही कहा आपने की आजकल तो बेटियां ही मां-बाप का ज्यादा खयाल रखती हैं। ब्लॉग पर पधारने के लिए आभार.
@ Pakhi Betu,
U r so sweet and best daughter of The World.
Love.
हमारे लिये तो सभी दिन अपनो के लिये हे, फ़िर कोई एक दिन क्यो मनाये, सभी बेटियो को आशीर्वाद
बेटियों को स्पेस दें, नहीं तो ये बेटियां अपना हक़ लेना भी जानती हैं. आज जीवन के हर क्षेत्र में बेटियों ने सफलता के परचम फैलाये है....खूबसूरत अभिव्यक्ति, आज की बेटियां जीवन के हर सोपान पर श्रेष्ठता का परचम लहरा रही है . इस अनुपम पोस्ट के लिए बधाई.
बेटियों को स्पेस दें, नहीं तो ये बेटियां अपना हक़ लेना भी जानती हैं. आज जीवन के हर क्षेत्र में बेटियों ने सफलता के परचम फैलाये है....खूबसूरत अभिव्यक्ति, आज की बेटियां जीवन के हर सोपान पर श्रेष्ठता का परचम लहरा रही है . इस अनुपम पोस्ट के लिए बधाई.
हमें तो इस दिन के बारे में पता ही नहीं था...जानकारी हेतु आभार. डाटर्स-डे की शुभकामनायें .
पाखी के ब्लॉग से होकर यहाँ पहुंचा. पाखी ने तो बहुत सुन्दर पेंटिंग बनायी है.....डाटर्स डे पर पाखी को बहुत प्यार और आशीर्वाद...
पुत्री-दिवस पर विचारोत्तेजक पोस्ट. जब तक इन बुराइयों को ख़त्म नहीं किया जायेगा, तब तक वास्तव में बेटियों को उनका स्थान नहीं मिल पायेगा.
अक्षिता को भी उसकी खूबसूरत ड्राइंग के साथ डाटर्स डे की बधाइयाँ, होती हैं माँ की परछाइयाँ बेटियां ।
बेटियों के प्रति नजरिया बदलने की जरुरत है, नहीं तो सृष्टि का सञ्चालन भी मुश्किल हो जायेगा. इस सारगर्भित लेखन हेतु बधाइयाँ और दिवस की शुभकामनायें.
बहुत सार्थक लेख और सुझाव सटीक ...अच्छा लगा ..
बेटियां माँ के गीत और धुन होती हैं ..शुभकामनायें
@ Raj Bhatia Ji,
सही फ़रमाया आपने...पर हर दिन की अपनी विशिष्टता है.
@ SR Bharti,
@ Md. Ghazi,
@ Raghav,
@ Amit,
आपको हमारा यह प्रयास पसंद आया...आभार.
@ Md. Ghazi,
@ Raghav,
बिटिया पाखी को शुभकामनाओं के लिए भी आभार. अपना स्नेह बनाये रहें.
@ Sangita ji,
आपने सुझावों को सराहा, अच्छा लगा. वाकई यह समय की जरुरत भी है.
काश हमारे देश में आपकी कही गई बातें सोच से निकल कर हकीकत के धरातल पर आ पायें..
जन्मदिन पर आपकी शुभकामनाओं ने मेरा हौसला भी बढाया और यकीं भी दिलाया कि मैं कुछ अच्छा कर सकता हूँ.. ऐसे ही स्नेह बनाये रखें..
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (27/9/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
बच्चियों को बचाने की मुहिम चल रही है पर धीमे धीमे , आज नहीं तो कल सफलता अवश्य मिलेगी
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
प्रति रविवार एक पोस्ट का विश्लेषण, जरूर देखें
@ दीपक जी,
..धन्यवाद, आखिर प्रयास हमें ही तो करने हैं. जहाँ चाह- वहाँ राह.
@ सेंगर जी,
अगर इसी तरह हम सकारात्मक सोचें तो सफलता अवश्य मिलेगी.
@ वंदना जी,
यह शानदार चर्चा पढ़ी...इस पोस्ट की चर्चा के लिए आभार.
@ वंदना जी,
चर्चा में इस पोस्ट के प्रति आपकी भावनाएं अच्छी लगीं-
बेटियों के प्रति नजरिया बदलने की जरुरत (डाटर्स-डे पर विशेष)
जिस दिन बदल जायेगा उस दिन बेटियों की ज़िन्दगी का नक्शा ही बदल जायेगा.
समय के साथ बेटी के बारे में समाज के विचार बदल रहे हैं, लेकिन यह बदलाव केवल नगरों और शिक्षित संमाज में ही अधिक दिखाई देता है जहां बेटी के जन्म पर भी ख़ुशी मनाई जाती है और उसे वह प्यार मिलता है जो उसका अधिकार है. ज़रूरत इस बात की है की यह भावना दूर दूर गाँव तक भी पहुंचे.....आलेख में बहुत सुन्दरता से इस समस्या के निदान सुझाये हैं....बहुत प्रभावशाली अभिव्यक्ति...बधाई..
पिता की मृत्यु के बात पुत्र को ही अग्नि देने का अधिकार है, जैसी मान्यताएं बदलनी चाहियें. इधर कई लड़कियों ने आगे बढ़कर इस मान्यता के विपरीत शमशान तक जाकर सारे कार्य बखूबी किये हैं...समय के साथ बहुत कुछ बदल रहा है. ..बेहतरीन पोस्ट...शुभकामनायें.
डाटर्स डे पर आशीष और शुभकामनायें.
सही कहा आपने...समय रहते नहीं चेता गाया तो सिवाय पछतावे के कुछ हाथ नहीं बचेगा..
sarthak chintan daughters day ke mouke par....
आशा है वकत बदलेगा और बेटियां अपने हिस्से का आस्मां प्राप्त कर लेंगी !
आशा है वकत बदलेगा और बेटियां अपने हिस्से का आस्मां प्राप्त कर लेंगी !
betiyan beton se kisi mayne me peechhe nahi balki aage hain
aapka lekh mahaj ek lekh hi nahi "ek andolan avam sarthak bahas"ka amantran hai
betiyan beton se kisi mayne me peechhe nahi balki aage hain
aapka lekh mahaj ek lekh hi nahi "ek andolan avam sarthak bahas"ka amantran hai
आज की बेटियां तो बेटों से काफी आगे हैं...शानदार प्रस्तुति.
आज की बेटियां तो बेटों से काफी आगे हैं...शानदार प्रस्तुति.
बेटियों के बिना यह जग ही अधूरा है...सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई.
धन्यवाद...आप सभी को यह पोस्ट पसंद आई. ..आभार !!
मेरे एक बहुत अच्छे मित्र की दलील है कि बेटियों का शादी के बाद कोई हक़ नहीं होता क्योंकि वे दूसरे घर जाकर वह सब पाती हैं ...अतः दोनों घरों पर अधिकार ठीक नहीं ...
मेरा विचार है कि बेटी से अधिक प्यार और कोई नहीं करता ...यह बेचारी पूरे जीवन अपने माता पिता से जुडी रहती है और उनके लिए पूरे जीवन कुछ भी करने को तत्पर रहती है ! अगर मेरे जीवन में बेटी न हो तो घर नीरस हो जाएगा ! सो मेरे लिए मेरी बेटी का महत्व तमाम जग से भी अधिक है !
बढ़िया लेख के लिए शुभकामनायें
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