(नवरात्र आरंभ हो चुका है. देवी-माँ की मूर्तियाँ सजने लगी हैं. चारों तरफ भक्ति-भाव का बोलबाला है. दशहरे की उमंग अभी से दिखाई देने लगी है. इस पर क्रमश: प्रस्तुत है कृष्ण कुमार यादव जी के लेखों की सीरिज. आशा है आपको पसंद आयेगी-)
भारतीय संस्कृति में कोई भी उत्सव व्यक्तिगत नहीं वरन् सामाजिक होता है। यही कारण है कि उत्सवों को मनोरंजनपूर्ण व शिक्षाप्रद बनाने हेतु एवं सामाजिक सहयोग कायम करने हेतु इनके साथ संगीत, नृत्य, नाटक व अन्य लीलाओं का भी मंचन किया जाता है। यहाँ तक कि भरतमुनि ने भी नाट्यशास्त्र में लिखा है कि- "देवता चंदन, फूल, अक्षत, इत्यादि से उतने प्रसन्न नहीं होते, जितना कि संगीत नृत्य और नाटक से होते हैं।''
सर्वप्रथम राम चरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास ने भगवान राम के जीवन व शिक्षाओं को जन-जन तक पहुँचाने के निमित्त बनारस में हर साल रामलीला खेलने की परिपाटी आरम्भ की। एक लम्बे समय तक बनारस के रामनगर की रामलीला जग-प्रसिद्ध रही, कालांतर में उत्तर भारत के अन्य शहरों में भी इसका प्रचलन तेजी से बढ़ा और आज तो रामलीला के बिना दशहरा ही अधूरा माना जाता है। यहाँ तक कि विदेशों मे बसे भारतीयों ने भी वहाँ पर रामलीला अभिनय को प्रोत्साहन दिया और कालांतर में वहाँ के स्थानीय देवताओं से भगवान राम का साम्यकरण करके इंडोनेशिया, कम्बोडिया, लाओस इत्यादि देशों में भी रामलीला का भव्य मंचन होने लगा, जो कि संस्कृति की तारतम्यता को दर्शाता है।
भारतीय संस्कृति में कोई भी उत्सव व्यक्तिगत नहीं वरन् सामाजिक होता है। यही कारण है कि उत्सवों को मनोरंजनपूर्ण व शिक्षाप्रद बनाने हेतु एवं सामाजिक सहयोग कायम करने हेतु इनके साथ संगीत, नृत्य, नाटक व अन्य लीलाओं का भी मंचन किया जाता है। यहाँ तक कि भरतमुनि ने भी नाट्यशास्त्र में लिखा है कि- "देवता चंदन, फूल, अक्षत, इत्यादि से उतने प्रसन्न नहीं होते, जितना कि संगीत नृत्य और नाटक से होते हैं।''
सर्वप्रथम राम चरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास ने भगवान राम के जीवन व शिक्षाओं को जन-जन तक पहुँचाने के निमित्त बनारस में हर साल रामलीला खेलने की परिपाटी आरम्भ की। एक लम्बे समय तक बनारस के रामनगर की रामलीला जग-प्रसिद्ध रही, कालांतर में उत्तर भारत के अन्य शहरों में भी इसका प्रचलन तेजी से बढ़ा और आज तो रामलीला के बिना दशहरा ही अधूरा माना जाता है। यहाँ तक कि विदेशों मे बसे भारतीयों ने भी वहाँ पर रामलीला अभिनय को प्रोत्साहन दिया और कालांतर में वहाँ के स्थानीय देवताओं से भगवान राम का साम्यकरण करके इंडोनेशिया, कम्बोडिया, लाओस इत्यादि देशों में भी रामलीला का भव्य मंचन होने लगा, जो कि संस्कृति की तारतम्यता को दर्शाता है।
(क्रमश :, आगामी- अन्याय पर न्याय की विजय का प्रतीक है दशहरा)
11 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर जानकारी मिली...आभार.
विजयदशमी की शुभकामनायें.
बहुत सुंदर जानकारी, दशहरा की हार्दिक बधाई ओर शुभकामनाएँ!!!!
रामलीला देखना अभी भी बहुत अच्छा लगता है।
आकांक्षा ,तुम्हारे पाखी के ब्लॉग पर तो अक्सर आती थी ,आज यहाँ भी आना हुआ है ,काफी जानकारी से भरा हुआ है तुम्हारा ब्लॉग जिसमे तुम्हारी मेहनत साफ़ झलकती है ,एक एक करके फुर्सत से सारे लेख पढ़ते हैं और अपनी टिप्पणी भी लिखेंगे ,हमारे ब्लॉग पर तुम्हारा पहला प्रोत्साहन देखकर बहुत अच्छा लगा ...............यूँ कि झूठ तो हम बोलते नहीं .
विजयदशमी की बहुत बहुत शुभ कामनाएं आप सभी को ........
आपकी पोस्ट्स काफी जानकारी दे रही हैं. आभार
यह तो पता नही था इस जानकारी का आभार । दशहरे की अनेक शुभ कामनाएं ।
यादें ताज़ा कर दी बचपन की।
आप सभी को विजयदशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !!
यादें ताज़ा कर दी बचपन की।
आप सभी को विजयदशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !!
@ neelam,
अच्छा लगा आपका आना...बिटिया के साथ-साथ उसकी माँ पर भी नजरे-इनायत रखिये..आभार.
आप सभी लोगों ने इस पोस्ट को पसंद किया...शुभकामनाओं के लिए आप सभी का आभार !!
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