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सोमवार, 17 जनवरी 2011

मत ढूंढो कविता इसमें : वंदना गुप्ता

आज शब्द-शिखर पर प्रस्तुत है वंदना गुप्ता जी की एक कविता. वंदना अंतर्जाल पर जिंदगी एक खामोश सफ़र के माध्यम से सक्रिय हैं।



दिल से निकले उदगारों का नाम कविता है

मत बंधो इसे गद्य या पद्य में

मत ढूंढो इसमें छंदों को

जो भी दिल की हो आवाज़

उसी का नाम कविता है

क्यूँ ढूंढें हम छंदों को

जब छंद बसे हों दिल में

क्यूँ जाने हम गद्य को

जब हर लफ्ज़ में हों भाव भरे

मत रोको इन हवाओं को

जो किसी के मन में बह रही हैं

चाहे हों कविता रूपी

चाहे हों ग़ज़लों रूपी

या न भी हों मगर

साँस साँस की आवाज़ को

मत बांधो तुम पद्यों में

मत ढूंढो साहित्य इसमें

मत ढूंढो काव्य इसमें

ये तो दिलों की धड़कन हैं

जो भाव रूप में उभरी हैं

भावों में जीने वाले

क्या जाने काव्यात्मकता को

वो तो भावों को ही पीते हैं

और भावों में ही जीते हैं

बस भावाव्यक्ति के सहारे ही

दिल के दर्द को लिखते हैं

कभी पास जाओ उनके

तो जानोगे उनके दर्द को

कभी कुछ पल ठहरो

तो जानोगे उनकी गहराई को

वो तो इस महासमुद्र की

तलहटी में दबे वो रत्न हैं

जिन्हें न किसी ने देखा है

जिन्हें न किसी ने जाना है

अभी तुम क्या जानो

सागर की गहराई को

एक बार उतरो तो सही

फिर जानोगे इस आशनाई को

किसी के दिल के भावों को

मत तोड़ो व्यंग्य बाणों से

ये तो दिल की बातें हैं

दिलवाले ही समझते हैं

तुम मत ढूंढो कविता इसमें

तुम मत ढूंढो कविता इसमें !!



वंदना गुप्ता

14 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना जिसके बारे में जितना भी कहा जाए कम है! लाजवाब प्रस्तुती!

संजय भास्‍कर ने कहा…

वंदना जी......इस निशब्द करती अर्थपूर्ण रचना, के लिए आभार.....आकांक्षा जी

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

अच्छी कोशिश,धन्यवाद.

shikha varshney ने कहा…

एकदम सच्ची बात कही है.

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

वो तो भावों को ही पीते हैं
और भावों में ही जीते हैं
बस भावाभिव्यक्ति के सहारे ही
दिल के दर्द को लिखते हैं

सही कहा आपने,
भावना तो बहता नीर है, उसे स्वतंत्र बहने दिया जाना चाहिए, बिना किसी बंधन के,
चाहे किसी भी रूप में हो, वह तो दिल के पन्नों पर साकार हो ही जाएगी।

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत खुब जी धन्यवाद

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

प्रवाहमयी हो गयी कविता।

babanpandey ने कहा…

मैं तो हमेशा कागज और कलम रखता हूँ ...और जैसी भाव आये ,..तुरंत लिख लेता हूँ ./

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

सच ही तो लिखा है वंदनाजी !
जो कहना है कहते जाएँ | जो लिखना है लिखते जाएँ

शारदा अरोरा ने कहा…

खूबसूरत भाव लिये , कभी न कभी ये मन ऐसा ही बोलता है ॥
एक इसी तर्ज़ पर लिखी मेरी कविता भी हाजिर है ...
अपनी पीड़ा को बाँधोगे ,सँगीत ,बहर और काफिये में
सैलाब कहाँ बहता है , किनारे समेट के सिम्तों में बाँधो बाँधो टुकडों में , हवा और आँधियों को
कर लो तुम क़ैद गुबार, धुँए और लपटों को
पूरी कविता पढने के लिये लिंक है ...
http://sharda-arorageetgazal.blogspot.com/2009/11/blog-post.html

vandana gupta ने कहा…

आकांक्षा जी मेरी कविता को स्थान देने के लिये हार्दिक धन्यवाद्।

Ram Avtar Yadav ने कहा…

"जो भी दिल की हो आवाज़
उसी का नाम कविता है"

सत्य है, दिल की आवाज ही कविता है |

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव और खूबसूरत कविता...बधाइयाँ.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना !